काश, मैं भी रेखा पार कर लेती!

बहुत सारी महिलाओं के साथ यह समस्या रही कि यदि समय पर समाज की बेड़ियों को तोड़ने का प्रयास किया होता तो उन्होंने स्वयं के लिए, समाज के लिए और राष्ट्र के लिए बहुत कुछ किया होता। तब शायद इस विश्व की तस्वीर कुछ अत्यधिक उज्ज्वल होती। वे समाज द्वारा पहनाई गई बेड़ियों को तोड़ नहीं पाई। लेकिन बहुत सी महिलाओं ने उन्हें तोड़ पाने के साहस के बल पर समाज और राष्ट्र को नवीन राह दिखाई।

काश! मैं भी साहस जुटा पाती उस रूढ़िवादी सोच के परे जाकर स्वयं को स्थापित करने और अपने भविष्य को बनाने का तो आज एक नर्स के रूप में मेरा एक बेहतर भविष्य होता और मैं अपने बच्चों को भी एक बेहतर भविष्य दे पाती। यह दर्द झलक रहा था पुष्पा की आवाज में। तुमने शायद उचित निर्णय लिया निर्मला जो घर से निकल अपना वजूद बनाया। आज तुम्हें कौन नहीं जानता। अपना अच्छा घर और सुंदर भविष्य तुमने स्वयं ही बनाया है। यह मात्र दो अंतरंग महिला मित्रों का संवाद नहीं अपितु वर्तमान समाज में नारी की दो विरोधाभासी तस्वीरों का अंकन है। हमारे भारत देश में प्राचीन काल से अब तक अनेक उदाहरण महिलाओं की उन्नति गाथा के हैं, उन तेजस्विनी महिलाओं के जिन्होंने रूढ़िवादी सोच और परम्पराओं की सीमा लांघ देश, समाज, परिवार को एक नई दिशा दी है। और ऐसी भी महिलाएं हैं जिन्होंने अपने अस्तित्व को नहीं पहचाना। यूं नारी की उपादेयता सार्वभौमिक है। वह सृष्टि का आधार है। इसीलिए जहां नारी की कमजोरी पर विचार करते हुए मैथिली शरण गुप्त लिखते हैं –

अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी,

आंचल में है दूध और आंखों में पानी।

वहीं वह उसे सशक्त मानते हुए नारी के ही मुख से कहलवाते हैं-

गैरों के हाथों यहां नहीं पलती हूं,

अपने पैरों पर आप खड़ी चलती हूं,

श्रमवारि विंदुफल स्वास्थ्य शुचि फलती हूं,

अपने आंचल से व्यंजन आप झलती हूं।

भारत में महिलाओं की स्थिति सदैव परिवर्तनीय होती रही है। मुगल शासन व्यवस्था के भय से नारियों को बंदिशों में बंधना पड़ा, अनेक कुप्रथाओं में बंधना पड़ा। पर्दा प्रथा, बाल विवाह, शिक्षा अभाव आदि न जाने कितनी रुकावटों ने उसके जीवन को प्रभावित किया। वह ना तो कहीं बाहर जा सकती थी, ना शिक्षा ग्रहण कर सकती थी और ना ही अपने वजूद के लिए कुछ कर सकती थी। भक्ति आंदोलन के पश्चात नारी के उत्थान हेतु शनैः शनैः प्रयास होने लगे। महिला संत कवयित्री मीराबाई भक्ति आंदोलन के सबसे महत्वपूर्ण चेहरों में से एक थीं। उन्होंने लोक-लाज-कुल की मर्यादा तोड़ भक्ति का ऐसा अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया कि वह आज तक भक्ति कवियों में अग्रगण्य हैं। धीरे-धीरे मध्य काल से लेकर 21वीं सदी तक आते-आते पुनः महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ और महिलाओं ने शैक्षणिक, राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, प्रशासनिक, खेलकूद आदि विविध क्षेत्रों में उपलब्धियों के नए कीर्तिमान गढ़ दिए। जहां वैदिक युग की नारियों में अपाला, घोषाल, गार्गी, मैत्री ने वेद मंत्रों की रचना लिखी और शास्त्रार्थ में बड़े-बड़े प्रकांड विद्वानों को पराजित किया है वहीं आज की आधुनिक भारत की महिलाओं ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, वित्त मंत्री, विदेश मंत्री आदि पदों को सुशोभित किया है। कौन सा ऐसा क्षेत्र है जहां नारियों ने यदि दहलीज पार कर स्वयं को शिखर तक पहुंचाने की लालसा दिखाई हो और वह ना पहुंची हों।

