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फेक न्यूज, वामियों की वैचारिक विफलता

फेक न्यूज, वामियों की वैचारिक विफलता

by प्रशांत पोल
in देश-विदेश, मीडिया, युवा, राजनीति, विशेष, संघ, सामाजिक, साहित्य
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फिलहाल सोशल मीडिया पर वामियोँ के दिन अच्छे नही है, ऐसा प्रतीत हो रहा है। एलन मस्क ने ट्विटर पर पूर्ण नियंत्रण पा लिया है और इसके साथ उन्होंने ट्विटर के सी ई ओ पराग अग्रवाल और लीगल हेड विजया गड्डे को बाहर का रास्ता दिखाया। विजया गड्डे को को तो ट्विटर के सुरक्षा गार्ड ने अक्षरश: खींच के बाहर निकाला। जिस महिला ने सी ई ओ की सहायता से डोनाल्ड ट्रम्प का अकाउंट ब्लॉक किया हो, जिसके एक इशारे पर राष्ट्रीय विचारधारा के नेताओं / कार्यकर्ताओं का अकाउंट ब्लॉक होता था, उसे ही खुद ट्विटर के मुख्यालय से धक्का मारकर बाहर निकाला जाता है। यह काव्यगत न्याय है!
इसी घटनाक्रम में दिल्ली में एक छोटी सी घटना घटित होती है, जो आगे चलकर अच्छा खासा वृहत रूप धारण करती है। इन सब घटनाओं के केंद्र स्थान पर स्थित ‘द वायर’ इस वाम विचारधारा के न्यूज पोर्टल को मुंह की खानी पड़ी। सोमवार 10 अक्टूबर को ‘द वायर’ ने अपने पोर्टल पर एक स्टोरी लिखी। स्टोरी का शीर्षक था – ‘Exclusive: If BJP ‘ s Amit Malviya Reports Your Post, Instgram will Take it Down – No Questions Asked’. यह स्टोरी जान्हवी सेन ने बनाई थी। यह महिला वाम प्रसार माध्यमों की चहेती पत्रकार है। फिलहाल वामपंथीयों के ‘द वायर’ इस डिजिटल माध्यम में वह सह संपादिका है। इस स्टोरी में जान्हवी सेन सीधा आरोप करती है की अमित मालवीय के ‘मेटा समूह’ से मधुर संबंध है। अतः वे जो कहेंगे, उस सोशल मीडिया के अकाउंट को, उसकी पूछताछ तक किए बगैर, तुरंत ब्लॉक किया जाता है। अब यह मेटा समूह यानि फेसबुक, व्हाट्सएप तथा इंस्टाग्राम इन सोशल मीडिया की मूल कंपनी। ये तीन माध्यम मिल कर सोशल मीडिया जगत की कुल जमा अधिकांश जगह घेरते है। अतः यह आरोप विस्फोटक ही था।
वायर, स्क्रोल, प्रिंट जैसे वाम विचारधारा के माध्यम इस प्रकार के आरोप, राष्ट्रीय विचारधारा के कार्यकर्ताओं पर करते ही रहते है। अतः इन आरोपों में नया ऐसा कुछ नही था। पर आरोप जिस पर लगाया गया था, वह व्यक्ति महत्वपूर्ण था।
अमित मालवीय यह भाजपा आई टी सेल के प्रधान है।इसके अतिरिक्त उनके पास पश्चिम बंगाल भाजपा के सह प्रभारी की भी जिम्मेदारी है। अतः जान्हवी सेन द्वारा किया गया यह आरोप अमित मालवीय पर ना हो कर परोक्षत: भाजपा पर था। इसी बहाने ‘भाजपा किस प्रकार से सोशल मीडिया को प्रभावित कर ( वामियों की भाषा में, ‘खरीद कर’) अपने विरोधियों की आवाज बंद करती है’ यह नेरेटिव उन्हे प्रस्थापित करना था।
स्वाभाविकतः अमित मालवीय ने इसे प्रत्युत्तर देते हुए, इस आरोप को सिद्ध करने का आव्हान जान्हवी सेन को दिया। दूसरे ही दिन, अर्थात मंगलवार 11 अक्टूबर  को, मेटा के कम्युनिकेशन हेड, एंडी स्टोन ने एक वक्तव्य जारी किया, जिसमे स्पष्ट शब्दों में ‘द वायर’ के लेख में उल्लेखित सभी आरोपों को सिरे से नकारा गया। उन्होंने यह भी कहा की इस लेख में वायर ने अनेक बातें  ‘फेब्रिकेट’ की है, अर्थात बनावटी तैयार की है।
