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माघ मास में प्रातःकाल स्नान का है विशेष महत्व

माघ मास में प्रातःकाल स्नान का है विशेष महत्व

by हिंदी विवेक
in अध्यात्म, विशेष, संस्कृति, सामाजिक
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माघ स्नान अर्थात हिंदू पञ्चाङ्ग के चंद्रमास माघ (मघायुक्ता पौर्णमासी यत्र मासे सः ) में प्रातःकाल स्नान विशेषतः तीर्थ में।अपने शरीर को स्वस्थ, पवित्र रखने के लिए नित्य स्नान आवश्यक है ही, परन्तु आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो देवता, पितर, गन्धर्व तथा सम्पूर्ण प्राणि भी हमारे स्नान से तृप्त होते हैं क्योंकि पद्मपुराण, सृष्टिखण्ड में ब्रह्मा जी का कथन है।

तिस्रःकोट्योऽर्धकोटी च यानि लोमानि मानुषे॥

स्रवंति सर्वतीर्थानि तस्मान्न परिपीडयेत्। देवाः पिबंति शिरसि श्मश्रुतः पितरस्तथा ॥

चक्षुषोरपि गंधर्वा अधस्तात्सर्वजंतवः। देवाः पितृगणाः सर्वे गंधर्वा जंतवस्तथा ॥

स्नानमात्रेण तुष्यंति स्नानात्पापं न विद्यते।

मनुष्य के शरीर में जो साढ़े तीन करोड़ रोएं हैं वो संपूर्ण तीर्थों के प्रतीक हैं। उनका स्पर्श करके जो जल गिरता है मानों सम्पूर्ण तीर्थों का ही जल गिरता है। देवता स्नान करने वाले व्यक्ति के मस्तिष्क से गिरने वाले जल को पीते हैं, पितर मूँछ-दाढ़ी के जल से तृप्त होते हैं, गन्धर्व नेत्रों का जल और सम्पूर्ण प्राणी अधोभाग का जल ग्रहण करते हैं। इस प्रकार देवता, पितर, गन्धर्व तथा सम्पूर्ण प्राणी स्नान मात्रा से संतुष्ट होते हैं। स्नान से शरीर में पाप नहीं रह जाता।

। पद्मपुराण, स्कन्दपुराण, भविष्यपुराण, नारद पुराण, मत्स्य पुराण, कूर्म पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण, निर्णयसिन्धु, महाभारत आदि ग्रंथों में माघ स्नान, सूर्य के मकर राशि में स्थित होने पर प्रातःकाल स्नान का विस्तृत वर्णन मिलता है।

स्कन्दपुराण में आया है:

“तान्येव यः पुमान् योगे सोऽमृतत्वाय कल्पते। देवा नमन्ति तत्रस्थान् यथा रङ्का धनाधिपान्॥”

जो मनुष्य कुम्भ योग में स्नान करता है, वह अमृत्व की प्राप्ति करता है। जिस प्रकार दरिद्र मनुष्य सम्पत्तिशाली को नम्रता से अभिवादन करता है, उसी प्रकार कुम्भ-पर्व में स्नान करने वाले मनुष्य को देवगण नमस्कार करते हैं।

माघ स्नान की अपूर्व महिमा का वर्णन करते हुए यहाँ तक कहा गया है की अगर माघ में प्रातःकाल स्नान किया जाए तो इस मास की प्रत्येक तिथि पर्व है। मान्यता है कि माघ मास में शीतल जल में डुबकी लगाने-नहाने वाले मनुष्य पापमुक्त होकर स्वर्गलोक जाते हैं – “माघे निमग्ना: सलिले सुशीते विमुक्तपापास्त्रिदिवं प्रयान्ति”

पद्मपुराण के उत्तरखण्ड में माघ मास के स्नान माहत्म्य का वर्णन करते हुए कहा गया है-

व्रतैर्दानैस्तपोभिश्च न तथा प्रीयते हरि:। माघमज्जनमात्रेण यथा प्रीणाति केशव:॥

प्रीतये वासुदेवस्य सर्वपापापनुक्तये। माघस्नानं प्रकुर्वीत स्वर्ग लाभाय मानव:॥

अर्थात व्रत, दान और तपस्या से भी भगवान श्रीहरि को उतनी प्रसन्नता नहीं होती, जितनी कि माघ महीने में स्नान मात्र से होती है। इसलिए स्वर्ग लाभ, सभी पापों से मुक्ति और भगवान वासुदेव की प्रीति प्राप्त करने के लिए प्रत्येक मनुष्य को माघ स्नान अवश्य करना चाहिए।

