स्वामी विवेकानंद की जयंती 12 जनवरी को अंतरराष्ट्रीय युवक दिवस पर आवाहन करते हैं, ए मेरे युवा बंधुओ और बहनो, अध्यात्म के मार्ग पर आइये और अपनी साधना से- शक्ति से पूरे विश्व में सकारात्मक क्रांति का उद्घोष करें। चलो अपने अंदर के विवेकानंद को जगाते हैं और एक सम्पूर्ण, सम्पन्न, शक्तिशाली भारत का निर्माण करते हैं।
हरेक व्यक्ति को जीवन में तीन अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है- बाल्यावस्था, युवावस्था तथा वृद्धावस्था। इन तीनों में महत्वपूर्ण है युवावस्था या किशोरावस्था। क्योंकि, इसमें प्रवेश करते वक्त कई शारीरिक तथा मानसिक बदलाव इस उम्र में आते हैं। प्राय: 12 से 18 की उम्र को किशोरावस्था माना गया है। इस उम्र के बच्चे माता-पिता से खुलकर बातें करना नहीं चाहते; बल्कि बहुत सी बातें छुपाने का प्रयास होता है। लिंगभेद का अहसास होना तथा विद्रोह की भावना में वृद्धि होना यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। इसके परिणाम में स्वभाव में आत्मगौरव के भाव आने की शुरुआत होती है।
ऐसे समय इन युवकों को प्रेम से, संवेदनशीलता से तथा सावधानी से समझाने की जिम्मेदारी अभिभावक निभाएं तो बेहतर है। क्योंकि, उन्हें अच्छा गुरू-मार्गदर्शक मिलना जरूरी है; लेकिन आजकल अभिभावकों को इतना समय कहां है? आजकल मोबाइल पर इंटरनेट के जमाने में इतने सोशल प्रोग्राम खुलेआम उपलब्ध है, जिसका अच्छा-बुरा प्रभाव इन युवकों के मानस पर होना स्वाभाविक है।
युवावस्था का प्रभाव जबरदस्त होता है। शालेय तथा महाविद्यालयीन शिक्षा और बाद में व्यवसाय, नौकरी के चयन में स्पर्धा के भय से कई युवक इस उम्र में आसान मार्ग से पैसा कमाने की होड़ में गुनाह के मार्ग पर चलने को बाध्य हो जाते हैं। गर्म खून और उद्दंडता की प्रवृत्ति यही इस उम्र की देन है। हम सब लोग इस स्थित्यंतर से गुजरते रहते हैं। ऐसे वक्त हमें एक अच्छे गुरू की, मार्गदर्शक की तथा प्रेम की जरूरत होती है।
एक सौ पच्चीस साल पहले एक युवक ने अपने ओजस्वी वक्तव्य से सभी अमेरिकावासियों को मंत्रमुग्ध किया था। शांति और करूणा का मंत्र प्रेषित करने वाले उस युवक का नाम था – स्वामी विवेकानंद! शिकागो में सर्वधर्मीय वैश्विक परिषद को संबोधित उनके उस ओजस्वी भाषण का इतना गहरा परिणाम हुआ कि पाश्चात्य लोग भारतीय संस्कृति का आदर करने लगे।
आजकल युवा पीढ़ी को एक नकारात्मक नजरिये से देखा जाता है- विद्रोही, डिस्को-पब और नशा की चंगुल में फंसा युवक, आधुनिकता के आकर्षण से दो पीढ़ियों के बीच की दूरी तथा तनाव और पारिवारिक विवादों से जर्जर होकर बेचैनी का सामना करते-करते हैरान हो गया है। क्या इसका दोष सिर्फ युवा पीढ़ी का है? क्या इन सभी आपदाओं का सामना करने की क्षमता उसमें नहीं है? मुझे ऐसा बिल्कुल नहीं लगता। बल्कि आज का युवा वर्ग हर एक क्षेत्र में अपनी क्षमता दिखाकर इन समस्याओं का सामना करने के लिए अधिक सक्षम है और पहले के लोगों से होशियार है और मेहनत करने की मनीषा रखता है।
स्वामी विवेकानंदजी की अमूल्य एवं अभूतपूर्ण शिक्षा को अभिवादन करते सारे जहां को मैं यही कहना चाहूंगा कि युवाशक्ति को अगर अध्यात्म की साथ मिले तो पूरे विश्व में एक क्रांति ला सकते हैं। लौकिक अर्थ से परिवर्तन लाने की क्षमता युवाशक्ति और अध्यात्म के मिलाप में जरूर है।