अब इस साफ और स्पष्ट नकार के बाद तो कम से कम वायर ने मौन धारण करना था। पर उन्होंने तुरंत 11अक्टूबर को ही समाचार की शैली मे एक लेख प्रकाशित किया, जिसमे मेटा के अंतर्गत कार्यालयीन ई मेल का उल्लेख किया गया था। किसी स्टिंग ऑपरेशन की भारतीय, वायर ने एंडी स्टोन और मेटा के कर्मचारियों के मध्य हुए मेल के संवाद उद्धृत किए। यह लेख जान्हवी सेन के साथ सिद्धार्थ वरदराजन ने लिखा था। हिंदी वायर पोर्टल पर इसका शीर्षक था – ‘मेटा ने क्रॉसचेक पर द वायर की रिपोर्ट को  ‘मनगढ़ंत’ कहा, आंतरिक ई मेल में साक्ष्य लीक की बात मानी’।
इसका अर्थ स्पष्ट था. ‘वायर’ जानबूझ कर इस विवाद को बढ़ाना चाहता था। इसके साथ ही, इसी बहाने से ‘भाजपा वैचारिक स्वतंत्रता को कैसे दबाती है’ यह विमर्श (नरेटिव) प्रसार माध्यमों में स्थापित करना था। और इसीलिए 16 अक्टूबर को वायर ने इस प्रकरण पर एक और स्टोरी डाली। अब इस स्टोरी में जान्हवी सेन तथा सिद्धार्थ वरदराजन के साथ देवेश कुमार का भी सहभाग हुआ। ( यह नाम याद रखें). इस लेख में पुनः इन तीनों ने उनकी बात की पुष्टि करते हुए ‘मेटा कैसे झूठ बोल रहा है’ इसे बतलाने का प्रयास किया। ‘वायर’ के हिंदी पोर्टल का शीर्षक था – ‘मेटा द्वारा आंतरिक ई मेल यू आर एल को गलत बताने के दावे का खण्डन करने वाले प्रमाण मौजूद है।’
इधर अमित मालवीय ने और उधर मेटा के प्रबंधन ने, इसे गंभीरता से लिया। दोनों ने ही  ‘द वायर’ को, उन्होंने जो कुछ लिखा उसे साबित करने  कहा। और साबित ना किए जाने पर एक बड़े न्यायालयीन दावे का सामना करना होगा, यह बता दिया।
‘द वायर’ का प्रबंधन अब जाके कही सचेत हुआ की इस मामले में हम जरा ज्यादा ही गहरे उतर गए है। दरअसल किये गए आरोप पूर्णतः असत्य थे और उसके समर्थन में दिए सबूत भी खोखले, सतही और बनावटी थे।
‘वायर’ के सामने प्रश्न था, अब इस समस्या से बाहर कैसे निकला जाए?
अभिव्यक्ति स्वतंत्रता की डिंग हांकने वाले ‘वायर’ ने इस मामले से बाहर निकलने के लिए बड़ा ही अजीब कदम उठाया, जिसे सामान्यतया कोई भी माध्यम समूह नही उठाता। ऐसी कोई गलती हो जाए तो स्टोरी देने वाले पत्रकार पर, वो माध्यम समूह, आंतरिक रूप में कार्यवाही करता है। पर लोगों के समक्ष जरूर उस पत्रकार के साथ खडा रहता हैं। यह माध्यमों प्रचलित सर्वमान्य परिपाठी है।
पर ‘वायर’ ने क्या किया?
16 अक्टूबर को प्रकाशित इस मामले की अंतिम स्टोरी में उन्होंने जान्हवी सेन और सिद्धार्थ वरदराजन के साथ ही देवेश कुमार का भी नाम दिया था। इन तीनों मे देवेश कुमार जरा ‘कच्ची लोई ‘ की कैटेगरी वाला था। यद्यपि देवेश कुमार ने अत्यधिक ईमानदारी से वामियों की लाइन अनुसार ‘वायर’ में  केंद्र शासन के विरोध में बहुत सी खरी-खोटी स्टोरीज की थी। 29 मई 2022 की उसकी स्टोरी ‘COVID- 19 : Is India Really Doing ‘Better’ than Other Countries? अनेक अर्थों में विवादास्पद थी। सरकार की धज्जियां उड़ाने के चक्कर में उसने बहुत से झूठे आंकड़े दिए थे।
इसी देवेश कुमार को बलि का बकरा बनाया गया। शायद यह पहले से ही तय था. तभी 16 अक्टूबर की स्टोरी में उसका नाम जोडा गया था। और इसीलिए वायर के प्रबंधन ने फुर्ती से दो बातें की। एक – दिल्ली पुलिस के आर्थिक अपराध विभाग में अपने ही पूर्व कर्मचारी, देवेश कुमार, के विरुद्ध शिकायत दर्ज की। शिकायत का कारण क्या? तो इस देवेश कुमार ने ‘द वायर’ को खोटी – झूठी बनावटी जानकारी दी। इसका कारण भी वायर ने ही दिया ‘देवेश कुमार मानसिकत रुप से अस्वस्थ है ‘!
