महिला वैज्ञानिकों का योगदान और भविष्य

संक्रमण काल में महिलाओं की शिक्षा को लेकर पनपी उदासीनता के कारण हर क्षेत्र की तरह वैज्ञानिक शोधों के क्षेत्र में भी महिलाओं की संख्या नगण्य है, जबकि वे कम संख्याबल के बावजूद उन क्षेत्रों में बेहतरीन कार्य कर रही हैं। भारत सरकार भी इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठा रही है।

स्त्री और पुरुष, नर एवं नारी किसी भी समाज के आधारभूत घटक हैं। दोनों के सामंजस्य एवं संयोजन से घर, परिवार और समाज आगे बढ़ता है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में इन दोनों की उपस्थिति और भागीदारी कितनी है, इस बात से किसी समाज व राष्ट्र की दिशा तय होती है।

आज खगोलविज्ञान से लेकर, जीवविज्ञान, रसायन विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, भौतिक विज्ञान, गणित, जैव प्रौद्योगिकी, नैनो टेक्नोलाजी, भूगोल, पर्यावरण विज्ञान, नृजाति विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान, परमाणु अनुसंधान, कम्प्यूटर विज्ञान, मौसम विज्ञान, कृषि विज्ञान तथा इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों में महिला वैज्ञानिक नित नये अनुसंधान कर अपनी बुद्धि व कौशल का लोहा मनवा रही हैं।

महिलाओं के लिये सामान्यतः पुरुष वर्चस्व तथा पुरुषों के अनुकूल समझे जाने वाले इन क्षेत्रों तक पहुंच कोई सरल काम नहीं था। यद्यपि स्वतंत्रता के पूर्व भी विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं की उपस्थिति थी पर संख्या बहुत सीमित थी। उस समय जो भी महिला वैज्ञानिक थीं उन्होंने अपने अध्ययन से लेकर कार्यक्षेत्र तक प्रत्येक चरण में समाज व संस्थान में संघर्ष का सामना कर अपना मार्ग बनाया था। भौतिकशास्त्री अन्ना मणि, रसायनशास्त्री असीमा चटर्जी, जैव वैज्ञानिक कमल रणदिवे, पादपविज्ञानी ई. के. जानकी, कमला सोहोनी, आनंदीबाई गोपालराव जोशी, दर्शन रंगनाथन आदि महिला वैज्ञानिक जिन्होंने स्वंतंत्रता के पूर्व व स्वातंत्र्योत्तर काल में विज्ञान के क्षेत्र में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया और महिला शिक्षा तथा महिलाओं द्वारा विज्ञान विषयों के अध्ययन के प्रति समाज व शासन की दृष्टि-परिवर्तन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। इन महिला वैज्ञानिकों के लिये विज्ञान का मार्ग चुनना और उस पर विभिन्न व्यवधानों के बाद भी अडिग रहना सरल काम नहीं था। इनके योगदान ने महिलाओं को विज्ञान विषयों के प्रति आकृष्ट किया तथा नीति-नियंताओं को भी इस संदर्भ में जागरूक करते हुए कालांतर में महिला शिक्षा के प्रति नीतियों में होने वाले परिवर्तनों हेतु प्रेरित किया।

स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार ने विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग की स्थापना की थी। यदि उसके उद्देश्यों एवं लक्ष्यों पर दृष्टिपात करें तो उसमें महिला-शिक्षा हेतु गृहविज्ञान, साहित्य आदि विषयों पर बल दिया गया था। राष्ट्रीय महिला परिषद् के तत्त्वावधान में 1962 में गठित हंसा मेहता समिति ने महिला शिक्षा के पाठ्यक्रम में सुधार तथा बालक-बालिकाओं हेतु पाठ्यक्रम में समानता व अवसर तथा सुविधाओं में समानता के साथ ही शरीर विज्ञान व व्यावसायिक विषयों में महिलाओं हेतु पाठ्यक्रम प्रारम्भ करने का सुझाव दिया। कोठारी आयोग ने कहा कि महिलाओं को सक्रियतापूर्वक विज्ञान विषयों को पढ़ने हेतु प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इस प्रकार धीरे-धीरे विज्ञान विषयों के अध्ययन में महिलाओं की सहभागिता राजकीय नीतियों का विषय बना। इन दोनों समितियों ने महिला शिक्षा व विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी में सकारात्मक परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त किया।

आज विज्ञान विषयों के अध्ययन में महिलाओं की संख्या में वृद्धि हुयी है। इसके साथ ही महिला वैज्ञानिकों की भी संख्या बढ़ी है। यदि आंकड़ों को देखा जाय तो भारत सरकार के विज्ञान प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा संकलित आंकड़े के अनुसार बाह्य अनुसंधान तथा विकास परियोजनाओं में महिलाओं की उपस्थिति 2000-01 में 13% थी जो कि 2018-19 मे बढ़कर 28% हो गयी है। विज्ञान विषयों में महिला शोधार्थियों की संख्या 2014 में 30,000 थी, जो 2022 में 60,000 से अधिक हो गयी है। वर्तमान में विज्ञान विषयों में जैव प्रौद्योगिकी एवं चिकित्सा में महिलाओं की भागीदारी सर्वाधिक क्रमशः 40% और 35% है। विज्ञान व प्रौद्योगिकी विभाग के अधिकांश विभागों का नेतृत्व महिलाओं के हाथ में है।  सरकार ने इसके लिये अनेक सकारात्मक पहल किए हैं। भारत सरकार के विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्रालय का लक्ष्य 2030 तक विज्ञान व प्रौद्योगिकी में महिलाओं की सहभागिता को 30% तक बढ़ाना है।

