कुशल संगठक, सक्रिय राजनेता और लोकप्रिय व्यक्ति – कैलाश विजयवर्गीय

दो दशक पहले कैलाश विजयवर्गीय ने महापौर के तौर पर इंदौर शहर में जो सकारात्मक बदलाव लाने शुरू किए थे, आज उनका सार्थक परिणाम हम सबके सामने है। अपने चार दशकों के राजनीतिक कैरियर में अपने सामाजिक मुद्दों से जुड़े कार्यों एवं बेबाक-तेजतर्रार छवि की वजह से वे देशभर में लोकप्रियता प्राप्त की हैं।

यूं तो राजनीति को समाजसेवा का माध्यम कहा जाता है, लेकिन मौजूदा संदर्भों में देखें तो इसका नितांत अभाव नजर आता है। ऐसे में कुछ चंद चेहरे उभरकर सामने आ जाते हैं, जो इस पैमाने पर जनता की नजर में खरे उतरते हैं। ऐसा ही एक नाम है मध्यप्रदेश के भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय का। इंदौर-महू से 6 बार विधायक रहे कैलाश इस समय भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव हैं। वे भाजपा के भीतर एक ऐसे कुशल संगठक, जुझारू कार्यकर्ता और समर्पित सेवक माने जाते हैं, जो जनता की नब्ज को पहचानता है और दी गई जिम्मेदारी को समूची निष्ठा से क्रियान्वयन करते हैं। अपनी जन्म और कर्म भूमि इंदौर में पिछले चार दशक से वे एक ऐसे लोकप्रिय, सेवाभावी और मददगार नेता के रूप में विख्यात हैं, जो अपने पास आने वाले जान-अनजान हर किसी की हरसम्भव सहायता के लिये तत्पर रहते हैं। इसमें वे दलगत राजनीति की भी अनदेखी कर मदद का प्रयास करते हैं।

विजयवर्गीय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि से राजनीति में आये। यही कारण है कि आज भी वे संघ के हर छोटे-बड़े कार्यक्रम में गणवेश में नजर आ जाते हैं। इंदौर के श्रमिक क्षेत्र से होने के कारण उन्होंने विकास के अभाव को पल-पल महसूस किया। इसीलिये, जब उन्हें पहली बार 1983 में पार्षद के रूप में जन प्रतिनिधि होने का दायित्व मिला, तभी से उनकी छवि विकासवादी नेता की बन गई। जब कोई सोच नहीं सकता था, तब उन्होंने श्रमिक क्षेत्र में विकास कार्यों की गंगा बहा दी, जो अभी तक अनवरत जारी है। नगर निगम में स्थायी समिति के चैयरमैन के नाते और बाद में 1989 में विधायक व 1999 में सीधे जनता द्वारा निर्वाचित महापौर बनने के बाद उनकी पहली प्राथमिकता जनकार्य ही रहा।

सही कहा जाए तो वास्तविक जन प्रतिनिधि के रूप में उनकी पहचान का अंदाज इससे लगाया जा सकता है कि वे पार्षद रहे, विधायक, महापौर, मप्र सरकार में मंत्री या राष्ट्रीय महासचिव, उनके इंदौर में रहने पर पूरे शहर की जनता मदद की आस में सुबह से देर रात तक उनका इंतजार करते देखी जा सकती है। शहर की राजनीति से निकलकर पहले प्रदेश, फिर देश की राजनीति में उतरने के बाद भी उनके व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया। उन्होंने कभी यह नहीं माना कि वे गली-मोहल्ले की राजनीति से सरोकार नहीं रखेंगे। उनके इसी स्वभाव ने करीब चार दशक तक लगातार उन्हें जनप्रिय और चर्चित बना रखा है।

