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गजब के हैं ये अजब मंदिर

गजब के हैं ये अजब मंदिर

by हिंदी विवेक
in अध्यात्म, ट्रेंडींग, दीपावली विशेषांक-नवम्बर २०२३, पर्यटन, विशेष, संस्कृति, सामाजिक
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अगर कोई पूछे कि मंदिर किसके लिए प्रसिद्ध है तो उत्तर होगा भगवान के लिए परंतु भारत में कई ऐसे मंदिर हैं जो केवल भगवान के लिए नही अपितु कुछ अलग ही कारणों से प्रसिद्ध हैं। कुछ मंदिरों के तो भगवान भी बंदर या मोटरसाइकल हैं। ऐसे अजब-गजब मंदिरों की जानकारी दे रहा है यह लेख।

हमारे देश में आस्था के ऐसे अनेक केंद्र हैं जिनका ऐतिहासिक महत्व है। अनेक को वास्तुशिल्प का बेजोड़ नमूना माना जाता है तो कई मंदिर ऐसे भी हैं जिनके साथ कुछ अविश्वसनीय लगने वाली मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। देश के कई प्रसिद्ध मंदिर ऐसे भी हैं जो वहां स्थापित देवी या देवता या फिर दर्शन-पूजन के लिए नहीं कुछ अलग ही कारणों से प्रसिद्ध हो गए हैं।

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में मणिकर्णिका घाट पर स्थित रत्नेश्वर महादेव का मंदिर पुराना भी है और प्रसिद्ध भी। मंदिर के बारे में जो बात दूर से ही आकर्षित करती है, वह है इस मंदिर का एक दिशा में झुका होना। सैकड़ों सालों से यह मंदिर 9 डिग्री पर झुका हुआ है। हैरानी की बात है कि वाराणसी में जहां गंगा घाट पर सभी मंदिर ऊपर की ओर बने हैं, वहीं रत्नेश्वर मंदिर मणिकर्णिका घाट के नीचे बना है। ऐतिहासिक महत्ता और इसके झुके होने की वजह से इसे पीसा की मीनार से भी बेहतर माना जाता है।

बिहार के सीतामढ़ी में स्थित रानी मंदिर या स्वर्ण मंदिर को यहां के खंभों पर की गई शानदार नक्काशी के लिए जाना जाता है। आगरा के ताजमहल की तरह इस मंदिर के लिए भी यह कहा जाता है कि इसके निर्माण करने वाले कारीगरों के हाथों को कटवा दिया गया था। इस मंदिर के अंदर एक गुफा मौजूद है, जिसमें रात के समय रोशनी दिखाई पड़ती है। लगभग डेढ़ एकड़ क्षेत्र में फैले हुए इस मंदिर के अंदर से पायल की झंकार की आवाज सुनाई देती है। इसे रानी राजवंशी कुंवर से जोड़ा जाता है और इस आवाज को दो किलोमीटर दूर तक सुना जा सकता है।

देश के अनेक मंदिर ऐसे भी हैं जहां किसी देवी देवता की पूजा के साथ-साथ अन्य मान्यताओं का भी समान महत्व है। चूहों वाली माता का मंदिर और चूहों वाला मंदिर के नाम से विख्यात राजस्थान का करणी माता का मंदिर ऐसा ही मंदिर है। यहां 20000 से ज्यादा चूहे रहते हैं और चूहों का जूठा प्रसाद ही भक्तों को दिया जाता हैं। इतने चूहे होने के बाद भी यहां पर कोई बीमारी नहीं फैलती और न ही मंदिर परिसर में कोई अव्यवस्था या गंदगी है। मंदिर का निर्माण बीकानेर रिसायत के महाराजा गंगा सिंह ने बीसवीं शताब्दी में करवाया था। करणी माता को बीकानेर घराने की कुलदेवी के रूप में भी पूजा जाता है।

भारत के अधिकांश मंदिरों के आसपास बंदरों के झुंड की मौजूदगी एक सामान्य बात है। लेकिन राजस्थान के जोधपुर में भोपालगढ़ स्थित एक मंदिर में बंदर की पूजा की जाती है। बंदर के अलावा इस मंदिर में बालाजी की मूर्ति भी स्थापित है और इसे करंट बालाजी के नाम से जाना जाता है। बंदर की पूजा की कहानी ये है कि कई साल पहले करंट लगने से यहां एक बंदर की मृत्यु हो गई थी। बंदर की मौत से वहां काम करने वाले लोग इतना दुखी हुए कि बाद में उसी स्थान पर पहले बंदर की समाधि बनाई गई और फिर मंदिर का निर्माण कराया गया।

महाराष्ट्र के शिंगणापुर नामक गांव में स्थित शनिदेव के मंदिर की अपनी अलग विशेषता है। यहां स्थित शनिदेव प्रतिमा बगैर किसी गुंबद के खुले आसमान के नीचे एक संगमरमर के चबूतरे पर विराजमान है। शनिदेव का अभिषेक गीले वस्त्रों में ही करने की परंपरा रही है। साथ ही मंदिर के अंदर पूजा पाठ के समय केसरिया रंग की धोती पहनने की मान्यता भी है। इस गांव की एक खास बात और है कि यहां किसी भी घर में ताला नहीं लगाया जाता। माना जाता है कि यहां के सभी घरों की सुरक्षा स्वयं शनिदेव करते हैं।

