ग्रामीण विकास और महिला सशक्तिकरण

ग्रामीण विकास मंत्रालय भारत सरकार के मंत्रालयों में से एक है। यह मंत्रालय व्यापक कार्यक्रमों का कार्यान्वयन करके ग्रामीण क्षेत्रों में बदलाव लाने के उद्देश्य से एक उत्प्रेरक मंत्रालय का कार्य करता आ रहा है। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य गरीबी उन्मू्लन, रोजगार सृजन, संरचना विकास तथा सामाजिक सुरक्षा आदि है। ग्रामीण विकास का अभिप्राय एक ओर जहां लोगों का बेहतर आर्थिक विकास करना है, वहीं दूसरी ओर वृहद् सामाजिक कायाकल्प भी करना है। ग्रामीण लोगों को आर्थिक विकास की बेहतर संभावनाएं मुहैया कराने के उद्देश्य से ग्रामीण विकास कार्यक्रमों में लोगों की उत्तरोत्तर भागीदारी सुनिश्चित करने, योजना का विकेन्द्रीकरण करने, भूमि सुधार को बेहतर ढंग से लागू करने और ॠण प्राप्ति का दायरा बढ़ाने का प्रावधान किया गया है।
प्रारंभ में कृषि उद्योग, संचार, शिक्षा, स्वास्थ्य तथा इससे संबंधित क्षेत्रों के विकास पर मुख्य बल दिया गया था, लेकिन बाद में यह महसूस किया गया कि त्वरित विकास केवल तभी संभव हो सकता है, जब सरकारी प्रयासों में बुनियादी स्तर पर लोगों की प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से भागीदारी हो। समय के साथ-साथ कार्यक्रमों के कार्यान्वयन में प्राप्त अनुभव के आधार पर तथा ग़रीब लोगों की जरूरतों का ध्यान रखते हुए, कई कार्यक्रमों में संशोधन किए गए और नए कार्यक्रम लागू किए गए। इस मंत्रालय का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण गरीबी को दूर करना तथा ग्रामीण आबादी, विशेष रूप से गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे लोगों को बेहतर जीवन स्तर मुहैया करना है। इन उद्देश्यों की पूर्ति ग्रामीण जीवन और कार्यकलापों के विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित कार्यक्रमों को तैयार करके, उनका विकास करके तथा उनका कार्यान्वयन करके की जाती है।
इस बात को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से कि आर्थिक सुधारों का लाभ समाज के सभी वर्गों को मिले, ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन स्तर के लिए महत्वपूर्ण सामाजिक तथा आर्थिक संरचना के पांच कारकों की पहचान की गई- इन क्षेत्रों में किए जा रहे प्रयासों को और बढ़ाने के लिए सरकार ने प्रधान मंत्री ग्रामीण योजना (पीएमजीवाई) शुरू की और ग्रामीण विकास मंत्रालय को प्रधान मंत्री योजना (पीएमजीवाई) के निम्नलिखित भागों को कार्यान्वित करने का दायित्व सौंपा- एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम (आईआरडीपी), ग्रामीण क्षेत्रों में महिला और बाल विकास कार्यक्रम (डीडब्यूद सीआरए), ग्रामीण दस्तकारों को बेहतर औजारों की आपूर्ति से संबंधित कार्यक्रम (एसआईटीआरए), स्व-रोज़गार के लिए ग्रामीण युवाओं के प्रशिक्षण से संबद्ध कार्यक्रम (टीआरवाईएसईएम), जिसे स्वर्ण जयंती ग्राम स्वय-रोज़गार योजना (एसजीएसवाई) का नाम दिया गया है।
ग्रामीण विकास आदिकाल से हमारे जीवन का अंग रहा है। यदि रामराज्य से लेकर चाणक्य तक तथा गुप्त वंश से लेकर मध्य युग तक की ऐतिहासिक रचनाओं रूपी निधि पर हम निगाह डालते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है कि पूरी की पूरी प्रशासकीय व्यवस्था ग्रामीण स्तर से ऊपर की तरफ जाती थी। चाहे वह कौटिल्य के जमाने का प्रजातंत्र हो या बाद के काल का राजतंत्र सब में ग्रामीण जीवन की सुख-सुविधाओं और सर्वांगीण विकास पर ही बल दिया गया है।
