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राष्ट्र हिताय स्वास्थ्य साधनम

राष्ट्र हिताय स्वास्थ्य साधनम

by डॉ किशोरीलाल व्यास
in अध्यात्म, फरवरी-२०१५
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राष्ट्र की रक्षा के लिए अच्छे स्वस्थ शरीर की परम आवश्यकता है।
प्राचीन रोम एवं ग्रीकवासी प्रतिदिन, हर नागरिक इतना व्यायाम करता था कि वहां का हर नागरिक लड़का सैनिक या इसी कारण रोम वासियों एवं ग्रीक लोगों ने अपने राज्य की पूर्णत: रक्षा ही नहीं की, प्रत्युत अपने राज्य का समुचित विस्तार किया। केवल पांच हजार से दस हजार रोमन सैनिकों ने अनुशासन बद्ध होकर एक लाख से अधिक शत्रु सैनिकों के छक्के छुडा दियो सिकंदर की छोटी सी सेना ने ईरान (पर्शिया) की विशाल सेना को हराकर, पूरे पर्शियन साम्राज्य को मटियामेट कर दिया तथा सौ वर्ष पूर्व पर्शियनों द्वारा येऊदूनिया को पददलित करने की ऐतिहासिक घटना का बदला ले लिया। सिकंदर ने राजा दारियस के सारे वैभव को भूसात कर दिया।
वस्तुत: अच्छे स्वस्थ शरीर में ही राष्ट्र की प्रगती निहित है। बीमार, निराश, सुस्त, विविध व्यसनों से लिप्त, बुरी आदतों से ग्रस्त, कमजोर नागरिक देश की न तो प्रगति में सहायक हो सकते हैं, न देश की रक्षा कर सकते हैं। प्लेटो ने कहा था- ‘गुलामी से मौत अच्छी है।’ सच भी है, या नवयुद्ध और युवतियां चाहेंगे कि वे गुलाम बनकर रात-दिन आवांछित कार्य करते रहें और एक दिन गुलाम के रुप में भूखे, प्यासे-प्रताडित-पीडित मर जाएं।
गुरु नानक ने लिखा है कि उन्होने भारत से हज़ारों की संख्या में भूखे-प्यासे नागरिकों को बंदी बनाकर, कोडे से मारते हुए, अरबस्तान, ईरान, ईराक, बसरा आदि के बाज़ारों में बेचने के लिए मुगलों, तुर्कों, ईरानियों, अरबों द्वारा गुलामों को ले जाते हुए देखा। हज़ारों की संख्या में स्त्री-पुरुष और बच्चे भूखे प्यासे, बंदी के रुप में सिंध से, पंजाब से, राजस्थान आदि प्रदेशों से ले जाय जाने थे। जहां पुरुषों-स्त्रियों से घोर परिश्रम कराया जाता था, वहीं स्वस्थ सुन्दर महिलाओं को बाज़ार में बोली लगाकर बेचा दिया जाता था इन स्त्रियों को विजेता मुसलमान भोगते थे तथा अंत में बेच देते थे। या मार देते थे। हमारे नागरिकों की ऐसी दारुण स्थिति शताब्दियों तक होती रही। अंतत: वे गुलाम उसी विदेशी भूमि में मर जाते थे जहां उनकी अंतिम क्रिया भी नही की जाती थी। यह गुलामी और परतंत्रता हमने इसीलिए भोगी कि हममें एकता, अनुशासन और देशभक्ति का अभाव था। मुट्ठि भर मुसलमान आकर हम पर राज्य करते रहे, हमें धर्मांतरित करते रहे, हम पर जजिया जैसे कर लगाते रहे और बड़ी संख्या में हमारा संहार करते रहे। हम प्रतिदिन राष्ट्रगीत गाते हैं- पंजाब, सिंधु, गुजरात मराठा, द्रािवड़, उत्कल बंगा’।
पर हमारा ध्यान ही नहीं जाता-सिंध कहां है? सिंध प्रदेश पूरा का पूरा पाकिस्तान में चला गया, पंजाब आधा गया, बंगाल आधा गया। किस मुंह से हम राष्ट्रगान करते हैं। हमारे लिए लज्जा की बात है यह।
