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सवाल पाकिस्तान के वजूद का

सवाल पाकिस्तान के वजूद का

by डॉ. दत्तात्रय शेकटकर
in दिसंबर २०१६, देश-विदेश, राजनीति
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पिछले कुछ महीनों से भारत पाकिस्तान सम्बधों में तनाव की स्थिति बन गई है। सीमा क्षेत्र तथा नियंत्रण रेखा क्षेत्र में युद्धात्मक स्थिति बनी है। दोनों तरफ से फायरिंग हो रही है। स्थानीय नागरिकों- बच्चों, महिलाओं व हमारे सैनिकों की मृत्यु हो रही है। एक भी सप्ताह एैसा नहीं जाता जब हमारे सैनिकों का बलिदान नहीं हो रहा हो। हालांकि दोनों देशों में १९४७, १९६५, १९७१ तथा १९९९ में घोषित युद्ध हुए हैं और प्रत्येक युद्ध में पाकिस्तान को भारतीय सेनाओं के युद्ध कौशल्य तथा युद्ध क्षमता के कारण करारी व शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा है।

फिर भी, पाकिस्तान की सेना, आय.एस.आय (गुप्तचर संस्था), कट्टरपंथी तथा आतंकवादी अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं। इस शत्रुता का कारण क्या है? पाकिस्तानी शासन अपने नागरिकों को तथा देश को बरबादी के रास्ते पर ले जा रहे हैं। अब पाकिस्तान में एक और विभाजन, विघटन की स्थिति निर्माण हो गई है। पाकिस्तान का एक और विघटन करीब-करीब निश्चित हो गया है। अवश्यंभावी हो गया है।

 ऐतिहासिक सत्य

१९७१ में भारत-पाकिस्तान युद्ध में पाकिस्तान के तानाशाह शासक जनरल अयूब खां ने भारत पर आक्रमण कर पाकिस्तान के विघटन तथा विभाजन को निमंत्रण दिया। राष्ट्रीय आत्महत्या करने का प्रयास किया। भारत से युद्ध में पराजय का बदला लेना पाकिस्तान  के शासन, सेनाओं, खुफिया तंत्र, कट्टरपंथियों का एकमात्र उद्देश्य बन गया। भारत से बदला लेने की तीव्र इच्छा के आवेश में आकर पाकिस्तान के शासकों ने पाकिस्तान  की दूरगामी रणनीति बनाई। भारत से बदला लेना तथा भारत को तबाह करना उनका एकमात्र राष्ट्रीय लक्ष्य बन गया और इसे पूरा करने के लिए परमाणु बम बनाने का निर्णय किया। उनकी बदले की भावना इतनी प्रबल थी कि तत्कालीन प्रधान मंत्री जिुल्फकार अली भुट्टा ने घोषणा कर दी थी कि ‘हम लोग घास खायेंगे, परंतु भारत के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए परमाणु बम अवश्य बनाएंगे।’ उनकी मनोकामना पुरी हुई, भविष्यवाणी सच हुई तथा आज पाकिस्तान की औद्योगिक, आर्थिक  स्थिति इतनी खराब हो गई है कि वास्तव मेें घास खाने की नौबत आ गई है। भारत के खिलाफ परमाणु बम बनाने के लिए, पाकिस्तान के शासकों ने इस बम को ‘इस्लामिक बम’ नाम दे दिया। इस इस्लामिक बम को बनाने के लिए भारत के एक और शत्रु चीन ने पाकिस्तान की हर प्रकार से सहायता की। मध्यपूर्व एशिया के कुछ राष्ट्रों ने- जिनमें सऊदी अरब, लीबिया तथा कुछ छोटे समृद्ध देश शामिल हैं- पाकिस्तान की आर्थिक सहायता की।

 वास्तविकता क्या है?

जनरल जिया उल हक के शासन काल में पाकिस्तान की सेना तथा पाकिस्तान के युवा वर्ग की मानसिकता एक कट्टरपंथी, आतंक -वादी, जेहादी वृत्ति के राष्ट्र को खड़ा करने में लगी रही। दस वर्ष के शासन काल में जनरल जियाउल हक ने पाकिस्तान को एक ‘आतंकी राष्ट्र’ के रूप में खड़ा कर दिया। १९८७ से २०१६ तक इसी आतंकवादी वृत्ति के कारण आज पाकिस्तान तबाही व विघटन की कगार पर है तथा राजनीतिक, कूटनीतिक तथा रणनीतिक आत्महत्या करने के लिए तत्पर हो गया है।

