फैशनेबल बचपन

बच्चे भी फैशन के दीवाने हैं। रैम्प पर चलने वाले ये नन्हें कदम इतने आत्मविश्वास से भरे होते हैं कि इनके सामने हर फैशन फीकी दिखाई देती है।

उम्र के छठवें दशक तक आते-आते मैंने कई बचपन देखे, जिये और एन्जॉय किए। मुझे छोटे बच्चों से बहुत लगाव है। पहले बहनें, फिर बेटी और उसकी सहेलियां तथा अब नातिन और उसकी सहेलियां। मेरे घर पर हमेशा ही बच्चों का जमावड़ा रहा है। विशेषकर लड़कियों का। अगर उंगलियों पर गिनना चाहूं तो अभी तक नौ-दस लड़कियों के बचपन मैंने अपनी आंखों से देखे हैं। मेरे पति कई बार मजाक में कहते भी हैं कि शायद हमने पिछले जनम में लड़कियों से बहुत कर्ज लिया था, सो इस जनम में भी उसे चुका रहे हैं। शाम को सारे छोटे बच्चों से बात किए बिना मेरा दिन पूरा नहीं होता।

एक दिन मेरी नातिन और उसकी सहेलियां घर पर बातें कर रही थीं। पूछा तो बोली-प्लानिंग कर रहे हैं कि दीवाली में क्या पहनेंगे। सभी की उम्र लगभग 7 वर्ष के आस-पास है। इन्हीं दिनों दो सहेलियों का जन्मदिन भी था। एक ने कहा, मैं इस बार जीन्स-टॉप खरीदूंगी, दूसरी बोली मैं तो लहंगा खरीदूंगी और उसके साथ मैचिंग चूड़ी, बिंदी और माला भी खरीदूंगी। उनकी बातें सुनने में बड़ा मजा आ रहा था।

मन अचानक चालीस साल पीछे दौड़ गया। मेरी शादी हुई तब बहनें बहुत छोटी थीं। उनके लिबास मर्यादित थे। स्कर्ट टॉप, फ्रॉक, ट्यूनिक का फैशन था। बेटी के समय में इन सबके साथ जीन्स-टॉप, लेंगिग्स कुर्ता, फ्रॉक सूट, कपड़ों पर विविध प्रकार के  डिजाइन जैसे गले पर, बांह पर कढ़ाई, जरी काम इत्यादि होने लगा।

आज का फैशन और अलग है। इस सबके साथ ही मिनी स्कर्ट, हाफ पेन्ट, केप्री, थ्री फोर्थ पेन्ट, टॉप की अलग-अलग वेरायटी पहने बच्चे बड़े सुंदर लगते हैं। मैंने अपनी नातिन के लिए उसके जन्मदिन पर बहुत सुंदर गुलाबी रंग का, नेट का फ्रॉक खरीदा था। बिलकुल परी की तरह लग रही थी वह फ्रॉक पहनकर। 10 ही दिन बाद उसकी सहेली का भी जन्मदिन था। उसे भी कुछ गिफ्ट देना था। मैं सोच ही रही थी कि क्या दिया जाए तो मेरी नातिन बोली, “नानी उसे फ्रॉक मत देना। उसे रेड कलर का टॉप और ब्लेक रेड कॉम्बिनेशन का प्रिंटेड स्कर्ट देना। उस टॉप की स्लीव्स गोल कटी होनी चाहिए और बड़ी सी कॉलर होना चाहिए। और हां उसके साथ मैचिंग ब्रेसलेट, हेयर बेन्ड जरूर लाना।” उसकी बातें सुनकर लगा आज के बच्चों को फैशन और  फैशन ट्रैंड्स की कितनी समझ है। वे हमारे जैसे नहीं हैं कि जो माता-पिता ले आए, चुपचाप पहन लिया।

लड़कियों के ड्रेसेज पारंपरिक भी बहुत मिलते हैं। लहंगा चुनरी परकर पोलका, लहंगा जरी का काम किया हुआ, कशीदेवाला, नेटवाला, कढ़ाईवाला, नौ गजी साड़ी, सलवार कुर्ता, पांच गजी साड़ी इत्यादि।

केवल लड़कियों के लिए ही नहीं छोटे लड़कों के भी कपड़ों की बहुत वेरायटी बाजार में है। चार साल के रेवांश से पूछा- क्या लाए बाजार से तो बोला शेरवानी, पाजामा, जैकेट और मोजड़ी लाया हूं, चाचा की शादी है ना! और पता है हाफ पेन्ट, जीन्स और टी शर्ट भी लाया हूं। उसकी बातें सुनकर छोटा पंकज तो और आगे निकल गया। अपनी मां के सामने पूरी लिस्ट सुना दी कि मुझे तो ट्राउजर, फुल शर्ट बारीक प्रिंट वाली, कोट (उसे शायद ब्लेजर कहना था, अपने पापा की देखकर) साथ में गॉगल और कैप भी चाहिए।  इन बच्चों की बातें सुनकर लगा कि वाकई लिबास में बड़ा परिवर्तन आया है, पारंपरिक परिधानों के साथ नई फैशन के विदेशी संगम के साथ बच्चों की कई पोषाकें बाजार में मिल रही हैं।

