उत्तर प्रदेश में स्मार्ट सिटी की संकल्पना

स्मार्ट सिटी शब्द सुनते ही मन में ऐसे शहरों की कल्पना होती है, जहां का इंफ्रास्ट्रक्चर आकर्षक एवं व्यवस्थित दिखे, उत्कृष्ट नगर प्रबंधन हो, सभी विभागों में समन्वय एवं तालमेल हो, वातावरण प्रदूषण मुक्त हो, चारों तरफ हरियाली हो, लोग स्वच्छ हवा में सांस ले सकें, बिजली-पानी की सप्लाई २४ घंटे सुनिश्चित हो, शहर ओवरहेड तारों के जाल, सीवर ओवरफ्लो, टूटी वाटर पाइप, टूटी सड़कों, आवारा पशुओं, ट्रैफिक जाम से मुक्त हो, सेंसर आधारित कम्प्यूटरीकृत सिस्टम का व्यापक उपयोग किया जाए। विद्युत वितरण, स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता, ट्रैफिक व्यवस्था, सीवेज ट्रीटमेंट, सॉलिड वेस्ट डिस्पोजल का कुशल प्रबंधन किया जाए एवं सुविधाओं का दुरूपयोग रोका जा सके, विश्व स्तरीय सार्वजनिक यातायात सुविधाएं, चौड़ी सुगम्य सड़कें, पार्किंग एवं स्वच्छ जनसुविधाएं उपलब्ध हों, ऑनलाइन सिस्टम द्वारा कोई सर्विस प्राप्त करना जैसे बिलों का भुगतान सुगम हो, किसी कार्य को करने के लिए कतार में इंतजार नहीं करना पड़े, शहर अनधिकृत कालोनियों, झुग्गी-बस्तियों से मुक्त हो, शहर पोलिथिन मुक्त हो, हर तरफ स्वच्छता दिखे, ऐसी सुरक्षा व्यवस्था हो जिससे अपराध पर लगाम लगे, पुलिस प्रशासन की प्रकृति सहयोगी हो और लड़कियां, महिलाएं, बच्चे, वृद्ध सभी चैन से रह सकें। अर्थात स्मार्ट सिटी में, जनता की समुचित भागीदारी, आधुनिक तकनीकी के सर्वोत्तम उपयोग, कार्यकुशल कर्मचारियों, सजग प्रशासन एवं समन्वयपूर्ण प्रबंधन द्वारा जन सामान्य को निवास एवं कार्य करने की उत्कृष्ट दशाएं उपलब्ध कराई जा सकें।

केंद्र सरकार द्वारा प्रथम चरण में देश के १०० शहरों को स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित करने की योजना क्रियान्वित की जा रही है। जिसमें सब से अधिक उत्तर प्रदेश से १३ शहरों को सम्मिलित किया गया है। सहारनपुर, गाजियाबाद, मुरादाबाद, रामपुर, अलीगढ़, आगरा, बरेली, झांसी, लखनऊ, कानपुर, इलाहाबाद तथा वाराणसी को यूपी से इस सूची में सम्मिलित किया गया है। इस मिशन की अवधि पांच साल (वित्तीय वर्ष २०१५-१६ से वित्तीय वर्ष २०१९-२०) की होगी। स्मार्ट सिटी के लिए चुने गए हर शहर को पहले साल २०० करोड़ और उसके बाद चार साल के लिए हर साल १०० करोड़ रुपये मिलेंगे। केंद्र सरकार इस प्रोजेक्ट पर अगले पांच साल में ४८ हजार करोड़ रुपये खर्च करेगी और इतनी ही रकम राज्य मिल कर खर्च करेंगे।

देश की वर्तमान जनसंख्या के लगभग ३१% लोग शहरों में निवास करते है और इनका सकल घरेलू उत्पाद में २०११ की जनगणना के अनुसार ६३% का योगदान रहा है। आकलन के अनुसार वर्ष २०३० तक शहरी क्षेत्रों में भारत की कुल जनसंख्या के ४०% लोग निवास करेंगे एवं सकल घरेलू उत्पाद में इनका योगदान ७५% होगा। इस हेतु भौतिक, संस्थागत, सामाजिक और आर्थिक बुनियादी ढांचे के व्यापक विकास की आवश्यकता को देखते हुए स्मार्ट सिटी परियोजना का क्रियान्वयन किया गया है।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, आदित्यनाथ योगी ने जून २०१७ में कहा है कि मेरठ, रायबरेली, गाजियाबाद, सहारनपुर व रामपुर को भी स्मार्ट सिटी परियोजना में शामिल कराने के लिए प्रस्ताव तैयार करा कर केंद्र को भेजे जाएंगे। साथ ही उन्होंने यह भी संदेश दिया कि विकास के मुद्दे पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। लखनऊ, वाराणासी, कानपुर व आगरा में मानक के मुताबिक आधारभूत सुविधाओं एवं सेवाओं के विकास से संबंधित काम शुरू करा दिए गए हैं।

