जनप्रतिनिधि हूं, जनता के लिए लडूंगा ही

बोरीवली, मुंबई के भाजपा सांसद श्री गोपाल शेट्टी ‘उद्यान सम्राट’ माने जाते हैं। उन्होंने विभिन्न राष्ट्र पुरुषों के नाम पर विभिन्न उद्यान बनवाए और जनता में राष्ट्रीय विचारों का संदेश पहुंचाया। उनके इस कार्य के कारण कुछ असामाजिक तत्व परेशान हैं और अदालतबाजी के जरिए उन्हें प्रताड़ित करने की कोशिश करते हैं। लेकिन वे बिलकुल विचलित नहीं हैं। कहते हैं, जनप्रतिनिधि हूं, जनता के लिए लड़ते ही रहूंगा। इस सम्बंध में उनसे हुई बातचीत के महत्वपूर्ण अंश प्रस्तुत हैं- 

आपके चुनाव क्षेत्र में आपकी उद्यान सम्राट वाली छवि है, यह छवि कैसे बनी?

जब मैंने भारतीय जनता पार्टी में काम करना प्रारंभ किया तो डॉ.श्यामाप्रसाद मुखर्जी से लेकर अब तक के बड़े नेताओं का भाषण सुन-सुनकर मुझे प्रेरणा मिली कि इस प्रकार के नेताओं को सदा याद रखने के लिए कुछ न कुछ करना चाहिए। इस प्रकार मैंने मेरे जीवन का पहला प्रकल्प बोरीवली में डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी चौक के रूप में प्रारंभ किया। उसके बाद मुझे लगा कि महापुरूषों को लेकर बड़े पैमाने पर कार्य किये जाने की आवश्यकता है। फिर हर साल मैं इस तरह के 12 से 14 आयोजन करने लगा। जब मुझे विधायक बनने का मौका मिला तो जो बड़े उद्यान तैयार किए उनको बड़े-बड़े राष्ट्र पुरुषों के नाम देना प्रारंभ किया। बारह एकड़ के जिमखाने में नेताजी सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा लगाकर उनका नाम दिया। सात एकड़ का वीर सावरकर उद्यान बनवाया। वहां पर उनकी 16 फीट ऊंची प्रतिमा लगाई। बोरिवली के डॉन बास्को चौराहे का महानगरपालिका ने लोकमान्य तिलक चौक नामकरण किया तो वहां पर एक सर्कल, बनाकर लोकमान्य तिलकजी की प्रतिकृति लगाई। दहिसर में  छत्रपति शिवाजी महाराज का पुतला लगाया जिसके उद्घाटन के लिए लालकृष्ण अडवाणीजी आए थे। जब मोदी जी गुजरात मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने वीर सावरकर की प्रतिमा का उद्घाटन किया। मैंने झांसी की रानी उद्यान बनवाया जिसका उद्घाटन गोपीनाथ मुंडे और साध्वी ॠतम्भराजी ने किया। इन सारे प्रकल्पों को मैंने सरकार की अनुमति लेकर किया था।

आपने अपने अब तक के कार्य में उद्यानों के विषय को अत्यंत महत्व दिया हुआ है। उसके पीछे की आपकी मूल भूमिका क्या है?

मूल उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण को लेकर था। मैंने देखा कि बहुत सारे महानगरपालिका के आरक्षित भूखंड़ों पर झोपड़पट्टियां बन गईं तो मैंने सोचा कि यदि इन्हें मैं विकसित नहीं करूंगा तो यहां भी झोपड़पट्टियां ही रहेगी। 26 सालों से बोरीवली के लोगों ने मुझे सेवा का मौका दिया, तो मैंने संकल्प किया कि मैं बोरीवली पश्चिम में एक भी झोपड़पट्टी बनने नहीं दूंगा। जो बनी हुई थीं उनके बाशिंदों को अच्छे मकानों में स्थानांतरित करके वह जगह विकसित की। इसलिए बोरीवली पश्चिम के पट्टे में देखेंगे तो आज भी 200 एकड़ से भी ज्यादा खुली जगह है। अब भी फिलहाल दो बड़े-बड़े प्रकल्पों के पीछे हूं। मैंने कांग्रेस की सरकार से लड़कर उसके लिए निधि भी मंजूर करवाई। 13 एकड़ प्रमोद महाजन क्रीड़ा संकुल और 15 एकड़ बालासाहब ठाकरे जी के नाम पर प्रकल्प के लिए। दोनों अगल बगल में हो इसके लिए प्रयासरत हूं। युति का 25 साल का लंबा सफर रहा था और ये दोनों इस युति के शिल्पकार थे। आने वाले दिनों में उसका निर्माण कार्य किया जाएगा। आने वाले दिनों में लोगों को यह भी याद रहेगा। इन सब महापुरूषों ने जो त्याग और बलिदान दिया है वह आने वाली पीढ़ी को पता चले, यही उसके पीछे एक प्रमुख कारण है।