पाकिस्तानी सेना, खुफिया तंत्र, कट्टरपंथी, आतंकवादी तत्वों  के कारण पाकिस्तान की ३० वर्षों में तीन पीढ़ियां तबाह हो गई है, और आने वाले ३० वर्षों तक यही स्थिति बनी रहेगी। इस वास्तविकता की अनदेखी कोई नहीं कर सकता है और न ही करनी चाहिए। पाकिस्तान के मित्र तथा दीर्घकालीन हितैषी राष्ट्र अमेरिका ने पाकिस्तान कोे भारत से प्रत्यक्ष, घोषित युद्ध नहीं करने की सलाह दी है। अमेरिका के अनेक राष्ट्रपतियों, रक्षा मंत्रियों, विदेश मंत्रियों ने पाकिस्तान को बार-बार आगाह किया है कि पाकिस्तान भारत के साथ कभी भी घोषित युद्ध करने की मूर्खता न करें। यदि पाकिस्तान ने भारत के विरुद्ध घोषित युद्ध करने का दुस्साहस किया तो अमेरिका पाकिस्तान को भारत के प्रकोप से नहीं बचा पाएगा तथा भारत पाकिस्तान को सामाजिक रूप से तबाह कर देगा। यही कारण है कि पिछले १५ वर्षों से अमेरिका तथा पाकिस्तान के बीच कूटनीतिक तनाव बढ़ रहा है। इस कारण से पाकिस्तान पूरी तरह चीन पर निर्भर हो गया है। याने दोनों शत्रु राष्ट्र भारत के विरुद्ध एक हो रहे हैं।

पाकिस्तान के शासक तथा सैन्य अधिकारी- आतंकवादियों को अंतरराष्ट्रीय कार्यकर्ता (एक्टिविस्ट) कहते हैं। परन्तु हमें यह ध्यान में रखना चाहिए कि ये आतंकवादी पाकिस्तान में जन्मे, पाकिस्तान में पढ़े, पाकिस्तान में प्रशिक्षित, पाकिस्तानी  सेना द्वार समर्थित, युद्ध सामग्री से सज्ज तथा आत्मघाती हमलों की मानसिकता से प्रेरित पाकिस्तानी शासन का ही एक अंग हैं। युद्ध शास्त्र का विद्यार्थी होने के कारण मेरी पूरी मान्यता है कि भारतीय शासन को आतंकवादियों को पाकिस्तानी सेना का एक अंग मानना चाहिए। पाकिस्तानी सेना, आय.एस.आय., कट्टरपंथी तथा पाकिस्तानी शासन को पूरी तरह जिम्मेदार मानना चाहिए। पाकिस्तान को एक ‘आतंकवादी राष्ट्र’ घोषित करना चाहिए। इसके लिए हमें किसी अन्य राष्ट्र की मदद लेने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए। कोई भी राष्ट्र किसी दूसरे राष्ट्र का युद्ध नहीं लड़ता है। हमारा युद्ध हमें ही जीतना होगा।

 भारत की रणनीति क्या हो?

सर्वप्रथम हमें इस बात को समझ लेना चाहिए कि जब-तक पाकिस्तानी आतंकवादियों को कश्मीर में जन्मे, वहां पले-बढ़े लोगों, वहां के समृद्ध लोगों, प्रभावशाली लोगों, राजनीतिज्ञों का सहयोग प्राप्त नहीं होगा तब तक हम आतंकवादियों के विरुद्ध सफल नहीं होंगे। हमारे भारत में सक्रिय ‘आस्तीन के सांप’ ज्यादा खतरनाक हैं। बनिस्बत पाकिस्तानी आतंकवादियों के! इसीलिए हमारी प्राथमिकता भारत तथा कश्मीर में सक्रिय आस्तीन के सापों का सफाया करना होनी चाहिए।

हमें भारत तथा कश्मीर में सक्रिय आतंकवादी तथा राष्ट्र विद्रोही तत्वों को मिलने वाली आर्थिक सहायता बंद करना होगी। इसी दिशा मे भारतीय मुद्रा चलन में १०००/- तथा ५००/- रु. के नोंटो के प्रचलन में रोक लगाना एक सराहनीय कदम है।

सीमा रेखा तथा सीमा क्षेत्रों में सक्रिय उन पाकिस्तानी सैन्य चौकियों को ध्वस्त करना होगा जो आतंकवादियों को भारत में घुसपैठ में मदद करती हैं। इसके लिए हमारी सेना को सीमा पार करने की आवश्यकता नहीं है।