जिस देश में लगभग तीन चौथाई आबादी गांव में बसी हो और कृषि ही अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार हो, उस देश में ग्रामीण विकास के बिना राष्ट्र के विकास की कल्पना ही भला कैसे संभव है? यही कारण है कि योजनाबध्द विकास की प्रक्रिया के प्रथम सोपान यानी पहली पंचवर्षीय योजना से ही ग्रामीण विकास सरकार की मुख्य प्राथमिकताओं में शामिल रहा है।
देश की बहुत बड़ी जनसंख्या, विस्तृत क्षेत्रफल तथा सीमित संसाधनों के कारण अपेक्षित परिणाम चाहे नहीं मिल पाए हैं, परन्तु यह भी सत्य है कि सरकार के अब तक के प्रयासों से ऐसा बुनियादी ढांचा खड़ा हो चुका है जिसके बल पर ग्रामीण विकास का सपना साकार होने की आशा की जा सकती है। भारत जैसे विशाल देश में भौगोलिक, सामाजिक और आर्थिक स्थितियों में विभिन्नता के कारण ग्रामीण विकास के लक्ष्य को शीघ्र प्राप्त करना आसान नहीं है। बढ़ती जनसंख्या, गरीबी, अशिक्षा, बीमारी, बेरोजगारी, भूमि तथा अन्य सभी संसाधनों का असामान्य बंटवारा, सामाजिक अन्याय जैसी अनेक समस्याएं ग्रामीण भारत के विकास में बाधक हैं।
महात्मा गांधी ने सच कहा था कि- भारत का आधार और आत्मा गांव हैं। यदि भारत का विकास करना है तो गांवों तथा ग्रामवासियों का विकास करना होगा। आजादी के बाद बने भारतीय संविधान और उसमें होते रहे संशोधनों में इस तथ्य को बराबर महसूस किया जाता रहा कि महिलाओं की भागीदारी सार्वजनिक क्षेत्रों में बढ़ाना आवश्यक है। सन् १९५९ में बलवन्त राय मेहता समिति की सिफारिशों के आधार पर त्रि-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था लागू की गई। तब भी यह माना गया कि देश का समग्र विकास महिलाओं को अनदेखा करके नहीं किया जा सकता। इसलिए पंचायती राज व्यवस्था को सुदृढ़ करने तथा पंचायतों में महिलाओं की एक तिहाई भागीदारी सुनिश्चित करने के उद्येश्य से १९९२ में ७३ वां संवैधानिक संशोधन अधिनियम पारित किया गया। ग्राम सभा का गठन होना अनिवार्य हो गया और ग्राम पंचायतों, और सदस्यों की कुल संख्या की कम से कम एक तिहाई संख्या महिलाओं की कर दी गई।
इस व्यवस्था का प्रभाव हुआ कि देश भर में लाखों महिलाएं पंचायतों के नेतृत्व हेतु मैदान में आ गईं। महिलाओं के अस्तित्व और अधिकार को भी स्वीकार किया गया। संविधान का यह प्रावधान महिलाओं की छिपी शक्ति को उजागर करने का सार्थक कदम था। इसके बाद देश के विभिन्न राज्यों में पंचायत चुनावों की घोषणा की गई। इस चुनाव में लगभग तीस लाख महिलाओं ने भाग लिया। विश्व के किसी अन्य देश में पंचायत चुनावों में महिलाओं के लिए ३३ प्रतिशत सीटों का आरक्षण नहीं किया गया है। देखा जाए तो बिहार के बाद मध्यप्रदेश में आने वाले पंचायती चुनावों में यह प्रतिशत बढ़ाकर ५० कर दिया है। ग्रामीण राजनैतिक क्षेत्र में कुछ वर्षों पूर्व तक महिलाओं की भूमिका नगण्य रही है तथा पंचायतों में उनका प्रतिनिधित्व नहीं के बराबर रहा है। आज ग्राम पंचायत से जिला स्तर की संस्थाओं में महिलाएं निर्वाचित होकर ग्रामीण विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। यद्यपि महिलाओं के लिए यह नया क्षेत्र है परन्तु उसका मुकाबला करते हुए महिलाओं ने अशिक्षित होने के बाद भी अपने-आप को ज्यादा संवेदनशील और बेहतर प्रशासक, सिध्द कर दिया है। अब विवश होकर राजनैतिक दलों को भी अधिक से अधिक महिलाओं को सम्मानजनक पद देने पड़ रहे हैं।