     रानी लक्ष्मीबाई उद्यान का विवाद क्या है? उसे बनाने के लिए क्या अनुमति ली है तथा उस मामले में अब तक हुए कार्यों पर प्रकाश डालिए।

झांसी की रानी प्रकल्प बनाने के पीछे एक विशेष कारण रहा है। एक दिन एक महिला मुझे किसी कार्यक्रम में मिली और बोली कि आप को लगता है कि अपने देश की आजादी में महिलाओं का योगदान बिल्कुल नहीं है? मैंने कहा, ऐसा कुछ नहीं है। उसी समय मैंने उस महिला को आश्वासन दिया कि इसके बाद वाले प्रकल्प को मैं किसी वीरांगना का ही नाम दूंगा। उसके बाद मैंने झांसी की रानी के नाम पर उद्यान बनवाया। झांसी की रानी उद्यान बनाने के बाद राष्ट्रवादी विचार के विरोधी कोर्ट में चले गए। मुझे बहुत लंबे समय के बाद पता चला कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस, लोकमान्य तिलक, छत्रपति शिवाजी महाराज को लेकर भी इस तरह के मामले चल रहे हैं। झांसी की रानी के बारे में एडविन पिंटो नामक व्यक्ति कोर्ट में चला गया। मुझे लगता है कि यह केवल प्रकल्प के बारे में नहीं है। ये लोग तो हमारे मूल राष्ट्रवादी विचार के विरोध में कोर्ट जा रहे हैं। झांसी की रानी का जो मसला चल रहा है, सारी अनुमतियां लेने के बाद ही मैंने प्रस्ताव रखा और सारी अनुमतियां लेने के बाद ही यह कार्य किया गया था। हमने सिर्फ प्रस्ताव रखा था लेकिन इसको म्हाडा ने बनाया है। सरकार की जमीन है, सरकार की अनुमति है और सरकारी एजेन्सी ने बनाया है। माननीय न्यायालय को भी किसी जन प्रतिनिधि द्वारा किए जा रहे जनोपयोगी कार्यों को किस द़ृष्टि से नापना है, इसे लेकर मेरे मन में वेदना है, पीड़ा भी है। जब मैं खुद कोई गलत काम करता हूं तो उसके बारे में कोर्ट को कड़ा कदम उठाना चाहिए। लेकिन जब मैं किसी महापुरुष के नाम पर कुछ करता हूं या बच्चों के खेलने के लिए उद्यान बनवाता हूं तो मैंने कोई गलती की है, ऐसा मुझे नहीं लगता है। फिर भी मैं मानता हूं कि अच्छा काम करने के लिए देश में जो भी नियम हैं उनका पालन होना चाहिए। वह सब मैंने किया है। उसके बाद भी कोर्ट को ठीक से जानकारी न देकर इस प्रकार का आदेश लिया गया। मेरी लड़ाई न्यायालय के आदेश के खिलाफ नहीं है। न्यायालय को जिन्होंने गुमराह किया, उन पर कार्रवाई होनी चाहिए। इस बात को लेकर मैं संकल्प यात्रा के माध्यम से आगे बड़ी लड़ाई लड़ने वाला हूं। मेरा सरकार से आग्रह है कि गुमराह करनेवाले लोगों पर कार्रवाई होनी चाहिए।

     आप जिन्हें गुमराह करने वाले लोग कह रहे हैं, उनके मुद्दे कौन से हैं?