यदि सीमा शांति, युद्ध विराम का उल्लंघन पाकिस्तान की सेना या आतंकवादी करते हैं तो हमारी सेना को उन्हें दंडित करने की पूरी छूट होनी चाहिए।

अप्रत्यक्ष, अघोषित युद्ध का विकल्प या उत्तर, भारत द्वारा युद्ध की घोषणा नहीं हो सकता है। अघोषित, अप्रत्यक्ष युद्ध का पर्याय अघोषित युद्ध ही होगा। भारत को इसके लिए अपनी युद्ध तथा सुरक्षा नीति, संरक्षण नीति में आवश्यक परिवर्तन करना आवश्यक है।

२१ सितबंर २०१६ के बाद से ८ नवम्बर २०१६ तक नियंत्रण रेखा के क्षेत्र में जम्मू से लेकर राजोरी पुंछ क्षेत्र तक ८३ बार युद्ध विराम का उल्लघंन हुआ है। काश्मीर घाटी में उरी क्षेत्र से लेकर माछेल-गुरेज क्षेत्र तक १७ बार युद्ध विराम का उल्लंघन हुआ है। जब पाकिस्तान बार-बार अपनी मर्जी के अनुसार युद्ध विराम का उल्लंघन करता है, अवहेलना करता है, भारतीय सुरक्षा तंत्र, संरक्षण व्यवस्था, सैन्य शक्ति को ललकारता है, चुनौती देता है तो इस प्रकार के युद्ध विराम का क्या महत्व या अर्थ रह जाता है? युद्ध विराम दो देशों के बीच कोई लिखित समझौता नहीं है। यह पहल २००३ में भारत ने स्वयं की थी तथा पाकिस्तान ने इसे माना था। युद्धविराम को मानने में पाकिस्तान का स्वार्थ ज्यादा था क्योंकि उस समय पाकिस्तान को अफगानिस्तान के विरूद्ध अमेरिका की मदद के लिए सैनिक तथा युद्ध सामग्री की ज्यादा आवश्यकता थी। भारत के विरूद्ध तथा अफगानिस्तान के विरूद्ध दोनों मोर्चों पर सैन्य कार्रवाई करने की क्षमता पाकिस्तान की नहीं थी। पाकिस्तान ने भारत की उदारता, बडप्पन तथा सहनशीलता का नाजायज फायदा उठाया है। भारत को तुरंत पाकिस्तान के विरूद्ध ‘युद्ध बंदी’ समाप्त करने की घोषणा करनी चाहिए। भारतीय सेनाओं को पूरी छूट देनी चाहिए कि यदि पाकिस्तान भारत के विरुद्ध किसी भी प्रकार की कार्रवाई करता है तो पाकिस्तान को अविलंब मुंहतोड़ जवाब देना चाहिए।

पी.ओ.के. भारत का ही क्षेत्र है। अनेक बार पूरी संसद में एकमत, पूर्णमत, बिना राजनैतिक भेद के यह प्रस्ताव पारित किया गया है कि पाकिस्तान के अवैध कब्जे में भारतीय क्षेत्र पी.ओ.के. है। भारत को एक-एक इंच जमीन वापस लेने का अधिकार है। यदि पूरी संसद में यह प्रस्ताव अनेक बार पूर्ण बहुमत, एकमत से पारित हुए हैं तो यह शासन व्यवस्था को जनादेश ही है। इसके तहत भारतीय सेना तंत्र को, खुफिया तंत्र को, युद्ध तंत्र को नियंत्रण रेखा के पार पी.ओ.के. में सैन्य व्यवस्था के तहत ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ करने के स्पष्ट आदेश व छूट देना आवश्यक है। सर्जिकल स्ट्राइक का अर्थ युद्ध का प्रारंभ या खुले, प्रत्यक्ष युद्ध की चुनौती नहीं होता है। विश्व में कहीं भी किसी भी देश में यह मान्यता नहीं है। अमेरिका भी इसका पालन नहीं करता है। इसीलिए अमेरिका, अफगानिस्तान, इराक, सीरिया, लीबिया, यमन, सोमालिया एवं पाकिस्तान में विभिन्न प्रकार के युद्ध तंत्र के तहत सैन्य कार्रवाई हजारों मील दूर जाकर कर रहा है। यह एक कटु सत्य है। भारत ने पी.ओ.के. क्षेत्र में भारतीय सुरक्षा तंत्र, संरक्षण तंत्र को, खुफिया तंत्र को, कूटनीतिक तंत्र को-पी.ओ.के. क्षेत्र से आतंकवादियों को मार भगाने तथा पी.ओ.के. के निवासियों को पाकिस्तान सेना की गुलामी से मुक्त करने में कोई हिचक नहीं दिखाना चाहिए। केवल ‘स्पष्ट’ विधिवत आदेश देने की आवश्यकता है। अघोषित, अप्रत्यक्ष युद्ध का पर्याय, उत्तर, अघोषित युद्ध ही होगा।

