भारतीय चष्मे से देखें गोवा

भारत राज्यों का देश है। देश शरीर है तो राज्य भारत की आत्मा हैं। राज्यों की सम्पन्नता या विपन्नता का सीधा असर देश पर पड़ता है। उसी तरह देश के वातावरण का असर राज्यों पर पडता है। आज सम्पूर्ण भारत में अपनी सांस्कृति जडों की ओर लौटने का वातावरण दिखाई दे रहा है। अपने इतिहास, अपनी धरोहरों, अपने सांस्कृतिक प्रतीकों पर गर्व की अनुभूति करने और वर्तमान तथा भविष्य की पीढ़ी का पुनर्जागरण करने की लहर दिखाई दे रही है।

यह एक अभियान है और राष्ट्र जागरण के अभियान में हिंदी विवेक ने हमेशा ही अपना पूर्ण योगदान दिया है। अपने प्रकाशनों, अंकों और विशेषांकों के माध्यम से हिंदी विवेक ने हमेशा ही सकारात्मक तथा अपनी संस्कृति को प्रतिपादित करने वाले विषय पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किए हैं।

किसी भी राज्य की सम्पन्नता का प्रस्तुतिकरण उसके आर्थिक विकास, जन सुविधाओं, आधारभूत ढ़ांचों, प्रगतिशील युवाओं और उसके शौर्यपूर्ण इतिहास से होता है। इसमें से किसी भी एक का प्रस्तुतिकरण अगर विपरीत तरीके से हुआ तो राज्य के प्रति सभी का दृष्टिकोण बदल जाता है।

भारत का सबसे छोटा राज्य गोवा पिछले कई वर्षों से मन में एक टीस लेकर जी रहा है। गोवा शब्द सुनते ही अमूमन मस्तिष्क में एक चित्र उभरता है समुद्र तटों का, नारियल-काजू के पेडों का, रात की रंगीन पार्टियों का, विदेशी सैलानियों का, क्रूज और नावों का, मस्ती करने आए युवाओं का या शादी के बाद एकांत चाहने वाले नवदम्पतियों का। लेकिन ये गोवा का केवल एक पहलू है और दुर्भाग्य से यही अधिक प्रसिद्ध हुआ है। ऐसा क्यों है कि गोवा की मूल संस्कृति के बारे में चर्चा नहीं की जाती? भारत में पर्यटन मूलत: आध्यात्मिक पर्यटन होता है तो फिर गोवा के मंदिरों का दर्शन करने के लिए पर्यटक क्यों नहीं आते हैं? क्यों यहां की मूल खाद्य संस्कृति के व्यंजनों की अपेक्षा पुर्तगालियों के व्यंजनों की चर्चा अधिक होती है?

इन सबका कारण यह है कि गोवा का प्रस्तुतिकरण गोवा मुक्ति संग्राम के बाद भी किसी पुर्तगाली उपनिवेश की तरह होता रहा; जहां चर्चों का महिमंडन हुआ, कार्निवल को मुख्य त्यौहार के रूप में प्रस्तुत किया गया, उसे केवल आधिकारिक रूप से जुआ खेलने और शराब पीने वाले स्थान तथा समुद्री तटों पर घूमने वाले विदेशी पर्यटकों के प्रिय स्थान के रूप में प्रस्तुत किया गया।

वास्तविकता यह है कि गोवा की अपनी एक परिपूर्ण भारतीय संस्कृति है। यहां का रहन-सहन, यहां की जीवन शैली, पहनावा, खाद्य परम्परा अपने आप में पूर्णत्व का अनुभव कराती है। क्षेत्रफल और जनसंख्या की दृष्टि से देश का सबसे छोटा राज्य होने के बावजूद भी गोवा अन्य राज्यों की तरह हर प्रकार से समृद्ध है। लंबे समय तक पुर्तगालियों के अधीन रहने के कारण यहां उनके कुछ प्रतीक अवश्य शेष हैं परंतु मूल गोवा समृद्ध भारतीय संस्कृति का ही प्रतीक है।

इस सत्य को तथ्यात्मक रूप से प्रतिपादित करने के लिए ही हिंदी विवेक के द्वारा गोवा विशेषांक प्रकाशित करने का निर्णय लिया गया। विशेषांक में गोवा के समृद्ध इतिहास, गोवा मुक्ति संग्राम की गाथा, गोवा के मूल हिंदू उत्सवों, त्यौहारों तथा सांस्कृतिक मानचिन्हों की जानकारी, समुद्र तट तथा अन्य प्राकृतिक वैभव सम्पन्नता, गोवा की राजनैतिक यात्रा तथा वर्तमान में गोवा को प्राप्त नेतृत्व के विकासोन्मुखी कार्यों की जानकारी देने का प्रयत्न किया गया है।

