लव जिहाद के चंगुल से कैसे बचें?

लव जिहाद और पीएफआई की गतिविधियों को देखते हुए आवश्यकता है कि हम अपनी बेटियों के मित्रों पर ध्यान दें और उन्हें शिक्षा दें कि वे दुर्गा और काली की संतानें हैं। उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ बनाएं ताकि वे लव जिहाद की चुनौतियों का डटकर सामना कर सकें।

गत 3-4 वर्षों से लगातार लव जिहाद से जुड़े हत्याओं का डाटा, एनालिसिस पर आधारित फैक्ट्स, डाटा ट्रेंड्स लगातार सोशल मीडिया, स्वतंत्र पत्रकारिता और नागरिक जागृति के प्रयास से सांझा किए जा रहे थे। इन सबको फ्रिन्ज घोषित कर न्यूज ठेकेदार बड़े आसानी से पर्दा डालते आए थे। पर, अब इस सच को और रोकना सम्भव नहीं रहा। सच, जो अब तक दबे होंठो से सिसकियां भर रही थी, अब न्याय की क्रंदन बन चुकी थीं, एक ज्वाला बनकर जनमानस के अंतरात्मा में धधकने लगी और मेनस्ट्रीम मीडिया में पहली बार लव जिहाद पर गहन चर्चा प्रारम्भ हुई।

किसी भी अपराध के घटते ही, न्यायिक प्रक्रिया द्वारा अपराध का वर्गीकरण किया जाता है। अपराध की पृष्ठभूमि, अपराधी की आयु, अपराध की प्रकृति इत्यादि। आश्चर्य की बात यह है की धड़ल्ले से चुन चुन कर एक ही समुदाय की बेटी बहुओं का अपहरण/हत्या/दुष्कर्म जैसी अमानवीय हिंसा के उपरांत भी बहुसंख्यक हिंदू समाज इस दुष्कृत्य को समझने में असमर्थ रहे। यह सचेत समाज की बहुत बड़ी हार है।

पत्रिका जळिपवळर के द्वारा प्रकाशित तथ्य के अनुसार वर्ष 2022 में कुल 153 लव जिहाद के मामले पंजीकृत हुए हैं। अर्थात प्रत्येक 2.3 दिन में 1 बेटी/बहू लव जिदाह की शिकार हुई हैं। यह तो केवल पंजीकृत मामलों के आंकड़े हैं! ऐसे कितने ही मामले होंगे जो पुलिस स्टेशन तक पहुचने से पहले दम तोड़ दिए? उस वास्तविक आंकड़ों के बारे में अनुमान लगा भी सकते हैं हम?

यूरोप में रोमियो जिहाद और भारत में लव जिहाद के नाम से कुख्यात इस प्रकरण का मूल उद्देश्य गैर-इस्लामी युवक युवती को छल-बल-कौशल से मूलतः प्रेमजाल में फंसाकर इस्लाम मजहब में धर्मान्तरित करना। यदि ना माने, तो शारीरिक, मानसिक हिंसा करना और अंततः हत्या कर देना। भारत में हाल फिलहाल झऋख (पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया ) पर एनआईए द्वारा संचालित रेड में मिले दस्तावेज में इस पूरे प्रकरण का चरणबद्ध तरीके से उल्लेख है ताकि भारत के बहुसंख्यक हिंदू समाज में अराजकता फैलाकर गजवा ए हिंद को साकार किया जा सके।

लव जिहाद प्रणाली

पहला चरण ः टारगेट चिह्नित करना : टारगेट को चिह्नित कर, टारगेट के प्रिय-अप्रिय विषय वस्तु, उसकी पारिवारिक अवस्था, वहां की व्यवस्था- अर्थात सब कुछ, कम्पलीट प्रोफाइलिंग किया जाता है, रेकी किया जाता है। कई बार नाम बदल-बदल कर युवतियों से मेलजोल बढ़ाते हैं और धीरे धीरे इनको अपने गिरफ्त में लेते हैं। इस बात पर, वेब सिरीज ऋराळश्रू चरप 2 ध्यान में आता है , जिसमें एक आतंकवादी भारत के रॉ अफसर की 14 वर्षीय बेटी पर ऐसे ही तथ्य कलेक्ट कर, स्वयं को उसके निकट लाता है, उसको प्रेम जाल में फंसाता है ताकि उसके माध्यम से उसके पिता और उसके परिवार के सभी गतिविधि पर नज़र बना रहे।