बाल्टीस्तान, गिलगिट क्षेत्र में १९४७ से पाकिस्तानी सेना अत्याचार कर रही है। पाकिस्तानी शासन तंत्र ने ‘गुलामी’ उन लोगों पर लाद दी है। लोगों में उत्तेजना है, विद्रोह की भावना है, स्वतंत्रता प्राप्त करने की तीव्र तथा प्रबल इच्छा है। भारत को इस स्वतंत्रता संग्राम में गिलगिट, बाल्टीस्तान क्षेत्र के लोगों की मदद राजनीतिक, कूटनीतिक, मनोवैज्ञानिक, तथा अंतरराष्ट्रीय रूप से करना आवश्यक है। पाकिस्तान भी कश्मीर में यही कर रहा है। भारतीय लोगों को गिलगिट, बाल्टीस्तान के लोगों को पाकिस्तान की गुलामी से मुक्त कराने में मदद करनी चाहिए। ये सब अंतरराष्ट्रीय विचारधारा के तहत भी किया जा सकता है। अमेरिका, पाश्चात्य देश, रशिया आदि देश मध्यपूर्व तथा उत्तरी अफ्रीका क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र संघ की बगैर विधिवत अनुमति के सक्रिय हैं। चीन भी भारत में उत्तरपूर्व भारत में सक्रिय अलगाववादी, भारत विरोधी, भारत विद्रोही तत्वों को १९६४ से आज तक सब प्रकार की सहायता तथा प्रोत्साहन दे रहा है। माओवादी तथा नक्सलवादी तत्वों को १९६७ से हर प्रकार से सहायता दे रहा है और हम चीन से मित्रता, सद्भावना की कामना करते है। यहां तक कि भारत के विरूद्ध पाकिस्तान में सक्रिय आतंकवादी तत्वों के विरूद्ध कार्रवाई तथा आतंकवादियों के प्रमुखों को आतंकवादी घोषित करने के भारत के प्रस्ताव के विरूद्ध संयुक्त राष्ट्रसंघ में वीटो के माध्यम से रुकावटें पैदा कर रहा है, और हम मधुर सम्बंधों की आशा करते हैं तथा प्रयास करते हैं।

बलुचिस्तान तथा सिंध प्रदेशों के लोग पाकिस्तान की गुलामी से मुक्तता चाहते हैं। बलुचिस्तान के लोग मुक्ति संग्राम करना चाहते हैं। पाकिस्तान ने बलुचिस्तान, जो स्वतंत्र राष्ट्र था, १९४८ से सैन्य अतिक्रमण कर रखा है। सैन्य शक्ति के आधार पर गुलाम बना रखा है। बलुचिस्तान की जमीन समुद्री किनारा, खजिन सम्पत्ति, जिस पर बलुचिस्तान के लोगों का अधिकार है-चीन को विधिवत सुपुर्द कर दी है। अब वहां चीन शासन के आदेश चलते हैं, पाकिस्तान के नहीं। बलुचिस्तान के लोग स्वतंत्रता चाहते हैं। अमेरिका तथा पाश्चात्य देश बलुचिस्तान को स्वतंत्र राष्ट्र देखना चाहते हैं। वहां इसकी योजना भी बन चुकी है। भारत को अत्यंत सतर्क तथा सावधान रहने की आवश्यकता है। भारत को अपनी भूमिका निभानी चाहिए तथा बलुचिस्तान के लोगों की सहायता स्वउन्नति के लिए करनी चाहिए। पाकिस्तान के विरूद्ध स्वतंत्रता संग्राम, मुक्ति संग्राम, तथा स्वतंत्र बलुचिस्तान की स्थापना ये सब पाकिस्तान शासन तथा बलुचिस्तान के लोगों के बीच के विवाद हैं। भारत ने इसमें दखल देने की आवश्यकता नहीं है। बलुच जनमानस उत्तम योद्धा हैं, स्वयं अपनी नीति निर्धारित करेंगे।

