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विश्वास के पंख

विश्वास के पंख

by सुनीता माहेश्वरी
in उद्योग, कहानी, महिला, सामाजिक
2

रमाशंकर जी से सराहना के शब्द सुन कर नैना का मनमयूर विश्वास के रंगीन पंख लगा खुशी से नाचने लगा था। एक परम्परागत साड़ी उद्योग को नैना ने एक आधुनिक फैशन  उद्योग में जो बदल दिया था…

अरी नैना बिटिया, तनिक यहां तो आओ, सारे दिन का फैसन में ही लगी रहत हो।”

“आई दादी” कहती हुई दस वर्षीया नैना आधी साड़ी बदन पर लपेटे हुए और आधी हाथ में लेकर दादी के समीप पहुंची तो दादी हंस पड़ी । नैना मचलते हुए बोली, “देखो न दादी साड़ी पहनना नहीं आ रहा, पहना दो न।”

दादी ने नैना को पास बुलाया और उसके माथे को चूमते हुए  प्यार से गले लगा लिया। दादी ने नैना को बड़े प्यार से साड़ी पहना दी। सजी-धजी प्यारी सी नैना को देख कर दादी नैना की  मां स्नेहलता से बोली, “बहू, तनिक बिटिया को नज़र का टीका तो लगा दो।”

स्नेहलता ने नैना को घूर कर देखा और कहने लगी, “पढ़ने लिखने में तो मन लगता नहीं है, बस महारानी बन कर सारे दिन ़फैशन में ही लगी रहती है। आप भी इसी का साथ देती हो।”

दादी की लाड़ली नैना आए दिन तरह तरह के ़फैशन करती रहती और तरह-तरह के पोज़ बना कर सेल्फ़ी लेती रहती। पढ़ाई में उसका ध्यान न लगता।

जब नैना दसवीं कक्षा में थी, तब एक दिन उसकी अध्यापिका ने फैशन के प्रति उसकी रुचि को पहचान कर उसे समझाया,

“नैना, क्या तुम जानती हो कि तुम बड़ी होकर एक फैशन डिजाइनर भी बन सकती हो। अपने शौक को अपना प्रो़फेशन भी बना सकती हो, पर उसके लिए तुम्हें मन लगा कर पढ़ना होगा।”

नैना के मन में अध्यापिका की बात घर कर गई। वह बहुत ध्यान से पढ़ने लगी। फैशन में भी उसकी रुचि बढ़ती जा रही थी। बड़े होने के साथ-साथ उसके शौक से सभी प्रभावित होने लगे थे। जब कभी कपड़े खरीदने होते, तब सभी नैना को अपने साथ ले जाना चाहते थे। उसकी पसंद के आउट फिट्स के रंग और डिजाइन सभी के ऊपर बहुत फबते थे । नैना को पारंपरिक परिधान बहुत पसंद थे। वह पारंपरिक वस्त्रों को कुछ नया रूप देने को उतावली रहती थी। बारहवीं कक्षा के बाद नैना ने फैशन डिजाइनिंग कोर्स करना आरंभ कर दिया। अपने डिज़ाइन्स के लिए नैना यूनीवर्सिटी बहुत प्रसिद्ध हो गई थी । उसने वहाँ टॉप करके अपने सभी घर वालों को आश्चर्य चकित कर दिया था ।

पढ़ाई समाप्त होने पर नैना के माता-पिता ने उसका विवाह बनारस के ही एक जाने-माने उद्योगपति रमा शंकर जी के पुत्र नितिन के साथ कर दिया था, जो एक आई.ए.एस.ऑफिसर था। नितिन और नैना की जोड़ी बहुत सुन्दर थी। पहली ही दृष्टि में दोनों के मन प्रेम रंग में रंग गए थे। नैना और नितिन एक दूसरे को जीवन साथी के रूप में पाकर बहुत खुश थे।

नटखट प्यारी नैना जैसे अपने मायके में सबकी लाड़ली थी, वैसे ही यहां भी सबकी प्रिय हो गई थी। पर अंतर यह था कि ससुराल में उसे उतनी स्वतंत्रता नहीं थी, जैसी अपने परिवार में थी। वह ससुराल के कुछ कठोर नियमों में गोल-गोल जलेबी की तरह उलझ कर रह जाती थी, पर नितिन के प्यार की चाशनी में डूब कर वह सब परेशानियां भूल जाती थी। उसने परिस्थितियों के साथ समझौता कर लिया था। वह अपने परिवार की खुशी में ही खुशी ढूंढ लेती थी। लड़कियों के अंदर ईश्वर ने अद्भुत सहनशक्ति जो दी है। जब कभी उसका मन भारी हो जाता, वह अपने मायके चली जाती और बिंदास मस्ती करती। कुछ मस्ती के बाद फिर वही जिम्मेदारियों में आ कर उलझ जाती।

