जावेद अख्तर कौन ? यह सभी को पता है।फ़िल्म अभिनेत्री शबाना आजमी के पति और स्वयं एक शायर।गझल सुनने वाले रसिकों में वह लोकप्रिय है।फिल्मी जगत से होने के कारण वह प्रसिद्ध है और उनके नाम के साथ ग्लैमरस जुड़ा हुआ है।शीर्षक का प्रथम शब्द ‘बख्तर’ है,जिसका अर्थ होता है कवच।अब अख्तर का बख्तर से क्या संबंध है ? यह जानने के लिए लेख सादर है…
फिल्मी जगत के चकाचौंध में रहनेवाले जावेद अख्तर यदि कुछ भी बोलेंगे तो उसे प्रसिद्धि मिलेगी,यह पहले से ही तय था।मुंबई के ‘कलेक्टिव्ह फोरम’ कार्यक्रम में वह जो बोले, उसे पूरी श्रद्धा विश्वास के साथ दैनिक समाचार पत्रों ने प्रकाशित किया।उसमें मियां अख्तर ने क्या कहां आइए उस पर नजर डालते है।उन्होंने कहा कि आरएसएस एक फासिस्ट संगठन है।उनके सभी कार्यालयों में गोलवलकर गुरुजी की फोटो है।इसी आरएसएस को भारत का तिरंगा और संविधान मान्य नही है।उनकी बौद्धिक क्षमता एकदम निचले दर्जे की है।
आगे कहा कि देश में सेक्युलरिज्म पर बोलना ‘वन्स अपॉन ए टाइम’ जैसा है।मोदीजी आप इंदिरा गांधी से बराबरी नही कर सकते।तुम्हे अनेक जन्म लेने पड़ेंगे इंदिरा गांधी से बराबरी करने के लिए,हर माने में इंदिरा गांधी तुमसे भारी है।इनका कोई जेल में गया था क्या ? लालकृष्ण आडवाणी ने ‘भारत छोड़ो’ के बदले आरएसएस जॉइन किया।संघ के पास कोई आदर्श नही है इसलिए आरएसएस पर प्रतिबंध लगाने वाले सरदार पटेल की इन्हें प्रतिमा स्थापित करनी पड़ी।
यह थी अख्तर साहेब के स्वतंत्र विचार।अभिव्यक्ति की आजादी हमारे देश में है।इसके साथ ही विचार स्वातंत्र्य भी है।इसलिए मुंह उठाकर बोलने में किसी के बाप का कुछ नही जाता।अख्तर साहेब का बख्तर (कवच) है सेक्युलरिज्म, बौद्धिक अहंकार और संघ के विषय में घोर अज्ञान।इन तीनों कवच याने बख्तर के अंदर ग़ज़ल कार अख्तर बैठे हुए है।
कहावत है न कि पहले से बन्दर,उस पर दारू पिया हुआ और उसे बिच्छु ने डंक मार दिया तो वह क्या धमाल करेगा,इसका हमें कल्पना करना ही काफी रहेगा।अख्तर साहेब ने सेक्युलरिज्म की दारू पी है,अहंकार का थोड़ा भांग लेकर और मोदी द्वेष के बिच्छू ने डंक मारा है।इतना सब होने के बाद उन्होंने जो उक्त व्यक्तव्य दिया है इसके अलावा और दूसरा क्या बोलेंगे ? यह उनकी अभिव्यक्ति की आजादी है।
अख्तर अच्छे गज़लकार है लेकिन गजलकार होना और संघ जानकार होना इसका कोई संबंध नही है।संघ के कार्यालय में श्रीगुरुजी (उनके भाषा में गोलवलकर) की प्रतिमा होती है।इस पर उन्हें आपत्ति है।संगठन के कार्यालय में संगठन के श्रद्धयेय नेता की प्रतिमा लगाई जाती है।इतना सहज ज्ञान गजलकार को नही होगा ? अरेरे कितना दुर्भाग्य है! इसके बाद संघ के बौद्धिक क्षमता पर प्रश्रचिन्ह लगाया।सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रतिमा स्थापित करने का उन्हें दुख हुआ।संघ ने सरदार पटेल को स्वीकार किया यह बात उन्हें हजम नही हो रही।उनके तर्कशास्त्र अनुसार मैं संघ का स्वयंसेवक हु,इसका मतलब मैं बुद्धू हु।ऐसे बुद्धू व्यक्ति को हर माह अनेको विद्यालयों और कार्यक्रमों में वक्ता के रूप में आमंत्रित किया जाता है।पहली बात यातो मुझे बुलाने वाले बुद्धिजीवी वर्ग बुद्धू होंगे अथवा बौद्धिक अहंकार में जीने वाले अख्तर विवेकहीन निर्बुद्धि होंगे।मेरा उनसे एक सवाल है कि आप कौन है ? इसका उत्तर एक ग़ज़ल में बताए।
उनका ही एक ग़ज़ल लेकर कहना चाहे तो –
मैंने दिल से कहां,
ऐ दीवाने बता
जब से कोई मिला,
तू है खोया हुआ
ये कहानी है क्या ?