स्मार्ट सिटी परियोजना के क्रियान्वयन में निम्नांकित तथ्यों को ध्यान में रखना आवश्यक है –

किसी बसे-बसाए शहर को स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित करना, नए स्मार्ट सिटी बनाने से अधिक मुश्किल होगा क्योंकि बसे हुए शहर की मूलभूत विशेषताओं- ऐतिहासिकता, विरासत, स्थापत्य, कला-संस्कृति, उद्योग आदि को ध्यान में रखना भी आवश्यक होगा जिससे शहर की पहचान खो न जाए। उत्तर प्रदेश अपनी समृद्ध ऐतिहासिक विरासतों के लिए जाना जाता है। यदि चयनित नगरों में विश्वस्तरीय सुविधाएं, परंपरा के साथ आधुनिकता के सिद्धांत के आधार पर प्रदान की जाएं तो अपनी प्राचीनता एवं ऐतिहासिकता के लिए प्रसिद्ध शहर वाराणसी, इलाहाबाद, आगरा, लखनऊ आदि को स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित करना सार्थक होगा। इसके लिए सेक्टरनिहाय विकास कार्यों का फ्लोचार्ट तैयार करना एवं सभी विभागों में तालमेल होना अनिवार्य है।

शहर को कई सेक्टरों में बांट कर विकसित किए जाने की आवश्यकता है। जहां तक हो सके प्रत्येक सेक्टर में कम से कम ३०%-४०% हरियालीयुक्त क्षेत्र के साथ-साथ अत्याधुनिक तकनीकी के माध्यम से जीवन की बुनियादी सुविधाओं को उपलब्ध कराया जाना चाहिए। मीटर युक्त-कटियामुक्त बिजली, मीटरयुक्त-दुरूपयोग रहित स्वच्छ पेयजल, बागवानी-फ्लश हेतु रीसायकल पानी की सुविधाएं उपलब्ध हों, उत्तम स्वास्थ्य सेवाएं, हॉस्पिटल, विश्वस्तरीय गुणवत्तायुक्त चौड़ी सड़कें, पार्किंग, शापिंग सेण्टर, स्कूल, बैंक, केमिस्ट, सब्जी-किराना, घरेलू सामान, दूध आदि की उचित मूल्य की दुकाने उचित स्थान पर हों, पाइप लाइन द्वारा कुकिंग गैस की सुविधा हो, साफ-सुथरे पब्लिक टॉयलेट, सड़क- रेल- वायुमार्ग द्वारा एक दूसरे से जुड़ी हुई परिवहन की समुचित सुविधाएं, कम्युनिटी सेण्टर, आधुनिक स्पोर्ट्स स्टेडियम, मनोरंजन स्थल, थियेटर, मॉल, पार्क, रेजिडेंशियल सोसाइटी, स्मॉल रेजिडेंशियल सिटी आदि विकसित किए जाने चाहिए। वर्षा जल संचय द्वारा भूमिगत जलस्तर बनाए रखने के लिए शहर के पोखरों, तालाबों, कुंडों के जीर्णोद्धार, सुंदरीकरण के साथ नए निर्माण भी किए जाने चाहिए। स्टार्म वाटर पाइपलाइन को इनसे जोड़ कर, जल जमाव की समस्या से भी बचा जा सकेगा।

रेट्रोफिटिंग, ग्रीन बेल्ट, पुनर्विकास एवं पैनसिटी योजनाओं को शहर की भौतिक एवं मौलिक आवश्यकताओं को ध्यान में रख कर क्रियान्वित किया जाना चाहिए, तभी इनका उद्देश्य पूर्ण हो सकेगा।

