नूपुर शर्मा ने क्या कहा ये महत्वपूर्ण नहीं, क्योंकि उससे ज्यादा तो खुद इस्लामिक स्कालर खुद ही बोलते हैं । उसने ऐसी कौन सी बात बोली जो उनके धर्मग्रंथों का हिस्सा नहीं ? इसलिए अगर विरोध करना था, तो विरोध उनकी अपनी पुस्तक का होना चाहिए था । पर दाग चेहरे पर है और गुस्से में शीशा फोड़ा जा रहा है ।
ये बात इस प्रसंग से जरूर साफ़ हो गई है कि कुछ भटके हुए कथित मुसलमान और दुनिया के पड़े लिखे मुसलमान ये विभाजन रेखा केवल हिन्दुओं को धोखा देने के लिए बनाई गई है । वस्तुतः मानसिकता में कोई अंतर नहीं है । एक टोपी वाले की किसी से लड़ाई हो जाए तो चाहे चौराहे का अंचर- पंचर वाला हो या पढा–लिखा मुसलमान सारे उसके समर्थन में खड़े हो जाते है । यही इस समय हो रहा है । पहले गली मोहल्ले के स्तर पर था अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर है । इन्हें सच-गलत से कोई मतलब नहीं । केवल मुसलमान के साथ खड़े होना इनका मजहबी कर्त्तव्य है।
चाहे भारत का गरीब अनपढ मुसलमान हो, कुवैत का अरबपति शैख़ हो या ट्विन टोवर तोड़ने वाले उच्च शिक्षित मुसलमान, नूपुर शर्मा मामले ने सबकी असलियत सामने ला दी है कि ये अंततः मुसलमान ही है । एक और शब्द जिसकी व्याख्या की जानी चाहिए वो है ‘ईशनिंदा’ । ‘ईश्वर’ और “ईश्वर के दूत” इन दोनों में जमीन आसमान का अंतर है । अगर अल्लाह पर कोई गलत बात कही जाए तो उसे ईशनिंदा कहा जा सकता है पर उसके दूत को ईश मान लेना मूर्खता की पराकाष्ठा है । ईश्वरीय प्रतीक माँ दुर्गा का नंगा चित्र बनाया जाये तो विचार की स्वतंत्रता और ईश्वर के दूत या पैगम्बर पर कुछ कहा जाना ईश निंदा इसे वैचारिक दोगलापन ही मानना चाहिए ।
ये अंतर भी स्पष्ट समझने योग्य है कि ‘सारे धर्म समान हैं’ या ‘सभी में एक ही बात कही गई है’, इससे बढकर मूर्खता नहीं हो सकती । धर्म, स्वयं को या परमात्मा को जानने का मार्ग है और मजहब या रिलीजन किसी कालखंड में किसी मानव द्वारा कही गई बात को आँख मीचकर मानने का । धर्म का विज्ञान से विरोध नहीं लेकिन मजहब उसके लिए विज्ञान वही है जो सैकड़ों वर्ष पहले उसके पैगम्बर ने दिया था । यदि पृथ्वी चपटी कह दी गई है तो चपटी ही मानी जानी चाहिए । अगर सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा कर रहा है तो उसे करना ही पड़ेगा । अब ये अलग बात है कि सूर्य इनके हाथ नहीं आ रहा है, वर्ना उसे पकड़कर अल्लाह की बेअदबी के आरोप में हलाल कर देते । पृथ्वी का शेप बदलना इनके हाथ में नहीं वर्ना ये उसे भी कतरकर चपटा कर देते ।
इसीलिये मैं कहता हूँ कि जो कहते है कि सारे धर्म समान हैं वे या तो मूर्ख हैं या बहुत बडे धूर्त हैं । और यह भी कि मुसलमान ख़राब नहीं खराबी इस्लाम में है । क्योंकि अगर एक दो जगह गड़बड़ होती तो इसे व्यक्तियों की गड़बड़ माना जा सकता था, लेकिन हर जगह के मुसलमान जाहिलियत दिखा रहे है तो इसका अर्थ फेक्ट्री ही खराब है । लेकिन जो इस बात को भली भाँति समझते हैं, उनकी तरफ से फिर भी एक विभाजन की रेखा खींचने की कोशिश की जा रही है कि भारतीय मुसलमान का ‘डी एन ए’ और देशों के मुसलमानों के ‘डी एन ए’ से अलग है । ये केवल मानसिक भ्रम है । क्योंकि सवाल शारीरिक संरचना का नहीं है मानसिकता का है, जो धर्म बदलते ही बदल जाती है।
ये सत्य है कि जब भी इन मुसलमानों के पूर्वजों को इस्लाम में दीक्षित किया गया था तो वे स्वेच्छा से मुस्लिम नहीं बने थे। तलवार की दम पर उनसे उनके देवता छुडाये गए थे । उनके मन में यही रहा होगा कि जब भी मौका मिला फिर अपने धर्म में आ जायेंगे । पर इन्तजार करते करते समय निकल गया और वे उसी जाहिलियत के अंग बन गए । आज भी जो लडकियां जेहाद में, चाहे जिस कारण से भी फंसी हो, सच्चाई जानने के बाद भले रोते-रोते बुर्के में जिन्दगी गुजार दे पर उनकी संताने औरंगजेब की बाप बनकर समाज में आतंक मचायेंगी ही, इसी को स्टोकहोम सिंड्रोम कहा जाता है ।
इस्लाम के उदय से लेकर आज तक गिने चुने उदाहरण को छोड़ दे तो जिन लोगों को मजबूर करके मुसलमान बनाया गया है, वे और उनकी संताने खुद तलवार की दम पर औरों को इस्लाम अपनाने पर मजबूर करती आई है । भूलने की बीमारी इसी को कहते हैं । सिन्धी समाज का कोई भी व्यक्ति जब गांधी –नेहरू या कांग्रेस के साथ खड़ा होता है तब उनकी बुद्धि पर तरस आता है कि जब ये अपनी जन्मभूमि और खुद पर हुए अत्याचार को इतनी जल्दी भूल कर अपने हत्यारों के साथ खड़े हो सकते है तो, क्या कुछ नही हो सकता ?