अध्यात्म का मतलब यह नहीं है कि संसार का त्याग करके एक अलग जीवन व्यतीत करना या कोई अलग से कपड़े परिधान करके नौटंकी करने का मार्ग अपनाना। आजकल ऐसे नकली बाबाओं की वजह से लोगों का अध्यात्म के बारे में गलत विचार होते जा रहा है। एक चीज जरूरी माननी चाहिए कि अध्यात्म की विचारधारा और उसका स्रोत एक उच्च स्तर का प्रवाह है। आध्यात्मिक साधना से मन को शांति मिलती है, स्थैर्य प्राप्त होता है और मन विशालता का अनुभव करता है- और ऐसी स्वाभाविक शक्ति स्रोत का उपयोग सामाजिक सजगता की एकसंघता को बढ़ावा देता है।
मनुष्य का मन एक गहरे संशोधन का विषय है, असंख्य विचारों की शृंखला है मन। मन की शक्ति अगाध है। वह शाश्वत कार्य के साथ उतनी ही विघातक भी साबित हो सकती है। ऐसे मन को अध्यात्म की प्रेरणाशक्ति की शिक्षा मिलने से उस पर गुरू संस्कार होते हैं। अध्यात्म साधना शरीर, मन और आत्मा का अनुशासनभरा प्रशिक्षण है, यह समझना जरूरी है।
शरीरशास्त्र के अनुसार आदर्श जीवन प्रणाली आहार-विहार, नियमन और सत्संग यानि अध्यात्म साधना का आचरण है। शरीरांतर्गत प्राण पर किया हुआ नियंत्रण और अन्य संस्कार, स्वैर और उन्मत्त मन के सूक्ष्मतर स्तर पर जाने के लिए ध्यान, आंतरिक तथा बाह्य शुद्धि क्रिया – यानि आध्यात्मिक साधना – यह सभी क्रियाएं-साधना साधक को एक अत्युच्च अनुभूति का अनुभव कराती है और उसे करूणा, प्रेम, क्षमाशीलता के बल से सुसंस्कृत शक्तिशाली मनुष्य बनाती है। युवा शक्ति और अध्यात्म शक्ति का मिलाप होना इसलिए जरूरी है, क्योंकि युवा और उनके विचार क्रांतिकारी होते हैं। प्राय: यह शक्ति विनाशक विध्वंसक रूप धारण करती है और उसे बदले की भावना में परावर्तित करती है। अगर यही विस्फोटक शक्ति अध्यात्म का रुख करेगी तो सकारात्मक बदलाव ला सकती है। एक तरफ नशे में चूर, गुलछर्रे उड़ाने वाला ध्येयहीन युवक जो तनाव से परेशान है और दूसरी तरफ आध्यात्मिक साधना से उजागर शक्तिवान ध्येयवादी युवक – यह दोनों का अंतर है। युवा शक्ति को समझाना, सिखाना बहुत आसान है, यह मेरा मानना है। उसके मन की उदारता यह उसका विशेष गुण है।
स्वामी विवेकानंदजी ने अपनी शिक्षा से लाखों लोगों को अध्यात्म की राह चलना सिखाया। रामकृष्ण परमहंस जैसा गुरू, अध्यात्ममार्गी परिवारजन और प्रखर बुद्धिमत्ता के धनी स्वामी विवेकानंदजी को देश-विदेश में बड़ी लोकप्रियता मिली। उनकी जन्मतिथि 12 जनवरी ‘अंतरराष्ट्रीय युवक दिन’ के तौर पर मनाई जाती है। इसीलिए इस अंतरराष्ट्रीय युवक दिन के पावन दिन यह संकल्प और आवाहन करते हैं, ए मेरे युवा बंधुओ और बहनो, अध्यात्म के मार्ग पर आइये और अपनी साधना से – शक्ति से पूरे विश्व में सकारात्मक क्रांति का उद्घोष करें। आज समाज और राष्ट्र को युवा शक्ति और अध्यात्म शक्ति के मिलाप की जरूरत है। चलो अपने अंदर के विवेकानंदजी को जगाते हैं और एक सम्पूर्ण, सम्पन्न, शक्तिशाली भारत का निर्माण करते हैं।
Haresh Teckchandani
15 जनवरी 2019Thanks#HHSadguruDrMangeshda for Your wonderful article
विश्वप्रकाश
14 जनवरी 2019लेखक ने काफी ऊमदा तरिकेसे आध्यात्मिक पैलूओंको संक्षिप्त रूप मे लिखा है. और जिस तरह से लेखकने यूवा पिढी को अध्यात्म का महत्व समझाया है.;शायदही किसीने समझाया होगा.