इसी के साथ ‘द वायर’ ने दुसरी बात की – 10 अक्टूबर, 11 अक्टूबर और 16 अक्टूबर के अपने तीनों ही लेख (या फिर अपनी तीनों स्टोरीज) वापिस लिए। ‘वायर’ के पोर्टल पर, उस पेज पर हम जाते है तो उस स्टोरी का शीर्षक, साथ ही उसे बनाने वाले पत्रकारों के नाम दिखते है। चित्र भी दिखते है। पर साथ में मॅटर आता है – The Wire has formally retracted this article.
यह आर्टिकल्स या लेख किसी दबाववश वापिस लिये गये क्या? तो वैसा भी नहीं है। मतलब एक्सप्रेस समूह के मराठी दैनिक ‘लोकसत्ता’ के संपादक ने उनके ‘असंतांचे संत’ यह संपादकीय, ईसाई लॉबी के दबाव में लौटाया था। वैसा कुछ यहां नहीं है। ‘द वायर’ का प्रबंधन यह जान चुका है की हमारा गलत खेल उजागर हो चुका है. अतः वे लिखते है – ‘द वायर’ की मेटा कवरेज पर आंतरिक समीक्षा प्रक्रिया (Internal review process) के नतीजे आने के बाद इस रिपोर्ट को सार्वजनिक पटल से हटा दिया गया है।’
सनद रहे, पत्रकारिता की शुचिता, ईमानदारी और अभिव्यक्ति लेखन के स्वतंत्रता की डिंगे हांकने वाले, वामियाें के ‘फ्लैगशिप’ (मुख्य) माध्यम,  ‘द वायर’ पर यह मुश्किल आन पड़ी है और इसका कारण है – उनके द्वारा की गई बदमाशी का उजागर होना।
पर इतना सब किए जाने के बाद भी यह मामला समाप्त हो जाए इतना सौभाग्यशाली ‘वायर’ नही हैं। उनके इस झूठ तथा बदमाशी की भाजपा आई टी सेल के प्रमुख, अमित मालवीय ने दिल्ली पुलिस में विधिवत शिकायत दर्ज की। ‘द वायर’ का प्रबंधन, यह स्टोरी बनाने वाले जान्हवी सेन और संपादक सिद्धार्थ वरदराजन के खिलाफ एफ आई आर दाखिल की गई।
दिल्ली पुलिस ने 31 अक्टूबर को इस एफ आई आर के आधार पर ‘द वायर’ के संपादक सिद्धार्थ वरदराजन और वर्तमान संपादक एम के वेणु के  घरों पर छापे डाल कर इन दोनों के लैपटॉप तथा मोबाइल जब्त किए। इनमे बहुत सी आक्षेपार्ह जानकारी मिली है ऐसा समझा जा रहा है।
इसके बाद बहुत सी बातें घटित हुई। मुंबई पत्रकार संघ सहित अनेक पत्रकार संघों ने इस घटना पर विरोध जताया, जो स्वाभाविक था। यह लोग ‘द वायर’ के प्रबंधन जैसे अपने ही पत्रकार को तोप के मुंह मे थोड़े ही जाने देते? पर हां, ये सब पत्रकार संघ किंकर्त्तव्यमूढ़ की स्थिति में थे। आखिर सटिक विरोध किसका किया जाय? क्योंकि ‘द वायर’ के प्रबंधन ने अपनी गलती स्वीकार करते हुए वे तीनों ही लेख वापिस ले लिए थे. अर्थात अनजाने ही क्यों न हो, पर किसी षडयंत्र का हिस्सा बनना उन्होंने स्वीकार किया था और अपने ही एक पत्रकार को बलि का बकरा बनाया था। तब उनपर पुलिस कार्यवाही सही या गलत ? इस संभ्रम में अनेक पत्रकार संघ थे / हैं.
