विकास और पर्यावरण में टकराव न हो

पर्यावरण अर्थात पृथ्वी का कवच। पर्यावरण का यह शाब्दिक अर्थ है। आज आपकी दृष्टि में पर्यावरण क्या है?
मुझे लगता है पर्यावरण प्राण जैसा है। जैसे शरीर में प्राण अनिवार्य है; प्राणों के बगैर शरीर संभव नहीं है और प्राण की उपस्थिति सामान्यतः लोगों को अनुभव इसलिए नहीं आती क्योंकि वह सहज प्राप्त होता है। लेकिन प्राण की शुद्धता, प्राण की उपलब्धता, अनुभव, ये सब महत्वपूर्ण है। मुझे लगता है पर्यावरण उसी प्रकार है।

आज दुनिया तीव्र गति से बदल रही है, इस बदलती दुनिया में पर्यावरण का मूल्य स्पष्ट कीजिए?
पर्यावरण का अर्थ समझना हो तो, पिछले महीने के दिल्ली के पांच दिनों को याद करना होगा। जब चारों ओर धूल का बवंडर हो पता चलता है कि शुद्ध हवा क्या होती है? जब पीने को शुद्ध पानी ना हो तो समझ में आता है कि शुद्ध पानी क्या होता है। तापमान में अस्वाभाविक परिवर्तन आदमी को समझा देता है कि उसे क्या करना है। मुझे लगता है किसी वस्तु की उपलब्धता में उसके महत्व को समझने में समय लगता है। अभाव में वही चीज बहुत जल्दी समझ में आती है। इसी अभाव से समाज संघर्ष कर रहा है। वस्तुतः हमें अपने ही किए हुए कामों का परिणाम भुगतना पडता है। विकास की जिस धारा में हम लोग बढ रहे हैं, उस विकास में हमने पर्यावरण को पीछे छोड दिया है। हम ये मानकर चल रहे हैं कि विकास ही महत्वपूर्ण है। जबकि विकास और पर्यावरण का साथ-साथ चलना आवश्यक है। वह समानंतर हो और एक दुसरे के पूरक हो।

विकास और पर्यावरण में संतुलन करने हेतु हमें क्या करना चाहिए?
मुझे लगता है इसके लिए विवेक की आवश्यकता है। विवेक से अगर विचार करें तो दोनों में बेहतर तालमेल हो सकता है। दोनों में से किसी एक का भी अतिरेक, किसी के एक प्रति आग्रह, दुराग्रह नहीं होने चाहिए। अतिरेक, आग्रह और दुराग्रह निर्णय में असंतुलन पैदा करते हैं। एक बार आप इसमेंसंतुलन कायम करके आगे बढे तो सब अपने आप ठीक हो जाएगा।

कुछ दिनों पूर्व दिल्ली के वातावरण की इतने प्रदूषित होने की क्या वजह हो सकती है?
प्रदूषण केवल दिल्ली तक सीमित नहीं है। इसका संबंध पूरे देश से है। मुंबई के उपनगर चेंबूर को गैस चेंबर कहा जाता है। चेन्नई में अलग समस्या है, बैंगलुरु में हम पर्यावरण से जुडी गंभीर समस्या महसूस करते हैं। इसका कारण यह है कि मनुष्य ने विकास की धारा में बाकी सब चीजों को पीछे छोड दिया है। अब अगर सारे शहर के अंदर कन्स्ट्रक्शन कर दिया जाएगा, सारी ड्रेनेज लाइन बंद कर देंगे तो बरसात के समय में नाले का ड्रेनेज सडक पर आना स्वाभाविक बात है। चाहे दिल्ली हो या पूरा उत्तर भारत हो; ये हमारे ही व्यवहार के कारण असंतुलित हुई पर्यावरणीय अवस्था का एक दृष्य है। मुझे लगता है आदमी को जब ठोकर लगती है तभी वह समझता है।