भारत में जब भी पहले स्वतंत्रता संग्राम की बात की जाती है तो 1857 की क्रांति का उल्लेख आता है जबकि गोवा में सन 1583 में ही कुकल्ली गांव में क्रांति की ज्वाला जला दी गई थी। पुर्तगालियों के दमन तथा अन्याय का शौर्यपूर्ण प्रतिकार तभी से गोवावासी निरंतर कर रहे थे। गोवा के मंदिरों का महत्व यहीं से प्रतिपादित होता है कि वे इस मुक्ति आंदोलन में सामान्य जन मानस के शक्ति स्थल थे और इसीलिए हमेशा पुर्तगालियों के निशाने पर रहते थे। आंदोलन की नीति तैयार करना हो या एकत्रीकरण के माध्यम से अपने संख्याबल को दिखाना हो, गोवावासी सभी के लिए मंदिरों का ही चुनाव करते थे। गोवा के लगभग हर छोटे बडे मंदिर को ध्वस्त करने का कोई अवसर पुर्तगालियों ने नहीं छोडा परंतु गोवावासियों ने भी अपने आराध्य को बचाने के लिए प्रयासों की पराकाष्ठा कर दी थी। इसलिए आज गोवा के कई मंदिर अपने मूल स्थान से अन्य स्थान पर स्थानांतरित हुए दिखाई देते हैं या फिर उनके मूल मंदिर की जगह जीर्णोद्धार किए हुए मंदिरों में स्थापित दिखाई देते हैं। गोवा में पर्यटन के लिए आने वाले हर भारतीय को इन मंदिरों को देखने तथा इसका इतिहास जानने के लिए जाना चाहिए।

प्रतिवर्ष 25 दिसम्बर से 1 जनवरी तक गोवा में सबसे अधिक भीड होती है क्योंकि क्रिसमस और न्यू ईयर मनाने के लिए विदेशी ही नहीं देशी पर्यटक भी गोवा पहुंचते हैं। परंतु गोवा में अन्य भारतीय हिंदू त्यौहार भी उतने ही हर्ष उल्लास से मनाए जाते हैं। दशहरे पर रावण वध, दीपावली के पहले पडने वाली चौदस, होली का शिमगोत्सव यहां के प्रमुख हिंदू उत्सवों में शामिल हैं। गणेश चतुर्थी से लेकर अनंत चतुर्दशी तक भगवान गणपति की उपासना और मां गौरी की उपासना लगभग हर घर में की जाती है। गोवा के बाहर रहने वाले गोवावासी वर्ष में दो बार गणपति उत्सव के निमित्त और गर्मियों में गोवा अवश्य आते हैं।

गर्मियों में यहां के आम, कटहल, काजू और अन्य जंगली फलों का आस्वाद लिए बिना गोवावासियों का मन नहीं मानता। एक वर्ष यदि कोई गोवा नहीं जाता पाता तो उसे पूरे वर्ष भर इस बात का पछतावा होता रहता है। इन फलों के साथ-साथ चावल, नारियल, मछली और अन्य समुद्री जीव गोवासियों के साथ-साथ अन्य पर्यटकों का मुंह ललचाते हैं। गोवा के स्थानीय मसालों से बने ये व्यंजन ही गोवा की मूल खाद्य संस्कृति का अभिन्न अंग हैं। पुर्तगालियों के दबाव में यहां के लोग भले ही कन्वर्ट हो गए हों परंतु वे भी अपने उत्सवों पर मूल गोवन या कोंकणी व्यंजन ही बनाते हैं।  यहां का मुख्य पेय सोलकढ़ी या नीरा है, शराब नहीं। सम्पूर्ण गोवा में कहीं भी कोई भी मूल गोवावासी शराब पीकर यहां वहां पडा नहीं मिलता। ये तो बाहर आए हुए पर्यटक होते हैं जो सस्ती शराब मिलने के कारण अत्यधिक पी लेते हैं और स्वयं को सम्भाल नहीं पाते।