गुमराह करने वाले मुद्दे ये हैं कि सराकर से लिखित अनुमति लेने के बावजूद जब असामाजिक लोग कोर्ट में गए और शिकायत करने लगे तो कलेक्टर अपनी बात से मुकर गया कि, हमने भराव करने के लिए अनुमति नहीं दी। यह उनके द्वारा की गई गलती थी। हमने वहां पर भराव कर समाज मंदिर, लाइब्रेरी बनाने के लिए अनुमति ली थी। लेकिन हमने वह प्रकल्प किया ही नहीं। लेकिन उसके बावजूद भी म्हाडा ने जो कोर्ट को एफीडेविट दिया उसमें कहा कि हमने समाज मंदिर और लाइबे्ररी का निर्माण कार्य नहीं किया है। अतः कोर्ट को लगा कि यह म्हाडा ने नहीं किया बल्कि हमने अवैध तरीके से किया है। म्हाडा को यह कहना चाहिए था कि यह निर्माण कार्य हुआ ही नहीं। कलेक्टर मुकर गया तो वह दोषी है, म्हाडा ने गलत एफीडेविट दिया, इसलिए वह दोषी है। महानगरपालिका को जितनी भी अनुमतियां सरकार ने दी थीं, वह सारी जानकारी म्हाडा के लोगों ने दस्तावेजों के साथ पहले से दे रखी थी कि ये सारी अनुमतियां हमें मिली हैं और हम ये काम कर रहे हैं। इतना होने के बावजूद भी जब शिकायतकर्ता ने महापालिका में शिकायत दी कि तालाब में भराव का कार्य किया जा रहा है तो महानगरपालिका को यह कहना चाहिए था कि सरकार ने उन्हें सारी अनुमतियां दी हैं। यह करने के बजाय महानगरपालिका ने कलेक्टर को चिट्ठी लिखी कि बहुत शिकायतें आ रही हैं। यह मामला अदालत   में जाएगा, वगैरह… तो कलेक्टर भी डर गया और उसने हाथ पीछे खींच लिए। महानगरपालिका को कलेक्टर को इस प्रकार की चिट्ठी नहीं लिखनी चाहिए थी। इसलिए कोर्ट ने इस प्रकार का निर्णय दिया।

     न्यायालय के इस निर्णय से बोरीवली की जनता का किस प्रकार से नुकसान होने वाला है?

आने वाले दिनों में बोरीवली में जो असामाजिक विचारों के लोग हैं, उनका मनोबल बढ़ेगा। अच्छा काम करने वाले रचनात्मक काम करेंगे नहीं। विधायक, सांसद, नगरसेवक लाबिंग लगाने का काम करते हैं; क्योंकि रचनात्मक काम करने के लिए अनुमति लेनी पड़ती है। बहुत मेहनत लगती है, भागदौड़ करनी पड़ती है। लोग रचनात्मक कार्य करने से पीछे हटेंगे, यह एक मुद्दा है। दूसरा यह कि जैसा मैंने कहा कि राष्ट्रवाद विरोधी विचारों के लोगों का मनोबल बढ़ जाएगा। आने वाले दिनों में जनप्रतिनिधियों को ये लोग और परेशान करने का काम करेंगे। इसके लिए मैं लड़ाई लड़ रहा हूं ताकि उनको भी पता चले कि ये लड़ाई आसान नहीं है। हम छोड़ेंगे नहीं। लोगों की अपेक्षाएं बहुत अलग-अलग होती हैं। किसी को राष्ट्रवाद चाहिए तो किसी को विकास। हमें ऐसा करना है कि अच्छे लोगों का मनोबल न टूटने पाए। मोदी जी जब प्रधानमंत्री बने तब उन्होंने अपनी वाणी के माध्यम से राष्ट्रवाद को जीवित कर लोगों को एक बल प्रदान किया है।

     बोरीवली के नागरिकों ने रानी लक्ष्मीबाई उद्यान पर हुई कार्रवाई के  विषय में आपसे सपर्क करके अपनी पीड़ा आपको बताई है? उनका क्या कहना था?