बात अंतरिक्ष की हो तो कल्पना चावला, बात खेल की हो तो पीटी उषा, सानिया मिर्जा, बात शासन-प्रशासन की हो तो किरण बेदी, बात राजनीति की हो तो इंदिरा गांधी, सुषमा स्वराज; यह चेहरे और नाम हमारे सामने उभर कर आ जाते हैं। और तो और अभी भारत की महिला क्रिकेट खिलाड़ियों ने देश का नाम रोशन किया है। हम प्राचीन काल से लेकर अब तक के अनेक उदाहरण नारी सशक्तीकरण के रूप में देख सकते हैं जब महिलाओं ने अपनी सीमा रेखा को लांघकर न केवल अपने भविष्य को ऊंचाइयों तक पहुंचाया है, अपितु देश दुनिया में भी अपने नाम और काबिलियत का परचम फहराया है।

रामायण की एक अद्भुत पात्र कैकयी माता। यह चरित्र स्वयं में अद्भुत चरित्र है। कैकयी ने अपयश को अपने सर माथे लगाया क्योंकि वह रावण से अपने मान सम्मान राजसी परिवार की प्रतिष्ठा राजसी मुकुट प्राप्त करना चाहती थी, जिसे रावण ने अपने अधिकार में ले लिया था। राम के साथ मिलकर उन्होंने न केवल अपना राजमुकुट प्राप्त किया अपितु रावण जैसे अभिमानी का वध कराया और धर्म की स्थापना की। उन्होंने चिंता नहीं की, समाज में मिलने वाले अपयश की। उन्होंने तो अपनी बुद्धिमता से ना केवल कुल का मान बढ़ाया अपितु युगों-युगों तक राम की यशोगाथा के लिए एक भूमि तैयार की, एक आधार तैयार किया। हम ऐसी ही कुछ सशक्त महिलाओं का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं जिन्होंने उस तथाकथित रेखा को पार कर सफलता के नए कीर्तिमान तय किए –

रानी लक्ष्मीबाई- वे महिला सशक्तिकरण का एक वरेण्य उदाहरण हैं। यह वह नाम है जो करोड़ों महिलाओं के लिए एक आदर्श है। उन सभी महिलाओं के लिए एक प्रेरणा स्रोत हैं जो सोचती हैं कि हम कुछ नहीं कर सकती हैं। स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली रानी लक्ष्मीबाई के अप्रतिम शौर्य से चकित होकर अंग्रेजों ने भी उनकी प्रशंसा की थी।

आनंदी गोपालराव जोशी – जिस समय महिलाओं का घर से बाहर निकलना मुश्किल था। उन्हें दहलीज पार करने की इजाजत नहीं थी। ऐसे समय में आनंदी ने विदेश में जाकर डाक्टरी की पढ़ाई की। नौ वर्ष की अल्पायु में उनका विवाह अपने से सोलह साल बड़े गोपाल राव से हुआ जिनकी पहली पत्नी मर चुकी थी। महज चौदह वर्ष की उम्र में वे मां बन गयीं किंतु दस दिन में ही वह शिशु गम्भीर बीमारी से मर गया। यह दुख उनके लिए असहनीय हो गया और उन्होंने यह ठाना लिया कि किसी भी बच्चे को वह बीमारी से मरने नहीं देंगी। और तब उन्होंने डाक्टर बनने की ठानी और अपनी इच्छा पति को बतायी। घर में विरोध हुआ लेकिन पति के समर्थन से शिक्षा प्रारम्भ की। पति ने विदेश में डाक्टरी पढ़ाई के लिए जानकारी जुटाई और गहने बेच कर, लोगों से आर्थिक मदद लेकर पेंसिल्वेनिया के महिला मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया। वह मात्र उन्नीस वर्ष की थीं जब उन्हें एम डी की डिग्री हासिल हुई। यह डिग्री प्राप्त करने वाली वह पहली भारतीय महिला बनी।

अरुणिमा सिन्हा – आधुनिक भारत की इस साहसी युवती का जितना सम्मान किया जाए कम है। उन्होंने यह दिखा दिया कि हौसलों से उड़ान होती है, पंखों से नहीं। लखनऊ से दिल्ली जाते समय ट्रेन हादसे में अपने पैर गवा बैठी अरुणिमा ने माउंट एवरेस्ट फतह कर दुनिया को दिखा दिया कि नारी कभी लाचार नहीं हो सकती।

