कृषिनीति: ज्योतिष से वर्षा का पुर्वानुमान और टपक सिंचाई

20 मई 2004 को मुझे आंणद कृषि विद्यापीठ, आणंद के कुलपति पद पर नियुक्ति का पत्र मिला और दूसरे दिन 21 मई 2004 को मैं अपने पद पर उपस्थित हो गया। जीवन में मोदी जी के साथ काम करने का यह पहला अवसर था। परंतु अगले 6 वर्ष यानी दो टर्म मैं वहां रहा और एक बहुत ही कुशल मुख्य मंत्री के साथ काम करने का मुझे सौभाग्य मिला। हमारी जोड़ी ऐसी थी जैसे भगवान राम और मुनि वशिष्ट हों।

मेरा सबसे पहला अनुभव हुआ जब मुझे गांधीनगर से उनका फोन आया कि आप गुजरात के राज्यपाल श्री नवल किशोर जी शर्मा से मिल लीजिये। मैं दूसरे ही दिन गांधीनगर पहुंचकर आदरणीय राज्यपाल श्री से मिला। उनके पास काशी से एक साधू आये थे, जिनका कहना था कि ज्योतिष के आधार पर बारिश का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। मैं भी इस विषय पर संशोधन कर रहा था। इसलिये मोदीजी ने उन्हें मेरा नाम सूचित किया था। हमने मानसून 2005 की कॉन्फ्रेंस आयोजित की। मोदी जी का पूरा सहयोग व मार्गदर्शन मिला। Ahmedabad Management Association (AMA) के विशाल कक्ष में कॉन्फ्रेंस आयोजित की। व्यासपीठ पर मा. राज्यपाल श्री, मुख्य मंत्री श्री सहित पूरा मंत्रिमंडल उपस्थित था। वेद मंत्रों के पाठ के साथ मेघों का आवाहन किया गया। पूरा विशाल कक्ष वैज्ञानकों और गुजरात के प्रमुख व्यक्तियों से भरा हुआ था। मोदीजी ने कहा कि बारिश का पुर्वानुमान यदि ज्योतिष के आधार पर किया जा सके तो यह भारतीय वैदिक ज्ञान के अनुरूप  होगा और कृषि व किसानों को इसका बहुत लाभ मिलेगा।

दूसरे दिन प्रातः काल में काळे गुरूजी ने यज्ञ की वेदी सजाई। जैसे ही काळे गुरूजी ने वेद मंत्रों के उच्चार के साथ आहुती दी, आहुती की ज्वालायें 30-32 फीट ऊँची प्रज्वलित हो गई, मानो ज्वालायें आकाश का ही स्पर्श कर लेंगी। सड़कों पर यातायात रुक गया। सभी लोग AMA के बाग में, जहां यज्ञ हो रहा था, वहां एकत्रित हो गए। प्रेस मीडिया के आग्रह पर काळे गुरूजी ने वेद मंत्रों के उच्चार के साथ एक और आहुती दी, सभी ने उसका चित्रीकरण किया। दूसरे दिन टेलिविजन पर और समाचार पत्रों में यही समाचार मुख्य समाचार बनकर छपा।

हमने रंगीन दिनदर्शिका बनवाकर गुजरात के हर जिले की बरसात के पूर्वानुमान की सूचना किसानों तक पहुंचाई। इस वर्ष 2005 में बरसात भी बहुत अच्छी हुई। गुजरात के खेत हरे-भरे हो गए। कृषि का उत्पादन 2005 मे 5.25 mt से बढ़कर 2006 मे 6.15 mt और  2008 में 8.20 mt हो गया। गुजरात का कृषि उत्पादन नई ऊँचाइयां छूने लगा ।  मोदी जी कहते थे कि गुजरात उद्योग और व्यवसाय के लिए तो जाना ही जाता है। परन्तु अब गुजरात कृषि और कृषि उत्पादन के लिए भी जाना जाएगा।