बात केवल लिबास तक ही सीमित नहीं है। पैरों की शोभा बढ़ाने वाले जूते चप्पलों की भी है। पहले एक जोड़ी चप्पल या जूतें ही होते थे। थोड़ा समय बीता तो जूतें, चप्पल के साथ सेंन्डल आ गए। आजकल तो बच्चों के पास एक दो नहीं कई तरह के जूतें होते हैं। हाल ही में चलना सीखी रुही को जब सेन्डल पहनाए तो वे उसके हर कदम पर चूं-चूं की आवाज कर रहे थे। बड़ा मजा आ रहा था उसे भी और हमें भी। उसके सेंडल की तारीफ सुन अवि भी बोल पड़ा- दादी, मैंने भी ताइनिंग (शायनिंग) बेल्ट वाले पतली नोक ले जूते खरीदे हैं और मेरी स्लीपर्स में तो डोरेमोन बना है। बस फिर तो बच्चों में अपने जूते चप्पल की खासियत बताने की होड़ लग गई। रेवांश अपनी मरून रंग की सुनहरे रंग के सितारे लगी हुई मोजड़ी बता रहा था, तो मनी हील वाले सेन्ड़ल बता रही थी जिस पर सिलवर कलर की बड़ी सी तितली लगी थी।

अब स्कूल यूनीफार्म में भी ब्लेक शूज, व्हाइट शूज, बारिश के लिए ब्लेक सेन्डल अनिवार्य होते हैं। कॉटन शूज भी प्लेन, वेल क्रो, बेल्ट, पतली लेस इत्यादि मिलने लगे हैं। कई जूतों में चलते समय छोटी सी लाइट भी चमकती है।

जूतें चप्पल, लिबास के साथ नए-नए रंगों, डिझाइनों की एसेसरीज से भी बाजार पटा पड़ा है। लड़कियों के लिए मैंचिंग हेयर बिट्स, हेयरबेन्ड, हेयर क्लिप्स, टियारा, प्लास्टिक के नग वाले, फूलवाले, मोतीवाले बो मिलते हैं। रंगीन बिंदिया विविध आकारों में मिलती हैं। गले में पहनने की माला रंगीन मोती और रेशमी धागों से बनी, सिलवर कोटेड़ चेन, गोल्ड प्लेटेड़ छोटी चेन लाकेट और उसी में छोटे से कान के बूंदें इत्यादि न जाने क्या-क्या मिलने लगा है। पायल, अंगूठी, नेल पॉलिश के विभिन्न शेड्स, काजल स्टिक्स जैसा मेकअप का सामान जो शायद मैंने अपनी शादी में भी प्रयोग नहीं किया था, आज मेरी नातिन बड़े चाव से लगाती है।

लड़कों की एसेसरीज भी कम नहीं है। विविध रंगों के गॉगल, विविध आकारों जैसे गोल, मिलिट्री जैसी, हैट और विविध रंगों की टोपियां, बेल्ट, कार्टून केरेक्टर वाले ब्रेसलेट और घडियां इत्यादि।  कार्टून केरेक्टर का जादू तो इतना छाया है कि अब बच्चों के सभी सामानों पर वही दिखाई देते हैं। स्कूल बैग, कम्पास, कप और विशेषकर छतरियों पर। उसकी ओर आकर्षित होकर ही बच्चे छतरी खरीदने की जिद पकड़ लेते हैं, भले ही छतरी सहित मां-बाप को उन्हें गोद में क्यों न उठाना पड़े।

मिसेज मल्होत्रा की नातिन का पहला जन्म दिन था। बड़ी उम्मीदों से जन्मी बालिका के जन्मदिन पर मल्होत्रा परिवार ने दिल खोल कर खर्च किया। वहां मेले जैसा दृश्य था। ईवेन्ट मेनेजमेन्ट को पूरा आर्डर दिया था। उन्होंने सिन्ड्रेला का पूरा चित्र स्टेज पर लगाया था। गोल, लंबे, एप्पल आकार के, भीम, डोरेमोन कार्टून वाले छोटे छोटे गैस के गुब्बारे हवा में झूल रहे थे। तीन लेयर वाले केक पर बार्बी डॉल नाच रही थी। थोड़ा और आगे एक जगह पर छोटे बच्चों के हाथों पर एक व्यक्ति टैटू बना रहा था। लड़कियों को तितली, परी, गुलाब तो लड़कों को बेनटेन, स्पाइडर मैन आदि।

जन्मदिन की पार्टी से लौटते समय एक बस स्टॉप के सामने से गुजरते हुए पोस्टर देखा। हाल ही जन्मे बच्चे को पेट के बल लिटाकर और केवल हेयरबैंड लगाकर फोटोशूट किया गया था। हालांकि इस उम्र के बच्चे वैसे ही इतने मासूम और प्यारे होते हैं कि उन्हें किसी फैशन की जरूरत नहीं होती। परंतु अब उनके लिए भी झूला, गद्दी का सेट, टांगने वाले खिलौने, नैपीज, आदि कई वस्तुएं मिल रही हैं। और फिर मां-बाप तो हैं ही शौकीन।

बच्चों की मॉडलिंग भी आज कुछ नया विषय नहीं है। रैम्प पर चलने वाले ये नन्हें कदम इतने आत्मविश्वास से भरे होते हैं कि इनके सामने हर फैशन फीकी दिखाई देती है।

 

 

This Post Has 2 Comments

  1. K Milind

    जय हिंद मामी… So proud of you…

  2. Neerja Bodhankar

    क्या बात है विशाखा !दिल से लिखा है।बहुत खूब????

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