श्रीरामचरितमानस में तुलसीदासजी ने लिखा है –

माघ मकरगत रबि जब होई। तीरथपतिहिं आव सब कोई॥

देव दनुज किंनर नर श्रेनीं। सादर मज्जहिं सकल त्रिबेनीं॥

पूजहिं माधव पद जलजाता। परसि अखय बटु हरषहिं गाता॥

अर्थात माघ में जब सूर्य मकर राशि पर जाते हैं, तब सब लोग तीर्थराज प्रयाग को आते हैं। देवता, दैत्य, किन्नर और मनुष्यों के समूह सब आदरपूर्वक त्रिवेणी में स्नान करते हैं॥ श्री वेणीमाधवजी के चरणकमलों को पूजते हैं और अक्षयवट का स्पर्श कर उनके शरीर पुलकित होते हैं।

पद्मपुराण में महादेव जी कार्तिकेय से कहते हैं की चक्रतीर्थ में श्रीहरि का और मथुरा में श्रीकृष्ण का दर्शन करने से मनुष्य को जो फल मिलता है, वही माघ मास में केवल स्नान करने से मिल जाता है। जो जितेन्द्रिय, शान्तचित्त और सदाचारयुक्त होकर माघ मास में स्नान करता है, वह फिर कभी संसार-बंधन में नहीं पड़ता।

स्वर्गलोके चिरं वासो येषां मनसि वर्तते। यत्र क्वापि जले तैस्तु स्नातव्यं मृगभास्करे॥

अर्थात जिन मनुष्यों को चिरकाल तक स्वर्गलोक में रहने की इच्छा हो, उन्हें माघ मास में सूर्य के मकर राशि में स्थित होने पर पवित्र नदी में प्रात:काल स्नान करना चाहिए।

पद्मपुराण में ही वशिष्ठ जी कहते हैं – जो लोग होम, यज्ञ तथा इष्टापूर्त कर्मो के बिना ही उत्तम गति प्राप्त करना चाहते है। वे माघ में प्रातः काल घर से बाहर जल स्रोत में स्नान करे । जो गौ, भूमि, तिल, वस्त्र, सुवर्ण और धान्य आदि वस्तुओं का दान किये बिना ही स्वर्गलोक में जाना चाहते हों, वे माघ में सदा प्रातःकाल स्नान करें। जो तीन-तीन रात तक उपवास, कृच्छ और पराक आदि व्रतों के द्वारा अपने शरीर को सुखाये बिना ही स्वर्ग पाना चाहते हों, उन्हें भी माघ में सदा प्रातःकाल स्नान करना चाहिए।

पद्मपुराण के अनुसार महर्षि भृगु ने मणिपर्वत पर विद्याधर से कहा था – ‘जो मनुष्य माघ के महीने में, जब उषःकाल की लालिमा बहुत अधिक हो, गाँव से बाहर नदी या पोखर में नित्य स्नान करता है, वह पिता और माता के सात-सात पीढ़ियों का उद्धार करके स्वयं देवताओं के समान शरीर धारण कर स्वर्गलोक में चला जाता है’

गुण दश स्नानपरस्य साधो। रूपं च तेजश्च बलं च शौचम्।

आयुष्यमारोग्यमलोलुपत्वं दुःस्वप्न नाशश्च तपश्च मेधाः ॥ (दक्षस्मृति, २.१३)

प्रातः काल स्नान करने वालों को सुंदर रूप, तेज, बल, दीर्घायु, आरोग्य, मेधा आदि की प्राप्ति होती है, वह लोभ से मुक्त हो जाता है और उसे दुःस्वप्न नहीं आते हैं

कृते तपः परं ज्ञानं त्रेतायां यजनं तथा। द्वापरे च कलौ दानं माघे सर्वयुगेषु च॥

सतयुग में तपस्या को, त्रेता में ज्ञान को, द्वापर में भगवान के पूजन को और कलियुग में दान को उत्तम माना गया है, परन्तु माघ का स्नान सभी युगों में श्रेष्ठ समझा गया है।