सारे  दिन घर के कामों में लगे रहने के बाद भी वह इंटनेट, पत्रिकाओं और पुस्तकों के माध्यम से फैशन की दुनिया से जुड़ी रहती। बनारसी साड़ी उद्योग तो जैसे उसका सपना था। उसका बहुत मन होता था कि वह भी अपने ससुर जी के साड़ी के उद्योग को जाकर देखे। उसे समझे और वहां पर काम करके अपना योगदान दे। उसने रमा शंकर जी से कहा, पिताजी, मैं भी आपके साथ फैक्ट्री चलना चाहती हूं। डिज़ाइन सेक्शन देखना चाहती हूं।

लेकिन, उसके ससुर रमाशंकर बिल्कुल भी इसके लिए तैयार नहीं थे। उन्होंने डांटते हुए कहा, “घर की बहू-बेटियां क्या फैक्ट्री जाती अच्छी लगती हैं? वहां तरह-तरह के लोग होते हैं। तुम्हारा वहां क्या काम है बहू? तुम अपना किचन सम्भालो।

बेचारी नैना मन मारकर बैठ गई। उसकी प्रतिभा को जंग सी लगती जा रही थी ? उसके ससुर रमाशंकर पुराने ख्यालात के व्यक्ति थे। नैना की सासू मां मीनाक्षी सरल स्वभाव की थीं, पर पति के आगे उनकी एक न चलती थी। मीनाक्षी नैना को भरपूर प्यार देती थी।

सब कुछ ठीक चल रहा था, एक दिन अचानक रमाशंकर जी के पेट में बहुत  दर्द हुआ। डॉक्टर को दिखाया। सभी टेस्ट हुए, पता चला कि उनके पेट में कैंसर बुरी तरह ़फैल चुका है। डॉक्टर ने नाउम्मीदी जताते हुए नैना और नितिन से कहा था, आई एम सॉरी। कैंसर फोर्थ स्टेज पर है। अब कोई ऑपरेशन, कीमो आदि से कुछ लाभ नहीं होगा। अब तो गंगा जल पिलाओ या कीमो कराओ, एक ही बात है। कोई चमत्कार हो जाय तो बात अलग है।

यह सुन कर नैना और नितिन को ऐसा लगा जैसे उन्हें चार सौ चालीस वोल्ट का करेंट लग गया  हो। कैंसर का नाम सुनते ही पूरा परिवार टूट सा गया था। कुछ समय तक रमाशंकर जी से इस भयानक सत्य को छिपाया गया किन्तु जब उन्हें यह पता लगा तो उनकी आंखों से  आंसुओं की झड़ी लग गई थी। वे अपने आपको पल भर में लूटा सा महसूस कर रहे थे। उनके सामने मीनाक्षी का चेहरा घूम रहा था। कौन संभालेगा इसे। उनके साड़ी के इतने बड़े उद्योग का क्या होगा? उनका सबसे बड़ा दुख तो यह था, कि उनका इतना होनहार पुत्र नितिन उनके बसे-बसाये कारोबार को देखना ही नहीं चाहता था। नितिन को इस पारिवारिक पारंपरिक उद्योग में कोई रुचि नहीं थी। नितिन कुछ नया करना चाहता था। वहआई. ए. एस. कर के सरकारी अफ़सर बन गया था। साड़ी उद्योग जैसे बड़े कारोबार के लिए किसी बाहर के व्यक्ति पर कैसे विश्वास किया जाय। रमाशंकर जी को सब चिंताएं खाए जा रही थीं। उन्हें अपनी मृत्यु सामने नाचती दिखाई दे रही थी। उनका एक-एक पल कठिन होता जा रहा था। शारीरिक पीड़ा के साथ मानसिक पीड़ा ने उन्हें झकझोर कर रख दिया था।