इंदौर शहर में खास तौर से सड़कों का जाल बिछाने के लिये और दूसरे विकास कार्य करने के लिये 1999 में महापौर बनने के बाद उन्होंने बांड जारी कर जनता से धन जुटाने की पहल की। हालांकि इसे आशातीत सफलता न मिलने के कारण योजना तो आगे न बढ़ सकी, किंतु उन्होंने हिम्मत नही हारी और कर्ज लेकर इसकी शुरुआत की। इस तरह से 25 साल पहले बनी सड़कें आज भी यातायात का भार सहने के लिये पर्याप्त साबित हो रही हैं। इसी तरह से शहर के सौंदर्यीकरण, स्वच्छता, नर्मदा के अगले चरण का पानी लाने की योजनाओं पर उनके कार्यकाल में काम प्रारम्भ हुआ, जो बाद में जाकर मील का पत्थर साबित हुआ।

कैलाश विजयवर्गीय के खाते में जो एक और महती उपलब्धि दर्ज होती है, वह है अपने जानने वालों और चाहने वालों के सुख-दुख में सहभागी बनना। इंदौर में वे पहले ऐसे नेता रहे, जिन्होंने कार्यकर्ता और जनता के यहां किसी तरह की गमी होने पर बैठने जाना शुरू किया। इसी तरह से वे शादी में भी रात एक-दो बजे जायें, लेकिन प्रयास रहता है कि जायें जरूर। जिसके साथ उनके आत्मीय सम्बंध बने, उसे उन्होंने हमेशा निभाया।

भारतीय जनता पार्टी की राजनीति में उन्होंने अनेक महत्वपूर्ण दायित्वों को सफलतापूर्वक निभाया। उनकी छवि तेजतर्रार नेता की है और संगठन के कामों में उन्हें महारत प्राप्त है। वे हरियाणा, उत्तराखंड की राजनीति में भी प्रभारी के रूप में दखल रखते रहे हैं। वे प्रादेशिक राजनीति से निकलकर राष्ट्रीय राजनीति में दाखिल होने से पहले से ही प्रमोद महाजन, रविशंकर सिंह, अनुराग ठाकुर, शाहनवाज हुसैन जैसे भाजपा नेताओं की पंक्ति के नेताओं में गिने जाते हैं। अपने आक्रामक बयानों और परिणाममूलक राजनीति के संवाहक होने के नाते शीर्ष नेतृत्व की निगाहों में हमेशा से रहे। वे भाजपा में उस पीढ़ी का नेतृत्व करते हैं, जो अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज, नितिन गडकरी, राजनाथ सिंह, जे पी नड्डा आदि तमाम प्रमुख नेताओं के साथ नजदीकी तौर पर जुड़े रहे। साथ ही संघ में बाला साहेब देवरस, के.एस. सुदर्शन, मोहन भागवत के सान्निध्य में संघ कार्यों में संलग्न रहे होने के कारण नियमित सम्पर्क में भी रहे हैं।

राष्ट्रवाद, हिंदुत्व के साथ ही धार्मिक कार्यों के प्रति भी उनकी जबरदस्त आस्था रही। वे भारतीय जनता पार्टी के सम्भवत: ऐसे अकेले नेता हैं, जिन्होंने करीब दो दशक तक कोई अन्न ग्रहण नहीं किया और केवल फलों और मोरधन(समा का चावल) से बने व्यंजनों का ही उपयोग किया। अपने महापौर कार्यकाल में इंदौर में जनता के योगदान से उनके पुरखों की याद में पौधारोपण का सिलसिला प्रारम्भ किया था, जिसके तहत एक छोटी पहाड़ी पर हजारों पौधे रौपे गये, जो अब विशाल वृक्ष बनकर लहलहा रहे हैं। उसे पितृ पर्वत नाम दिया गया, जहां उन्होंने पितरेश्वर हनुमान की विशाल प्रतिमा स्थापित की। यहां पर हनुमानजी की विश्व की सबसे ऊंची 66 फीट की प्रतिमा बनावई, जो 108 टन वजनी है। 2 मार्च 2020 को इसकी भव्य स्थापना की गई। इस मौके पर कैलाश विजयवर्गीय ने बताया कि, इस प्रकल्प के लिये ही उन्होंने दो दशक तक अन्न त्यागा था, जिसकी कामना पूर्ति के बाद प्रारम्भ किया।