नारद पुराण, पूर्वार्ध में कहा गया है :

मकरस्थे रवौ गङ्गा यत्र कुत्रावगाहिता । पुनाति स्नानपानाद्यैर्नयन्तीन्द्रपुरं जगत् ॥ ६–४२ ॥

सूर्य के मकर राशिपर रहते समय जहाँ कहीं भी गंगा में स्नान किया जाय , वह स्नान – पान आदिके द्वारा सम्पूर्ण जगत्‌‍को पवित्र करती और अन्तमें इन्द्रलोक पहुँचाती है।

भविष्य पुराण के अनुसार :

माघमासे रटंत्यापः किञ्चिदभ्युदिते रवौ । ब्रह्मघ्रं वा सुरापं वा कंपं तंतं पुनीमहे ॥

माघ मास में जल का यह कहना है की जो सूर्योदय होते ही मुझमें स्नान करता है, उसके ब्रह्महत्या, सुरापान आदि बड़े से बड़े पाप भी हम तत्काल धोकर उसे सर्वथा शुद्ध एवं पवित्र कर डालते हैं।माघ मास में प्रयाग संगम में स्नान का विशेष महत्व है।
महाभारत अनुशासन पर्व के अनुसार

दशतीर्थसहस्राणि तिस्रः कोटयस्तथा पराः॥
समागच्छन्ति मध्यां तु प्रयागे भरतर्षभ। माघमासं प्रयागे तु नियतः संशितव्रतः॥
स्नात्वा तु भरतश्रेष्ठ निर्मलः स्वर्गमाप्नुयात्।

हे भरत श्रेष्ठ ! माघ मास की अमावस्या को प्रयाग राज में तीन करोड़ दस हजार अन्य तीर्थों का समागम होता है। जो नियमपूर्वक उत्तम व्रत का पालन करते हुए माघ मास में प्रयाग में स्नान करता है, वह सब पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में जाता है।

माघमासे गमिष्यन्ति गंगायमुनसंगमे। ब्रह्माविष्णु महादेवरुद्रादित्यमरूद्गणा:॥

अर्थात ब्रह्मा, विष्णु, महादेव, रुद्र, आदित्य तथा मरूद्गण माघ मास में प्रयागराज के लिए यमुना के संगम पर गमन करते हैं।

मत्स्यपुराण में भी कुछ इसी प्रकार वर्णन मिलता है

षष्टितीर्थसहस्राणि षष्टिकोट्यस्तथापगाः। माघमासे गमिष्यन्ति गङ्गयमुनसङ्गमम्॥ १०७.७ ॥

गवां शतसहस्रस्य सम्यग् दत्तस्य यत् फलम्। प्रयागे माघमासे तु त्र्यहः स्नानात्तु तत् फलम्॥ १०७.८ ॥

इस प्रकार का श्लोक कूर्मपुराण में भी मिलता है

षष्टिस्तीर्थसहस्राणि षष्टिस्तीर्थशतानि च । माघमासे गमिष्यन्ति गङ्‌गायमुनसंगमम् ॥ ३८.१

गवां शतसहस्रस्य सम्यग् दत्तस्य यत् फलम् । प्रयागे माघमासे तु त्र्यहं स्नातस्य तत् फलम् ॥ ३८.२

मत्स्यपुराण में एक और श्लोक मिलता है

दशतीर्थसहस्राणि तिस्रः कोट्यस्तथापगाः। माघमासे गमिष्यन्ति गङ्गायां भरतर्षभ!॥ ११२.१६ ॥

धर्मसिन्धु के अनुसार माघमास में जो त्रिवेणी में स्नान करते हैं उनका फिर इस संसार में आगमन सौ करोड़ कल्पों में भी नहीं होता।

ब्रह्मवैवर्त पुराण जो पुरुष माघ में अरुणोदय के समय प्रयाग की गंगा में स्नान करता है, उसे दीर्घकाल तक भगवान श्रीहरि के मन्दिर में आनन्द लाभ करने का सुअवसर मिलता है। फिर वह उत्तम योनि में आकर भगवान श्रीहरि की भक्ति एवं मन्त्र पाता है; भारत में जितेन्द्रियशिरोमणि होता है।

