“वासना” में कामुकता मुख्य है । इसमें बरती गई ज्यादती जिंदगी की जड़ों पर कुल्हाड़े से किए जाने वाले वार की तरह घातक सिद्ध होती है । “वासना” की ललक में मनुष्य इससे जुड़ी सारी मान – मर्यादा को भूल जाते हैं । जीवनी शक्ति के इस खजाने का नाश करने की उतावली इस तरह बरतते हैं मानो इसमें फायदा ही फायदा हो । चासनी में बुरी तरह से टूट पड़ने वाली मक्खी जिस तरह अपने पंख उसमें फँसाती है और बेमौत मारी जाती है, वैसी ही बुरी दशा कामुकों की होती है ।
इस कार्य में पशु मनुष्य से अधिक समझदार निकलते हैं । वे कुदरत के नियम के अनुसार ठीक समय पर ही वंशवृद्धि का काम करते हैं । संयम – नियम से रहकर समझदारी का बेहतरीन उदाहरण देते हैं और स्वस्थ तथा सुखी रहते हैं । मनुष्य इसको मनोरंजन और खेल मानकर घोर असंयम और मूर्खता भरा जीवन जीता देखा जाता है ।
“वासना” आदमी को नींबू की तरह निचोड़कर रख देती है। यह जिंदगी में सेहत, तंदुरुस्ती और हंँसी- खुशी जैसा सब कुछ निचोडकर छिलके की तरह खोखला बनाकर छोड़ देती है । कमजोर शरीर तरह-तरह की बीमारियों का अड्डा बन जाता है । मन कभी भारी, उदास तो कभी चंचल, अशांत रहता है । किसी काम में मन ठीक से नहीं लगता । किसी विषय पर एकाग्रता भी सध नहीं पाती । ऐसे में न तो जीवन में कोई बड़ी सफलता की आशा की जा सकती है और न ही समाज में सम्मान श्रेय की, क्योंकि ऐसे में व्यक्तित्व अप्रामाणिक और अविश्वसनीय स्तर का ही रह जाता है । फिर ऊँचे आदर्शों पर चलने की बात तो सोच तक ही सीमित रह जाती है ।
रोगी शरीर और कमजोर मन पर छोटी छोटी बातें भारी प्रभाव डालती है । मिजाज क्रोध, भय, ईर्ष्या, द्वेष, चिंता जैसे मानसिक आवेगो से अशांत और विक्षुब्ध रहता है, किंतु वासना की आग है कि शांत होती ही नहीं । ऐसे ऐसे आपराधिक और पैशाचिक दुष्कर्म कर बैठती है कि जिंदगी भर पश्चाताप की आग में जलना पड़ता है ।
अतः जीवन लक्ष्य के प्रति जागरुक और इसे सुधारने – संवारने में उत्सुक हर मनुष्य का यह परम कर्तव्य बन जाता है कि जीवनी शक्ति के खजाने को बर्बादी से बचाएंँ और संयमित जीवन का आदर्श अपनाएंँ ।