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हंसने और हंसाने की आदत भी हो सकती है बीमारी 

हंसने और हंसाने की आदत भी हो सकती है बीमारी 

by रचना प्रियदर्शिनी
in विशेष, स्वास्थ्य
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हंसना और हंसाना हममें से अधिकतर लोगों को पसंद आता है. शायद ही कोई ऐसा शख्स होगा, जिसे आम जीवन में इन दोनों कामों से परहेज हो (अपवाद की स्थितियों को छोड़ कर). लेकिन जरा सोचिए अगर कोई शख्स आपको लगातार लतीफे या चुटकुले सुनाता रहे, सोते-जागते, उठते-बैठते उस पर लतीफे सुनाने की सनक सवार हो, किसी को हंसी आये या न आये वह खुद अकेले ही उस पर हंसता रहे, तो आप उसे क्या कहेंगे?  जाहिर-सी बात है कि उसकी यह हरकत नॉर्मल तो नहीं कही जा सकती. यकीनन वह किसी मानसिक समस्या से पीड़ित होगा. इस तरह की समस्या या बीमारी को मनोविज्ञान में वित्ज़ेलज़ूख़्त नाम दिया गया है

अमेरिका में रहनेवाले जॉन (काल्पनिक नाम) नामक शख्स को अचानक से चौबीसों घंटे चुटकुले सुनाने की सनक सवार हो गयी. अक्सर वह आधी रात को उठ कर, बीवी को जगाता और फिर कोई वाहियात किस्म का लतीफा सुना कर बोर किया करता था.  जॉन की इस हरकत से उसकी पत्नी आजिज आ गयी थी. करीब पांच साल तक जॉन की चुटकुलेबाज़ी बर्दाश्त करने के बाद बीवी ने उससे कहा कि ऐसा करो कि जो भी लतीफा याद आये, उसे कागज पर लिख डालो.  जॉन ने कुछ ही दिनों में चुटकुलों से पचास पन्ने भर डाले. इनमें से ज्यादातर चुटकुले ऐसे थे, जिन्हें सुन कर शायद ही किसी को

हंसी आये. मगर इन्हीं चुटकुलों को लिख कर और दूसरों को सुना कर  जॉन लोट-पोट हो जाया करता था.

उसकी इस आदत से तंग आकर उसकी बीवी उसे लेकर कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी की न्यूरॉलॉजिस्ट मारिया मेंडेज के पास गयी. इस मुलाक़ात के दौरान भी डेरेक के चुटकुले सुनाने का सिलसिला चलता रहा. इससे मारिया के लिए जॉन से सवाल-जबाव करना मुश्किल हो गया.

कई दिनों के लगातार प्रयास के बाद मारिया इस

नतीजे पर पहुंचीं कि जॉन ‘वित्ज़ेलज़ूख़्त’ नामक बीमारी से पीड़ित है.

वित्ज़ेलज़ूख़्त दरअसल एक ऐसी बीमारी है, जिससे प्रभावित व्यक्ति को लतीफे सुनाने की सनक होती है. भले ही उसकी लतीफों को सुन कर कोई हंसे या न हंसे, वह ऐसा करता रहता है.

क्या कारण है वित्ज़ेलज़ूख़्त के?

वित्जेलजूखत नामक बीमारी का मुख्य कारण व्यक्ति को लगा कोई सदमा या चोट है, जिससे उसके दिमाग के आगे का हिस्सा प्रभावित होता है. दिमाग का यह  हिस्सा व्यक्ति के सोचने-विचारने और बात करने की क्षमता को प्रभावित करता है.

मारिया ने अपने डायग्नॉसिस में पाया कि जॉन को क़रीब दस साल पहले ब्रेन हेमरेज हुआ था. इसकी वजह से उसके दिमाग़ के आगे के दायें फ्रॉन्टल लॉब पर बुरा असर पड़ा था. इससे उसके बर्ताव में काफी  बदलाव आ गया था. वो अक्सर कचरे में से रिसाइकिल की जानेवाली चीजों को ढूंढता रहता था.

कुछ सालों बाद किसी दूसरे सदमे से जॉन का

लेफ्ट फ्रॉन्टल लॉब भी प्रभावित हो गया. इसकी  वजह से जॉन को लतीफे सुनाने की लत सवार हो गयी.

– पहली बार जर्मन डॉक्टर ने की थी पहचान

पहली बार वर्ष 1929 में जर्मनी के एक डॉक्टर ऑटफ्रिड फॉर्स्टर ने इस बीमारी की पहचान की थी.

एक दिन डॉक्टर फॉर्स्टर एक मरीज के शरीर में ट्यूमर का ऑपरेशन कर रहे थे. उस वक़्त वह मरीज होश में था. दरअसल उस काल में ऑपेरशन ऐसे ही हुआ करते थे. जाहिर-सी बात है कि इससे मरीज को दर्द हो रहा होगा, लेकिन वह दर्द से कराहने के बजाय ऑपरेशन थिएटर में मौजूद लोगों को चुटकुले सुना रहा था.

आगे भी ऐसे कुछ लोगों के केस सामने आये. दिलचस्प बात यह है कि ऐसे लोग अपने वाहियात किस्म के मजाक पर भी लोट-पोट होते हैं और दूसरों के चुटकुले सुन कर चुप बैठे रह जाते हैं.

दरअसल हमारे दिमाग के एक विशेष हिस्से में  ‘सेंस ऑफ ह्यूमर’ होता है. यह हिस्सा दिमाग़ के फ्रॉन्टल लॉब में होता है, जो हमें किसी लतीफे को समझने में मदद करता है. जैसे ही व्यक्ति को लतीफे  समझ में आते हैं, उसका दिमाग एक गुदगुदी सी महसूस करता है, इसी वजह से व्यक्ति कभी कभी  मुस्कुरा देता है, तो कभी ठहाका लगाता है, लेकिन जब दिमाग के इस हिस्से में चोट लगती है, तो इसकी वजह से व्यक्ति को लतीफ़े समझ नहीं पाते. वे दूसरों के चुटकुलों पर कोई रिएक्शन नहीं देते.

फ्रॉन्टल लॉब की इसी चोट का उल्टा असर लतीफ़ेबाजी की लत के तौर पर दिखता है. ऐसी स्थिति में व्यक्ति अपनी ही बात पर ख़ूब हंसता है,  जैसे उसे ठहाके लगाने का दौरा पड़ गया हो.

यूनिवर्सिटी कॉलेज, लंदन के जैसन वारेन के अनुसार, ऐसे लोग ‘फ्रॉन्टोटेम्पोरल डिमेंशिया’ नामक दिमागी बीमारी के शिकार होते हैं. इस बीमारी के असर से लोग दूसरों की बातें और भावनाएं नहीं समझ पाते.

वे दूसरों के लतीफ़ों पर नहीं हंसते, क्योंकि वे दूसरों की बातें समझ नहीं पाते. हालांकि ‘फ्रॉन्टोटेम्पोरल डिमेंशिया’ के सारे मरीज़ों को लतीफ़ेबाज़ी की लत हो, यह जरूरी भी नहीं. इस दिशा में आगे भी रिसर्च जारी है.

 

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Tags: hindi vivekhindi vivek magazineselectivespecialsubjectiveबीमारीरोग

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