पद से बड़ा कद

अटल जी का कद उनके पद से हमेशा बड़ा रहा। मतलब अटल जी अगर प्रधान मंत्री रहे तो भी वे उस पद से बड़े लगते थे और जब उनके पास कोई पद नहीं रहा तो भी समाज का उनकी तरफ देखने का नजरिया वैसा ही रहा। यह बहुत बड़ी बात है।

अटल जी के जीवन को हम देखें तो हम पाएंगे कि अटल जी ने वही कहा जो वे कर सकते थे। अटल जी अन्य राजनीतिक नेताओं जैसा भड़काऊ भाषण देकरकेवल चुनाव के समय वोट बटोरने का काम नहीं करते थे। उनके विचारों में देशभक्ति कूटकूटकर भरी थी और मैं मानता हूं कि यही उनकी सब से बड़ी उपलब्धि थी। अटल जी सत्ता के लालची कभी नहीं रहे। सत्ता हासिल करके राज करना अटल जी का स्वभाव नहीं रहा। अटल जी ने जीवन भर देश कैसे आगे ब़ढ़े, देशवासियों का जीवन स्तर कैसे सुधरे इस हेतु प्रयास किया।

अटल जी की एक और विशेषता मैंने देखी और महसूस की कि उन्हें विपक्षी लोग भी उतने ही प्रिय थे जितने अपने पार्टी के लोग थे। चंद्रशेखर जी के अविश्वास प्रस्ताव पर अटल जी ने अत्यंत शालीन भाषा में कहा था कि “मुझे खेद है कि मैं चंद्रशेखर जी की बातों से सहमत नहीं हो सकता। चंद्रशेखर जी की विचारधारा राष्ट्रीय विचारधारा की एक अलग धारा है।” अटल जी ने यह नहीं कहा कि चंद्रशेखर जी के विचार गलत हैं। उनके ये विचार हम राजनीतिक कार्यकर्ताओं को काम करते समय प्रेरणा देते हैं।

अटल जी का कद उनके पद से हमेशा बड़ा रहा। मतलब अटल जी अगर प्रधान मंत्री रहे तो भी वे उस पद से बड़े लगते थे और जब उनके पास कोई पद नहीं रहा तो भी समाज का उनकी तरफ देखने का नजरिया वैसा ही रहा। यह बहुत बड़ी बात है। वरना राजनीति में व्यक्ति अगर पद पर है तो लोगों का द़ृष्टिकोण अलग रहता है और पद पर नहीं रहा तो दृष्टिकोण अलग होेता है। अटल जी के बारे में ऐसा कभी नहीं रहा।

अटल जी की दूरदृष्टि, व्यक्तियों को परखने, पहचानने की उत्तम क्षमता का मैं एक उदाहरण देना चाहता हूं। यह किस्सा तब का है जब नरेंद्र मोदी न विधायक थे, न सांसद। दरअसल वे अटल जी के द्वारा चुने गए लोगों में से एक हैं। एक बार  नरेंद्र मोदी को अटल जी ने फोन करके पूछा “आप कहां हैं?” (उस समय राजेश पायलट जी की दुर्घटना में मृत्यु हुई थी।) नरेंद्र मोदी ने उत्तर दिया, “मैं श्मशान भूमि में हूं।” अटल जी ने पूछा, “आप राजेश पायलट जी के लिए श्मशान भूमि में गए हैं?‘’ तब नरेंद्र मोदी ने कहा, “नहीं! उनके लिए तो बहुत से लोग आए हैं। परंतु राजेश जी के साथ जो बॉडीगार्ड था, उसकी भी मृत्यु हो गई है और उसके लिए यहां कोई नहीं आया है। अत: मैं उस बॉडीगार्ड के लिए श्मशान भूमि में आया हूं।” अटल जी ने कहा, “आप दिल्ली आइए, आपको कुछ काम सौंपना है।” जब दिल्ली पहुंचे तो अटल जी ने सर्वसम्मति से नरेंद्र मोदी को गुजरात का मुख्यमंत्री घोषित किया। उनका चयन कितना सही था यह सब हम आज देख रहे हैं।

अटल जी से मैं केवल एक ही बार मिल सका और उसमें भी बहुत लंबी बातचीत हुई ऐसा नहीं है। उस समय मैं मुंबई शहर का उपमहापौर था, गोखले साहब कमिश्नर थे तथा नंदू साटम मेयर थे। तब मुंबई शहर की समस्या को लेकर हम अटल जी से मिले। हम लोगों ने मुंबई के लिए पैसों की मांग की, तो अटल जी ने कहा, मुंबई में पैसा बहुत है। अर्थात झूठमूठ में ही “हां देखता हूं, करता हूं” ऐसा न कह कर जो वास्तविकता थी वह अटल जी कह देते थे। उनका अलग ही दृष्टिकोण था और उनमें सटीक निर्णय क्षमता थी।

किसी के भी अच्छे निर्णय की तारीफ करना, उसका उत्साह बढ़ाना अटल जी के स्वभाव का हिस्सा था। इंदिरा गांधी कांग्रेस की नेता थीं परंतु भारत की प्रधानमंत्री थीं। उनके प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान जब पाकिस्तान से युद्ध हुआ तो अटल जी ने इंदिरा गांधी को संसद में ‘दुर्गा’ कह कर संबोधित किया था। यह अटल जी के स्वभाव का बड़प्पन ही था।

अटल जी कवि थे। सामान्यत: यह देखा जाता है कि कवि कोमल हृदय के होते हैं। उनसे साहसी निर्णयों की अपेक्षा नहीं की जा सकती। परंतु कवि के रूप में जहां अटल जी कविता को लोगों तक पहुंचाते थे, वहीं देशहित के लिए समय आने पर उतने ही कठोर निर्णय भी लेते थे। परमाणु परीक्षण, पाकिस्तान को करारा जवाब, करगिल युद्ध ऐसे उदाहरण हैं जो साबित करते हैं कि देशभक्ति उनमें कितनी कूटकूटकर भरी थी।

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