उनके मुख्यमंत्रीत्व काल में कृषि वृद्धि दर 0.2% से बढ़कर  9.5% हो गई। कृषि की आय में नए उच्चांक बने। ऐसा लगने लगा मानो मोदीजी ने गुजरात की कृषि का कायाकल्प कर दिया हो।

इसी प्रकार मोदी जी ने सिंचाई में भी काफी विस्तार किया। उन्होंने केन्द्र सरकार से नर्मदा बांध की ऊँचाई बढाने की विनती की, जिससे नर्मदा बांध का पानी सारे गुजरात में पहुँच जाए। परन्तु तत्कालीन सरकार इस ओर ध्यान नही दे रही थी, इसलिए मोदी जी अनशन पर बैठ गए, जिससे केन्द्र सरकार ने बांध की ऊँचाई बढाने की स्वीकृति दे दी। नर्मदा बांध की ऊँचाई 110 मीटर से बढाकर 138 मीटर की गई, जिसके कारण नर्मदा बांध का पानी सब ओर पहुँच सकता था। मोदी जी ने सौराष्ट्र, कच्छ और उत्तर गुजरात में नहरों का जाल बिछा दिया, जिससे नर्मदा बांध का पानी सब ओर पहुँच सकता था। इतना ही नही तो उत्तर गुजरात से होते हुए राजस्थान के दक्षिणी भाग में भी नर्मदा बांध का पानी पहुँच गया।

मोदी जी सभी से आग्रह करते थे कि किसान अपने खेतों में टपक सिंचाई (Drip Irrigation) के माध्यम से सिंचाई करें, जिससे पौधों को जरुरत के मुताबिक पानी भी मिल जाएगा और पानी का अपव्यय भी नहीं  होगा।वे हमेशा ही किसानों से कहते थे कि यदि एक छोटा बच्चा प्यासा है तो उसकी माँ कटोरी में थोडा पानी लेकर, कपास की बाती बनाकर उसे कटोरे में डुबाती है और बाती का दूसरा सिरा बच्चे के मुँह में दे देती है। बच्चा चूस-चूस कर अपनी प्यास के अनुरुप पानी पी लेता है। माँ अपने बच्चे को पानी भरे ड्रम में नही डालती है कि बच्चा चाहे जितना पानी पीये । उलटे पानी में डुबने के कारण बच्चे की साँस रुक जाएगी और वह मर जाएगा। इसी प्रकार छोटे पौधों का है। यदि आपने पौधे की जडों के पास ड्रिपर से पानी दिया तो मिट्टी गिली हो जायगी और पौधे कि जडें उसमें से आवश्यकता के अनुरुप पानी सोख लेंगी, जो पौधे की बढवार में सहायक होगी। वहीं किसान अगर पुरानी पद्धिती (Flood Irrigation) से सिंचाई करे और सारे खेत को पानी से भर दे तो पौधे की जडें साँस नही ले पाएंगी और गल जाएंगी, जिससे पौधा सूख जाएगा। अतः पौधे की अच्छी बढवार के लिए टपक सिंचाई की पद्धिती से सिंचाई करनी चाहिए। बाढ सिंचाई से पानी और बिजली दोनों का ही अपव्यय होता है और उत्पादन में वृद्धि नही होती है।

उस काल में गुजरात में कुल फसली क्षेत्र (Cropped Area) जो 125 लाख हेक्टर था, इसमें से 2.75 लाख हेक्टर में टपक सिंचाई होती थी। भारत मे अब कुल फसली क्षेत्र 159.6 मिलियन हेक्टर है, जिसमें से 10.25 मिलियन हेक्टर में टपक सिंचाई की पद्धिती से सिचांई होती है। उन्होंने टपक सिंचाई और सूक्ष्म टपक सिंचाई (Micro -drip Irrigation) को बढावा दिया, जिससे कृषि उत्पादन बढा।

इति

लेखक: प्रो. डॉ. मदन गोपाल वार्ष्णेय

लेखन सहायक : तन्मय म. वार्ष्णेय

 

 

 

Leave a Reply