है ये क्या सिलसिला ?
ऐ दीवाने बता…
आशा करते है कि अख्तर साहेब अपने बख्तर से बाहर आकर वह कौन है,ये निश्चित रूप से बताएंगे।
बौद्धिक क्षेत्र के व्यक्तियों से यह अपेक्षा होती है कि वह जिस पर टिप्पणी करेंगे,उसके वह जानकार होंगे और उन्हें विषय वस्तुओं का पूर्ण ज्ञान होगा।यदि मुझे कम्युनिझम पर टिप्पणी करनी है तो उसके लिए मुझे कम्युनिझम समझना होगा।इस्लाम पर टिप्पणी करनी हो तो इस्लाम का अभ्यास करना पड़ता है।अभ्यास के बिना कुछ भी सोचे समझे बोलना यह मूर्खो के लक्षण होते है।
डॉ. हेडगेवारजी ने कांग्रेस के सभी गतिविधियों में भाग लिया था।गणतंत्र दिवस के दौरान सभी संघ कार्यालयों पर तिरंगा लगाया जाता है।गत कुछ वर्षों से गणतंत्र दिवस पर संघ का संचलन होता है और उस समय संघ अधिकारियों का भाषण भी होता है।अख्तर साहेब को बख्तर से बाहर आकर और गजल के शब्द ढूंढने के कष्ट से थोड़ा बाहर आकर इन विषयों पर अभ्यास करना चाहिए।
‘आरएसएस को संविधान मान्य नही है’, यह विषय गजलों का नही हो सकता किंतु विवरण का जरूर है।मैं स्वयं आरएसएस का स्वयंसेवक हु।संविधान पर लिखी मेरी पुस्तक 2 माह में 12 हजार प्रतियां विक्री का रिकॉर्ड बनाया है।6 हजार हिंदी प्रतियां समाप्त हो गई है और गुजराती भाषा की 10 हजार प्रतियां खत्म होनेवाली है।दिल्ली में डॉ. मोहन भागवत जी का तीन भाषण हुआ।जिसमें उन्होंने संविधान विषय पर विस्तार से प्रकाश डाला।अख्तर के बख्तर में मेरी यह पुस्तक है या नही,यह मुझे नही पता लेकिन उन्हें यह जरूर पढ़ना चाहिए।गजल करने के लिए नही बल्कि समझने हेतु और इसके साथ ही संघ की पुस्तकों का भी पठन करना चाहिए।अधिक पठन की आवश्यकता नही है बस डॉ. मोहन भागवत जी के वक्तव्यों को पढ़ लीजिए।इससे कुछ हद तक तो संघ समझ में आ जायेगा।
कुछ भी न समझते हुए बेलगाम टिप्पणी करना यह बख्तर में बंद रहनेवाले अख्तर को शोभा नही देता।
मोदी जी ने कब इंदिरा गांधी से बराबरी की है ? यह तुम्हारा शोध है।विशेषकर वामपंथी लोगो के युक्तिवाद की यह पद्धति है।इंदिरा गांधी,इंदिरा गांधी है और नरेंद्र मोदी, नरेंद्र मोदी है।आम,आम होता है और केला,केला होता है।दो फलों की तुलना नही करनी चाहिए बल्कि उसका स्वाद लेना चाहिए।विश्व में कोई भी राजनेता एक जैसा दूसरा नही होता।अमेरिका पर गौर करे तो ज्ञात होगा कि जार्ज वाशिंगटन,अब्राहम लिंकन नही थे और अब्राहम लिंकन जार्ज वाशिंगटन नही थे।दोनों पर सही दृष्टिकोण से देखे तो जो जवाब आता है उसका नाम है अमेरिका।उसी तरह इंदिरा गांधी और नरेंद्र मोदी के सवालों का जवाब है महाशक्तिशाली भारत।
वामपंथी खोपड़ी के बख्तर में बंद अख्तर के दिमाग में यह बात कितनी जाएगी, यह मैं नही बता सकता
यह समय कौन सा है ? ये अख्तर को समझना चाहिए।ये वक्त क्या है ? यह प्रश्न अख्तर ने कविता द्वारा किया था।
जिसके बोल है –
ये वक्त क्या है ?
ये क्या है आखिर ?
की जो मुसलसल गुजर रहा है,
ये जब न गुजरा था,
तब कहा था ?
कहीं तो होगा,
कहाँ से आया,किधर गया है ?
ये कब से कब तक का सिलसिला है ?
ये वक्त क्या है ?
ये वक्त क्या है ? इस प्रश्न का उत्तर है –
“ये वक्त है राष्ट्र प्रेम का
देश और मरने मिटने का
देश के लिए जीने का
देश के लिए कवि बनने का”
एकदम सटीक रमेशजी! ?
Bahut badhiya lekh hai Patange ji …
Aise logo ke vishay me likhana bahut jaruri hai aaj ke parivesh me koi kuchh bhi bolnar apne aap ko hi light karna chahta hai…