समाज में जागृति लाने के लिए पर्यावरण मंत्रालय के माध्यम से कौन से प्रयास किए जा रहे है?
वस्तुतः आम नगरिक को पर्यावरण के संदर्भ में सब पता है। मुझे नहीं लगता कि उसे पर्यावरण समझाने की जरुरत है। समझाने की आवश्यकता तो उन लोगों को है जो विकास की अंधी दौड में भागे जा रहे हैं। अन्यथा सामान्य व्यक्ति इस बात को अच्छी तरह से जानता है। फिर भी अगर जागृति के लिए कुछ कदम उठाने आवश्यक हो तो स्कूलों में प्रबंधन, कॉलेजों में प्रबंधन आदि भविष्य में हम करेंगे।

पर्यावरण मंत्रालय की पर्यावरण नीति क्या है?
विकास और पर्यावरण का संतुलन कायम करके हमें आगे बढना है। यह हमारी नीति का मूल उद्देश्य है। क्योंकि हम ये चाहेंगे कि देश के अंदर विकास हो और साथ ही हम यह भी चाहेंगे कि पर्यावरण का संतुलन भी कायम रहे।

पर्यावरण व्यवस्था को लेकर पर्यावरण मंत्रालय ने कौन कौन से प्रयास किये है?
बहुत सारे प्रयास किए हैं। प्रयासों की श्रृंखला है। सीपीसी भी हमारा हिस्सा है। वो भी इस बात को करने की कोशिश करता रहता है। पर्यावरण विभाग के कई मंत्रालय हैं। ‘फॉरेस्ट डिपार्टमेंट’ भी उसका भाग है और अन्य कई चीजें उसमें शामिल हैं। किसी भी एक सिद्धांत के आधार पर हम आगे नहीं बढते, इतना बडा मंत्रालय किसी एक सिद्धांत के आधार पर चलता भी नहीं है। लेकिन यह जरूर है कि अगर हमको परिणाम लाना है तो हमें अभी और बहुत कुछ करना होगा॥क्योंकि जिस प्रकार से समाज आगे बढ रहा है उस समाज के लिए अब कुछ ठोस, कठोर ऐसे निर्णय लेने होंगे जो शुरआता में तो अच्छे नहीं लगेंगे परंतु होंगे समाज हित में ही।

वन एवं वन्य जीव सुरक्षा हेतु पर्यावरण मंत्रालय के माध्यम से कौन से प्रयास हो रहे है?
वन्य जीवों के लिए जो प्रयास हो रहे हैं, उन प्रयासों के परिणाम आपको बता देता हूं। आज अगर विश्व में सौ शेर हैं तो ७० शेर भारत में हैं। ७०% शेर भारत के पास हैं। जब हमारे पास सबसे अधिक शेर हैं तो स्वाभाविक है कैजुअल्टी भी होगी ही। जब संख्या ज्यादा है; तो मृत्यु दर भी ज्यादा ही होगी और जन्म दर भी। अब यह स्थिति आने लगी है कि मनुष्य की तरह जानवरों के लिए भी परिवार नियोजन की बात सोचनी पडे। जिसमें हत्या का मकसद नहीं होगा लेकिन यह ध्यान दिया जाएगा कि उनकी संख्या इतनी भी न बढ जाए कि उन्हें पर्याप्य मात्रा में खाना न मिल सके।