दूसरा चरण : टारगेट को अलग थलग करना : एक बार लड़की उनके काबू में आ जाये, उसके बाद धीरे-धीरे उसको उसके परिवार के लोगों के बारे में नकारात्मक बात फीड किया जाता है, उसके पारम्परिक व् धार्मिक आस्थाओं पर प्रश्न डाल दिए जाते हैं और, देखते ही देखते एक सुलझी हुई लड़की आपके आंखों के सामने बिखरने लगती है। अपने परिवार से मानसिक रूप से दूर हो जाना, अपनी आस्थाओं से दूर हो जाना। वह सम्पूर्ण रूप से दुर्बल हो जाती है। वह अपने इर्द-गिर्द की सभी चीजों से नाराज रहने लगती है। आप कह सकते हैं कि वह एकदम से टूट जाती हैं। और ऐसी नाज़ुक स्थिति में उसको उसके आसपास मात्र यह एक व्यक्ति दिखता है, जो उसको समझता है ।उसके इस बुरे समय में उसको सम्भाल रहा है। अब यह लड़की भावनात्मक रूप से भी इसके साथ जुड़ जाती है।

तीसरा चरण : प्रायोजित प्रयास : इस पूरी प्रक्रिया में उस समाज के बड़े बुज़ुर्ग, लड़के के परिवार, और विभिन्न संगठन – एक साथ मिलकर सुगठित रूप से प्रायोजित ढंग से कार्य करते हैं – और इसी कारण इस श्रेणी की हिंसा, हत्या को लव जिहाद की संज्ञा दी गयी है। श्रद्धा के विषय में भी उसके द्वारा जमा किये गए पुलिस रिपोर्ट में यही उभरकर आया कि आरोपी आफताब के माता पिता, उसके सम्पूर्ण परिवार को पता था कि उसपर बार बार हिंसा हो रही है। और उसके माता-पिता बार-बार श्रद्धा को ही समझाते कि, वे सब उसके साथ हैं और सब ठीक हो जायेगा। पर कुछ करते नहीं थे। वहीं, उसको भी उसके पिता  व परिवार से सम्पूर्ण रूप से अलग-थलग कर दिया। इस हद्द तक कि माता पिता को नहीं पता कि बच्ची का क्या हुआ, कहां है, जीवित है भी या नहीं !

चौथा चरण : फिनिशिंग टच : एक बार टारगेट काबू में आ जाए, फिर असली पत्ते खुलते हैं। भोजन से लेकर पहनावा, रहन सहन यौन सम्बंध तक नाना प्रकार के पीड़ा यातना दिए जाते हैं। जो लड़की कभी आजादी के नाम पर क्रॉप टॉप्स की मांग करती, मॉडर्निटी के नाम पर तिलक नहीं लगाती थी, अब 45 डिग्री की गर्मी में भी वह काला तम्बू ओढ़ने के लिए मजबूर हो जाती हैं, क्योंकि वह स्वयं उस तम्बू के बिना बाहर निकल नहीं सकती। शरीर के घाव देखें या मन में लगे घाव? हिंसा की पराकाष्ठा ये है कि कई कई बार उसको स्वयं नहीं पता होता है की गर्भ में पल रहे शिशु का पिता कौन है! इतनी पीड़ा, पछतावे पर उसको लगता है कि अब देर हो चुकी है, तो सिर झुकाकर उस अमानवीय अत्याचार को सहन करती जाती है, केवल इस आशा से कि कभी तो उसको उसका पुराना वाला अब्दुल मिल जायेगा। कदाचित उसी ने कुछ किया होगा, जिससे ये नाराज हो रहे हैं और इसीलिए ये मार पीट, यातनाएं। तरह तरह के तर्क से न जाने कितने वर्ष बीत जाते हैं, केवल इन्हीं बातों को जोड़ने-समझने में।