आउटर रिंग रोड, फ्लाईओवर, सबवे, पाथवे, साइकिल पथ के माध्यम से यातायात को सुगम बनाया जाना चाहिए, तथा ये अतिक्रमण मुक्त होने चाहिए। सड़कों एवं फ्लाईओवर के निर्माण में दो स्थानों के बीच पहुंचने में लगने वाले समय एवं दूरी को कम करने के प्रयास किए जाने चाहिए। फ्लाईओवर के निर्माण के साथ सर्विस रोड को भी विकसित करना आवश्यक है। सड़क पारपथ बनाते समय विकलांगों, वृद्धों, महिलाओं एवं बच्चों का ध्यान रखा जाना चाहिए। रैंप या स्वचलित सीढ़ियों से युक्त ऊपरगामी पैदल पुल एवं अंडरग्राउंड सबवे बनाए जाने चाहिए। वाराणसी जैसे शहरों की घनी बसावट को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक सेक्टर में शहर के चौराहे, आकार में छोटे एवं हरियालीयुक्त होने चाहिए एवं शहर की पहचान से सम्बंधित किसी थीम को लेकर बने होने चाहिए। स्ट्रीट लाइट सोलर पैनल एवं ऑटोमैटिक सेंसर द्वारा संचालित हों। सड़कों के किनारे छायादार वृक्ष लगाए जाने चाहिए।

उत्तर प्रदेश नदियों से समृद्ध है, अत: नदियों की पारिस्थितिकी एवं प्रदूषण की समस्या का समुचित अध्ययन एवं निदान करके जल परिवहन एवं नदी पर्यटन क्षेत्र के विकास की संभावना को तलाशा जा सकता है।
सोलर पैनल द्वारा विद्युत उत्पादन पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। ओवरहेड विद्युत तारों एवं केबिलों को अंडरग्राउंड किया जाना चाहिए। स्मार्ट सिटी को लटकते तारों के जंजाल से मुक्त होना अनिवार्य है।
जो भी आधुनिक ईमारत बने वे नियमानुकूल, स्ट्रक्चर्ड एवं भूकंपरोधी हों। उनमें हरियाली, प्राकृतिक प्रकाश एवं ऊर्जा के संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। इमरजेंसी में निकलने के लिए रैंप बनाना अनिवार्य हो। इमारतों में सोलर पैनल से विद्युत उत्पादन की व्यवस्था हो। वर्षा जल संरक्षण का समुचित प्रबंध हो, उनमे छोटे सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, वाटर रीसायकल यूनिट, सॉलिड वेस्ट प्रबंधन एवं पार्किंग की व्यवस्था होनी अनिवार्य हो।

पुरानी बिल्डिंग को रेट्रोफिटिंग तकनीकी से भूकंपरोधी बनाने की अनिवार्यता के साथ इनमें भी सोलर पैनल, रेन वाटर हार्वेस्टिंग एवं वाटर रीसायकल के साथ-साथ कम से कम १५% हरियाली हेतु खुले क्षेत्र की अनिवार्यता होनी चाहिए।
वाराणसी जैसे शहर को गलियों के शहर के रूप में भी पहचान मिली है, अत: गलियों को अतिक्रमण, ओवरहेड वायर के जाल, गंदगी, आवारा पशुओं से मुक्त करने की भी आवश्यकता है।

किसी भी स्मार्ट सिटी के लिए उसका स्लम अर्थात झुग्गी झोपड़ियों से मुक्त होना आवश्यक है। सरकार द्वारा एवं CSR के माध्यम से ऐसे लोगों का समुचित पुनर्वास किया जाना आवश्यक है। साथ ही उनके आर्थिक विकास हेतु रोजगार की उचित व्यवस्था की जानी चाहिए। इस हेतु कौशल विकास के कार्यक्रम द्वारा प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए प्रशिक्षण केन्द्रों की स्थापना की जानी चाहिए। स्थानीय कुटीर उद्योगों, कला, तकनीकी कौशल में निपुण किया जाना चाहिए। आर्थिक विषमता को कम करके लोगों के रहन सहन के स्तर में समानता लाने के प्रयास किए जाने चाहिए।

यातायात द्वारा होने वाले प्रदूषण से बचने के लिए बैट्री चालित रिक्शा एवं छोटी CNG बसों का संचालन किया जाना चाहिए। सभी वाहनों में जीपीएस चिप लगना चाहिए। पब्लिक ट्रांसपोर्ट की बेहतर व्यवस्था द्वारा सड़कों पर निजी वाहनों के दबाव को कम करने की आवश्यकता है। पब्लिक ट्रांसपोर्ट में सुरक्षा की दृष्टि से सीसीटीवी कैमरे लगने चाहिए। एम्बुलेंस, फायर सर्विस इत्यादि के लिए इमरजेंसी लेन अनिवार्य रूप से बनाया जाना चाहिए।