राष्ट्रगान की सार्थकता तब होगी जब हम सिंध, पंजाब और बंगाल को भारत में समाविष्ट कर बृहत्तर भारत का निर्माण करे।
पाकिस्तान और बांगला देश में धर्मांध मुसलमानों ने हिन्दुओं का सफाया कर दिया। मंदिरों को ध्वस्त किया। लडकियों का अपहरण किया पाक में हिन्दुओ को कोई अधिकार नहीं। उनकी कोई आवाज़ नहीं। उन पर अमानुषिक अत्याचार होते हैं। उन्हे जबरन मुसलमान बनाया जाता है। यह गुलामी नहीं तो क्या है?
अत: राष्ट्र की आत्मा को देदीप्यमान रखने के लिए स्वस्थ शरीर का होना आवश्यक है। ‘स्वस्थम् शरीरम् खलु देश भक्ति’
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने लिखा है- हमारे पूज्य पुरुष श्री राम और श्री कृष्ण का मार्ग इस जगत् के बीच से जाता है। ‘सुजन रक्षा, और दुर्जन शिक्षा’ इनके जीवन का ध्येय है। इन दोनों ने दण्ड और कमण्डल पकडकर कोई सन्यास नहीं लिया। जगत में रहते हुए, जगत से कंटको को साफ किया। शांति इनका चरम लक्ष्य था, पर शांति के लिए उचित वातावरण की सर्जना पर भी इनका ध्यान था। समाज को निष्कंटक बनाना स्थायी शांति, समता और सहिष्णुता के लिए ज़रुरी है।
बारहवीं सदी में बख्तियार खिलजी सिर्फ तेरह सैनिकों के साथ नालंदा गया। नालंदा उस समय विश्व प्रसिद्ध विद्या का केन्द्र था। पांच हजार विद्वान शिक्षक और तीस हजार विद्यार्थी वहा आवास करते थे। खिलजी ने सभी को मौत के घाट उतार दिया। नालंदा के पुस्तकालय को जला दिया, जो चालीस दिन तक जलता रहा। उसमें वर्षों की साधना द्वारा लिखे अमूल्य ग्रंथ सदा के लिए समाप्त हो गएं। वे भी हस्तलिखित ग्रंथ। यह इसलिए हुआ कि बौद्धों ने शस्त्र उठाने से इन्कार कर दिया। सारे बौद्ध तलवारों से काट डाले गये। अमूल्य सांस्कृतिक वैभव धूली धुसरित हुआ। भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का इतना बडा नुकसान किसी ने नहीं किया। ये मुसलमान रेगिस्तान में घूमने वाले दरिंदे थे, उनको विद्या का क्या मूल्य? यदि ऐसी परिस्थितियों के पुनरावृत्त होने से बचना है- तो एक हाथ मे शास्त्र और दूसरे में शस्त्र रखना जरुरी है। शस्त्र के मार्ग-दर्शन के लिए शास्त्र और शास्त्रों की रक्षा के लिए शस्त्र-परम आवश्यक है। ‘एक दिन भी जी मगर तू शेर बनकर जी’ अर्थात राष्ट्र रक्षा के लिए स्वस्थ शरीर स्वस्थ मन और उत्कर्षमयी आत्मा-तीनों भी ज़रुरी है। आजकल पढे लिखे नवयुवक छोटी छोटी बातों मे आत्महत्या कर लेते हैं, इसीलिए कि उनके सामने राष्ट्र रक्षा जैसा उद्देश्य नहीं हैं। वे अपना जीवन व्यर्थ समझकर मिटा देते हैं। वही जीवन राष्ट्र की बलिवेदी पर अर्पित करें तो धन्य हो जाएंगे। अत: राष्ट्र के लिए स्वस्थ रहना-समर्पित हो जाना आवश्यक है।
राष्ट्रं रक्षित रसित:।
Tags: hindi vivekhindi vivek magazinehindu culturehindu faithhindu traditionreligiontradition

डॉ किशोरीलाल व्यास

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