पद्मपुराण में शिवजी नारद से कहते हैं कि जो मानव प्रयाग में माघ स्नान करता है, उसे प्राप्त होने वाले पुण्यकाल की कोई गणना नहीं है। भगवान् नारायण प्रयाग में स्नान करने वाले पुरुषों को भोग और मोक्ष प्रदान करते हैं। माघ-मकर का योग चराचर त्रिलोकी के लिए दुर्लभ है। जो इसमें यत्नपूर्वक सात, पांच अथवा तीन दिन भी प्रयाग स्नान कर लेता है

नारदपुराण, उत्तरार्ध में त्रिवेणी संगम के विशेष महत्व का विस्तृत वर्णन मिलता है जिसके कुछ अंश इस प्रकार हैं :
सा देवि दर्शनादेव ब्रह्महत्यादिहारिणी ॥ ६३–४ ॥

पश्चिमाभिमुखी गंगा कालिंद्या सह संगता । हंति कल्पशतं पापं सा माघे देवि दुर्लभा ॥ ६३–५ ॥

अमृतं कथ्यते भद्रे सा वेणी भुवि संगता । यस्यां माघे मुहूर्तं तु देवानामपि दुर्लभम् ॥ ६३–६ ॥

पृथिव्यां यानि तीर्थानि पुर्यः पुण्यास्तथा सति । स्नातुमायांति ता वेण्यां माघे मकरभास्करे ॥ ६३–७ ॥

देवि! पश्चिम वाहिनी गंगा दर्शनमात्र से ही ब्रह्महत्या आदि पापों का निवारण करने वाली है। देवि! पश्चिमाभिमुखी गङ्गा यमुना के साथ मिलती है वे सौ कल्पों का पाप हर लेती हैं। माघ मास में तो वो और भी दुर्लभ हैं। भद्रे! पृथ्वी पर वे अमृतरूप कही जाती है। गंगा और यमुना के संगम का जल ‘वेणी’ के नाम से प्रसिद्ध है, जिसमें माघ मास में दो घड़ी का स्नान देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। सती! पृथ्वी पर जितने तीर्थ तथा जितनी पुण्यपुरियां हैं, वे मकर राशि पर सूर्य के रहते हुए माघ मास में वेणी में स्नान करने के लिए आती हैं।

ब्रह्मविष्णुमहादेवा रुद्रादित्यमरुद्गणाः । गंधर्वा लोकपालाश्च यक्षकिन्नरगुह्यकाः ॥ ६३–८ ॥

अणिमादिगुणोपेता ये चान्ये तत्त्वदर्शिनः । ब्रह्माणी पार्वती लक्ष्मीः शची मेधाऽदिती रतिः ॥ ६३–९ ॥

सर्वास्ता देवपन्त्यश्च तथानागांगनाः शुभे । घृताची मेनका रंभाप्युर्वशी च तिलोत्तमा ॥ ६३–१० ॥

गणाश्चाप्सरसां सर्वे पितॄणां च गणास्तथा । स्नातुमायांति ते सर्वे माघे वेण्यां विरंचिजे ॥ ६३–११ ॥

कृते युगे स्वरूपेण कलौ प्रच्छन्नरूपिणः ॥

शुभे! ब्रह्मपुत्री मोहिनी! ब्रह्मा, विष्णु, महादेव, रूद्र, आदित्य, मरुद्रण, गन्धर्व, लोकपाल, यक्ष, किन्नर, गुह्यक, अणिमादि गुणों से युक्त अन्यान्य तत्वदर्शी पुरुष, ब्रह्माणी, पार्वती, लक्ष्मी, शची, मेधा, अदिति, रति, समस्त देवपत्नियाँ, नागपत्नियाँ तथा समस्त पितृगण – ये सब के सब माघ मास में त्रिवेणी स्नान के लिए आते हैं। सत्ययुग में तो उक्त सभी तीर्थ प्रत्यक्ष रूप से धारण करके आते थे, किंतु कलियुग में वे छिपे रूप से आते हैं।

मकरस्थे रवौ माघे गोविंदाच्युत माधवः ॥ ६३–१३ ॥

स्नानेनानेन मे देव यथोक्तफलदो भव ॥

‘गोविन्द! अच्युत! माधव! देव! मकर राशि पर सूर्य के रहते हुए माघ मास में त्रिवेणी के जल में किये हुए मेरे इस स्नान से संतुष्ट हो आप शास्त्रोक्त फल देने वाले हों। ‘