आंध्र प्रदेश के कुरनूल स्थित यगंती मंदिर का महत्व कुछ अलग कारणों से ही है। मान्यता है कि इस प्राचीन मंदिर का निर्माण ऋषि अगस्त्य की तपस्या से हुआ था। लेकिन जो बात इसे अन्य मंदिरों से अलग करती  है, वह है यहां से जुड़े रहस्य। यहां के नंदी का आकार हो या गोपुर में बने जलकुंड की धार, इस मंदिर में सब कुछ रहस्यमय है। मंदिर में स्थापित पत्थर की नंदी की प्रतिमा का आकार लगातार बढ़ने का दावा किया जाता है। इसी प्रकार, शिवलिंग के नीचे से लगातार पानी निकलता रहता है। मंदिर के गोपुरम के दो छेदों से निकलने वाले पानी का स्रोत अब तक नहीं समझा जा सका है।

जम्मू और कश्मीर के अमरनाथ मंदिर को प्रकृति द्वारा निर्मित मंदिर माना जाता है। शिव भगवान के सभी मंदिरों में से सबसे प्रमुख इस मंदिर में भगवान का शिवलिंग खुद ही निर्मित होता है और इसका आकार घटता-बढ़ता रहता है। लेकिन अमर पक्षी के रुप में यहां दिखने वाले कबूतर के जोड़े के कारण प्राकृतिक गुफा में स्थित मंदिर का काफी महत्व है। माना जाता है कि भगवान शिव के द्वारा अमरता के रहस्य की कथा सुन लेने के कारण उन्होंने अमरत्व का मंत्र जान लिया है। चूंकि यहां पर अमरता के रहस्य का वर्णन हुआ था, इसलिए इसे अमरनाथ गुफा कहा जाने लगा।

राजस्थान के जोधपुर में स्थित ओम बन्ना मंदिर इस मामले में अनोखा है कि यहां किसी मूर्ति की नहीं, बल्कि एक मोटरसाइकिल की पूजा की जाती है। दरअसल, इसके पीछे बुलेट वाले बाबा ओम बन्ना की कहानी है जिन्हें दुर्घटनाओं से बचाने वाले चमत्कारी बाबा के रुप में पूजा जाता है। बताया जाता है कि बुलेट पर जाते समय इसी स्थान पर ओम बन्ना का एक्सीडेंट हुआ था। बाद में यहां मोटरसाइकिल के साथ ओम बन्ना का मंदिर बनवा दिया गया। उसके बाद से वहां कोई दुर्घटना नहीं हुई है। लोग यहां मन्नतें मांगते है और यहां से गुजरने वाला मंदिर में दर्शन जरूर करता है।

बिहार के कैमूर के पर्वतों में स्थित माता मुंडेश्वरी देवी के बारे में मान्यता है कि देवी से जो मांगा जाता है वह अवश्य पूरा होता है। कहा जाता है कि जहां ये मंदिर बना है उस जगह पर मां ने चण्ड-मुण्ड नाम के असुरों का वध किया था। लोग यहां मन्नत के लिए जानवरों की बलि भी देते हैं लेकिन कोई जीव हत्या नहीं होती। पूजा के दौरान बलि का जीव मूर्छित जरुर होता है लेकिन बाद में सकुशल उठ खड़ा होता है। मंदिर की एक चमत्कारिक बात ये भी है कि, यहां भगवान शिव का पंचमुखी शिवलिंग है जो दिन में तीन बार रंग बदलता है।

चाइनीज काली मां का मंदिर अपनी विशिष्ट पूजा शैली के लिए प्रसिद्ध है जो चीनी तरीके से चीनी लोग ही करते हैं। 60 साल पुराना यह मंदिर कोलकाता के ‘टैंगरा’ में स्थित है जिसे चाइना टाउन भी कहते हैं। यहां भक्तों को प्रसाद में नूडल्स, फ्राइड राइस और मंचूरियन बांटा जाता है। मां को चाइनीज व्यंजन का भोग लगता है और फिर प्रसाद के रूप में वितरित भी किया जाता है। इस मंदिर के पीछे जो कहानी बताई जाती है, उसके अनुसार इस मंदिर से एक चीनी बच्चे का जुड़ाव रहा है। काफी समय से बीमार चल रहे उस चीनी बच्चे को यहां लाते ही उसकी बीमारी खत्म हो गई। इसके बाद चीनी लोगों का विश्वास इस मंदिर के प्रति काफी गहरा हो गया।

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के अंतर्गत इंदौरा उपमंडल में काठगढ़ महादेव का मंदिर है। मंदिर के बारे में एक अद्भुत बात है कि यहां स्थापित शिवलिंग अष्टकोणीय है तथा काले-भूरे रंग का है। यह शिवलिंग अर्धनारीश्वर के रूप में पूजा जाता है तथा यह 2300 वर्ष से भी अधिक पुराना है। दो भागों में विभाजित आदि शिवलिंग का अंतर ग्रहों एवं नक्षत्रों के अनुसार घटता-बढ़ता रहता है। हर साल गर्मी शुरू होते ही दोनों प्रतिमाओं के बीच दूरी अपने आप बढ़ने लगती है। लेकिन शिवरात्रि पर दोनों का ‘मिलन’ हो जाता है। शिव रूप में पूजे जाने वाले शिवलिंग की ऊंचाई 7-8 फुट है, जबकि पार्वती के रूप में आराध्य हिस्सा 5-6 फुट ऊंचा है।

भारत के अलग अलग हिस्सों में स्थित ये विभिन्न मंदिर जितने अद्भुत हैं, उतने ही अनोखे भी!

                                                                                                                                                                                        संजय चौधरी

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