दिव्य आदर्श का भव्य मंदिर

अयोध्या में बनने जा रहा दिव्य राम मंदिर दशकों तक चले समाज मंथन से निकला वह अमृत कलश है, जिसने भारत को नवसंजीवनी देकर पुनर्जाग्रत कर दिया है। पिछले एक दशक में इस संदर्भ में जो भी परिवर्तन हुए उनके और राष्ट्र के रूप में भारत के क्रमिक विकास की ओर यदि ध्यान दिया जाए तो वह समानांतर दिखाई देता है, मानो यह विधिलिखित ही था कि जैसे-जैसे भगवान श्रीराम के अयोध्या लौटने की घड़ी आएगी वैसे-वैसे भारत की साख वैश्विक पटल पर बढ़ती जाएगी। वर्तमान स्थिति यह है कि मंदिर तो भारत में बन रहा है परंतु उसमें सहभागिता विभिन्न देशों की हो रही है, किसी देश से मिट्टी आ रही है तो कहीं से जल आ रहा है। यह प्रमाण है कि श्रीराम मंदिर सभी को अपना सा लग रहा है। इसी अपनत्व का अनुभव भारतवासियों ने तब किया था जब राम मंदिर निर्माण के लिए देश भर से ईंटें भेजी गईं थीं। सबने यही सोचकर समर्पण किया था कि श्रीराम मंदिर निर्माण में हमारा भी प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से सहभाग होगा।

हालांकि गाहे-बगाहे यह प्रश्न भी उठता है कि इतने भव्य मंदिर की क्या आवश्यकता है? इस प्रश्न के आलोक में कुछ बातें स्पष्ट होनी आवश्यक हैं। पहली बात, मंदिर हमेशा से ही भारतीय समाज के प्रेरणास्रोत और शक्तिस्थल रहे हैं। विज्ञान भी यह मानता है कि वास्तुशास्त्र के अनुसार निर्मित किसी इमारत में जब निरंतर सकारात्मक विचार प्रवाह तथा मंत्रों का उच्चारण होता रहता है, तो वहां की ध्वनि तरंगों में ऊर्जा निर्मित होती है और वह स्थान अपने आप ही शक्ति केंद्र बन जाता है। पराधीनता की अवस्था में देशवासियों को संयमी, साहसी और एकजुट रहने की प्रेरणा मंदिरों से ही मिलती रही है और अब जब कोई मंदिर केवल भारत का ही नहीं सम्पूर्ण विश्व का शक्ति केंद्र बनने की ओर अग्रसर हो रहा है तो उसका भव्य होना तो निश्चित ही है।

दूसरी बात, जो इस मंदिर निर्माण से सिद्ध होगी वह यह है कि भारत अपनी जडों की ओर लौट रहा है। वह अपने उस इतिहास को फिर से जाग्रत कर रहा है, जिसने उसे विश्वगुरु पद दिलाया था। अपने आराध्यों, अपने श्रद्धास्थलों को फिर से गरिमामयी स्थिति में लाना किसी भी राष्ट्र की सांस्कृतिक समृद्धि के प्रतीक हैं। भारत सांस्कृतिक रूप से समृद्ध तो था ही केवल उसकी मूल पहचान पर कुछ धूल चढ़ गई थी जिसे हटाने का प्रयास अब शुरु हो चुका है।

तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि भारत में मंदिरों की कमी नहीं है और इसके बाद कोई नया मंदिर नहीं बनेगा ऐसा भी नहीं है, परंतु अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर बनना साधारण बात नहीं है। यह उन भगवान श्रीराम का मंदिर है जो भारत के लोगों के प्राणपण में बसते हैं, जिनके जन्मस्थान पर आक्रमण करके भारत की अस्मिता पर आक्रमण किया गया था, जो भारत के आदर्शपुरुष हैं।

आज के मैनेजमेंट गुरु अपने लक्ष्य को, अपने आदर्श को ऊंचा, बडा, भव्य रखने की शिक्षा देते हैं, परंतु हमारे यहां तो आदर्श पहले ही अपनी उच्चावस्था में है। हमने भगवान श्रीराम को इसलिए आदर्श नहीं माना क्योंकि उन्होंने कोई चमत्कार किए थे, हमने तो उन्हें इसलिए आदर्श माना क्योंकि मानवीय जीवन की हर संकल्पना में, हर सम्बंध में उन्होंने अपनी सद्सद्विवेक बुद्धि से ऐसे कार्य किए जो आदर्श हो गए।

रावण और लंका पर विजय के बाद जब राम विभीषण को लंका का राजा बना देते हैं और स्वयं अयोध्या की ओर लौटने लगते हैं तो लक्ष्मण उन्हें इसका कारण पूछते हैं और श्रीराम कहते हैं ‘हे लक्ष्मण! मुझे यह स्वर्णजडित लंका नहीं सुहाती। मेरे लिए मेरी मां और मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर हैं।’ स्वर्णजडित या लोकार्थ में कहें तो अद्यतन भौतिक सुख सुविधाओं से सम्पन्न लंका पर विजय प्राप्त करने के उपरांत भी उसे छोड़कर वापिस अपने देश लौट आना और देश की सेवा करना देशभक्ति का उत्तम आदर्श है जो कि आज भारत के सभी नागरिकों के समक्ष होना ही चाहिए।

