‘100’ तक पहुंचने का सफर ‘0’ से ही शुरू होता है

आज की कहानी पुणे के निवासी रामभाऊ की है। अंगूठा छाप रामभाऊ पढ़े लिखे तो नहीं थे पर “हुनरमंद” ज़रूर थे। वह पेशे से एक माली हैं और बंजर धरा को हरीभरी करने की कला में माहिर हैं। रामभाऊ घर-घर जा कर लोगों के बगीचे संभालते थे। गुज़र बसर लायक पैसा बच जाता था। मेहनती खूब थे। 45 वर्ष की आयु में भी दिन भर साइकिल चला कर घर घर जाते और अपना काम पूरी लगन से करते। एक दिन रामभाऊ पर पुणे निवासी निनाद वेंगुलेकर की नज़र पड़ी। निनाद ने रामभाऊ से कहा के उनके घर में एक बगीचा है जिसकी देख रेख के लिये उन्हें एक माली की आवश्यकता है। रामभाऊ मान गये। निनाद ने पूछा के बगीचे के रखरखाव के कितने पैसे लेंगे तो रामभाऊ ने कहा के जो भी निनाद सहर्ष देंगे वह स्वीकार लेंगे।

असल में रामभाऊ के मस्तिष्क में एक अलग ही प्लान था। निनाद का घर पुणे के पॉश इलाकों में था। वहां अधिकतर धनाढ्य लोगों की कोठियां थी।
अगली सुबह रामभाऊ साइकिल पर आये। निनाद से कहा “राम राम सेठ “। औज़ार निकाले और काम मे जुट गये। 15 दिन में रामभाऊ ने बगीचे का कायाकल्प कर दिया। बगिया को ऐसा सजाया के स्वयं निनाद भी देख कर हैरान रह गये।

फिर अपने प्लान के मुताबिक उन्होंने आस पास के लोगों से सम्पर्क साधना शुरू किया और उन्हें निनाद के बगीचे में किया हुआ रूपांतरण दिखलाया। आस पास के लोगों को भी रामभाऊ का काम भा गया और एक एक कर उन्होंने आस पड़ोस के सभी बगीचों की देख रेख का काम पकड़ लिया।
सुबह 6 बजे से साँझ के 6 बजे तक रामभाऊ जीतोड़ मेहनत करते रहे और एक एक बगीचे को नया रूप देते रहे। काम भी बढ़ा और आमदनी में भी इजाफा हुआ।

रामभाऊ ने अब एक मोटरसाइकिल खरीद ली। दो साल की अवधि में रामभाऊ ने 20 घरों के बगीचों की देख रेख का काम संभाल लिया और 4 लड़कों को नौकरी पर रख लिया।

इसी बीच पुणे के ही एक मशहूर बिल्डर की नज़र रामभाऊ के काम पर पड़ी तो उसने रामभाऊ को एक पूरे बिल्डिंग कॉम्प्लेक्स में पेड़ पौधे लगाने का ठेका(कॉन्ट्रैक्ट) दे दिया। रामभाऊ ने फिर सब दिन रात एक दी। इस कॉन्ट्रैक्ट ने रामभाऊ की किस्मत पलट दी। काम 10 गुणा बढ़ा और आमदनी भी कई गुणा बढ़ गयी।

एक दिन निनाद ने रामभाऊ को फोन मिलाया के वह पुनः अपने बगीचे में कुछ काम करवाना चाहते हैं। निनाद को रामभाऊ से मिले अब दो वर्ष बीत चुके थे। रामभाऊ ने कहा के वह कुछ देर में उनके बंगले पर पहुंच जायेंगे। कुछ देर बाद निनाद के बंगले के आगे एक चमचमाती होंडा सिविक गाड़ी आ कर रुकी। निनाद घर के बाहर ही खड़े थे।

गाड़ी में से एक शख्स उतरा और बोला “राम राम सेठ”। निनाद को लगा के यह कौन सेठ हैं जो चमचमाती गाड़ी से उतर कर मुझे सेठ बोल रहा है। फिर सामने खड़े शख्स ने कहा “पहचाना सेठ। मैं रामभाऊ”

क्या वही रामभाऊ जो आज से दो साल पहले साइकिल पर निनाद के घर आता था आज हौंडा सिविक में विराजमान था। हक्के बक्के निनाद को रामभाऊ ने हाथ जोड़ कर धन्यवाद देते हुये कहा “आपके पास से ही शुरुआत की थी”।

निनाद अब कम से कम यह उम्मीद तो नहीं कर रहे थे के हौंडा सिविक जैसी आलीशान गाड़ी से उतरा कोई शख्स उनके बगीचे की मिट्टी खोदेगा। परंतु फिर कुछ ऐसा देखने को मिला जिसकी उम्मीद निनाद को भी नहीं थी। रामभाऊ ने औज़ार निकाले और काम पर जुट गये। उनके साथ उनके सहायक भी थे परंतु उन सब मे से अब भी सबसे अधिक मेहनत करते रामभाऊ ही दिखे।

निनाद के लिये यह सारा घटनाक्रम अविश्वसनीय था। एक साधारण माली जो एक साईकिल से हौंडा सिविक तक का सफर तय कर चुका था और आज भी अपने काम के प्रति उतना ही निष्ठावान और समर्पित था। आज भी उसके हृदय में अपने काम के प्रति उतना ही सम्मान था।

साइकिल से सिविक तक के सफर में रामभाऊ का एक ही हमसफ़र रहा है।

उनका पुरूषार्थ।
उनकी मेहनत।

हम सब के दिल में कुछ बड़ा करने की चाह है परन्तु हम में से कई लोग शून्य से शुरुआत करने से हिचकिचाते हैं। किसी बड़े काम की शुरुआत बेशक छोटी हो पर रामभाऊ की कहानी इस बात का जीवंत उदाहरण है के कर्मठता और पुरुषार्थ के दम पर इंसान साईकिल से हौंडा सिविक का सफ़र तय कर सकता है।

 

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