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मीडिया चौपाल में विकास और सरोकारों पर मंथन

मीडिया चौपाल में विकास और सरोकारों पर मंथन

by आशीष अंशू
in दिसंबर २०१६, मीडिया, राजनीति
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विज्ञान-विकास और मीडिया पर हरिद्वार के निष्काम सेवा ट्रस्ट     में दो दिवसीय ‘मीडिया चौपाल’ सम्पन्न हुआ। विज्ञान, विकास और सामाजिक सरोकार के विषयों को केन्द्र में रख कर ‘मीडिया चौपाल’ मीडिया प्रोफेशनल और विषय विशेषज्ञों के बीच एक समन्वय का आयोजन रहा है। इसकी खास बात यह है कि चौपाल में मीडिया कर्मी साथियों को कई ऐसे विषयों को जानने का अवसर मिलता है, जिसकी तरफ वे दैनिक खबरों के बीच ध्यान नहीं दे पाते। विशेषज्ञ भी मीडिया कर्मियों की समस्या और चुनौती को समझते हैं। मीडिया से जुड़े सत्रों में मीडिया के वरिष्ठ साथी अपने अनुभव साझा करते हैं, जो आयोजन में मौजूद पत्रकारों के लिए प्रेरणादायी होता है। इससे पहले भोपाल, दिल्ली और ग्वालियर में ‘मीडिया चौपाल’ के चार सफल आयोजन के बाद हरिद्वार में पांचवां ‘चौपाल’ आयोजित हुआ। हरिद्वार में आयोजित ‘मीडिया चौपाल-२०१६’ के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में विद्वान नीलमेघाचार्य, चिन्तक के. एन. गोविन्दाचार्य एवं हरिद्वार के सांसद एवं पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ के साथ निस्केयर के प्रमुख डॉ. मनोज पटेरिया मौजूद थे। दिव्य प्रेम सेवा मिशन के प्रमुख आशीष गौतम ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की।

 विकास प्रकृति केन्द्रित हो

देश भर से आए ३०० चौपालियों को संबोधित करते हुए गोविन्दाचार्य ने विकास की परिभाषा को बताते हुए कहा कि हम जिधर बढ़ें उधर ही विकास होता है। मानव केन्द्रित विकास से प्रकृति केन्द्रित विकास की ओर ले जाने वाला विकास ही सही मायनों में विकास होता है। समाज की कमजोर कड़ी का जितना विकास होगा वही वास्तविक विकास होगा। सह-अस्तित्व के सिद्धांत को ध्यान में रख कर प्रकृति केन्द्रित विकास ही आज की मूलभूत आवश्यकता है।

अपने उद्बोधन में सांसद रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने कहा कि जिस विकास के पीछे हम दौड़ रहे हैं, उस विकास के साथ समन्वय की जरूरत है। हमारा उद्देश्य स्वहित में नहीं बल्कि बहुआयामी है इसलिए लोग हमारे विचारों को स्वीकार कर रहे हैं।

चौपालियों को संबोधित करते हुए समाजसेवी अनूप नौटियाल ने कहा कि युवाओं में सीखने और जानने की जिज्ञासा होती है, इसलिए मीडिया चौपाल उनके लिए उपयोगी मंच है। निस्केयर के प्रमुख डॉ. मनोज पटेरिया ने बताया- हम ऐसा मंथन करें कि समाज में विकास संचार के माध्यम से हमारे चारों ओर जागरुकता फैले। विज्ञान और संचार मिल कर समाज को यह रास्ता दिखा सकते हैं।

चौपाल में देव संस्कृति विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने गायत्री मंत्र के मंत्रोच्चारण के साथ कार्यक्रम का प्रारम्भ किया। इसके साथ ‘मीडिया चौपाल’ की सम्पूर्ण विवेचना को प्रस्तुत करते एक समाचार पत्र का भी विमोचन किया गया। दो दिनों तक चलने वाली ‘मीडिया चौपाल’ में देश भर के अनेक विद्वानों ने विकास एवं मीडिया से जुड़े विभिन्न विषयों पर अपने विचार रखें। जिसमें वेदान्त में आधुनिक विज्ञान की प्रासंगिकता, आनन्द का विज्ञान और विकास के विभिन्न आयामों की अवधारणा, संचार की आवश्यकता, संचारकों की नई भूमिका एवं वर्तमान मीडिया परिदृश्य में सूचनाओं से बेहाल जनता व संदेशों के अकाल से ग्रसित मीडिया का समाधान क्या है? जैसे ज्वलंत मुद्देां पर संवाद किया गया। चौपाल के मुख्य आयोजक ‘स्पंदन’ के साथ देव संस्कृति विश्वविद्यालय, दिव्य प्रेम सेवा मिशन, इण्डिया वाटर पोर्टल, निस्केयर, अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय भी आयोजन में सहभागी हैं।

