इंदौर की नींव में है संघ का योगदान

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इंदौर शहर से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का बहुत पुराना नाता रहा है। श्रीगुरुजी ने अंग्रेजी शासन के दौरान यहां पर सभा की थी। शहर के विकास में संघ का योगदान भी अविस्मरणीय रहा है। कोरोना काल में यहां पर संघ के स्वयंसेवकों ने अपने घरों को लौट रहे प्रवासियों की…

अपनी शक्ति का आकलन अवश्य करना चाहिए

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श्री गुरुजी सदैव घोड़े और आदमी की एक कथा सुनाया करते थे।...आजकल हर देश दूसरे शक्तिशाली देशों को अपना मित्र बनाना चाहता है। उस देश को लगता है कि शक्तिशाली मित्रदेश के बल पर वह शत्रुओं से अपनी रक्षा कर पायेगा। पर कोई भी देश निस्वार्थ भाव से दूसरे की…

संघ के वैचारिक अधिष्ठान की नींव – श्री गुरूजी

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के धुर-से-धुर विरोधी एवं आलोचक भी कदाचित इस बात को स्वीकार करेंगें कि संघ विचार-परिवार जिस सुदृढ़ वैचारिक अधिष्ठान पर खड़ा है उसके मूल में माधवराव सदाशिव राव गोलवलकर उपाख्य श्री गुरूजी के विचार ही बीज रूप में विद्यमान हैं। संघ का स्थूल-शरीरिक ढाँचा यदि डॉक्टर हेडगेवार…

श्री गुरुजी ने सिखाया अविस्मरणीय पाठ

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सन 1938 की घटना है। नागपुर के संघ शिक्षा वर्ग में श्रद्धानिधि समर्पित करने का कार्यक्रम था। प्रत्येक स्वयंसेवक ने उस श्रद्धानिधि में अपनी अपनी राशि समर्पित की। किसने कितनी राशि समर्पित की यह अन्य दूसरे को जानने का कोई कारण नहीं था। एक स्वयंसेवक ने अपने हाथ की घड़ी…

शिक्षा का केन्द्र बिन्दु शिक्षक

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भारत में शिक्षा की मौलिक अवधारणा है कि शिक्षा मानव की अन्तर्निहित शक्तियों का प्रकटीकरण है, न कि केवल छात्र के मस्तिष्क में कुछ जानकारियों को ठूँसा जाना। हमारी मान्यता है कि हमारे अन्दर जो परम चैतन्य विद्यमान है, उसी परमसत्य की अनुभूति और अभिव्यक्ति शिक्षा प्रणाली का मूल उद्देश्य…

श्री गुरुजी ने चित्तौड़गढ़ के गाइड को फटकारा

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"चुप रहो, बकवास बंद करो, जो राजपूत मूंछ के बाल के लिए प्राण न्यौछावर कर देते हैं, क्या वे अपनी रानी महारानी को दर्पण में दिखायेंगे ? " बात तब की है जब तत्कालीन परम पूजनीय सरसंघचालक श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य श्री गुरुजी चित्तौड़गढ़ दर्शन के लिए पधारे। ज्ञातव्य…

शिक्षा का उद्दिष्ट : ‘स्व’ की पहचान

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विद्यालय प्रारंभ करते समय उद्देश्य सामने रखा गया था कि प्रचलित शिक्षा-प्रणाली में धर्म, नीति, राष्ट्रभक्ति, मातृभूमि के प्रति अनन्य श्रद्धा आदि के संस्कार देने की कोई प्रभावी व्यवस्था नहीं है। इस कमी को पूरा करने का प्रयास इस विद्यालय में करेंगे। आज यह देखकर बड़ा आनंद हुआ कि उस…

हनुमान जी और डॉ. हेडगेवार जी की ध्येय साधना

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कहा जाता है कि हनुमान जी ने वज्र सदृश अपने नख से पर्वत की शिलाओं पर पूरी राम कथा लिख दी थी। सोचिए वो अकेली रामकथा होती जो उस कवि के द्वारा लिखी गई होती जिसने राम जी और राम चरित का स्वयं साक्षात्कार किया हो। ये देखकर महर्षि वाल्मीकि…

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