ऐसे दिव्य आदर्श भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर अयोध्या में बनने जा रहा है। दिव्यता और भव्यता का यह संगम निश्चितरूप से भारतीयों के क्षात्रतेज का भी उत्कृष्ट उदाहरण सिद्ध होगा। भविष्य की पीढ़ियां जब इस राम मंदिर के दर्शन करेंगी तो वे न केवल भगवान श्रीराम के दर्शन करेंगी अपितु श्रीराम के भक्तों के द्वारा मंदिर के निर्माण के लिए किए गए अदम्य साहस और बलिदान की जानकारी भी प्राप्त करेंगी।

अयोध्या का श्रीराम मंदिर भारत की आध्यात्मिक उन्नति का केंद्र तो बनेगा ही इससे उद्योगों को भी चालना मिलेगी। चूंकि मंदिर भारत की समाज रचना के केंद्र रहे हैं अत: पहले भी उनके माध्यम से आर्थिक विकास को गति मिलती रही है और अब जब अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर बन रहा है तो वह न केवल देशभर के राम भक्तों को आकर्षित करेगा अपितु विश्व के आध्यात्मिक पर्यटन का भी केंद्र बनेगा जिससे निश्चित ही अर्थचक्र की गति बढ़ेगी। इतने भव्य मंदिर के रखरखाव, सुरक्षा, पूजा-अर्चना आदि जैसे विभिन्न आयामों में रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे। अयोध्या के साथ-साथ भारत के आर्थिक विकास को भी बल मिलेगा। भारत में मंदिरों के माध्यम से समाज सेवा के भी कई प्रकल्प चलाए जाते हैं, श्रीराम मंदिर का निर्माण कार्य के पूर्ण होते-होते ही इस मंदिर के माध्यम से भी सेवा प्रकल्प शुरू कर दिए जाएंगे। अयोध्या को आधुनिक शहर के रूप में विकसित किया जा रहा है और इसके लिए अपेक्षित आधारभूत संरचनाओं जैसे हवाई अड्डा, आधुनिक रेलवे स्टेशन, चौडे रास्ते, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स आदि का निर्माण भी किया जा रहा है। सूर्यवंशी भगवान श्रीराम की जन्मभूमि के अधिकतम क्रियाकलाप सूर्य की शक्ति अर्थात ‘सोलर पावर’ से संचालित हों इसलिए केंद्र और राज्य की सरकारें प्रयासरत हैं। भविष्य में पानी की कमी न हो अत: जलकुंडों को पुनर्जीवित किया जा रहा है। सरयू पर क्रूज तथा उसके तट पर राम अरण्यक बनाने का भी प्रावधान है।

कुल मिलाकर देखा जाए तो श्रीराम मंदिर की पुनर्स्थापना केवल मंदिर निर्माण तक सीमित नहीं रह गई है। इसके माध्यम से एक पुरातन और ऐतिहासिक शहर की आत्मा को संजोकर उसे अद्ययावत शहर के रूप में विकसित करने का प्रावधान है। यह पुरातन और नूतन का उत्कृष्ट संगम सिद्ध होगा और भारत के अन्य आध्यात्मिक शहरों के विकास की बानगी भी। यह तो तय है कि अगले दो वर्षों में अयोध्या का कायाकल्प हो जाएगा, जिसकी शुरुआत दिखाई देने लगी है।

राम मंदिर पुनर्निर्माण का कार्य जन सहभागिता से शुरू हुआ था, जिसने जन आंदोलन का स्वरूप लिया और कार्य सिद्धी के पश्चात अब पुन: वह जन सहभागिता की ओर बढ़ रहा है। 22 जनवरी को अयोध्या में देशभर से लाखों लोगों के अयोध्या पहुंचने की सम्भावना है, जिसके लिए प्रशासन ने भी तैयारी कर ली है। हालांकि इस पूरे आंदोलन को समाजव्यापी बनाने का काम जिस रा.स्व.संघ और विश्व हिंदू परिषद ने किया था उसके वरिष्ठ कार्यकर्ता समाज से आव्हान कर रहे हैं कि 22 जानवरी को अयोध्या आने के बजाए अपने निकट के किसी मंदिर में एकत्रित होकर पूजन करें। इससे अयोध्या में अव्यवस्था नहीं होगी और देश के प्रत्येक शहर के मंदिर में ‘श्रीराम पूजन’ किया जा सकेगा। यह जन सहभागिता का उत्तम उदाहरण कहा जा सकता है।

अयोध्या पुन: अपने अलौकिक स्वरूप को प्राप्त करने जा रही है, भगवान श्रीराम पुन: अपने मंदिर में विराजमान होने जा रहे हैं, भारत का आदर्श पुन: प्रस्थापित होने जा रहा है, अब भारतवासियों का यह कर्तव्य है कि इस आदर्श का हमेशा चिंतन करें और उसे अपने जीवन का अंग बनाकर उसके अनुरूप चलने का पूर्ण प्रयत्न करें।

This Post Has 3 Comments

  1. रामेश्वर मिश्र पंकज

    प्रभावशाली आवाहन

  2. डॉ कृष्णा नन्द पाण्डेय

    “दिव्य आदर्श का भव्य मंदिर” मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के शुभागमान की शुभ घड़ियों की प्रतीक्षारत एक उत्कृष्ट अभिव्यक्ति । हार्दिक बधाई। जय श्री राम 🙏🙏🙏

  3. Ramesh

    मंदिर निर्माण मे हमारी भूमिका का सुंदर स्पष्टीकरण

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