धार्मिक स्थल पर्यटन क्षेत्र न बनें !

हम सबके जीवन में पर्यटन का विशेष महत्व है। इस दुनिया में हम आए हैं तो देश-दुनिया को निकट से देखने की लालसा मन में होनी ही चाहिए। इसी दृष्टि से लोग इधर-उधर जाकर पर्यटन भी करते हैं। संसार में अनेक दर्शनीय स्थल हैं, जिनको लोग देखने जाते हैं । कुछ दर्शनीय स्थल हैं तो कुछ धार्मिक आस्था के केंद्र भी हैं, जो विभिन्न धर्मावलंबियों की भावनाओं से जुड़े हुए हैं। उनकी शुचिता-पवित्रता बरकरार रहनी चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि देश के अनेक धार्मिक स्थलों में भी अपवित्र कार्य हो रहे हैं। काशी, प्रयागराज, मथुरा, वृंदावन, अयोध्या जैसे अनेक स्थल हैं, जो सदियों से धार्मिक आस्था के केंद्र रहे हैं, लेकिन वहाँ जाकर देखें तो पाते हैं कि मांस-मदिरा का सेवन हो रहा है। अनेक होटल और दुकानें ऐसी हैं, जहां मांसाहारी भोजन और मदिरा भी परोसी जाती है। इससे धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचती है। लेकिन दुर्भाग्य से इन पर रोक नहीं लग सकी है।

इन्हीं सब बातों को देखते हुए अब जैन समाज के लोगों ने झारखंड के श्री सम्मेद शिखरजी को पर्यटन स्थल घोषित किए जाने का विरोध किया है। पूरे देश में जैन समाज निरंतर विरोध में प्रदर्शन कर रहा है । उनका कहना एकदम सही है कि जब यह स्थल पर्यटन स्थल घोषित कर दिया जाएगा तो स्वाभाविक है कि वहां तरह-तरह की दुकानें सजेंगी और मुनाफे का कारोबार करने वाले लोग वहां जमा होने लगेंगे। फिर स्वाभाविक है कि तरह-तरह के भोजनालय स्थापित किए जाएंगे। वेज और नॉनवेज का सिलसिला भी चलेगा। होटल और धर्मशालाएँ खुलेंगी। कमरों में टीवी भी चलेगा। लोग मनोरंजन करेंगे। इसलिए इस स्थल को पहले की तरह ही विशुध्द धार्मिक केंद्र रहने दिया जाना चाहिए ।

झारखंड के गिरिडीह जिले में पारसनाथ की पहाड़ियों पर स्थित यह शिखर चौबीस महान तीर्थंकरों में से बीस तीर्थंकरों की निर्वाण स्थली है। यह अपने आप मे बहुत बड़ी बात है। इस पूरी पहाड़ी को जैन समाज अपनी परम आस्था का केंद्र मानता है। यहां पहुंच कर जैन समाज के लोग सत्ताईस किलोमीटर के क्षेत्र में फैले हुए विभिन्न मंदिरों के दर्शन करते हैं । वहां पूजा अर्चना करते हैं और उसके बाद ही वे भोजन और जल ग्रहण करते हैं। ऐसे आस्था केंद्र को जब पर्यटन स्थल बना दिया जाएगा, तो स्वाभाविक है कि दीगर लोग भी उत्सुकतावश यहाँ घूमने-फिरने के हिसाब से आएंगे, जिनका की धार्मिक लगाव नहीं होगा। सिर्फ पर्यटन की दृष्टि से आएंगे और स्वाभाविक है कि इनमें अनेक लोग मांस मदिरा का सेवन करने वाले भी होंगे।

ऐसा होने से क्षेत्र की पवित्रता बाधित होगीम इसलिए केंद्र सरकार को अपने इस निर्णय पर विचार करना चाहिए और जैन समाज की भावनाओं का सम्मान करते हुए पर्यटन स्थल के निर्णय को रद्द कर देना चाहिए । सम्मेद शिखर की शुचिता को लेकर जैन समाज बेहद चिंतित है। उसी तरह हिंदू समाज भी दूसरे धर्म स्थलों में मांस मदिरा के बढ़ते सेवन को लेकर भी चिंतित है। यह चिंता जायज भी है। धर्मस्थल जाकर लोग पवित्र भावनाओं से भर जाते हैं। ईश्वर की आराधना उनके मन में पवित्रता जाग्रत करती है। लेकिन वहीं जब कोई नॉनवेज खा रहा है, कोई मदिरा का सेवन कर रहा है, तो धर्मप्राण लोगों को ठेस पहुँचती है। इसलिए सरकार को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि जितने भी धार्मिक स्थल हैं, वहां मांस-मदिरा की दुकान बिल्कुल नहीं होनी चाहिए। कम-से-कम उस क्षेत्र में तो बिल्कुल नहीं होनी चाहिए । ऐसी दुकानें शहर के बाहर की जानी चाहिए ताकि लोग विशुद्ध रूप से धर्म-कर्म में ही रमे रहें। उम्मीद की जानी चाहिए कि जैन समाज की भावनाओं का आदर करते हुए सरकार सम्मेद शिखर को पर्यटन क्षेत्र घोषित करने के अपने निर्णय को ज़रूर वापस ले लेगी।

– गिरीश पंकज

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