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आपातकाल (26 जून १९७५) का आधुनिक संदर्भ

आपातकाल (26 जून १९७५) का आधुनिक संदर्भ

by डॉ. प्रेरणा चतुर्वेदी
in जून २०१८, विशेष, सामाजिक
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वर्तमान पीढ़ी को चूंकि यह जानने का अधिकार है कि आपातकाल में आखिर क्या हुआ था, अतः इसे पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए। इससे जो बातें छनकर आएंगी, वे तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की स्वेच्छाचारिता, अतिमहत्वाकांक्षा तथा पदलोलुपता को तो प्रदर्शित करेंगी ही, कांग्रेस के शासन की करतूतें भी सामने आएंगी।

एक बार मैं आपातकाल, लोकतंत्र और मीडिया स्वतंत्रता आंदोलन के नायकों में से- श्री के. एन. गोविंदाचार्य, श्री सुब्रमण्यम स्वामी, डॉ. रमाकांत पांडेय, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य एवं वरिष्ठ प्रचारक माननीय इंद्रेश कुमार जी तथा श्री राम बहादुर राय से बात कर रही थी। मेरी बात आपातकाल की प्रासंगिकता को लेकर केंद्रित थी।

उपर्युक्त व्यक्तियों से संवाद के पश्चात् जो बातें छनकर आईं  उसका सार तत्व था- आज देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र भाई दामोदरदास मोदी हैं, जिन्होंने ‘आपातकाल में गुजरात’ नामक पुस्तक लिखी है। उस समय के विचारक तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक माननीय दत्तोपंत ठेंगड़ी जी ने माननीय नरेंद्र मोदी जी को आपातकालीन गुजरात से संबंधित संघर्ष गाथा लिखने को कहा था। यह पुस्तक मोदी जी ने कठिन परिश्रम से लिखी। पूरे आपातकाल के दौरान नरेंद्र मोदी जी ने वेश और स्थान बदलकर कार्य किया। इसमें मातृशक्ति की प्रमुख भूमिका भी रही थी। लेकिन केंद्र में जब से नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार आई है तब से विपक्षियों के साथ-साथ कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी द्वारा लोकतंत्र, चुनाव, संविधान तथा न्यायपालिका पर खतरे के संबंध में मिथ्या आरोप लगाए जा रहे हैं। विपक्षी दलों के साथ कांग्रेसी वकीलों द्वारा माननीय उच्चतम न्यायालय पर प्रश्नचिह्न खड़े किए जा रहे हैं। कांग्रेस शासनकाल के दौरान लोकतंत्र, चुनाव, संसद, न्यायपालिका, कार्यपालिका तथा मीडिया संस्थाओं को कुचल दिया गया था, अधमरा कर दिया गया था। आज वहीं कांग्रेस लोकतंत्र, न्यायपालिका की दुहाई देकर नरेंद्र मोदी सरकार पर मिथ्या आरोप लगा रही है।

लोकतंत्र के हत्यारे स्वर्गीय चंद्रजीत यादव, कुमार मंगलम, रजनी पटेल सहित अधिकांश संसद सदस्य आपातकाल के दौरान सरकार से मतभेद रखने वाले न्यायाधीशों को उदासीन तथा सरकार समर्थक न्यायाधीशों को प्रसन्न करने के पक्षधर थे। जिस प्रकार इंदिरा गांधी ने लोकतंत्र की हत्या कर  एक काला इतिहास रच दिया था उसी तरह नरेंद्र मोदी सरकार ने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया है जो न्यायपालिका के अधिकारों पर कुठाराघात करता हो। उसने कॉलिजियम सिस्टम पर जोर देने का प्रयास किया है। लोकतंत्र में जनता द्वारा चुनी गई सरकार का यह अधिकार एवं दायित्व भी होता है कि वह जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरें। नरेंद्र मोदी सरकार से जनता की बहुत सी अपेक्षाएं हैं। यह अपेक्षा होने का कारण भी है क्योंकि पिछले 60 वर्षों में कांग्रेस ने इस देश पर शासन किया है और उसने तमाम समस्याएं भी खड़ी की है। जनता ने 2014 में भाजपा को अपना प्रचंड समर्थन दिया। आप न्यायाधीशों की नियुक्ति करें और उसमें सरकार की राय नहीं हो, यह कैसे चलेगा?

क्या मई 2014 से मई 2018 तक नरेंद्र मोदी सरकार ने संविधान में ऐसा कोई संशोधन किया है जिसमें भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त अनुच्छेद 14, 21 और 22 के तहत अपने मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए कोर्ट से गुहार लगाने का अधिकार नहीं रह गया हो। जब 26 जून, 1975 को राष्ट्रपति ने आपातकाल की घोषणा की तथा अनुच्छेद 14 विधि के समक्ष समानता, अनुच्छेद 21 प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण और अनुच्छेद 22 कुछ दशाओं में गिरफ्तारी से संरक्षण के तहत मौलिक अधिकार निरस्त हो गए। जबकि नरेंद्र मोदी सरकार में ऐसे कोई उदाहरण नहीं हैं जो प्रधान मंत्री पद की गरिमा के तहत प्रतिकूल उठाए गए हों। पूरे आपातकाल में संसद तथा मीडिया को पंगु बना दिया गया।

