खोज विज्ञान की… आध्यात्म की!

विश्व की उत्पत्ति करने वाले ‘ईश्वरीय कण’ भले ही अभी-अभी विज्ञान को प्राप्त हुए हो, लेकिन एक दिन ‘सम्पूर्ण ईश्वर‘ भी, जोकि असंख्य ऐसे कणों से बना है, शोध के जरिए विज्ञान को मिल जाएगा। अध्यात्म तो कब से इस विषय में शोध कर करोड़ों लोगों को इस मार्ग पर ला चुका है।

कुछ समय पहले अखबार में खबर आई थी कि भारतीय भौतिक विज्ञानी श्री सत्येंद्रनाथ बोस के सिद्धांत पर श्री पीटर हिग्ज ने शोध कर ईश्वरीय कणों  की खोज की और उसे नाम दिया ‘हिग्ज बोसॉन’। उनके अनुसार वातावरण में असंख्य कण हैं जिनमें से इन दिव्य दैवी कणों को वैज्ञानिक अनुसंधान के जरिए खोजा गया है।

मुझे इस खबर से एक बात अच्छी लगी कि जिन आध्यात्मिक अनुभवों का समाज के कुछ बुद्धिजीवी हमेशा मजाक उड़ाते थे, उसी समाज के वैज्ञानिकों ने अनुसंधान के बाद ईश्वरीय कणों के अस्तित्व को स्वीकार किया। विज्ञान और आध्यात्मिकता ने एक-दूसरे से हाथ मिलाया। वैसे आज के दौर में अध्यात्म में खोज करने के लिए कई सकारात्मक कदम उठाए गए हैं।

देखा जाए तो पाश्चात्य देशों द्वारा विकसित की गई क्रांतिकारी चीजों की बुनियाद भारतीय तत्त्वज्ञान एवं वेदों पर आधारित है। फिर चाहे वह राईट बंधु का हवाई जहाज हो या आधुनिक चिकित्सा शास्त्र, क्षेपणास्त्र हो या परमाणु बम। मूल तत्त्वज्ञान भारतीय वेदशास्त्र ही है। हम भारतवासी पाश्चात्य लोगों के बड़े प्रशंसक होते हैं। उनकी प्रशंसा न करें, ऐसा मैं नहीं कहता, परंतु जिस देश की क्रांतिकारी एवं हजारों साल पुरानी संस्कृति ने पाश्चात्य देशों को अनुसंधान करने पर मजबूर किया उस देश पर याने हमारे भारत देश पर हमने सदा अन्याय किया।

मैं अध्यात्म शास्त्र का विश्वभर में प्रचार कर रहा हूं। मेरी योग साधना को इस साल 50 वर्ष पूरे हो रहे हैं और लगभग 54 देशों में मैं जा चुका हूं। मेरे सद्गुरूजी की आज्ञानुसार प्राचीन क्रियायोग शास्त्र का प्रचार कर रहा हूं। कुछ साल पहले लिस्बन (पुर्तगाल) में विश्व योग दिवस का उद्घाटन करने का सम्मान मुझे प्राप्त हुआ। दुनिया भर से आमंत्रित प्रतिनिधियों में जुड़वा भाई व प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक श्री आई. बोगनॉडफ एवं श्री जी. बोगनॉडफ से मेरी मुलाकात हुई। इन दोनों ने ‘बिग बैंग’ पर अनुसंधान कर बहुत सारी जानकारी प्राप्त की थी। हमारी चर्चा के बाद उन्होंने वहां उपस्थित लोगों से कहा कि पर्वत के एक ही शिखर पर हम दोनों ही पहुंचे, केवल दिशा अलग-अलग थी।

मुझे लगता है, बहुत सारे लोगों को ईश्वरीय कण के बारे में पता नहीं है या उन्होंने ‘बिग बैंग’ के बारे में शायद सुना ही नहीं है। पृथ्वी की जब उत्पत्ति हुई वह क्षण ‘बिग बैंग’। पृथ्वी… उस पर जीव उत्पत्ति… मनुष्य… संशोधन… अन्य ग्रह… वहां जीव सृष्टि होने का कौतुहल और अंत में इस सृष्टि की उत्पत्ति का युग-पुरुष! हमारे ऋषि मुनियों में यह जिज्ञासा जागृत हुई। उन्होंने अपने तरीके से अनुसंधान किया, साधना की। किसी ने खगोल शास्त्र पर शोध किया, किसी ने चिकित्सा शास्त्र पर अनुसंधान किया तो किसी ने अध्यात्म शास्त्र पर तप किया। हरेक ने अनंत परिश्रम से जीव सृष्टि के रहस्य को खोजा।

ईश्वरीय कण को समझने के लिए ईश्वर अथवा परमेश्वर की संकल्पना को समझना विज्ञान के लिए जरूरी है। आज समाज में दो प्रकार के लोग हैं- परमेश्वर को मानने वाले (आस्तिक) और न मानने वाले (नास्तिक)। लेकिन परमेश्वर है या नहीं इसी बहस पर बिुद्धजीवी अपनी बुद्धिमत्ता परखते रहते हैं।

आज दुनिया भर के करोड़ों लोग, भगवान है, यह मान कर  श्रद्धा, भक्ति भाव से अपना जीवन जी रहे हैं। कई डॉक्टर खुले आम परमेश्वर के प्रति अपने विश्वास के बारे में कहते हैं और अपने मरीजों से भी कहते हैं। चिकित्सा क्षेत्र में विज्ञान को भी अचम्भित करने वाली कई घटनाएं परमेश्वर को मानने वाले भक्तों ने अनुभव की हैं। समाचार पत्रों में एक विलक्षण खबर आई थी, ‘भारत ने एक साथ दो प्रक्षेपास्त्र अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किए। लेकिन उसके पहले ये सारे वैज्ञानिक तिरूपति वेंकटेश के दर्शन के लिए गए थे।’