कैलाश विजयवर्गीय इस समय मप्र की राजनीति में तो प्रमुख नाम और चेहरा हैं ही, वे राष्ट्रीय राजनीति में भी स्थापित हैं। वे अपने व्यवहार और आत्मीयता से विरोधियों का भी दिल जीत लेते हैं और इसीलिये विरोधी दलों के भीतर भी उनके असंख्य प्रशंसक हैं।

जन भागीदारी से बना पितरेश्वर धाम

बैठे हनुमान जी की विश्व में सबसे ऊंची मूर्ति

किसी बंजर पहाड़ी को एक लाख पेड़ लगाकर हरा-भरा बनाने के साथ ही साथ कैलाश विजयवर्गीय ने वहां पर पितरेश्वर महादेव की स्थापना की ताकि भविष्य में भी लोगों का उस स्थान विशेष से जुड़ाव बना रहे। पर्यावरण को धर्म एवं समाज के साथ जोड़कर समाज हित के कार्य करने की ऐसी अनोखी पद्धति बहुत कम लोगों में मिलती है।

जिस व्यक्ति में जिद, जुनून और जोश होता है, वह पहाड़ का सीना चीरकर रास्ता बना लेता है, बरसों बरस अन्न का त्याग कर अपने संकल्प को पूरा कर सकता है और बंजर पहाड़ी पर हजारों घने, छायादार, फल-फूल के पेड़-पौधे लगाकर उसे धार्मिक पर्यटन स्थल भी बना सकता है। बात इंदौर के पितरेश्वर हनुमान मंदिर की है, जिसे आकार दिया इंदौर के सर्वप्रिय राजनेता, भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने। जिस तरह से उन्होंने प्रदेश और देश की राजनीति में अपनी भिन्न छवि बनाई, वैसे ही धर्म-अध्यात्म के क्षेत्र में भी वे समर्पित सेवक के तौर पर प्रतिष्ठित हो चुके हैं। एक पार्षद से अपने सार्वजनिक जीवन का प्रारम्भ करने वाले कैलाश विजयवर्गीय वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के महासचिव हैं तो पितरेश्वर हनुमान मंदिर के संस्थापक भी, जिसकी कीर्ति अब सुदूर देशों तक पहुंच चुकी है।

दरअसल सन 2001 में जब कैलाश इंदौर के पहले निर्वचित महापौर थे, तब उनके मन में शहर के पश्चिमी क्षेत्र में एक बंजर पहाड़ी को हरियाली से ढंकने का विचार आया। उन्होंने शहरवासियों का आह्वान किया कि वे अपने पुरखों की याद में नाममात्र का शुल्क देकर पौधारोपण करें। इसका जबरदस्त प्रतिसाद मिला और देखते ही देखते करीब तीन लाख पौधे लगा दिये गये। ये पौधे वर्तमान में घनीभूत होकर पर्यावरण संरक्षण का काम तो कर ही रहे हैं, एक व्यक्ति के हौसले और संकल्प की गवाही भी दे रहे हैं।

तब इसे पितृ पर्वत नाम दिया गया। कुछ ही अरसे बाद उन्हें ख्याल आया कि इसे पर्यावरण प्रतीक के साथ ही धार्मिक पर्यटन के तौर पर भी विकसित किया जाना चाहिये। तब हनुमानजी के परम भक्त होने के नाते हनुमानजी की प्रतिमा स्थापित कर इसे अलग पहचान देने का निश्चय किया। साथ ही उन्होंने यह संकल्प भी लिया कि जब तक वे अपने प्रकल्प को मूर्त रूप नहीं देते, तब तक अन्न ग्रहण नहीं करेंगे। उनके संकल्प की दृढ़ता देखिये कि महापौर, मप्र में मंत्री, भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव होकर भी वे अपने संकल्प से नहीं डिगे और करीब 18 बरस तक दोनों समय मोरधन, साबूदाना और दही का सेवन किया। ऐसे दृढ़ निश्चयी व्यक्ति पर जब हनुमानजी की कृपा बरस जाये तो उसे साकार रूप देना भी आसान हो ही जाता है। 28 फरवरी 2020 को उन्होंने ‘पितरेश्वर हनुमान धाम’ में हनुमानजी की प्राण-प्रतिष्ठा के बाद अपने गुरु शरणानंद के हाथों अन्न ग्रहण किया।