इमं मंत्रं समुच्चार्य स्नायान्मौनं समाश्रितः ॥ ६३–१४ ॥

वासुदेवं हरिं कृष्णं माधवं च स्मरेत्पुनः ॥ तप्तेन वारिणा स्नानं यद्गृहे क्रियते नरैः ॥ ६३–१५ ॥

इस मन्त्र का उच्चारण करके मौनभाव से स्नान करें। ‘वासुदेव, हरि, कृष्ण और माधव’ आदि नामों का बार-बार स्मरण करे।

प्रयागे माघमासे तुत्र्यहं स्नानस्य यद्रवेत्।

दशाश्वमेघसहस्त्रेण तत्फलं लभते भुवि॥

अर्थात माघ मास में प्रयाग प्रयाग तीर्थ पर तीन दिन स्नान करने से जो फल होता है वह फल पृथ्वी में दस हज़ार अश्वमेध यज्ञ करने से भी प्राप्त नहीं होता है।

‘पद्म पुराण’ में वसिष्ठजी कहते हैं माघ के स्नान से विपत्ति का नाश होता है और पाप नष्ट हो जाते हैं। माघस्नान सब व्रतों से बढ़कर है तथा यह सब प्रकार के दानों का फल प्रदान करने वाला है। पुष्कर, कुरुक्षेत्र, ब्रह्मावर्त, काशी, प्रयाग तथा गंगा सागर-संगम में दस वर्षों तक पवित्र शौच, संतोष आदि नियम पलने से जो फल मिलता है, वह माघ मास में 3 दिन त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा को सुबह सूर्योदय से पूर्व स्नान करने से ही मिल जाता है।

गर्ग संहिता, द्वारकाखण्ड, अध्यायः १० के अनुसार

मकरस्थे रवौ माघे प्रयागे स्नानमाचरेत् । शताश्वमेधजं पुण्यं संप्राप्नोति विदेहराट् ॥ १० ॥

तत्सहस्रगुणं पुण्यं गोमत्यां मकरे रवौ । गोमत्याश्चैव माहात्म्यं वक्तुं नालं चतुर्मुखः ॥ ११ ॥

विदेहराज ! जो मकर-राशि में सूर्य के स्थित रहते समय माघ मास में प्रयाग की त्रिवेणी में स्‍नान करता है, वह सौ अश्‍वमेध-यज्ञों का पुण्‍य फल पा लेता है; परंतु यदि वह सूर्य के मकरगत होने पर गोमती में स्‍नान कर ले तो उसे प्रयाग स्‍नान की अपेक्षा सहस्‍त्र गुना अधिक पुण्‍य प्राप्‍त होता है। गोमती का माहात्‍मय अताने में चार मुखों वाले ब्रह्मा भी समर्थ नही है।

स्कन्दपुराण तथा विष्णु पुराण ने तो प्रयाग में कुम्भ स्नान का महत्व हजार अश्वमेध यज्ञ, सौ वाजपेयी यज्ञ, लाख पृथ्वी की प्रदक्षिणा, कार्तिक में हजार गंगा स्नान, माघ में सौ गंगा स्नान, वैशाख में करोड़ नर्मदा स्नान से भी अधिक बताया है।

अश्वमेधसहस्राणि वाजपेयशतानि च।

लक्ष प्रदक्षिणा भूमेः कुम्भस्नानेन तत्फलम्॥ (विष्णुपुराण)

सहस्त्रं कार्तिके स्नानं, माघे स्नानं शतानि च।

वैशाखे नर्मदा कोटिः कुम्भस्नानेन तत्फलम्॥ (स्कन्दपुराण)

माघ स्नान में विशेष ध्यान रखने वाली कुछ बातें इस प्रकार हैं :

तीर्थस्थानादि पर या स्वदेश में रहकर नित्यप्रति स्नान – दानादि करने से अनन्त फल होता है । स्नान सूर्योदयके समय श्रेष्ठ है । उसके बाद जितना विलम्ब हो उतना ही निष्फल होता है । जहाँ भी स्नान करे, वहीं उनका स्मरण करे अथवा ‘पुष्करादिनि तीर्थाति गङ्गाद्याः सरितस्तथा । आगच्छन्तु पवित्राणि स्त्रानकाले सदा मम‘ ‘ हरिद्वारे कुशावर्ते बिल्वके नीलपर्वते । स्त्रात्वा कनखले तीर्थे पुनर्जन्म न विद्यते ॥‘ ‘अयोध्या मथुरा माया काशी काञ्ची अवन्तिका । पुरी द्वारावती ज्ञेयाः सप्तैता मोक्षदायिकाः‘ ‘गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति । नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरु‘ का उच्चारण करे ।