जैसे मन का दर्शन प्रत्यक्ष दृश्य में नहीं होता, वैसे ही ईश्वर की संकल्पना सहजता से नहीं दिखा सकते। सगुण रूपी ईश्वर को विविध स्वरूपों से समझने का प्रयत्न किया तो भी उसकी निर्गुण रूपी वास्तविकता प्रत्येक व्यक्ति को अनुभव करनी ही होती है। केवल मस्ती-मजाक, अवहेलना एवं टीका करने की अपेक्षा विचारशील होकर ईश्वर को मानने वाले को प्रत्यक्ष रूप से क्या लाभ होता है, यह देखते हैं।

ईश्वर अथवा परमेश्वर को मानने वाले लोगों की मानसिकता उन्हें अनेक समस्याओं से निपटने का आत्मबल देती है। कुछ व्यक्तियों में देवत्व उनके अलौकिक कर्म की  वजह से परिलक्षित होता है। अनेक कर्मयोगियों ने समाज के लिए अभूतपूर्व कार्य किए हैं, इसीलिए लोगों ने उन्हें ईश्वर-पद पर लाकर रखा है। इसीलिए ईश्वर, ईश्वर तत्त्व, ईश्वरीय कण (अंश) को समझने के लिए जो दृष्टिकोण अथवा मानसिकता चाहिए, उसकी आज नितांत आवश्यकता है।

श्रद्धा व अंधश्रद्धा के बीच एक धुंधला सा रास्ता है जिसे देखने या समझने के लिए एक व्यापक नजरिये व मार्गदर्शन की जरूरत है। हमारे पूर्वजों ने अध्यात्म के विषय में सात्त्विक गुणों व तामसी गुणों के बारे में स्पष्ट रूप से लिखा है। ‘जहां पिण्ड वहां ब्रह्मांड’ इस उक्ति के अनुसार यदि हर व्यक्ति  सात्त्विक गुणों को अपनाए और उसके अनुसार आहार, विहार एवं विचार रखें तो ये  ईश्वरीय कण हरेक में तेजोमय हो जाएंगे व समाज में नि:स्वार्थ प्रेम व क्षमाशील भाव से रहेंगे। आंशिक ईश्वरीय तत्त्व की यह विशाल देन परमेश्वर ने हरेक को दी है। अपना समाज, देश व सम्पूर्ण विश्व ऐसे आंशिक ईश्वरीय तत्त्व से एक-दूसरे के साथ एकरूप हो पाएंगे तभी एक प्रचंड तेजोमय परमेश्वर का अनुभव प्राप्त होगा।

ईश्वरीय कण की खोज विज्ञान ने की या अध्यात्म ने, इस खोजने की अपेक्षा बेहतर है कि प्रत्येक व्यक्ति ‘अहं ब्रह्मास्मि’ अनुभव करने का प्रयत्न करें। परमेश्वर हरेक में है, यह समझ कर एक-दूसरे को समझने का योग-प्रकार सीखते हैं। समुद्र में निर्मित हुई क्षणिक लहर पर सवार होकर ज्ञानरूपी समुद्र की गहराई में जाकर सम्पूर्ण ज्ञान का आकलन करना अच्छा है। क्योंकि मुझे लगता है कि सम्पूर्ण ज्ञान की, विश्व की उत्पत्ति करने वाले ‘ईश्वरीय कण’ भले ही अभी-अभी विज्ञान को प्राप्त हुए हो, लेकिन एक दिन ‘सम्पूर्ण ईश्वर‘ भी, जोकि असंख्य ऐसे कणों से बना है, शोध के जरिए विज्ञान को मिल जाएगा। अध्यात्म तो कब से इस विषय में शोध कर करोड़ों लोगों को इस मार्ग पर ला चुका है।

यह सही है कि कुछ अपवादात्मक लोगों ने इस मार्ग को प्रदूषित किया है परंतु इसका अर्थ कदापि यह नहीं कि अध्यात्म का मार्ग गलत है। बिना प्रदूषित हुए या किए, श्रद्धा व सबुरी से और उससे ज्यादा आत्मविश्वास से इस मार्ग पर चलना आना चाहिए।

मुझे विश्वास है कि सच्चे साधक के जीवन में एक क्षण ऐसा जरूर आएगा जो ‘बिग बैंग’ के ठीक पहले वाले क्षण का अनुभव देगा। उस क्षण की जो अवस्था थी, वहां हम सब एक थे। यह अत्यंत परम आनंद का क्षण, सम्पूर्ण ज्ञान का क्षण है। हरेक को अपना-अपना अनुभव करना है। शब्दों में इस आनंद की अनुभूति का वर्णन करना असंभव है।

जिन्हें विज्ञान के प्रयास से अनुभव लेना है, वे उस माध्यम से भी ले सकते हैं लेकिन एक बात मैं अवश्य कहूंगा – अध्यात्म का सर्वोच्च क्षण सम्पूर्णत: शास्त्रीय है। इसीलिए सगुण-निर्गुण दोनों को मैं एक मानता हूं। वैसे भी आध्यात्मिकता और वैज्ञानिकता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इस शिखर पर चढ़ना एवं अनुभव को प्राप्त करना महत्त्वपूर्ण है। इस दिव्य अनुभूति के लिए विश्व के सभी साधकों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।

 

 

This Post Has One Comment

  1. Siddhi Paradkar

    Beautiful Article by Sadguru Mangeshda.Instead of tagging in sciences ,if we try to reach to our origin ,then there will be only one way and one science ,science of love and oneness.I would request Vivek magzine ,to publish more such informative articles by Sadguru Mangeshda.

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