धन्यवाद विवेक ईतने अनमोल लेखको हमतक पोहोचानेके लिए.
Sneha Teckchandani
14 जनवरी 2019Time and again your insightful articles bring about much needed awareness on the varied topics. Sincerely request you to continue doing so through Vivek magazine. Thank you.
Nehal
14 जनवरी 2019Thankyou Sadguru Dr Mangeshda Ji for such a beautiful article. Also thankyou Vivek magazine for publiapubl it.
Nidhi Pathak
14 जनवरी 2019Thank you Sadguru Mangeshda for such an insightful article.
Sunil Pai
14 जनवरी 2019Beautiful article by Sadguru Dr. Mangeshda. Thank you Vivek magazine for publishing it.
Chandrakant Baraskar
5 जनवरी 2019बहुत ही सुंदर लेख. आज कल उठते बैठते युवाकोंको नसीहत देना सभी करते हैं. लेकीन उनकी प्राकृतिक मानसिक समस्या को समझ कर उन्हे सही विकल्प देना अपने आप में बहुत मायने रखता हैं. सदगुरू मंगेश दा जी का यह दृष्टिकोन सही हैं. विवेक पत्रिका को धन्यवाद . ऐसे महत्त्वपूर्ण विषय पर विवेकानंद जी के जन्म दिवस समारोह के अवसर पर यह लेख की प्रसिद्धी पर
Ravindra Duvvuri
5 जनवरी 2019Thank you, Vivek magazine for Sadguru Dr. Mangeshdaji’s excellent article on Swami Vivekanand and youth.
ANURADHA V R
5 जनवरी 2019Excellent article by Sadguru Dr Mangeshda. Thank you Vivek magazine for publishing this article
Saraswati Vasudevan
5 जनवरी 2019Excellent article for today’s youth. Thank you Vivek Magazine for publishing the same.
Vinita
5 जनवरी 2019सदगुरु डॉक्टर मंगेषदा की यह लेखक बहुत अच्छी है। जिस तरह उन्होंने आजकी युवा पीढ़ी की समस्या को समझ कर प्रदर्शित किया है वाकि बहुत तारीफ के बराबर है। सब को आध्यात्यमिक मार्ग पर चलने के लिए सदगुरु जी का ऐलान विवेकानन्द जी की जयंती पर हम पालन करेंगे। धन्याद, बहुत शुक्रिया विवेक मैग्जीन कि टीम को की ऐसी सुंदर लेख उन्होंने हम तक पहुंचाई।
Ravindra Pathak
5 जनवरी 2019सादगुरूजी ने लेख में जो विचारधारा प्रकट की है, उसका काफी गहराई से अध्ययन करना अवश्यक है। आज के समाज में युवाओं को अच्छी प्रेरणा अथवा मार्गदर्शन देने वाले ऐसे गुरुजनो की सख्त जरूरत है, जो अंधविश्वास और आध्यात्मिकता के बीच के फर्क को समझा सके, एवं युवा पीढ़ी को अध्यात्म के मर्ग पर चलने की प्रेरणा दे सके ।
Venu Madhav
4 जनवरी 2019One more insightful article from Sadguru Mangeshda. Compliments to Vivek magazine for promoting Spirituality
Rajeev Raval
4 जनवरी 2019Wonderful article and thank you Vivek for bringing this for the masses. The ideas expressed here by Sadguru Mangeshda are so relevant for today”s age. Today’s youth need guidance to channel their energy in right direction and this article provides those ideas. Thanks again
Hrishikesh A
4 जनवरी 2019Thank you team Vivek for publishing this article. Youth and Spirituality is a tremendous combination. And this article conveys a very good thought line. Thank you Sadguru Dr Mangeshda Ji for this insightful article. Thank you Vivek team yet again.