गिलगिट, बाल्टीस्तान क्षेत्र से कगादुवा भारतीय क्षेत्र का ४८०० वर्ग किलोमीटर क्षेत्र जो पाकिस्तान ने चीन को १९६३ में एक समझौते के तहत भारत की परवाह किए बगैर दिया है उसे वापस लेने के लिए भारत को प्रयास करना चाहिए। यदि आवश्यकता पड़े तो अन्य पर्याय ढूंढ़ना चाहिए। भारत यदि चाहे तो चीन के साथ एक समझौता कर सकता है कि भारत चीन को इस क्षेत्र में निर्मित मार्ग का उपयोग यातायात तथा बलुचिस्तान तक व्यापारिक आवागमन के लिए करने देगा। परन्तु पाकिस्तान का इस क्षेत्र पर अधिकार नहीं मानेगा। १९९३ से १९९८ तक भारत चीन सीमाविवाद से सम्बन्धित कार्य दल तथा विशेषज्ञ दल में कार्य करते समय इस विचारधारा की पहल की थी। इस क्षेत्र पर अपना दावा भारत विधिवत रखे तथा चीन से बातचीत करें। परंतु भारतीय विदेश मंत्रालय में कार्यरत तत्कालीन ‘स्वयंभू विशेषज्ञों तथा विद्वानों’ ने मेरा मजाक उड़ाया, मुझे कूटनीति पढ़ाने का प्रयास किया। उस समय भारत में, भारतीय शासन व्यवस्था में, राजनैतिक व्यवस्था में चीन के प्रति उदारता थी। आज भी है। भारत के बजाय यह चिंता ज्यादा थी कि ‘चीन क्या सोचेगा!!’ यदि भारत ने सक्रिय भूमिका दूरगामी दृष्टिकोण के तहत निभाई होती तो कारगिल युद्ध नहीं होता, चीन का आधिपत्य इस क्षेत्र में नहीं बढ़ता, चीन-पाकिस्तान आर्थिक आवागमन क्षेत्र  नहीं बनता, और गिलगिट – बाल्टीस्तान क्षेत्र, अपनी ही ताकत पर पाकिस्तान से मुक्त हो गया होता, पाकिस्तान की सैन्य गुलामी, शासकीय गुलामी, आर्थिक गुलामी से मुक्त हो गया होता – स्वतंत्र हो गया होता। इसका फायदा चीन, अफगानिस्तान, रशिया को भी होता, अफगानिस्तान में आतंकवाद नही पनपता, ९/११ शायद नही होता, अफगानिस्तान पर अमेरिका को सैन्य आक्रमण नहीं करना पड़ता तथा सब से बड़ा फायदा पाकिस्तान को होता – पाकिस्तान का आर्थिक तथा औद्योगिक विकास होता तथा पाकिस्तान में आतंकवाद नहीं पनपता।

अभी भी यह संभव है। आवश्यकता है कि पाकिस्तान अपने-आप को, अपनी युवा पीढ़ी को आने वाली पीढ़ियों को अमेरिका तथा पाश्चात्य देशों के प्रकोप से बचाए। अमेरिका का आने वाला नया नेतृत्व २०१७ के बाद से पाकिस्तान को अवश्य दंडित करेगा। इसमें किसी प्रकार का संदेह करने की आवश्यकता नहीं है। मेरी यह भविष्यवाणी सत्य होगी। अमेरिका के प्रकोप से चीन भी पाकिस्तान की रक्षा नहीं कर पाएगा। क्यों नहीं करेगा  यह विश्लेषण तथा चर्चा का अलग विषय है। ऐसी स्थिति में पाकिस्तान को अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए भारत के पास ही आना पड़ेगा। भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, राष्ट्र शक्ति है जो पाकिस्तान का भौगोलिक, राजनैतिक, आर्थिक अस्तित्व कायम रख सकता है। चीन, अफगानिस्तान, ईरान, अमेरिका कोई भी राष्ट्र पाकिस्तान का विघटन होने से नहीं रोक पाएगा। केवल भारत ही पाकिस्तान का वर्तमान अस्तित्व बनाए रख सकता है।

यदि पाकिस्तान का एक और विभाजन हुआ तो पाकिस्तान का वर्तमान अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। इस परिस्थिति में उर्दू का शेर यथार्थ होगा कि ‘वख्त ऐसा भी देखा है, तारीख की घडियों में, लम्हों ने खता की, सदियों ने सजा पाई है।’

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