इसी दरमियान बुधवार, दो नवंबर को देवेश कुमार टाइम्स नाउ को बताते है ‘मैं मानसिक रूप में पूर्णतः स्वस्थ हूं। मुझे कुछ नहीं हुआ है और मैं पुलिस से सहयोग कर रहा हूं।’
यह मामला आगे और भी खींचेगा ऐसा दिख रहा है। पहिली बार वाम विचारधारा माध्यम के एक प्रमुख समूह को सीधा पराभव स्वीकारना पड़ा है। इसकी टीस उनके मन में होना स्वाभाविक ही है!
थोड़ा और….
1. ‘द वायर’ की इस घटना से संबंध ना होने वाला एक संयोग इसी निमित्त से दिखाई  दिया। दिनांक 10 अक्टूबर को वायर ने अमित मालवीय पर अपनी पहिली स्टोरी की, जिससे घटनाक्रम की यह मलिका बढ़ती गई। इस स्टोरी के दो दिन पूर्व ही (8 अक्टूबर को) दैनिक लोकसत्ता ने उसकी सभी संस्करणोंके, पहले पृष्ठ पर रा. स्व. संघ के सरसंघचालक डॉक्टर मोहन भागवत के नागपुर भाषण की स्टोरी बनाई। इसका शीर्षक था – ब्राह्मणांनी पापक्षालन केलं पाहिजे (ब्राह्मण अपने पाप धोएं). समाचार में भी तीन – चार जगहों पर ‘ब्राह्मण’ शब्द का उल्लेख है। अनेक अर्थों मे यह समाचार विस्फोटक था। पर मजेदार बात यह थी की समाचार मे उल्लेख किये गए 26 मिनिटों के उस भाषण में डॉक्टर मोहन भागवत जी ने एक भी.. जी हां, बिलकुल एक भी जगह ‘ब्राह्मण’ शब्द का उल्लेख ही नही किया था। फिर जिस शब्द का उल्लेख ही नही, उसे केंद्र बिंदु में रखते हुए पहिले पृष्ठ पर ऐसी चटकदार भड़काऊ खबर छापने पीछे क्या मंशा थी?
शायद वहीं थी, जो एक अलग संदर्भ में दो दिन बाद, वायर की खबर में थी!
लोकसत्ता के संपादक और प्रबंधन को इस समाचार पर लीपा पोती करनी पड़ी। खेद व्यक्त करना पड़ा। ‘द वायर’ को भी अपने तीनों लेख वापस लेने पड़े। लोकसत्ता पर धारा 153 ए, 500, 501, 502, 504 तथा 340 के अंतर्गत अपराध दाखिल हुए है। ‘द वायर’ पर दिल्ली में धारा 420, 468, 469, 475, 500, 120 बी तथा 34 के तहत जुर्म दाखिल किया गया है।
2. सिद्धार्थ वरदराजन कौन है?
‘द वायर’ के पीछे प्रमुख ताकत किसी की होगी, तो वह सिद्धार्थ वरदराजन इस शख्स की है। वाम विचारधारा से प्रतिबद्धित सिद्धार्थ के मूल पत्रकारिता में है। 1995 में ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ से उन्होंने पत्रकारिता आरंभ की। लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स और कोलंबिया युनिवर्सिटी से पढ़े वरदराजन, सन 2004 में  ‘हिंदू’ इस दैनिक में प्रविष्ठ हुए। अगले सात वर्षो में ही वे ‘हिंदु ‘ के संपादक बने। ‘हिंदु’ समाचार पत्र के लिए यह ऐतिहासिक घटना थी। क्योंकि ‘हिंदु’ चलाने वाले परिवार से बाहर का कोई पहिली बार संपादकीय कुर्सी पर बैठ रहा था।
‘सिद्धार्थ वरदराजन यह अमेरिकन नागरिक है. अतः वे ‘हिंदु’ के संपादक के लिए पात्र नहीं हैं’ इस आशय की केस सुब्रह्मण्यम स्वामी ने उस समय की थी। यद्यपि कोर्ट द्वारा उसे खारिज किए गया था। दो सालों में ही ‘हिंदु ‘ की घराना शाही से त्रस्त हो कर सिद्धार्थ वरदराजन ने दैनिक ‘हिंदु’ से स्तिफा दिया और 2015 में सिद्धार्थ भाटिया और एम के रेणु के साथ ‘द वायर’ यह न्यूज पोर्टल शुरू किया। वामपंथी इको सिस्टम के पूरे फायदे इस पोर्टल को मिलते है।
– प्रशांत पोळ
_(‘साप्ताहिक विवेक’ के ताजे अंक मे प्रकाशित मूल मराठी आलेख का हिंदी में अनुवाद. अनुवादक – अजय भालेराव)_

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