दूसरे शब्दों में कहा जाए तो यह कानूनन श्रीमती इंदिरा गांधी को सुपर नागरिक बनाना था, जो कि उस समय प्रधानमंत्री पद का दुरुपयोग करते हुए संविधान, लोकतंत्र और कानून से ऊपर हो गईं। 42वें संविधान संशोधन ने तो सारी हदें पार कर दीं। ये सभी संशोधित प्रावधान इंदिरा गांधी की तानाशाही को प्रदर्शित करते थे। पूरे आपातकाल के दौरान 163000 से अधिक लोगों को मीसा तथा डीआईआर के तहत नजरबंद किया गया था। उनका दोष क्या था? बस यह कि वे विपक्षी दलों से संबंधित थे। लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति का उद्घोष किया था और इस संपूर्ण क्रांति तथा  अन्यायी अत्याचारी सत्ता का विरोध राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे राष्ट्र सर्वोपरि भावना से युक्त संगठन ने किया। क्या देश में जनता से ऊपर प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी हो गई थीं? लोकनायक तथा रवींद्र नाथ के सानिध्य में पली- बढ़ी इंदिरा गांधी को यह कहां से बल मिला कि वह लोकतंत्र की हत्यारी बन गईं तथा लोकतंत्र के चारों खंभों पर प्रचंड प्रहार किया।

भाजपा के वरिष्ठ नेता तथा अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय राज्य मंत्री माननीय मुख्तार अब्बास नकवी का यह कहना कि- आपातकाल को स्कूल- कॉलेज के पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए, क्योंकि आज की 65% युवा आबादी को आपातकाल के बारे में नहीं पता है। उसे छद्म धर्मनिरपेक्ष तथा पूर्वग्रही सरकारों ने पाठ्यक्रम में स्थान नहीं दिया है। युवा जगत में इसके प्रति उत्सुकता है। जो समाज अपनी पीढ़ी को अपने भूत, वर्तमान तथा भविष्य से परिचित नहीं कराता, वह समाज तथा सरकार अपने कर्णधारों के साथ न्याय नहीं करती।

राजनीति विज्ञान विभाग, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी (उ. प्र.) के पूर्व विभागाध्यक्ष, राजनीतिक विश्लेषक, लेखक तथा समाजसेवी प्रो. कौशल किशोर मिश्रा का कहना है कि कांग्रेस का इतिहास वंशवाद, तानाशाही तथा स्वेच्छाचारिता  का इतिहास है। मोतीलाल नेहरू ने पंडित जवाहरलाल नेहरू को स्थापित किया। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इंदिरा गांधी को स्थापित किया। श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपने बेटे संजय गांधी को युवराज घोषित किया था। उन्होंने आपातकाल लगाने तथा जनता पार्टी सरकार को येनकेन प्रकारेण तोड़ने में प्रमुख भूमिका निभाई। बाद में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में सरकार भी बनी। श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी के नेतृत्व में सरकार बनी। राजीव गांधी के असामयिक निधन के बाद सीताराम केसरी को बहुत अपमानित किया गया।

कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी ने चापलुसगिरी की सारी हदें पार कर दीं तथा श्रीमती सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बनीं। सोनिया गांधी लगभग 25 – 26 वर्षों तक कांग्रेस अध्यक्ष  रहीं। उन्होंने वरिष्ठ कांग्रेसियों को दरकिनार कर कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी को अध्यक्ष पद की चाबी सौंप दी है।  स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस का 60 वर्षों तक शासन रहा है लेकिन कांग्रेसी शासन ने देश को पूर्वोत्तर समस्या, जम्मू- कश्मीर समस्या, श्री राम जन्मभूमि समस्या, तमिलनाडु -कर्नाटक जल समस्या, हिंदी-अंग्रेजी भाषा-भाषी समस्या,  पंजाब में उग्रवाद तथा ए से जेड तक का घोटाला ही दिया है। महात्मा गांधी की माला जपने वाली कांग्रेस ने महात्मा गांधी को दूध की मक्खी समझकर ही निकाल फेंका।

कांग्रेस ने अपने पापों का कभी भी प्रायश्चित नहीं किया। वह करना भी नहीं चाहती। आपातकाल के काले अध्याय को राजनीतिक विज्ञान की दसवीं से लेकर स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। मैं इससे शत प्रतिशत सहमत हूं। युवा पीढ़ी तथा छात्रों को यह जानने का पूरा अधिकार है कि आपातकाल में किस प्रकार की  तथा कितनी ज्यादतियां की गईं। ऐसे-ऐसे कारनामे किए गए जिसको सुनकर एक सभ्य व्यक्ति का माथा झुक जाए। यह सभी लोकतंत्र का नारा देने वाली तथा गरीबी हटाओ का नारा देने वाली कांग्रेस शासनकाल में हुआ, जो अपने आप को महात्मा गांधी का अनुयायी मानती है।

जब आपातकाल को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा तो उससे जो बातें छनकर आएंगी, वे प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की स्वेच्छाचारिता, अति महत्वाकांक्षा तथा पदलोलुपता को प्रदर्शित करेंगी। उस समय प्रधान मंत्री पद की गरिमा को गिराने का परिणाम यह हुआ कि आपातकाल के पश्चात चुनाव में भी पूरे उत्तर भारत में एक भी संसद सदस्य को इंदिरा गांधी जितवा नहीं सकी, क्योंकि देश की जनता ने यह समझ लिया कि श्रीमती इंदिरा गांधी तथा संजय गांधी द्वारा जो 20 सूत्री -5 सूत्री कार्यक्रम बनाए गए थे, वे मात्र सत्ता की चाबी को अवैध ढंग से कब्जा हेतु ही थे।

 

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