लव जिहाद के कारण

मूल लक्ष्य चूंकि धर्मान्तरण है, भारत से हिंदुत्व को मिटाना है, तो लव जिहाद इनके विभिन्न आयामों में से एक है। लैंड जिहाद, हलाल सर्टिफिकेशन, इन सभी आयामों के प्रारूप हैं।

पीएफआई के अनुसार गजवा ए हिंद का लक्ष्य, मूल लक्ष्य 2047 है। कोई जल्दी नहीं परंतु कार्य अविरत है।

इस प्रकल्प के अंतर्गत जनसंख्यीय परिवर्तन के द्वारा भारतीय गणतांत्रिक व्यवस्था में दखल प्राप्त करना

केवल महिला ही नहीं, अपितु हिंदू पुरुष भी इसके शिकार होते हैं। सम्पूर्ण परिवार समेत धर्मांतरित होना परिलक्षित हुआ है।

लव जिहाद से लड़ने में चुनौतियां

यद्यपि हिंदू युवाओं पर धड़ल्ले से प्रहार होते जा रहे हैं, तथापि जनमानस में जागृति की कमी है। इस कारण बारम्बार इसी प्रारूप में इस अपराध की पुनरावृत्ति हो रही है।

हिंदू परिवार धर्म, परम्परा, रीति-नीति से च्युत हो रहे हैं। ऐसे में जिहदिओं को अपनी एजेंडे थोपने के लिए खाली मैदान मिल जाता है। वे जो भी अनर्गल परोसेंगे, हिंदू के खाली दिमाग में घर कर जाता है।

चूंकि ये पूरा प्रकरण सुगठित तंत्र के माध्यम से प्रायोजित ढंग से किया जाता है तो वे सदैव ही 2 कदम आगे रहते हैं। स्वय के बचाव हेतु इनके वकीलों की टीम भी सदैव तुरंत तैयार रहती है। पीड़ित के पक्ष को कोई सम्बल नहीं मिलता। वह तो सब कुछ के खतम हो जाने के बाद भी अपनी बातों को रखने में असमर्थ दीखता है। न्याय की गुहार लगाना तो दूर की बात।

लंदन में किये गए एक स्टडी के अनुसार प्रायोजित ढंग से प्रेम जाल में फसाकर युवा को भटकाकर धर्मांतरण के प्रक्रिया में ग्रूमिंग गैंग की भूमिका देखी गयी है, जो कि लड़के लड़कियों को विशेष रूप से तैयार करते हैं  ताकि वे अन्य समुदाय, धर्म को आसानी से अपने जाल में फांस सके।

समाधान :

युवा काउंसलिंग की नितांत आवश्यकता है ताकि युवा जो कि देश के भविष्य के नागरिक हैं, वे स्वस्थ रहें, शारीरिक और मानसिक दोनों ही रूप से, किसी भी विकृति से दूर।

कुटुम्ब प्रबोधन – कुटुम्ब में रहना, हो सके तो संयुक्त परिवार में रहें ताकि परिवार की ओर से नियंत्रण और मार्गदर्शन दोनों ही समय समय पर मिलते रहें।

माता पिता-बच्चों में मित्रता : हिंदू शास्त्रों के अनुसार एक आयु के पश्चात् माता पिता और संतान के बीच मित्रता गाढ़ी होनी चाहिए। संतान के मित्र कौन कौन हैं, यह भी पता होना चाहिए, तथा उनसे भी मित्रता करनी चाहिए।

धर्माधारित जीवनयापन : नित्य कर्म का पालन करते हुए धर्माधारित जीवनयापन करें। बचपन से ही संस्कार का बीजारोपण करना प्रारम्भ करना चाहिए।

स्कूल के पाठ्यक्रम पर ध्यान : किस प्रकार की खुराक संतान को पाठ्यक्रम के नाम पर प़रोसी जा रही है, उसपर अभिभावक की कड़ी निगरानी होनी चाहिए।

