हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

by गोपाल चतुर्वेदी
in अगस्त-२०२१, संस्कृति, सामाजिक
0

भगवान श्रीकृष्ण का स्वयं का भी जीवन उतार-चढ़ाव से ओत-प्रोत है। वे जेल में पैदा हुए, महल में जिये और जंगल से विदा हुए। उनका यह मानना था कि व्यक्ति जन्म से नहीं कर्म से महान बनता है। उनके द्वारा कुरुक्षेत्र के मैदान में गीता-ज्ञान का ऐसा उपदेश दिया गया जो कर्तव्य से विमुख हो रहे हर व्यक्ति को दिशा व उर्जा प्रदान करने वाला है। वस्तुतः श्रीमद्भगवद्गीता उनके उपदेश का एक ऐसा दर्शन है जो हमें नश्वर जगत में अपना कर्तव्य निस्पृह भाव से निभाने के लिए प्रेरित करता है।

द्वापर युग में मथुरा के राजा उग्रसेन के पुत्र कंस के अत्याचारों से त्रस्त भक्तजनों की पुकार पर सप्तपुरियों में श्रेष्ठ मधुपुरी अर्थात मथुरा की दिव्य भूमि पर जन्म लेने वाले षोडस कलायुक्त भगवान विष्णु के अवतार भगवान श्रीकृष्ण को पूर्णावतार माना गया है। क्योंकि उन्होंने स्थितप्रज्ञ होकर जीवन के समस्त आयामों को पूर्णरूपेण स्वीकार किया। भारतीय संस्कृति में पूजित दशावतारों में आठवें अवतार भगवान श्रीकृष्ण ही एकमात्र ऐसे अवतार हैं जिनका जन्मोत्सव श्रीकृष्ण जन्माष्टमी विश्व के प्रत्येक कोने में हिन्दू धर्मावलंबी अत्यंत हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। उनका जन्म मथुरा के अत्यंत क्रूर व अत्याचारी राजा कंस के कारागार में सम्वत् 3168 की भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में रात्रि के ठीक 12 बजे अपनी माता देवकी के गर्भ से हुआ था।उनके अवतार का प्रमुख कारण कंस के अत्याचारों से पृथ्वी को मुक्त कराना था। भगवान श्रीकृष्ण ने मथुरा में जन्म लेने के पश्चात अपनी तिरोधान लीला से पूर्व के 120 वर्षों में अनेकानेक लीलाएं कीं। उन्होंने अपने सम्पूर्ण लीला काल में समाज को विभिन्न रीति-नीति,कला, ज्ञान, व्यवहार आदि की जानकारी दी।भगवान श्रीकृष्ण का चरित्र बहुआयामी है। कभी वह बालरूप में नन्दरानी को मातृत्व सुख प्रदान करते हैं, तो कभी ग्वाल-वालों के साथ उनके सखा के रूप में लीला करते हुए राक्षसों का वध करते हैं। कभी वह यमुना में स्नान करती गोपियों को शिक्षा देते हैं तो कभी कुरुक्षेत्र में वीर अर्जुन को उपदेश देकर उसके परिवार मोह को भंग करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा की गई महारास लीला उनके कृष्णावतार की श्रेष्ठतम लीला है। उन्होंने इस लीला के माध्यम से गोपियों के अहंकार और काम के घमण्ड को समाप्त कर निष्काम प्रेम को परिभाषित किया। साथ ही उन्होंने कौरवों व पांडवों के मध्य हुए धर्म-अधर्म रूपी 18 दिवसीय महासंग्राम में अर्जुन का रथ खींचकर अर्जुन का साथ दिया। वस्तुतः भगवान श्रीकृष्ण का पृथ्वी पर अवतरण जन कल्याण के लिए हुआ था। उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य पृथ्वी पर हो रहे अत्याचारों को मिटाना था। उन्होंने अपने युग को नवसृजन की दिशा में मोड़ा। जो कि उनकी भारतीय वैदिक संस्कृति को अनुपम देन है। शास्त्रों में कृष्णावतार को पूर्णावतार माना गया है। इसीलिए वे जगद्गुरु के रूप में सारे संसार के प्रदर्शक हैं। उन्होंने सारी दुनिया को कर्मयोग का पाठ पढ़ाया। उन्होंने प्राणी मात्र को यह संदेश दिया कि केवल कर्म करना व्यक्ति का अधिकार है। फल की इच्छा रखना उसका अधिकार नहीं है। भगवान श्रीकृष्ण का स्वयं का भी जीवन उतार-चढ़ाव से ओत-प्रोत है। वे जेल में पैदा हुऐ, महल में जिये और जंगल से विदा हुए। उनका यह मानना था कि व्यक्ति जन्म से नहीं कर्म से महान बनता है। उनके द्वारा कुरुक्षेत्र के मैदान में गीता-ज्ञान का ऐसा उपदेश दिया गया जो कर्तव्य से विमुख हो रहे हर व्यक्ति को दिशा व उर्जा प्रदान करने वाला है। वस्तुतः श्रीमद्भगवद्गीता उनके उपदेश का एक ऐसा दर्शन है जो हमें नश्वर जगत में अपना कर्तव्य निस्पृह भाव से निभाने के लिए प्रेरित करता है। यह ग्रंथ हिन्दू धर्म के विभिन्न सम्प्रदायों को एक सूत्र में बाँधने वाला ग्रंथ है। गीता के इस अपूर्व उपदेश की ही कारण वे न केवल अपने समय के अपितु भविष्य में चिरकाल के लिए सारे संसार के गुरु बन गए। उनका पृथ्वी पर प्राकट्य  सनातन मूल्यों की रक्षा के लिए हुआ था। इसीलिए वे लोक नायक व राष्ट्र नायक दोनों ही हैं। वह लीला पुरुषोत्तम हैं। जन-जन के आराध्य हैं। इसीलिए उनका चरित्र लोक रंजक है। उनका कोई भी कार्य कौतुक या निरर्थक नही है। उनमें वैराग्य योग, ज्ञान योग, ऐश्वर्य योग, धर्म योग और कर्म योग आदि समाहित हैं। उनकी प्रासंगिकता आज भी है। विद्वानों ने उन्हें महान नीतिज्ञ, धर्मज्ञ, कुशल योद्धा, गौपालक, अहिंसा धर्मी, निर्भीक, ईश्वर भक्त, राजनीतिज्ञ, सहनशील, लोक हित चिंतक, सामाजिक न्याय धर्मी, वैदिक धर्म का पुनरोद्धारक, निर्लोभी, विनयशील, महामानव, संगठन कर्ता, दार्शनिक, वैज्ञानिक, अनुसन्धानक, गणितज्ञ, व्यूह रचना धर्मी, सच्चा मित्र, समाजशास्त्री, अध्यात्मवेत्ता, सर्वपालक राजा, आर्यधर्मी और आप्त पुरुष आदि माना है। भगवान श्रीकृष्ण ने समस्त विश्व को प्रेम व सहिष्णुता का संदेश दिया। उनकी लीलाओं में सर्वत्र प्रेम ही प्रेम दृष्टिगत होता है।