 मीडिया में विश्वनीयता जरूरी

दूसरे दिन का शुभारंभ उत्साहवर्धक संभाषण के साथ हुआ। सत्र का संचालन करते हुए भुवन भास्कर ने सभी चौपालियों का स्वागत किया। इस सत्र में लखनऊ विश्वविद्यालय के जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग के छात्रों द्वारा अपने-अपने शोध-पत्र प्रस्तुत किए गए। मंचासीन अतिथियों- डॉ. चारूदत्त पिंगले, ऋषभ, बलदेव शर्मा, मीनाक्षी अरोडा, कुमकुम गुप्ता, प्रो. सुखनंदन सिंह और डॉ. लक्ष्मी नारायण पांडे ने छात्रों द्वारा प्रस्तुत शोध निष्कर्षों पर विचार एवं समाधान प्रस्तुत किए।

बलदेव शर्मा ने कहा कि समाचार पत्रों की पहुंच सुदूर क्षेत्रों तक है। वे सरकारी योजनाओं की सूचनाओं को स्थान देकर इन्हें जन-जन तक पहुंचा सकते हैं। प्रो. सुखनन्दन ने कहा कि ग्रामीण और कृषक समुदायों को यह ज्ञात कराने की आवश्यकता है कि ऐसे कार्यक्रम उनके लिए महत्वपूर्ण हैं और कृषि से उन्हें अच्छा मुनाफा हो सकता है। आर्थिक पत्रकार ऋषभ ने अपने उद्बोधन में कहा कि सूचना में से संदेश निकालने की योग्यता पत्रकारों में होनी चाहिए।

‘मीडिया चौपाल’ में पत्रकारिता के छात्र पीयूष ने अपने शोध प्रबंध की संक्षिप्त जानकारी दी। जिसका शीर्षक था, ऐतिहासिक धरोहर के संरक्षण में समाचार पत्रों का कितना योगदान है? उनके शोध से जानकारी मिली कि बहुत कम समाचार पत्र ऐतिहासिक धरोहर और उसके संरक्षण की खबरों को स्थान देते हैं। बकौल पीयूष- अन्य क्षेत्रों की भांति सांस्कृतिक एवं कला पत्रकारों अथवा विशेषज्ञ की पत्रकारिता में आवश्यकता है। इसी क्रम में पत्रकारिता की छात्रा हिमांशी ने अपने शोध प्रबंध की जानकारी देते हुए बताया कि एसिड अटैक और मानसिक उत्पीड़न से पीड़ित महिलाएं जो आत्म सम्मान के लिए आर्थिक स्वालंबन के प्रयास में रत हैं उनके सहयोग में मीडिया का योगदान बहुत कम है। इस तरह के मुद्दे उपेक्षित रह जाते हैं।

बलदेव भाई शर्मा ने हिमांशी के शोध की प्रशंसा करते हुए कहा- नौकरी छूटने के दवाब में भी एक साधारण मीडिया कर्मी को यह कौशल विकसित करना होगा कि, वह कैसे सार्थकता के साथ खबर को प्रस्तुत कर सकें।

इस सत्र के समापन पर सामाजिक संगठन स्पंदन से सम्बद्ध लक्ष्मी नारायण पाण्डे ने सभी का आभार व्यक्त किया।

  मीडिया से अपेक्षा?

भारत के भावी विकास की समस्याएं, चुनौतियां, समाधान एवं मीडिया से अपेक्षाएं विषय पर रामेश्वर मिश्र पंकज ने कहा कि मीडिया को हमेशा जिज्ञासु होने की जरूरत है। मीडिया से लोगों की कई अपेक्षाएं हैं। पत्रकार में प्रमुख तीन विशेषताएं होनी बेहद आवश्यक हैं। पहला पत्रकारों की टिप्पणी से समाज में निराशा नहीं बढ़नी चाहिए। नकारात्मक न्यूज या रिपोर्ट में भी सकारात्मक पहलुओं का समावेश होना चाहिए। दूसरा पत्रकार ज्ञानवर्धक सूचनाओं को श्रोताओं तक पंहुचा कर उनकी जानकारी में इजाफा करें। विज्ञान के प्रति अपने दृष्टिकोण को साझा करते हुए श्री पंकज ने कहा- विज्ञान पूरी दुनिया का है इसलिए यूरोपियन या अन्य विदेशी देशों से विज्ञान की नीतियों को मीडिया जन-जन तक पंहुचाने का कार्य करें। मीडिया को राजनीतिक पार्टियों के हित में रिपोर्टिंग करने की बजाय निष्पक्ष रिपोर्टिंग करनी चाहिए।