इस संदर्भ में भारत सरकार के ईमानदार प्रयास का उदाहरण वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकी अनुसंधान परिषद् के महानिदेशक के रूप में डॉ. एन. कलाइसेल्वी की नियुक्ति है। विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका बढ़ाने हेतु सरकार ने अनेक पहल किया है। जिसके अंतर्गत विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा लैंगिक उन्नति कार्यक्रम चलाया गया था। जिसका काम विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग व गणित में लैंगिक समानता का आकलन करने हेतु एक व्यापक कार्ययोजना व रूपरेखा विकसित करना था।  इस कार्यक्रम के पहले चरण में विज्ञान व प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा 30 शैक्षिक व अनुसंधान संस्थाओं का चयन किया गया। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने ही मेधावी छात्राओं को  विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग व गणित के क्षेत्र में उच्चशिक्षा हेतु आगे बढ़ने का एक समान अवसर प्रदान करने हेतु विज्ञान ज्योति योजना चलायी है।

महिलाओं हेतु विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, गणित और चिकित्सा कार्यक्रमों हेतु भारत-अमेरिका फेलोशिप है जिसके तहत महिला वैज्ञानिक अमेरिका की शोध-प्रयोगशालाओं में शोध कर सकती हैं।  2020 में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के सांविधिक निकाय विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड ने भारतीय शैक्षणिक संस्थानों तथा शोध एवं विकास प्रयोगशालाओं में विज्ञान एवं इंजीनियरिंग अनुसंधान के वित्तपोषण में लैंगिक असमानता को कम करने के लिये एसईआरबी-पावर (खोजपूर्ण अनुसंधानों में महिलाओं के लिये अवसरों को बढ़ावा देना) नामक योजना प्रारम्भ की। इसके अंतर्गत महिलाओं को अनुसंधान एवं विकास को उच्चतम स्तर तक ले जाने हेतु एसईआरबी-पावर फेलोशिप तथा एसईआरबी-पावर रिसर्च ग्राण्ट प्रदान किया जाता है।

भारत सरकार विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिये सतत प्रयत्नशील है। जनवरी में सम्पन्न 108वीं भारतीय विज्ञान कांग्रेस के सम्मेलन का विषय- महिला सशक्तिकरण के साथ सतत विकास के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी था।

भारतीय महिला वैज्ञानिकों की प्रतिभा का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि कोविड-19 के वैश्विक महामारी के समय अनेक महिला वैज्ञानिकों ने वैक्सीन निर्माण में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। पुणे की विषाणु वैज्ञानिक मीनल भोंसले ने देश की पहली टेस्टिंग किट तैयार की। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) में अनेक महिला वैज्ञानिक अपना योगदान दे रही हैं। गगनयान कार्यक्रम का नेतृत्व डॉ. वी, आर. ललिताम्बिका ने किया। विज्ञान के अन्य क्षेत्रों में भी अग्नि-खत एवं अग्नि-वी मिसाइल परियोजनाओं की निदेशक टेसी थॉमस, विश्व स्वास्थ्य संगठन में उप महानिदेशक का पदभार सम्हालने वाली सौम्या विश्वनाथन, नेशनल इंस्टीट्यूट आफ वायरोलॉजी, पुणे की प्रिया अब्राहम आदि महिलाओं का योगदान उल्लेखनीय है।

इस प्रकार विगत दशक में विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति में सुधार आया है तथा उनकी भागीदारी निरंतर बढ़ रही है। महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने तथा विज्ञान विषयों के अध्ययन हेतु महिलाओं को प्रोत्साहित तथा समाज को प्रेरित करने हेतु भारत सरकार अनेक स्तरों पर प्रयासरत है। सरकार के प्रयास अपना सकारात्मक प्रभाव भी दिखा रहे हैं जैसा कि आंकड़ों से स्पष्ट होता है।

यद्यपि विगत दशकों में विज्ञान-अध्ययन में महिलाओं का प्रतिशत बढ़ रहा है तथा महिला वैज्ञानिकों की उपस्थिति भी बढ़ रही है, परंतु अभी भी लक्ष्य कोसों दूर है। समानता का लक्ष्य पाना अभी बहुत दूर की कौड़ी है। अभी भी विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं के प्रति व्यवहार में समभाव का अभाव यत्र-तत्र दिखायी पड़ ही जाता है। पारिवारिक और सामाजिक संरचना व ताना-बाना भी महिलाओं के विज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़ने में बाधक है। समस्त बाधाएं पारकर महिलाएं इस क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं। उनकी इस गति को बनाये रखने तथा बढ़ाने के लिये सरकारी योजनायें सहयोगी के रूप में हैं।

– डॉ. ममता त्रिपाठी 

This Post Has 2 Comments

  1. Anonymous

    🙏🙏Ati sundar

  2. Harshit Mishra

    उत्तम, गवेषणापूर्ण लेख!!!
    🙏🙏

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