डी एन ए तो पाकिस्तान के मुसलमानों का छोडो अरब के मुसलमानों का भी लगभग एक ही है। भगिनी निवेदिता और एनी बेसेंट का डी एन ए हिन्दुओं का नहीं है, पर इन्हें अपने से अलग कौन मान सकता है? दूसरी और नेहरू का डी एन ए हिन्दू का है पर उनके कर्म और खुद उनके ही बयान बताते है कि ये डी एन ए वाली थ्योरी केवल कहने भर के लिए ही है. दूसरी बात इस थ्योरी से केवल हिन्दुओं में ही परिवर्तन आयेगा. क्योंकि महाभारत के प्रसंग में वे १०० और हम पांच हैं पर “हम सामने वालों के लिए १०५ हैं “ इसका प्रभाव केवल युधिष्ठिर पर ही हुआ दुर्योधन पर नहीं । और हिन्दू समाज तो आज भी उसी युधिष्ठिर का अवतार है । दिक्कत केवल ये है कि तब उसे इस बौद्धिक छलावे से बचाने के लिए तब श्रीकृष्ण थे, जिन्होंने युगधर्म के हिसाब से उन्हें झूठ बोलने पर मजबूर किया और धर्म को विजय दिला दी ।
हाँ कोई कोई विकर्ण अगर मुसलमानों में पैदा भी हो गया तो उसका अस्तित्व राष्ट्रीय मुस्लिम मंच जैसा ही होगा. जो मीडिया में तो दिखेगा पर न तो दंगे रोक सकता है और न कट्टरपंथियों पर प्रभाव डाल सकता है ।देखो भाई नूपुर प्रसंग में गाली जरूर मोदी जी को दी जा सकती है लेकिन एक बात जरूर पूछना चाहूँगा कि क्या जैसे मियाँ भाई कानपुर से लेकर क़तर और कुवैत तक रास्तों पर उतर आये क्या स्वयं को शेर कहकर मूंछ मरोड़ने वाले समाज ने दहाड़ लगाईं क्या सड़कों पर उतरे ?
मुलायम हो या दिग्विजय सिंह, घर पर सब पूजा पाठ करते है लेकिन वे जानते है कि उन्हें वोट पूजा करने वालों के नहीं मिलते या इनकी कोई राजनैतिक ताकत है ही नहीं । इसलिए मियाओं के चरणों में पड़े रहते है । इसलिए तुम चिल्ला भले लो पर कोई सुनेगा नहीं क्योंकि जो समूह धर्म के मामले में एक साथ नहीं है..उनकी कोई औकात नहीं है।इसलिए हिम्मत है तो अपनी दम पर बोलना सीखो । नूपुर और नवीन को तो सुरक्षा मिल गई पर तुम्हे क्या मिलेगा ? मुझ पर स्वयं ज़रा-जरा सी बात पर कई बार ‘एफ आई आर’ हो चुकी हैं, लेकिन क्यों गाली दूं भाजपा को ? क्योंकि जीत के लिए किसी से भी प्रीत जायज है ।
इसलिए जितना भी हो सके, भौतिक रूप एक होने का प्रयास करो । अगर १०० करोड़ हिन्दू भी एक दूसरे के लिए बोलना सीख गए तो योगी पैदा होते रहेंगे। वर्ना हिन्दू के नाम पर नेता केवल महानता गले में टांग कर घूमते रहेंगे । मूर्खता तो तुम्हारी है जो तुम धर्मराज से कृष्ण बनने की अपेक्षा कर रहे ह। ममता संविधान के नाम पर हत्याकांड करे, अरविन्द अराजकता फैलाए , भगवंत मान खालिस्तान का परचम फैलाए उन्हें कोई शर्म नहीं। लेकिन भाजपा इन्हें हटाने के लिए ३५६ का उपयोग नहीं करेगी, क्योंकि उससे बडप्पन पर आंच आएगी । और वास्तव में उस समाज के लिए तो करना भी नहीं चाहिए जो न तो एक दूसरे के साथ है और न ही अपने नेताओं के साथ। ये तो किस्मत थी कि खुलकर हिन्दुओ के लिए काम करने वाले योगी जी फिर से गिरते पड़ते चुनाव जीत गए, वरना तो क्या बचा था ?
इसलिए गाली भाजपा को मत दो वो तालिबान की तरह तो कभी नहीं हो सकती पर हिन्दू तो मुसलमान जैसे हो सकते हैं न !
– बाबा सत्यनारायण मौर्य