ग्रामीण विकास के आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक पहलू हैं जो परस्पर एक दूसरे से सम्बध्द हैं। इनमें से आर्थिक विकास में महिलाओं का सर्वाधिक योगदान है। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं द्वारा पुरूषों की तुलना में दो गुना अधिक श्रम किया जाता है, जहां एक पुरूष प्रतिदिन दस घंटे कार्य करता है वहीं एक महिला प्रतिदिन सोलह घंटे कार्य करती हैं। जहां तक ग्रामीण क्षेत्रों के सामाजिक दृष्टि से ग्रामीण महिलाओं की स्थिति का प्रश्न है वह स्थिति दयनीय है फिर भी जनतांत्रिक माहौल व महिलाओं की भागीदारी के चलते स्थितियों में बदलाव आना प्रारंभ हो गया है। कुछ समय में देश के कुछ हिस्सों में ग्रामीण महिलाओं ने अभूतपूर्व जाग्रति का परिचय दिया है। मध्य प्रदेश, मणिपुर, आंध्र प्रदेश तथा हरियाणा में शराब बंदी लागू करने के पीछे ग्रामीण महिलाओं के आंदोलन की ही एकमात्र भूमिका रही है। मणिपुर में तो ग्रामीण महिलाओं ने न केवल शराब बंदी के लिए आंदोलन चलाया बल्कि शराब पीने वाले पुरूषों का सामाजिक बहिष्कार किया तथा शराब पिए हुए पुरूषों की पिटाई करने तक का आंदोलन चलाया तथा इसमें अपने परिवार के पुरूषों तक को भी नहीं बख्शा। इसके अलावा अन्य राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश के कुछ भागों में इन चुनी हुई महिलाओं ने सामाजिक बुराइयों तथा अन्याय के प्रति संघर्ष का बिगुल बजा कर उन पर काबू पाने में आशातीत सफलताएं अर्जित कर अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। बुंदेलखण्ड की गुलाबी गैंग ने कमाल ही कर दिया। इस गैंग की प्रमुख संपत देवी पाल को कई श्रेष्ठ पुरस्कारों से नवाजा गया है। संपत पाल निर्भीक महिला हैं।
प्रधान मंत्री नरेन्द्र भाई मोदी के सांसद आदर्श ग्राम नागेपुर की राजपुतानी ने तो कमाल कर दिया है। एक तो उसने राजपुतानी होते हुए पिछड़ी जाति के युवक से शादी की तथा ग्रामीण महिलाओं के स्वरोजगार, स्वच्छता, शिक्षा, आर्थिक सम्पन्नता के लिए मिसाल है। उसके द्वारा किए जाने वाले सामाजिक गतिविधियों से सम्पूर्ण वाराणसी ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश भी गौरववान्वित है। उन्हें विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। आज वे उत्तर प्रदेश की महिलाओं के लिए आइकॉन है।
लल्लापुरा, वाराणसी की नाजमीन अन्सारी का तो कहना ही क्या है! उसने हनुमान चालीसा, रामचरित मानस तथा गीता का उर्दू अनुवाद किया तथा मुस्लिम महिलाओं में तालीम और राष्ट्रीय प्रवृत्तियों को लेकर चल रही हैं। राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के माध्यम से उसने बहुत से ऐसे कार्य किए हैं जो मुस्लिम महिलाओं के लिए आदर्श हैं। अभी गणतंत्र दिवस पर भारत के राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने उन्हें सम्मानित किया। इस सम्मान के लिए वह राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के संरक्षक भाई नरेश कुमार जी को ही श्रेय देती है। उनका मानना है कि उनके अन्दर जो भी अच्छी बातों का विकास हुआ है वह राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के जागरूक राष्ट्रवादी मुसलमान भाइयों के स्नेह और राष्ट्रीयता, भारतीयता तथा भारतीय संस्कृति के उज्ज्वल पक्षों की प्रकाश में ही हुआ है।