अपारंपारिक ऊर्जा और अक्षय ऊर्जा आज अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस सम्बंध में अपका क्या दृष्टिकोण है? पर्यावरण मंत्रालय और अक्षय उर्जा मंत्रालय में समन्वय किस प्रकार है?
दोनों एक ही शासन के दो विभाग हैं। सामान्य समन्वय दोनों के बीच है। यह सही है किहमें सोलर एनर्जी तक जाना होगा। सन २०३० तक भारत अपनी कुल ऊर्जा का ४०% प्रतिशत भाग सोलर से लेगा। इसिलिए पॅरीस में प्रधानमंत्री ने ‘सोलर अलायन्स’ की घोषणा की है। अभी मैंने भी सोलर अलायन्स पर हस्ताक्षर किये है। साथ ही करीब २४ से अधिक देशों ने उसके उसपर हस्ताक्षर किए हैं। बहुत जल्द सोलर अलायन्स अस्तित्व में आएगा। सूर्य हमें प्राप्त होनेवाली बहुमूल्य ऊर्जा है जो कि हमें निशुल्क प्राप्त होती है।

स्वच्छता का सीधा संबंध पर्यावरण से है। स्वच्छ भारत अभियान में पर्यावरण मंत्रालय की भूमिका किस प्रकार रही है?
स्वच्छता का सीधा संबंध जीवन पद्धती से है। स्वच्छता स्वभाव में होना चाहिए। नियमों के अंतर्गत स्वच्छता रखना कोई अच्छी बात नहीं है। मैं स्वभाव से ही स्वच्छ रहने का आदी हूं। मुझे लगता है ये समाज का स्वभाव बने। इसको बनाये रखने के लिए कुछ कार्यक्रम करना, आग्रह करना, बार-बार स्वच्छता की याद दिलवाना ठीक है; लेकिन स्वच्छ रहना ये स्वभाव होना चाहिए। और मुझे लगता है भारत में यह होने में बहुत समय नहीं लगेगा।

नमो गंगा यह हमारी घोषणा है। ‘‘गंगा तेरा पानी अमृत’’ यह संकल्पना यथार्थ रूप कैसे लेगी? भारतीय नदियों की स्थिति सुधारने में पर्यावरण मंत्रालय क्या प्रयास कर रहा है?
गंगा का पानी अमृत ही है। इसके लिए किसी दिन का इंतजार करने की जरूरत नहीं है। समस्या यह है कि मनुष्य उसके साथ गलत व्यवहार कर रहा है। अत: पानी गंदा हो रहा है। उसकी गंदगी को रोकने के लिए ही पूरा मंत्रालय प्रयत्नशील है। मुझे लगता है कि हमने नदी में प्रदुषण घटाने और नदी का जलस्तर बढाने का कार्य किया तो शेष काम नदी खुद ही कर लेती है।
नदी को साफ करने की जरूरत नहीं है। नदी में हर वर्ष जब बाढ आती है तो नदी खुद ही अपने आप को साफ कर लेती है। आवश्यकता यह है कि हम नदी को गंदा न करें। जितना महत्व गंगा को साफ करने का है उतना ही देश की बाकी छोटी और मझौली नदियों की स्वच्छता का भी है। बहुत जल्दी ही हमारा मंत्रालय नदियों की स्वच्छता की कार्य योजना सबके सामने लाएगा।

स्मार्ट सिटी मोदी सरकार का सपना है। स्मार्ट सिटी बनाते समय पर्यावरण की रक्षा किस प्रकार संभव है?
स्मार्ट का मतलब है कि जो पर्यावरण के अनुकूल है। पर्यावरण के लिए प्रतिकूल कोई चीज स्मार्ट कैसे हो सकती है। स्मार्ट शब्द के अंदर ही यहचीज छिपी हुई है। ये भविष्य की जरूरत है। स्मार्ट सिटी और नगरीय विकास के अंदर ये सब चीजे जुडी हुई है। इन्हें अलग से देखने की आवश्यकता नहीं है।