एक दिन पूरा परिवार रमाशंकर जी के पास बैठा था। पिताजी को परेशान देख नितिन ने उनसे कहा, पिताजी, मुझे तो अपने जॉब पर जाना ही होगा, साड़ी उद्योग संभालने के लिए आप नैना पर विश्वास कीजिए। मैंने उसकी क़ाबलियत देखी है। वह यह अच्छी तरह संभाल सकती है। आप उसे उचित निर्देश दीजिए। उसे काम समझाइए। वह जरूर सफल होगी।

नैना का नाम सुनते ही रमाशंकर जी उखड़ गए और बोले,

“नितिन, उद्योग संभालना बच्चों का खेल नहीं है। नैना घर देखेगी या़ फैक्टरी? तरह-तरह के लोगों के साथ डील करना कोई आसान काम नहीं होता है। औरतें तो घर और बच्चों को ही देख लें, वही बहुत है।”

नितिन ने समझाते हुए कहा, “पिताजी, अब समय बदल गया है, आज लड़कियां सब क्षेत्रों में आगे बढ़ रही हैं। शिक्षा के कारण  उनमें योग्यता और आत्मविश्वास भी बढ़ा है। फिर नैना ने तो ़फैशन डिजाइनिंग का कोर्स भी किया है। आज वे सब वर्गों के लोगों से बातचीत कर सकती है, चाहें कारीगर हों या अधिकारी।”

रमाशंकर जी बोले, ⁛फैशन की चार किताबें पढ़ लेने से इतना बड़ा उद्योग संभालना नहीं आ जाता है। घर को ही अच्छे से सजा लें, यही बहुत है। खाली शौक मात्र से से उद्योग नहीं चला करते।”

नैना रमाशंकर जी  के नकारात्मक उत्तर सुन कर निराश हो रही थी। मीनक्षी जी ने डरते-डरते रमाशंकर जी से कहा, “सुनिए, मेरा खयाल है कि कुछ समय के लिए आप नैना को काम संभालने की अनुमति दे दीजिए। यदि वह अपने काम पर खरी न उतरे,  तो उससे काम वापस ले लीजिए।”

रमाशंकर जी मीनाक्षी, नैना और नितिन की बात से सहमत तो नहीं थे, फिर भी सबका मन देख कर उन्होंने अनमने मन से कहा, “ठीक है, नैना तुम कुछ दिन ़फैक्टरी जा कर देख सकती हो।”

पिताजी के शब्द सुन कर नैना की खुशी का ठिकाना न था। उसका बचपन का सपना मूर्त रूप जो ले रहा था। अपने बचपन के लक्ष्य को पूरा होता देख उसकी आंखों से  खुशी के मोती छलक उठे थे। नैना ने पिताजी के चरण स्पर्श किए।

दूसरे ही दिन नैना सुबह पांच बजे उठ गई। उसने जल्दी- जल्दी कुछ घर के काम किए और फिर भगवान और बड़ों को प्रणाम कर फैक्टरी जाने के लिए तैयार हो गई। उसके मन में खुशी, उत्साह, डर, उमंग का मिलाजुला भाव था। वह चाहती थी कि उससे कहीं भी कोई त्रुटि न हो। इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी जो मिली थी उसे।

नैना की जिंदगी का नया अध्याय आरंभ हो चुका था।

नैना पूर्ण विश्वास के साथ फैक्टरी गई। वहां के मैनेजर ने नैना को सभी से मिलवाया। उसे पूरी फैक्टरी दिखाई। पावरलूम पर साड़ियां बनाई जा रही थीं। तरह-तरह के बेल बूटे, झालर, जाल आदि के डिज़ाइन्स डाल कर साड़ियो को सजाया जा रहा था। रेशमी बनारसी साड़ी पर ज़री का सुंदर काम देख कर नैना आनंदित हो उठी थी। वह उस उद्योग को आसमान की ऊंचाइयों तक ले जाने के सपने बुनने लगी थी। नैना ने धीरे-धीरे एक-एक कर सभी विभागों का कार्य समझा। न केवल डिज़ाइन और निर्माण कार्य अपितु कच्चे माल की खरीदारी और साड़ियों की बिक्री पर भी उसने ध्यान दिया। वह बहुत ही मेहनती और योग्य थी। कुछ ही दिनों में फैक्टरी के सभी कारीगर तथा अधिकारी उसकी प्रतिभा से प्रभावित हो गए थे।