बहुत सारी महिलाएं आईं। वे बोलीं कि, आप हमें बताइए कि हमें क्या करना चाहिए? इस तोड़क कार्रवाई को रोकने के लिए क्या करें? तो मैंने कहा कि नहीं हमें कानून हाथ में नहीं लेना है। जो कुछ करना है वह कानून के दायरे में ही करेंगे। थोड़ा खर्चा होगा पर विचलित होने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन शांत भी नहीं बैठना चाहिए। मैंने कहा कि मेरी लड़ाई मैं लड़ूंगा। मैंने लोगों से आवाहन किया कि चलो एक संकल्प यात्रा निकालते हैं। उस दिन लगभग पांच हजार लोग आ गए। राजनीति में  अगर पांच हजार लोगों को इकट्ठा करना हो तो बड़े नेताओं को बुलाकर कार्यकर्ताओं को मार्गदर्शन देना पड़ता है, बस के पैसे देने पड़ते हैं। ऐसी किसी भी प्रकार की व्यवस्था किए बगैर एक दिन में अगर बड़े पैमाने पर लोग आते हैं तो हमें उनकी भावना का सम्मान करना चाहिए।

     रानी लक्ष्मीबाई उद्यान प्रकरण में आपकी भूमिका क्या है?

एक जनप्रतिनिधि के नाते मैं इस लड़ाई को अंतिम मोड़ पर ले जाऊंगा। इस प्रकार की लड़ाई लड़ने के लिए समय भी लगता है। समय लगेगा लेकिन जीत हमारी होगी, इसका मुझे पूरा विश्वास है।

      इस संकल्प यात्रा में आपने भी एक संकल्प किया है कि जब तक बोरीवली वासियों को सही न्याय नहीं मिलता तब तक आप अपने केबिन में नहीं बैठेंगे। आप बाहर बैठकर जनता की सेवा करेंगे। ऐसा क्यों?

एक कहावत है, कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है। आप कुछ खोए बिना कुछ पा नहीं सकते। और पाने के लिए बहुत समय लगेगा। जैसे मैं यहां बाहर बैठा तो आपने संज्ञान लिया। मेरी पार्टी के नेता भी जानकारी पाएंगे तो सब  सक्रिय हो जाएंगे। अगर मैं रोज की तरह काम करता रहूंगा तो मामला ठण्डे बस्ते में चला  जाएगा। मामले को जिंदा रखने के लिए मुझे लगा कि यह करना चाहिए। अब मैं यहां बाहर बैठूं लेकिन अगर हलचल आगे नहीं बढ़ी तो मुख्य सचिव के कार्यालय के बाहर जाकर बैठूंगा। मुझे लोग पूछते हैं कि क्यों ऐसे आप किसी के कार्यालय के बाहर बैठते हैं? मैं ऐसे ही कार्यालय के आगे जाकर नहीं बैठता हूं। मैं उन्हें समय देता हूं। जनता ने मुझे यह जिम्मेदारी दी है। यदि किसी अधिकारी को लगता है कि मैं इसके काबिल नहीं हूं तो उन्हें बताना पड़ेगा कि ‘मैं जनता का प्रतिनिधि हूं।‘ मैं बहुत जल्दी मुख्य सचिव के पास भी जाने वाला हूं। इससे जनता में एक संदेश जाता है। मैं जनप्रतिनिधि हूं इसलिए मुझे कोई गलती करने का अधिकार नहीं है। मैंने अगर कोई गलती की है तो मुझ पर कारवाई करें और अगर मैं सही हूं तो जिन लोगों ने गलती की है, उन पर कार्रवाई हो।

 

This Post Has 2 Comments

  1. Raju Bhagat

    Hum gopal shetty ji ke saath hai asi bhut Sari inlegal kaam huiea hai sarkar une pai dheyan dena chayea aur karwai Karna chahiye

  2. Chandra Prakash Pandey

    गोपाल शेट्टी जी का हर कार्य सराहनीय है हम ओर हमारे सब साथी उनके साथ है

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