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अद्भुत है भारतीय नववर्ष की संकल्पना

अद्भुत है भारतीय नववर्ष की संकल्पना

by हिंदी विवेक
in मार्च-२०२३, विशेष, संस्कृति, सामाजिक
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विश्व भर में भले नववर्ष मनाए जाते हों पर भारतीय नववर्ष का स्वागत प्रकृति भी करती हुई प्रतीत होती है, परंतु विडम्बना यह है कि वर्तमान पीढ़ी 31 जनवरी की रात की मदिरा एवं नृत्य संस्कृति को सर्वोपरि मानती है। भारतीय संस्कृति के बढ़ाव के लिए उनके बीच हमारे नववर्ष और भारतीय उपमहाद्वीप की सांस्कृतिक चेतना के प्रतीक प्रभु राम के आदर्शों का पुनर्पाठ आवश्यक है।

नव वर्ष पूरे विश्व में एक उत्सव के रूप में मनाया जाता है। विश्व में अलग-अगल स्थानों पर नव वर्ष की तिथि भी अलग-अगल होती है। हर धर्म और सम्प्रदाय के नव वर्ष समारोह भी भिन्न-भिन्न होते हैं और इसके महत्त्व की भी विभिन्न संस्कृतियों में परस्पर भिन्नता है, परंतु भारतीय नववर्ष, जिसे हिंदू नववर्ष भी कहते हैं, की छटा निराली है। आस पास नजर दौड़ाने पर ऐसा लगता है मानो समूची प्रकृति नववर्ष का इंतजार कर रही है। यह समय दो ऋतुओं शिशिर और वसंत का संधिकाल होता है। इसमें रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं। प्रकृति नया रूप धर लेती है। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रकृति नवपल्लव धारण कर नवसंरचना के लिए ऊर्जस्वित होती है। मानव, पशु-पक्षी व यहां तक कि जड़-चेतन प्रकृति भी प्रमाद और आलस्य को त्याग सचेतन हो जाती है। वसंतोत्सव का भी यही आधार है। इसी समय बर्फ पिघलने लगती है। आमों पर बौर आने लगता है। प्रकृति की हरीतिमा नवजीवन का प्रतीक बनकर हमारे जीवन से जुड़ जाती है।

पारम्परिक हिंदू नव वर्ष भारत के ज्यादातर हिस्सों में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। नव संवत्सर हर साल अपने साथ प्रकृति में नया उत्साह और नई उम्मीदें लेकर आता है। साथ ही यह अपने जीवन पर चिंतन करने और नए लक्ष्य निर्धारित करते हुए उन्हें नए सिरे से शुरू करने, नए संकल्प करने और बीत चुके वर्ष को प्रतिबिंबित करने का समय है। चैत्र ही एक ऐसा महीना है जिसमें वृक्ष तथा लताएं पल्लवित व पुष्पित होती हैं जिसे मधुमास भी कहते हैं। इतना ही नहीं, यह वसंत ऋतु समस्त चराचर को प्रेमाविष्ट करके समूची धरती को विभिन्न प्रकार के फूलों से अलंकृत कर जनमानस में नववर्ष के उल्लास तथा उमंग का संचार करती है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण किया था। इसमें मुख्यतया ब्रह्माजी और उनके द्वारा निर्मित सृष्टि के प्रमुख देवी-देवताओं, यक्ष-राक्षस, गंधर्व, ऋषि-मुनियों, नदियों, पर्वतों, पशु-पक्षियों और कीट-पतंगों का ही नहीं, रोगों और उनके उपचारों तक का भी पूजन किया जाता है। इसी दिन से नया संवत्सर शुरू होता है। अतः इस तिथि को ‘नवसंवत्सर’ भी कहते हैं। ब्रह्मपुराण के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही सृष्टि का प्रारम्भ हुआ था और इसी दिन भारतवर्ष में कालगणना भी प्रारम्भ हुई थी –