इतनी प्राकृतिक समृद्धता के बाद भी अपनी मुक्ति के कई वर्षों बाद भी गोवा विकास की गति नहीं पकड पाया था क्योंकि वहां स्थिर सरकार नहीं थी। परंतु मनोहर पर्रिकर के हाथ में गोवा की कमान आने के बाद गोवा एक तय दिशा में विकास करने लगा। रा.स्व.संघ के अनुशासन, निस्वार्थ कार्य, राष्ट्रभक्ति और उच्च लक्ष्य जैसी भट्टी से तपकर निकले इस सोने ने गोवा के लिए ऊंचे मानदंड तय किए। गोवा को विकसित राज्य बनाने के लिए उन्होंने कुछ ब्लू प्रिंट बनाए, नए मानक तय किए और उन्हें प्राप्त करने के लिए दिन-रात मेहनत की। आवश्यकता पडने पर माइनिंग या कसीनो जैसे विषयों पर कठोर निर्णय भी लिए और आज के उन्नत गोवा की नींव रखी। मनोहर पर्रिकर के निधन के पश्चात गोवा के भविष्य पर पुन: प्रश्नचिन्ह लग गया था परंतु नियति कभी भी कोई जगह खाली नहीं छोडती। निर्वात को एक दिन भरना ही होता है। पर्रिकर भी डॉ. प्रमोद सावंत के रूप में अपना उत्तराधिकारी चुन चुके थे और गोवा की जनता ने भी उनपर पूर्ण विश्वास जताया। पहली बार जब वे मुख्यमंत्री बने तो सबको लगा था कि वे मनोहर पर्रिकर के पुण्यकर्म का फल है, परंतु जब वे दूसरी बार मुख्य मंत्री बने तब उन्होंने अपने दम पर विजय हासिल की थी। उन्हें विश्वास था कि गोवा की जनता उनके जनकल्याणकारी कामों को देखकर उन पर फिर से विश्वास करेगी और वैसा ही हुआ भी।

मूलत: आयुर्वेदिक डॉक्टर प्रमोद सावंत गोवा की नाडी भी पकड चुके हैं। आज उनके नेतृत्व में जो काम हो रहे हैं वे गोवा को विकास के अगले पायदान पर पहुंचाने के लिए हो रहे हैं। वे एक ओर राज्य में इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूती प्रदान कर रहे हैं तो दूसरी ओर मंदिरों का जीर्णोद्धार कर रहे हैं। हर घर जल पहुंचा रहे हैं और महिलाओं को स्वावलम्बी बनाने के लिए विविध उपक्रम चला रहे हैं। युवाओं को प्रेरित करने के लिए नेशनल गेम्स, नेशनल फिल्म फेस्टिवल जैसे आयोजन कर रहे हैं साथ ही उन्हें अपने इतिहास की सही जानकारी देने के लिए जीर्णोद्धार किए हुए मंदिरों और किलों पर भ्रमण का आयोजन भी कर रहे हैं।

कुल मिलाकर मुख्य मंत्री डॉ. प्रमोद सावंत का यह लक्ष्य साफ दिखाई देता है कि वे गोवा को उसके सम्पन्न इतिहास के साथ विकास के उच्च पायदान पर ले जाना चाहते हैं और अपनी तीव्र इच्छाशक्ति, कर्तव्यपरायणता तथा गति के कारण उसमें सफल भी हो रहे हैं। केंद्र की सरकार का भी उनको पूर्ण समर्थन मिल रहा है। वे स्वयं कई बार यह कह चुके हैं कि डबल इंजन सरकार होने के कारण गोवा प्रगति पथ दौड रहा है। आज गोवा को अलग नजरिए से देखने की आवश्यकता है। गोवा को पूर्णत: पहचानने के लिए लोगों को जडों की ओर लौटना ही होगा, भारतीय चष्मा पहनना होगा।

 

This Post Has 2 Comments

  1. रघुनाथ देशपांडे

    बहुत बढ़िया आलेख के माध्यम से गोवा की मूल संस्कृति के बारे में उपयुक्त जानकारी दी है।सकारात्मक परिवर्तन के लिए जो जो अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे है, उन का हृदय से धन्यवाद तथा लेखक का अभिनंदन।

  2. डॉ कृष्णा नन्द पाण्डेय

    गोवा के प्राकृतिक सौंदर्य, इतिहास, वहां की सांस्कृतिक विरासत, पर्यटन आकर्षण की शानदार प्रस्तुति, हार्दिक बधाई।

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