प्रति दिन नैना घर आकार रमाशंकर जी को दिन भर के कामों से अवगत कराती। रमाशंकर जी बे-मन से उसकी बात सुन कर कह देते, हूं ठीक है। पर उन्हें भी नैना पर धीरे-धीरे विश्वास होता जा रहा था।

नैना धीरे-धीरे फैक्ट्री के सभी कामों में दक्ष होती जा रही थी। समय पंख लगा कर उड़ता जा रहा था। वह कारीगरों को आधुनिक डिजाइन्स और रंगों के चयन के लिए तरह-तरह के सुझाव देती। एक वर्ष में ही उसने कई अपेक्षित परिवर्तन कर इस व्यवसाय को आगे बढ़ा दिया था। उसने इसे केवल साड़ी तक ही सीमित नहीं रखा। समय की मांग के हिसाब से उसने कुर्ता, दुपट्टा, लॉन्ग ड्रेस, टॉप, ड्रेस मटीरियल, कुशन कवर आदि का निर्माण कराना भी शुरू कर दिया था। साथ ही ऑनलाइन माल सप्लाई का काम भी शुरू कर दिया था। उसके काम करने के ढंग से पूरा स्टाफ़ प्रभावित था। इससे उद्योग से होने वाली आय में भी बढ़ोत्तरी हो गई थी।

रमाशंकर जी का स्वास्थ्य दिन-प्रति-दिन गिरता जा रहा था।  कुछ समय बाद नैना ने कहा, “पिताजी, आज मैं आपको फैक्ट्री ले जाना चाहती हूं।”

रमाशंकर जी ने कहा, “मुझसे चला भी नहीं जा रहा और तुम कह रही हो कि मुझे फैक्ट्री ले जाओगी।”

नैना ने बड़े विश्वास और आदर के साथ कहा, “जी, पिताजी, आपकी व्हील चेयर कार में रख लेती हूं। कार से उतार कर आप व्हील चेयर पर ऑफिस चलिए। ऑफिस में सभी आपसे मिलना चाहते हैं।”

यों तो रमाशंकर जी के लिए दुनिया बेमानी सी हो गई थी, पर अपने खून पसीने से बनाई हुई उस फैक्ट्री में उनकी जान पड़ी थी।  वे खुश हो गए, एकदम चमचमाता स़फेद कुर्ता पायजामा पहन कर वे तैयार हो गए।

ऑफिस पहुंचते ही उनके स्टाफ़ ने उनका भव्य स्वागत किया। रमाशंकर जी की आंखों से खुशी के आंसू छलकने लगे थे। वे भावविभोर हो कर बोले, “आप सबकी मेहनत का ही यह परिणाम है कि आज यह उद्योग इतनी ऊंचाई को छू रहा है।”

रमाशंकर जी की बातें सुन कर सभी कारीगर और अधिकारी भी भावुक हो गए थे। एक बहुत ही पुराना कारीगर बोला, “सर, नैना मैडम बहुत होशियार हैं। वे हमें नई-नई डिज़ाइन्स सीखा रही हैं।”

नैना और मैनेजर ने वहां हुए सभी परिवर्तनों से जब रमाशंकर जी को अवगत कराया, तो वे आश्चर्यचकित रह गए। उन्हें नैना की काबलियत पर जो संदेह था, वह दूर हो गया था। उन्होंने नैना से बड़े प्यार से कहा, “बेटी, मेरी सोच सचमुच गलत थी। बदलते जमाने में आज लड़कियां बहुत आगे बढ़ गई हैं। तुमने आज जो कर दिखाया है, उसकी मुझे कतई आशा नहीं थी। सच है जहां योग्यता के साथ आत्मविश्वास, हिम्मत और लगन हो वहां सफलता अवश्य मिलती है, फिर चाहें कार्य करने वाला पुरुष हो या नारी।

रमाशंकर जी से सराहना के शब्द सुन कर नैना का मनमयूर विश्वास के रंगीन पंख लगा खुशी से नाचने लगा था।

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Comments 2

  1. डॉ.रश्मि नायर says:
    6 years ago

    बहुत सुंदर कहानी होनेके साथ शीक्षाप्रद है । नारीप्रधान है । नारी सशक्तीकरणमे सहायक है । कभी भी औरतोंको कमजोर नहीं समझना चाहिए।

    Reply
  2. Hari says:
    7 years ago

    प्रेरणात्मक कहानी

    Reply

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