सृजनात्मक कार्य : पढ़ाई के साथ साथ किसी भी सृजनात्मक कार्य में युवा को जोड़ना आवश्यक है ताकि उनकी ऊर्जा को सही दिशा और गति मिले।

योग, प्राणायाम ध्यान से नवीन युवक-युवतियों को परिचय करवाना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन बसता है और स्वस्थ मन से ही स्वस्थ तन और स्वस्थ विचार का विकास सम्भव हो सकता है।

युवाओं को न्यायिक कानून व अधिकार के बारे में जानकारी होनी चाहिए, साथ मौलिक कर्त्तव्य, राष्ट्र के प्रति नागरिक होने के दायित्व से भी अवगत होना चाहिए।

शत्रुबोध जगाना अत्यंत आवश्यक है। बिना किसी लाग लपेट के हममें वैचारिक स्पष्टता होनी चाहिए कि जो हमारे मित्र नहीं, जो हमारे देवी देवताओं को नकारे, उनका अपमान करे, जो हमारे रक्त पिपासु हैं, क्या उनसे मित्रता रखना उचित है?

योग, प्राणायाम के साथ-साथ युवाओं को स्व संरक्षण विद्या भी देनी चाहिए। पीड़ित के पास काली मिर्च का पाउडर और पाकेट चाकू होने के उपरांत भी अभ्यास की कमी के कारण, वे इन वस्तुओं के माध्यम से किसी भी प्रहार से बचने में असमर्थ रहते हैं। मानसिक रूप से भी वे शॉक में चले जाते हैं और किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाते हैं। इन सबसे बचने के लिए मानसिक और शारीरिक अभ्यास की अतिशय आवश्यकता है।

भारत नारी तू नारायणी जैसे विशाल सोच की धरती है। यह केवल एक भूखंड नहीं, एक सोच है। एक जीती जागती, कभी ह्रास न होने वाली सनातानी विचारधारा है। विगत कुछ दशकों से आसुरी शक्ति हावी होते हुए परिलक्षित होती है, इसी देश की अनगिनत वीर वीरांगना स्वयं को स्वाहा कर, इस मातृभूमि, इस संस्कृति को जीवित रखे हुए हैं ताकि आज आप और मैं स्वतंत्र रूप से उन्नयनमूलक कार्य करें।

पौरुष का कोई विकल्प नहीं। अतः स्वाध्याय, अभ्यास कर पौरुषवान होने का प्रण प्रत्येक नागरिक को लेना होगा और अपने विषय-विचार पर तटस्थ होकर रहना होगा। जैसे जैसे वैश्विक स्तर पर भारत उन्नति करता जाएगा, शत्रु पक्ष भी उतना ही अपितु, उससे भी तीव्र गति से प्रहार करेगा। प्रश्न यह है, क्या हम इसके लिए तैय्यार हैं?

हमारे प्रत्येक देवी देवता अस्त्र शस्त्र से सुसज्जित हैं, और वे केवल दिखावे के लिए इन शस्त्रों को धारण नहीं करते थे। वे शत्रुओं पर सटीक घातक प्रहार भी करते हैं ताकि धर्म का रक्षण हो सके। वीरः भोग्या वसुंधरा की भूमि में नपुंसकता  के लिए कोई स्थान नहीं।

एक सनातनी होने के नाते यह तो निर्धारित है कि मेरे महादेव के इच्छानुसार ही उनके द्वारा चयनित स्थान काल पात्र अनुसार ही मेरे प्राण इस शरीर को त्यागेंगे – न ही एक क्षण पूर्व, ना ही एक क्षण पश्चात। और हम तो रिटर्न टिकट लेकर बार-बार आयेंगे। तो आइये, अतः अकर्मण्यता, भीरुता को त्याग इस महायज्ञ में अपनी आहुति दें। हम दुर्गा हैं, लक्ष्मी हैं, हमें छेड़ो नहीं, वर्ना चामुंडा काली बनकर तुम्हें चीरकर माथे पर तिलक लगा लेंगे!

– गायत्री  बॉरपात्र गोहांई

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