स्नान के आरम्भमें ‘आपस्त्वमसि देवेश ज्योतिषां पतिरेव च । पापं नाशय मे देव वाडमनः कर्मभिः कृतम् ॥ ‘ से जल की ओर ‘दुःखदारिद्रयनाशाय श्रीविष्णोस्तोषणाय च । प्रातःस्त्रानं करोम्यद्य माघे पापविनाशनम् ॥‘ से ईश्वर की प्रार्थना करे और स्नान करने के पश्चात् ‘सवित्रे प्रसवित्रे च परं धाम जले मम । त्वत्तेजसा परिभ्रष्टं पापं यातु सहस्त्रधा ॥‘ से सूर्य को अर्घ्य देकर हरि का पूजन स्मरण करे ।

माघ स्नान के लिये ब्रह्मचारी, गृहस्थ, संन्यासी और वनवासी – चारों आश्रमों के; ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र चारों वर्णोंके; बाल, युवा और वृद्ध – तीनों अवस्थाओं के स्त्री, पुरुष या नपुंसक जो भी हों, सबको आज्ञा है; सभी यथा नियम नित्यप्रति माघस्त्रान कर सकते हैं ।

भविष्य पुराण, उत्तरपर्व, अध्याय 122 के अनुसार “यस्य हस्तौ च पादौ च वाङ्मनस्तु सुसंयतम् । विद्या तपश्च कीर्तिश्च स तीर्थफलमश्नुते ॥ ३ ॥ अश्रद्दधानः पापात्मा नास्तिकोऽच्छिन्नसंशयः । हेतुनिष्ठाश्च पञ्चैते न तीर्थफलभागिनः ॥४॥” अर्थात जिसके हाथ, पाँव, वाणी, मन अछि तरह संयत हैं और जो विद्या, तप तथा कीर्ति से समन्वित हैं, उन्हें ही तीर्थ, स्नान-दान आदि पुण्य कर्मों का शास्त्रों में निर्दिष्ट फल प्राप्त होता है . परन्तु श्रद्धाहीन, पापी, नास्तिक, संशयात्मा और हेतुवादी (कुतार्किक) इन पाँच व्यक्तियों को शास्त्रोक्त तीर्थ-स्नान आदि का फल नहीं मिलता।

स्नान की अवधि या तो पौष शुक्ल एकादशीसे माघ शुक्ल एकादशी तक या पौष शुक्ल पूर्णिमा से माघ शुक्ल पूर्णिमा तक अथवा मकरार्क में (मकर राशि पर सूर्य आये, उस दिनसे कुम्भ राशिपर जाने तक) नित्य स्नान करे और उसके अनन्तर यथावकाश मौन रहे । ‘मासपर्यन्त स्नानासम्भवे तु त्र्यहमेकाहं वा स्नायात्।‘ (निर्णयसिन्धु) इसके अनुसार, कदाचित् अशक्तावस्था में यदि पूरे मास का नियम न ले सके तो हमारे हिन्दू धर्मग्रन्थों में यह भी व्यवस्था दी गयी है कि माघ में तीन दिन अथवा एक दिन अवश्य माघ-स्नान-व्रत का पालन करे। कुछ शास्त्र यह तीन दिन माघ शुक्ल सप्तमी से तीन दिन बताते हैं, कुछ माघ शुक्ल दशमी से तीन दिन, कुछ मकर संक्रांति से तीन दिन, कुछ माघ मास के प्रथम तीन दिन और कुछ माघ के अंतिम तीन दिन।
भगवान का भजन, यजन करे ।

इस प्रकार काम, क्रोध, मद, मोहादि त्यागकर भक्ति, श्रद्धा, विनय – नम्रता, स्वार्थत्याग और विश्वास – भावके साथ स्नान करे तो अश्वमेधादिके समान फल होता है और सब प्रकारके पाप – ताप तथा दुःख दूर हो जाते हैं ।

– लोकेश अग्रवाल

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