अपने इस सपने को कैलाश विजयवर्गीय ने पूरा किया 3 मार्च 2020 को विशालकाय प्रतिमा की स्थापना के साथ। करीब एक हफ्ते के विभिन्न कर्यक्रमों के साथ संकल्प पूरा हुआ। यह दर्शनीय प्रतिमा अष्टधातु से निर्मित है जो 108 टन वजनी है। इसकी चौड़ाई 54 फीट और ऊंचाई 71 फ़ीट है। यह विश्व की सबसे ऊंची बैठे हुए हनुमानजी की प्रतिमा है।

एक हजार क्विंटल आटे, एक हजार क्विंटल शक्कर से बनी महाप्रसादी

कैलाश विजयवर्गीय की हनुमानजी पर गहरी आस्था है। वे अपने युवाकाल में सुंदर कांड के पाठ के सार्वजनिक आयोजन भी करते रहे हैं। वे एक बेहतरीन गायक भी हैं, जो राजनीति जैसे क्षेत्र में होकर भी अपने शौक को पूरा कर लेते हैं। पितरेश्वर हनुमान धाम में मूर्ति स्थापना का कार्यक्रम 14 फरवरी 2020 से प्रारम्भ हुआ, जिसकी ‘पूर्णाहुति’ 3 मार्च 2020 को अतिरुद्र महायज्ञ में 24 लाख आहुतियां पूरी होने के साथ हुई। भगवान को भोग लगाया गया और फिर शुरू हुआ इंदौर शहर के 10 लाख से अधिक लोगों के लिए ‘नगर भोज’। इसके लिये पितृपर्वत से लगाकर करीब 7 किमी दूर तक लोगों को सम्मानपूर्वक बिठाकर महाप्रसादी का वितरण किया गया। यह सम्भवत दुनिया का सबसे विशाल भोज था, जहां बिना किसी सामग्री के कम पड़े लोगों ने भरपेट भोजन किया और किसी भी प्रकार की भगदड़ नहीं मची। यह भी उनकी प्रबंधन क्षमता और संगठन शक्ति का कमाल था। बाबा हनुमान का आर्शीवाद तो था ही। इसमें परोसगारी में भी खुद लगे रहे और व्यवस्था भी सम्भाले रहे।

पितरेश्वर हनुमान धाम एक नजर में

  •  यह प्रतिमा अष्टधातु से निर्मित दुनिया की सबसे ऊंची हनुमान जी की प्रतिमा है।
  •  पितरों की स्मृति में यहां एक लाख पौधारोपण किया गया है।
  •  पूजनीय प्रतिमा में माता अंजनी हनुमानजी को गोद में लिए हुए हैं।
  •  पितरेश्वर हनुमान की इस दर्शनीय प्रतिमा को पूर्ण करने में 125 कारीगरों को 7 वर्ष का समय लगा।
  •  प्रतिमा को ग्वालियर से 264 भागों में लाया गया था जिसे जोड़ने में कारीगरों को 3 वर्ष का समय लगा।
  •  प्रतिमा पर 7 चक्र मौजूद हैं जिनसे ब्रह्मांड की ऊर्जा प्रवाहित होती है।

यहां स्थित है पितरेश्वर हनुमान धाम

देवी अहिल्या बाई होलकर इंटरनेशनल एयरपोर्ट से पितरेश्वर हनुमान धाम की दूरी करीब 3 किलोमीटर है। यह स्थान रेलवे स्टेशन से करीब 11 किलोमीटर और गंगवाल बस स्टैंड से करीब 8 किलोमीटर दूर है। पितरेश्वर हनुमान धाम का इतिहास भी बेहद दिलचस्प है।

इंदौर में नर्मदा के जल के आने से पहले शहर की जलापूर्ति का सबसे बड़ा केंद्र यशवंत सागर ही हुआ करता था। यशवंत सागर से पानी रेशम केंद्र से पम्पिंग करके जम्बूड़ी होते हुए देवधरम टेकरी पर आता है। इसी देवधरम टेकरी के बचे हुए हिस्से में पितरेश्वर हनुमान धाम बनाया गया है।

– कमलेश मिश्रा 

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