सिंधुताई सकपाल – ताई की कहानी भी कम हिला देने वाली नहीं है। सिंधुताई सकपाल के पति ने उनको बच्ची सहित घर से बाहर निकाल दिया। मायके पहुंची तो मायके वालों ने भी धक्का दे दिया। दूधमुंही बच्ची को लेकर रेलवे स्टेशन पर गाकर भिक्षा मांगती थीं और रात्रि में स्वयं को सुरक्षित रखने के लिए शमशान में जाकर सोती। धीरे-धीरे अपनी बच्ची के साथ स्टेशन के बेसहारा बच्चों के लिए भी भिक्षा मांगने लगी और उनकी परवरिश करने लगीं। अपनी जीवन यात्रा करते हुए न जाने कितनों बच्चों को सहारा दिया, उन्होंने शिक्षित किया और समाज में उन्हें स्थान दिलाया। यही नहीं जब 80 वर्ष की अवस्था में उनके पति उनके पास पहुंचे तो उन्हें भी बालक स्वरूप अपने साथ रखा, उनकी सेवा की। व ऐसी शख्सियत रहीं, जिन्होंने समाज को एक नई सोच और नई दिशा देने का कार्य किया।

मीराबाई चानू – गरीब परिवार की एक लड़की अपने 4 साल बड़े भाई के साथ गांव की पहाड़ी पर लकड़ी बीनने जाती थी। एक दिन उसका भाई लकड़ी का गट्ठर नहीं उठा पाया लेकिन मीरा ने उसे आसानी से उठा लिया और 2 किलोमीटर दूर अपने घर तक ले आयी। जिससे प्रभावित हो भाई ने उसे भारोत्तोलन में जाने का सुझाव दिया किंतु गांव में अभ्यास के लिए कोई वेटलिफ्टिंग सेंटर नहीं था। इसलिए उसने रोज ट्रेन से 60 किलोमीटर का सफर तय करने की सोची। एक दिन लेट हो गई रात का समय शहर में उसका कोई ठिकाना नहीं उसने मंदिर में शरण लेने की सोची। मंदिर का निर्माण चल रहा था एक ही कमरा जिसमें पुजारी रहता दूसरे कमरे में छत नही थी छत पर एंगल ही लगी थी। पत्थर की सिल्लियां पड़ी थी। वह आज्ञा लेकर उस बिना छत वाले कमरे में जाकर मिट्टी समतल कर सो गयी। लेकिन रात में बारिश शुरू हो गई मीरा ने छत की ओर देखा छत पर एंगल थी नीचे पत्थर पड़े थे जीना भी आधा अधूरा था। उसने बिना समय गवाएं वह पत्थर और एंग्ल पर रखना शुरु किया और छत को पाटकर उस पर पैलोथिन मिट्टी डाल छत का निर्माण कर डाला। यह कोई साधारण काम नहीं था। जीवन की जद्दोजहद ने उसे इतना शक्तिमान बना दिया कि वह अपनी रक्षा स्वयं कर सकी। उसकी इसी कर्मठता, मेहनत, दृढ़ इच्छाशक्ति का परिणाम रहा कि 11 साल की उम्र में अंडर 15 चैंपियन बन गई और 17 साल की उम्र में जूनियर चैंपियन का खिताब अपने नाम किया और 2018 में राष्ट्रमंडल खेलों में पहला स्वर्ण पदक भारत को दिलाया।

वर्तमान समय बंदिश में जकड़े रहने का नहीं वरन उन बेडियों को तोड़ नव कीर्तिमान गढ़ने का है। महिलाएं आधी आबादी हैं इसलिए उनकी उन्नति पर देश की उन्नति टिकी है। नारी का प्रवंचनाओं को तोडकर आगे बढ़ना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि उसके कंधे पर एक नहीं दो कुलों का भार सदा से है। सृष्टि की सृजनकर्ता भी वही है। बच्चों का पालन पोषण करने उन्हें शिक्षित करने वाली पालनकर्ता भी वही है। और जब नारी अपने पर आ जाए तो विनाशकर्ता भी वही है। नारी में ब्रह्मा,विष्णु, महेश तीनों के गुण समाहित हैं। तभी तो वह शक्ति स्वरूपा है।

एक नहीं दो दो मात्राएं, नर से भारी नारी

नारी कोमल भी है, कठोर भी है। पालक भी है और संहारक भी हो सकती है। आवश्यकता है तो बस नारी को अपने वजूद को पहचानने की।

किसी ने सच ही लिखा है। –

जितना घिसती हूं, उतना निखरती हूं

परमेश्वर ने बनाया है मुझको, कुछ अलग ही मिट्टी से

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