प्लास्टिक, कचरा, ई-कचरा मुक्त भारत बनाने के लिए पर्यावरण मंत्रालय क्या प्रयास कर रहा है?
यह आनेवाले समय का बडा खतरा है। पहले हमारे घर के अंदर एक ही डस्टबिन रहती थी जिसमें रसोई से निकला कचरा डाला जाता था। लेकिन अब घर के हर कमरे में डस्टबिन रहती है। अगर हम खुद ही इतना कचरा निर्माण करेंगे तो हमें इस बारे में सोचने की बहुत आवश्यकता है। लाखों टन कचरा निर्माण करके शहर के बाहर जाकर डम्प करना सही नहीं है॥हमें कम से कम कचरा निर्माण करना है और साथ ही साथ इस बात पर ध्यान देना है कि करना जितना कचरा निर्माण हुआ है उसे किस तरह पुनर्प्रयोग किया जा सकता है।

भारतीय लोकसंस्कृति से लुप्त होती जा रही पर्यावरण संवर्धन की परम्परा का जतन किस प्रकार करना चाहिए?
मंत्रालय के द्वारा सारे प्रयास करने से समाज नहीं चलेगा। समाज को चलाने के लिए प्रबोधन की आवश्यकता होती है। भारतीय दर्शन तथा हमारी लोकरचना हजारों वर्ष पुरानी है। इस रचना के अंतर्गत हमने इन मूल्यों, परम्पराओं को स्थापित किया है। भारत की व्यवस्था में, चिंतन में, पारिवारिक सामाजिक संरचना में पर्यावरण निहित है। लेकिन आज वह दैनंदिन अभ्यास में नहीं है। वह केवल सिद्धांत में ही रह गया है। हमें उसे अभ्यास में लाना है। समाज को पाश्चात्य संस्कृति में ढालने की जो आंधी चली है उस आंधी ने हमें पाश्चात्य बनाने में कोई कसर नहीं छोडी है। उसका ही दुष्परिणाम यह रहा कि हमारे घरों से तेलगु, मलयालम, गुजराती, मराठी आदि भाषाएं चल गईं। आज अगर कोई विदेशी भाषा में बात करता है तो हमें लगता है कि शायद ये अधिक उन्नति कर रहा है। लेकिन हम भूल गए कि हमारी अपनी जो संरचना है पानी बचाने की, पेड, पहाड, नदियों के साथ जीने की; ये सभी हमें पारम्परिक रूप से प्राप्त हुई है और मुझे लगता है कि जल्दी ही हम वापस अपनी मूलधारा पर लौट आएंगे। कभी-कभी ठोकर लगना भी आवश्यक होता है। पर्यावरण के संदर्भ में तो ऐसी ठोकर समय समय पर लगनी जरुरी है। जैसे दिल्ली में लगी, अमेरिका को वहां के तुफानों के कारण लगी और भी लग रही है। जब और थोडा बोध पाठ हो जायेगा तो शायद लोग जल्दी इस बात को समझ जायेंगे।

वैश्विकपर्यावरण परिषद में भारत कि भूमिका किस प्रकार होती है और उसका महत्व कितना होता है?
हम पूरे विश्व की बात नहीं करेंगे। क्योंकि पर्यावरण किसी एक के बिगाडने की बात नहीं। इसलिए उसके सुधार के लिए सबको प्रयत्न करना पडेगा। जैसा भगवान ने गोवर्धन पर्वत को उठाने के लिए किया वो आगे बढे, लेकिन सारे बाल गोपाल उनके साथ हो गए। जब पूरे विश्व के सारे देश इसके लिए कटिबद्ध होंगे तो अलग चित्र विश्व में होगा। इसलिए आनेवाले वर्ष में भारत के ‘आयएनडीसी’ हमने निश्चित किए है। ये फाईवस्टार होटल तक सीमित चर्चा के बिंदु नहीं होंगे। यह लोकव्यापी हो इसलिए हम जरुर प्रयत्न करेंगे।