चैत्र मासे जगद्ब्रह्म समग्रे प्रथमेऽनि

शुक्ल पक्षे समग्रे तु सदा सूर्योदये सति।

-ब्रह्मपुराण

इस ‘प्रतिपदा’ के दिन ही पंचांग तैयार होता है। महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीने और वर्ष की गणना करते हुए ‘पंचांग’ की रचना की। इसी दिन से ग्रहों, वारों, मासों और संवत्सरों का प्रारम्भ गणितीय और खगोल शास्त्रीय संगणना के अनुसार माना जाता है। आज भी जनमानस से जुड़ी हुई यही शास्त्रसम्मत कालगणना व्यावहारिकता की कसौटी पर हमेशा खरी उतरी है। खास बात यह कि भारतीय महीनों के रखे गए नाम भी नक्षत्रों के आधार पर हैं। जैसे चैत्र मास चित्रा नक्षत्र के नाम पर, वैशाख मास विशाखा नक्षत्र के नाम पर और इसी तरह ज्येष्ठ मास ज्येष्ठा नक्षत्र के नाम पर रखा गया है। इसी प्रकार 12 महीनों के नाम नक्षत्र के आधार पर ही रखे गये हैं।

वैसे तो पूरे देश में यह पर्व अलग-अलग रूपों में मनाया जाता है लेकिन महाराष्ट्र में इसका सर्वाधिक महत्व है। यहां इस दिन को गुढ़ीप़ाडवा के रूप में भी जाना जाता है और घर के बाहर गुढ़ी (नीम के पत्तों और फूलों के साथ चांदी या ताम्बे केबर्तन के साथ एक बांस का खंभा) फहराकर मनाया जाता है। इस साल यह तिथि 22 मार्च 2023 के दिन है। इस दिन महाराष्ट्र में पूरनपोली (मीठी रोटी) बनाई जाती है। इस दिन चटनी में ये चीजें मिलाई जाती हैं, वे हैं- गुड़, नमक, नीम के फूल, इमली और कच्चा आम। गुड़ मिठास के लिए, नीम के फूल कड़वाहट मिटाने के लिए और इमली व आम जीवन के खट्टे-मीठे स्वाद चखने का प्रतीक होती हैं। यूं तो आजकल आम बाजार में मौसम से पहले ही आ जाता है, किंतु आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र में इसी दिन से खाया जाता है। आंध्रप्रदेश में इसे युगादि या उगादि तिथि कहते हैं जबकि सिंधी समुदाय के लोग ’चेटी चंड’ (चैत्र का चंद्र) और कश्मीरी लोग  इसे  ’नौरोज’ कहते हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार में शारदीय नवरात्रि की ही भांति साल के पहले नौ दिनों का उपवास रखा जाता है।

रामनवमी

रामनवमी को भगवान राम के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। खुशी और उल्लास के इस त्योहार को मनाने का उद्देश्य हमारे भीतर ‘ज्ञान के प्रकाश का उदय’ है। भगवान विष्णु ने त्रेतायुग में रावण के अत्याचारों को समाप्त करने और धर्म की पुनर्स्थापना के लिए दुनिया में प्रभु श्रीराम के रूप में अवतार लिया। हालांकि रामनवमी देश में हर जगह भव्य तरीके से मनाई जाती है, लेकिन भगवान राम के जन्म स्थान अयोध्या में यह त्योहार बड़े जोश और उत्साह के साथ मनाया जाता है। रामनवमी के दौरान, अयोध्या के लोग पृथ्वी पर सर्वशक्तिमान के अस्तित्व को मनाने के लिए एक रथ यात्रा (रथ जुलूस) निकालते हैं। रथ यात्रा में भगवान राम, लक्ष्मण, सीता देवी और हनुमान के रूप में तैयार चार व्यक्तियों के साथ एक रथ सजाया जाता है। रथ के साथ हजारों राम भक्त होते हैं। वे पूरे शहर में जुलूस के साथ घूमते हैं और भगवान राम के नाम का जाप करते हैं। आधुनिक सभ्यता की अंधी दौड़ में समाज का एक वर्ग इस पुण्य पर्व को विस्मृत कर चुका है। आवश्यकता है कि अपने नववर्ष और मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के प्राकट्य उत्सव के इतिहास से समाज के हर वर्ग और नई पीढ़ी को अवगत कराएं ताकि वे इनसे प्रेरणा ले सकें। भारतीय संस्कृति की पहचान विक्रमी संवत्सर में है, न कि अंग्रेजी नववर्ष में। हमारा स्वाभिमान विक्रमी संवत्सर मनाने से ही जाग्रत होगा, रात भर झूमकर एक जनवरी की सुबह सो जाने से नहीं।

– आनंद मिश्र

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Tags: gudi padwahindu culturehindu festivalhindu traditions

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