मध्यप्रदेश में पंचायतों के तीसरे चरण के चुनाव को ढाई-तीन साल होने को हैं और सतना जिले, रामपुर बघेलन तहसील के इटमा गांव की सरपंच श्रीमती कमला बाई की कहानी पूरे पंचायती राज की सटीक व्याख्या के लिए पर्याप्त है। पहले कार्यकाल में जहां कमला बाई ने बड़े स्तर पर अनुभव और एक तरीके से प्रशिक्षण ले लिया था और दूसरी पारी खेलने में उन्हें कोई परेशानी नहीं आई। विकास की धारा फिर से बहने लगी है। सतही स्तर पर पंचायतों में महिलाओं को आरक्षण देकर जहां उनकी भागीदारी को एक हद तक बढ़ावा मिला है, वहीं राष्ट्रीय स्तर पर अभी बहुत कुछ करना शेष है। महिला आरक्षण विधेयक पारित होने के बाद जो महिलाएं संसद और विधान सभओं में चुन कर आएंगी, उनका पंचायत स्तर की महिलाओं तक ‘नेटवर्क’ होगा जिसके कारण पंचायत में महिलाओं को और अधिक सशक्त होने का अवसर मिलेगा।
महिलाओं के स्वतंत्र रूप से अपने अधिकारों का उपयोग करने तथा सामाजिक-राजनीतिक क्षेत्र में अपनी निजी भूमिका निभाने में अनेक बाधाएं हैं। लेकिन जिस समाज में महिलाओं का घर से बाहर निकलना तक अच्छा न समझा जाता रहा है, उस ग्रामीण – परिवेश में निश्चय ही एक नई चेतना का संचार हुआ है। निरक्षरता, गरीबी तथा अंधविश्वास के बंधनों को तोड़ना मुश्किल होते हुए भी अब जरूरी हो गया है। कम से कम प्रारंभिक चरण में ही सही, शक्तिशाली लोग अपने फायदे के लिए अनमने ढंग से ही सही, महिलाओं को चुनाव में खड़ा तो कर रहे हैं। आरक्षण की इस व्यवस्था से महिलाओं की विभिन्न समस्याओं के निराकरण हेतु एक मौन-क्रांति के युग का प्रारंभ हो गया है, जिससे आने वाले वर्षों में ५० प्रतिशत आरक्षण के बाद और अधिक सकारात्मक परिणम निश्चित ही सामने आएंगे। आज भले ही पंचायतों में महिलाओं की स्थिति को लेकर प्रश्न उठाया जा रहा है, परंतु यह धारणा बिलकुल गलत है कि महिलाएं कोई जिम्मेदारी उठाने को तैयार नहीं है या उनमें निर्णय लेने की क्षमता नहीं है। वास्तविकता यह है कि अब तक महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित रखा गया था और सामाजिक- राजनीतिक क्षेत्र में बढ़ने के मार्ग में अड़चनें पैदा करने का ही प्रयास किया गया। ऐसे प्रत्यक्ष प्रमाण हैं कि जब भी महिलाओं को आगे आने का अवसर मिला है, उन्होंने इसका पूरा-पूरा उपयोग किया है।
ग्रामीण महिलाओं का सशक्तिकरण ग्रामीण भारत के विकास के लिए महत्वपूर्ण है। महिलाओं को विकास की मुख्य धारा में लाना भारत सरकार का मुख्य दायित्व रहा है। इसलिए गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों में महिलाओं के योगदान का भी प्रावधान किया गया है, ताकि समाज के इस वर्ग के लिए पर्याप्त निधियों की व्यवस्था की जा सके। भारतीय संविधान में आर्थिक विकास तथा सामाजिक न्याय से संबंधित विभिन्न कार्य-क्रमों को तैयार करके निष्पादित करने का दायित्व पंचायतों को सौंपा गया है, और कई केन्द्र प्रायोजित योजनाएं पंचायतों के जरिये कार्यान्वित की जा रही हैं। इस प्रकार पंचायतों की महिला सदस्यों और महिला अध्यक्षों, जो बुनियादी रूप से पंचायतों की नई सदस्य हैं, को अपेक्षित कौशल प्राप्त करना होगा और उन्हें नेतृत्व का निर्वाह करने तथा निर्णय में सहभागी होने के लिए अपनी उचित भूमिकाओं को निभाने हेतु उचित प्रशिक्षण देन की प्रक्रिया भी शामिल है। पंचायती राज संस्थाओं के चुनिंदा प्रतिनिधियों को प्रशिक्षण देने का दायित्व बुनियादी रूप से राज्य सरकारों, संघ राज्य क्षेत्र प्रशासनों का है। ग्रामीण विकास मंत्रालय, राज्यों, संघ राज्य क्षेत्रों को भी कुछ वित्तीय सहायता मुहैया कराता है, ताकि प्रशिक्षण कार्यक्रमों के स्तर को बेहतर बनाया जा सके और पंचायती राज संस्थाओं के चुने हुए सदस्यों और कार्यकर्ताओं के लिए क्षमता निर्माण की पहल द्वारा पूरा किया जा सकता है।

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