छत्रपती शिवाजी महाराज आपके चिंतन तथा लेखन का विषय है। पर्यावरण रक्षा में छत्रपती शिवाजी महाराज की भूमिका विषद कीजिए?
जब भी सुशासन होता है तो उसके अंदर सारी चीजे होती है। एक आज्ञा पत्र है महाराज का लिखा हुआ उसके अंदर उन्होंने साफ लिखा है कि मेरे क्षेत्र के अंदर कोई भी पेड काटा नही जाएगा और कोई भी वृद्ध पेड काटना हो तो मालिक के अनुमती से और उसको पर्याप्त मुआवजा देकर ही काटना होगा। उस समय के बनाये छोटे छोटे बांध आज भी हमारे सामने है। महाराज का शासन ‘गुड गव्हर्नस’ का उत्तम उदाहरण था। जब हम उसकी परत दर परत खोलते जाते हैं तो हमें उसका साक्षात्कार हो जाता है।

महाराष्ट्र में बनने जा रहे छत्रपती शिवाजी महाराज के विशाल स्मारक के संदर्भ में पर्यावरण विशेषज्ञों का मत है कि उससे समुद्री जीवों पर संकट आएगा। पर्यावरण मंत्री होने के आप इस बारे में क्या सोचते हैं?
पर्यावरण को लेकर आगे बढना चाहिए, चलना चाहिए। लेकिन पर्यावरण का अतिरेक भी नही करना चाहिए। मुझे लगता जब भी नव सर्जन होता है तो कष्ट होता ही है। बगैर कष्ट के सर्जन नही होता। अगर कोई गाडी पर खरोंच लगने के डर से गाडी ही न चलाए तो यह गलत है। विकास की अवधारणा में नवसृजन करते समय सब लोग इस बात पर जरूर ध्यान दें कि पर्यावरण को संभाल कर कार्य किया जाए।

हिंदी विवेक पर्यावरण विशेषांक के माध्यम से आप हिंदी विवेक के पाठकों को क्या संदेश देना चाहेंगे?
हर एक ने सबसे पहले ये सोचना चाहिए कि पर्यावरण में योगदान करने के लिए मैं क्या करूं? दुर्भाग्य यह कि १५ अगस्त १९४७ के बाद हमने यह सीखा दिया कि दूसरा क्या करे? सब एक दुसरे को बोलते रहते है। वस्तुतः हर एक ने अपने बारे में सोचना चाहिए। क्या करना है ये समझाने की जरूरत किसी को नहीं है। सभी को मालूम है कि क्या करना है। तो हर एक ने पानी का प्रयोग करते समय, वाहनों का प्रयोग करते समय स्वच्छता का ध्यान रखते समय, जंगल में आते जाते समय, लकडीयों का प्रयोग करते समय पर्यावरण रक्षा के बारे में सोचना चाहिए। धरती पर पैदा हुए नागरीक के रुप में ये मेरा कर्तव्य है इस भाव से कार्य करना चाहिए। दिखावा कम और काम ज्यादा करें तो स्वाभाविक परिणाम आयेंगे। हमारी समस्या यह की आदमी काम करता है, दिखावा ज्यादा करता है उसको हर छोटे मोटे काम को छपवाने में जितना मजा आता है उतना काम करने में मजा नही आता।

आप राजनिती, साहित्य से जुडे हैं, पर्यावरण आपका पसंदीदा विषय है। आपको पर्यावरण मंत्रालय की जिम्मेदारी मिली है तो आप किस प्रकार से आपका योगदान दे रहे हैं?
जो काम मिला उसे मेहनत से करना, सूझ-बूझ से करना ये हम लोगों को संस्कार में सिखाया गया है। केवल पर्यावरण मंत्रालय नहीं है। अगर आप मुझे कहेंगे की कोई छोटा काम करना है तो मैं उस काम को भी उतनी ही तन्मयता, तत्परता से करूंगा। जितना पर्यावरण मंत्रालय चलाना है। इसलिए काम का महत्व नही है। काम के पिछे भाव यह होना चाहीए हम उसको अच्छा करने का प्रयत्न करते है। वैसा प्रयत्न करते रहते है, बाकी तो समय बतायेगा भविष्य क्या होता है।

Leave a Reply