ब्रज श्रीकृष्णोपासना का प्रमुख केंद्र है। यहां श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व अन्य स्थानों की अपेक्षा अत्यंत श्रद्धा व धूमधाम के साथ मनाया जाता है। ब्रज में इस पर्व की धूम अद्भुत व अनूठी होती है। जो कि श्रीकृष्ण की छठी पुजने तक निरन्तर जारी रहती है। इस दौरान यहां के प्रायः सभी मंदिरों में विशेष मनोरथों के आयोजन होते हैं। साथ ही यहां कृष्ण भक्ति का रस सर्वत्र बरसता है। साथ ही यहां के सभी देवालय कृष्णमय हो जाते हैं। ब्रज में इस पर्व पर जो वात्सल्यमय वातावरण दिखाई देता है उसकी अन्यत्र कल्पना भी नहीं की जा सकती है।

मथुरा के प्रायः प्रत्येक मन्दिर में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से एक दिन पूर्व भाद्रपद कृष्ण सप्तमी को सांय काल यशोदा महारानी का सीरा-पूड़ी व रसीले पदार्थों से भोग लगाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की ख़ुशी में घर-आंगन से लेकर गली-मौहल्लों तक को दुल्हन की भांति सजाया जाता है। घर-घर में अनेकानेक व्यंजन व पकवान बनते हैं।

भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को प्रातः से ही अधिकांश घरों में व्रत रखा जाता है। घर-घर में धनियां की पंजीरी व पंचामृत बनाया जाता है। सारे दिन भजन-कीर्तन के कार्यक्रम चलते हैं। रात्रि को जैसे ही 12 बजते हैं ब्रज के प्रायः प्रत्येक मन्दिर व घर से शंख, घण्टा-घड़ियाल आदि की आवाज गूंज उठती है। सभी अपने-अपने ठाकुर विग्रहों का पंचामृत से अभिषेक करते हैं। श्रीकृष्ण जन्म महोत्सव का प्रमुख उत्सव मथुरा की श्रीकृष्ण जन्मभूमि में होता है। लोग-बाग यह कह-कहकर नाच उठते हैं – नंद के आनन्द भयौ जय कन्हैया लाल की, ज्वानन को हाथी घोड़ा बूढ़ेंन को पालकी।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अगले दिन समूचे ब्रज में नंदोत्सव की धूम रहती है। हर एक घर व मन्दिर में भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा को पालने में झुलाया जाता है और बधाइयां गायी जाती हैं। जगह-जगह दधिकांदा होता है। लोग-वाग यत्र-तत्र फल,मेवा, मिष्ठान, वस्त्र आदि लुटाते हैं। प्रत्येक इसे कान्हा के प्रसाद समझकर लूटता है।  नंदोत्सव का मुख्य आयोजन गोकुल स्थित गोकुलनाथ मन्दिर में होता है। यहाँ प्रातः काल भगवान श्रीकृष्ण की झांकी अत्यंत धूमधाम के साथ निकाली जाती है। साथ ही भगवान श्रीकृष्ण के पालने के भी शुभ दर्शन होते हैं।  मथुरा के द्वारिकाधीश मन्दिर में नंदोत्सव के दिन भगवान श्रीकृष्ण के विग्रह को चांदी के पालने में झुलाया जाता है।

नंदोत्सव पर नंदगांव के नंदभवन में भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा के स्वर्ण पालने में दर्शन होते हैं। बरसाना वासी, नंदगाँव वासियों को श्रीकृष्ण के जन्म की बधाई देने नंदगांव आते हैं। साथ ही यहां स्थित नंदकुण्ड नामक सरोवर पर मल्लयुद्ध प्रिय श्रीकृष्ण के अग्रज बलराम की स्मृति में विशाल दंगल का आयोजन होता है। जिसमें देश के अनेक नामीगिरामी पहलवान भाग लेते हैं।  वृन्दावन के ठाकुर राधादामोदर मन्दिर में नंदोत्सव आनन्द महोत्सव के रूप में अति हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। ब्रजवासी बालक मन्दिर प्रांगण में होने वाली मटकी फोड़ लीला में भाग लेकर नाना प्रकार की अठखेलियाँ करते हैं। मन्दिर के सेवायतों द्वारा यहां उपस्थित अपार जन समूह में  फल,मिष्ठान, कपड़े व बर्तन आदि लुटाये जाते हैं। लड्डू गोपाल स्वरूप ठाकुर जी को झूले पर झुलाया जाता है। इस दिन यहां खीर का विशेष प्रसाद भी बंटता है। वृन्दावन के दक्षिण भारतीय रंगलक्ष्मी मन्दिर में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी नंदोत्सव के अगले दिन अत्यंत धूमधाम के साथ मनाई जाती है। इसका कारण यह है कि उत्तर भारत में त्योहारों को चंद्र मास के अनुसार मनाया जाता है जबकि दक्षिण भारत में त्योहार सौर मास के अनुसार मनाए जाते हैं। वस्तुतः श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व प्रतिवर्ष हमें भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अग्रसर होने की प्रेरणा देता है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को मनाया जाना तभी सार्थक है जब हमारे हृदय में भगवान श्रीकृष्ण का उदय हो। इस पर्व के दिन हम सभी को गौरक्षा का संकल्प लेना चाहिए, सुदामा चरित्र का गायन करना चाहिए, भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोपियों को दिए गए सन्देश को आत्मसात करना चाहिए, श्रीमद्भवद्गीता के रहस्य को समझना चाहिए। साथ ही श्रीकृष्ण: शरणम मम मन्त्र को अपने जीवन का मूल आधार बनाना चाहिए।

 

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: heritagehistoricalindependence daynationfirstparyavaranpragatirashtrasampadkiyasanskritispeechswabhashaswadeshitirangatrendingvikasvirasat

गोपाल चतुर्वेदी

Next Post
कृष्ण: व्यक्ति एक रूप अनेक

कृष्ण: व्यक्ति एक रूप अनेक

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0