मीडिया से अपेक्षाओं की बात पर प्रकाश डालते हुए श्री पंकज ने कहा कि हमें यह समझना होगा कि आनन्द का मूल क्रिया नहीं, ज्ञान है, अगर परम्परागत ज्ञान प्राप्त हो तो हम जानेंगे कि पत्रकारिता हमारा स्वधर्म है, उसके अनुसार ही हमें पुरुषार्थ करना चाहिए। अगर हम सिर्फ पैसा कमाने के लिए कार्य करेंगे तो ग्लानि उत्पन्न होगी। अगर आप कार्य के प्रति ग्लानि रखेंगे तो आप आनन्द प्राप्त नहीं कर सकते। इस सत्र में प्रवीण कुमार झा की पुस्तक टेलीविजन और सत्यकथाकरण का लोकार्पण आशीष अंशु, डा. सुखनन्दन सिंह, अनिल सौमित्र, बलदेव भाई शर्मा, प्रो.कुसुमलता केडिया इत्यादि द्वारा किया गया।

 भावी भारत और मीडिया का योगदान

समाज में सर्वांगीण विकास होना चाहिए। आत्मिक, शारीरिक, मानसिक, आर्थिक रूप से विकास होना बेहद आवश्यक है। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो. कुसुमलता ने बताया कि मीडिया के लोग सजग, मुखर व अभिमानी होते हैं। मीडिया में भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक क्षेत्र से जुड़ी जानकारियो की कमी हैं। पत्रकारों को भारत से जुड़ी जो अनकही जानकारियां किताबों में छिपी हैं, उन्हें पढ़ कर लोगों के सामने लाना होगा। भारत दुनिया में महाशक्ति के रूप में पुनः उभर रहा है। चीन एक अस्वाभाविक देश है; क्योंकि चीन के बारे में इतिहास की पुस्तकों से पता चलता है कि चीन का मूल आकार बहुत छोटा था। चीन ने अपना आकार छोटे-छोटे साम्राज्यों को हड़प कर बनाया है, इसी क्रम में सन १९६२ में प. नेहरू की वजह से भारत का विशाल हिस्सा भी उसने अपने कब्जे में ले लिया था। सन १९४७ की ब्रिटिश एडमिनि-स्ट्रेटिव रेवेन्यू रिपोर्ट के अनुसार भारत का विस्तार अफगानिस्तान तक था। विराट भारत को पुनः बायोजोन, सांस्कृतिक जोन व भाषा जोन बनाने की जरूरत है। मीडिया भारत के इतिहास से जुड़े वास्तविक तथ्यों को दिखाए ताकि युवा आत्मविश्वास से लबरेज होकर भारत के भविष्य को उज्ज्वल बनाने में अपना पूर्ण सहयोग दे सकें। सुश्री केडिया ने पत्रकारों को सलाह देते हुए कहा कि बुद्वि को जागृत करने हेतु पुरूषार्थ को जगाना पड़ेगा।

इस सत्र में बलदेव भाई शर्मा ने कहा कि पत्रकारों के भीतर मनुष्यता का विकास होना चाहिए। पत्रकार, कला व संस्कृति से समाज को रूबरू करवाने का काम करें। पत्रकारों को अपने सामाजिक कर्तव्य बोध को समझते हुए समाज को दिशा देने का काम करना चाहिए। मीडिया को बाजारवाद के चंगुल से दूर रहना होगा; क्योंकि बाजारवाद से मानवीय मूल्यों में गिरावट आती है। लक्ष्मी नारायण पाण्डे ने सभी शोधार्थियों व चौपालियों को धन्यवाद देते हुए इस सत्र के समापन की घोषणा की। अनिल सौमित्र ने सभी चौपालियों का आभार व्यक्त किया और अगली चौपाल की घोषणा की, जो कि भोपाल में संभावित है।

 

मो.: ९९७१५९८४१६

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