अपराधियों पर लगाम लगाने हेतु पूरे शहर को सीसी कैमरों के जाल से युक्त करना एवं नवीन साइबर तकनीकी पर आधारित स्मार्ट सहयोगी पुलिसिंग एवं इंटेलीजेन्स प्रणाली का विकास उचित होगा।

प्रदूषण मुक्त औद्योगिक क्षेत्र, सीवेज ट्रीटमेंट एवं सॉलिड वेस्ट डिस्पोजल की अत्याधुनिक व्यवस्था PPP मॉडल द्वारा की जानी चाहिए एवं उत्तरदायित्व सुनिश्चित किया जाना चाहिए। सीवेज ट्रीटमेंट हेतु बिना बिजली के चलने वाले प्लांट लगाए जाने चाहिए। सॉलिड वेस्ट डिस्पोजल की उचित व्यवस्था द्वारा बायोडिग्रेडेबल वेस्ट से जैविक खाद एवं अन्य वेस्ट को रीसायकल करके ईटें एवं इंटरलाकिंग टाइल बनाई जा सकती है। सामाजिक निगरानी समिति के माध्यम से समय-समय पर चेक करके सही तरीके से कार्य हेतु पुरस्कृत करने एवं गलती करने पर दंड का प्रावधान किया जाना चाहिए।

ई गवर्नेंस के माध्यम से प्रशासन में पारदर्शिता सुनिश्चित की जानी चाहिए जिससे भ्रष्टाचार उन्मूलन एवं उत्तरदायित्व संभव हो सके।

आद्योगिक क्षेत्र, ट्रांसपोर्ट सिटी, पशु पालन, अनाज, सब्जी, फूल एवं फल मंडी, डेयरी, मछली एवं मांस व्यवसाय आदि शहर के बाहरी भागों में होने चाहिए, एवं शहर के चारों कोनों पर इनका प्रबंध होना चाहिए जिससे इनका वितरण आसानी से सुनिश्चित हो सके। PPP मॉडल द्वारा ये क्षेत्र भी प्रदूषण मुक्त एवं स्वच्छ होने चाहिए।

स्मार्ट सिटी में प्रशिक्षित कामगारों का उत्तरदायित्वपूर्ण सर्विस प्रदाता समूह होना चाहिए। जो इलेक्ट्रीशियन, प्लम्बर, इलेक्ट्रॉनिक्स रिपेयेरिंग, कारपेंटर, राज मिस्त्री, लेबर, माली, हाउस मेट, ड्राईवर, सर्वेंट आदि आसानी से उचित भुगतान पर उपलब्ध करा सके। ऐसे लोगों का पुलिस वैरिफिकेशन एवं रजिस्ट्रेशन सर्विस प्रदाता समूह द्वारा किया जाना चाहिए। यहां भी PPP मॉडल का उपयोग किया जाना चाहिए।

स्मार्ट सिटी के प्रवेश द्वार, रेलवे स्टेशन, एयरपोर्ट, रोडवेज पर सिटी इनफार्मेशन सेंटर होना चाहिए जिससे लोगों को शहर के ऐतिहासिकता, सांस्कृतिक विरासत, कला, साहित्य एवं विभूतियों का ज्ञान होगा एवं पर्यटन को बढ़ावा मिल सकेगा, शहर के निवासियों विशेषत: युवा पीढ़ी को भी शहर की समृद्ध विरासत एवं नवीन गतिविधियों का ज्ञान हो सकेगा। इस हेतु जागरूकता वैन चलाया जाना उचित कदम होगा।

समस्त ऐतिहासिक, स्थापत्य कला के लिए मशहूर स्थल, विभूतियों से जुड़े स्थानों, मूर्तियों, पार्कों आदि का जीर्णोद्धार एवं सुंदरीकरण कर वहां हरियाली, रोशनी, नि:शुल्क शुद्ध पेयजल, स्वच्छ टॉयलेट आदि जन सुविधाओं की उचित व्यवस्था किया जाना चाहिए। शहर की कला, साहित्य एवं सांस्कृतिक विरासत के प्रचार प्रसार के कार्यक्रम बनाए जाने चाहिए। इसके रखरखाव के लिए लोगों से कुछ शुल्क लिया जा सकता है।

सबसे महत्वपूर्ण है, जन सामान्य को स्वच्छता एवं नागरी कर्तव्यों हेतु जागरूक एवं प्रशिक्षित किया जाए, क्योंकि स्मार्ट लोग, शहर को स्मार्ट बनाते हैं।

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