दुनिया का सबसे बड़ा युद्धाभ्यास ‘रिम्पैक’

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वैसे तो प्रशांत महासागर क्षेत्र में होने वाला रिम्पैक युद्धाभ्यास 1971 से हो रहा है लेकिन इस वर्ष उसका सामरिक महत्त्व बढ़ गया है।  26 देशों का यह संयुक्त नौसेना अभ्यास चीन के आक्रामक रुख के खिलाफ एक घेराव साबित होगा।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का बढ़ता दायरा

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भारत के समानव अंतरिक्ष-अभियान गगनयान की पहली परीक्षण उड़ान जल्द ही होने वाली है। शुरुआती उड़ान में अंतरिक्ष-यात्री नहीं होंगे, पर जब जाएंगे तब उनके साथ ‘व्योममित्र’ नामक एक रोबोट भी अंतरिक्ष जाएगा। यह रोबोट पूरे यान के मापदंडों पर निगरानी रखेगा। इसमें कोई नई बात नहीं है, केवल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बढ़ते दायरे की ओर इशारा है।

नई विश्व-व्यवस्था की खोज

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पेट्रोलियम की भूमिका समाप्त होगी, तो उससे जुड़ी शक्ति-श्रृंखलाएं भी कमजोर होंगी। उनका स्थान कोई और व्यवस्था लेगी। हम मोटे तौर पर पेट्रो डॉलर कहते हैं, वह ध्वस्त होगा तो उसका स्थान कौन लेगा? यह परिवर्तन नई वैश्विक-व्यवस्था को जन्म देगा। भारत का भी महाशक्ति के रूप में उदय होगा। संरा सुरक्षा परिषद की व्यवस्था में बदलाव का प्रस्ताव है। भारत, जर्मनी, जापान और ब्राजील का ग्रुप-4 सुरक्षा परिषद की स्थायी सीट का दावेदार है। अमेरिका और रूस दोनों भारत के दावे के समर्थक हैं, पर चीन उसे स्वीकार नहीं करता।

वैश्विक-संकट और भारत की बढ़ती भूमिका

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दुनिया के सामने एक तरफ महामारी का खतरा है, वहीं आर्थिक-प्रगति और शांति बनाए रखने की जिम्मेदारी भी है। कोरोना के अलावा दुनिया में शीतयुद्ध का संक्रमण भी हुआ है। खासतौर से अमेरिका की चीन और रूस के साथ रिश्तों में तल्खी बढ़ती जा रही है। यूरोप में यूक्रेन की सीमा पर युद्ध के हालात बने हुए हैं। हालांकि भारत ने सावधानी के साथ खुद को इस होड़ से अलग रखा है, पर हमें चीन और पाकिस्तान की साठगांठ का सामना करना पड़ेगा।

शानदार विजय स्मृतियां

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14 दिसम्बर को भारतीय सेना ने एक गुप्त संदेश पकड़ा कि दोपहर ग्यारह बजे ढाका के गवर्नमेंट हाउस में एक महत्त्वपूर्ण बैठक होने वाली है, जिसमें पाकिस्तानी प्रशासन के बड़े अधिकारी भाग लेने वाले हैं। भारतीय सेना ने तय किया कि इसी समय उस भवन पर बम गिराए जाएं। बैठक के दौरान ही मिग 21 विमानों ने भवन पर बम गिराए, जिससे मुख्य हॉल की छत ध्वस्त हो गई। गवर्नर अब्दुल मुतालेब मलिक ने कांपते हाथों से अपना इस्तीफ़ा लिखा।

ऑपरेशन ‘देवी शक्ति’

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यह नाम ‘ऑपरेशन देवी शक्ति’ इसलिए रखा गया क्योंकि जैसे ‘मां दुर्गा’ राक्षसों से बेगुनाहों की रक्षा करती हैं, उसी प्रकार इस मिशन का लक्ष्य बेकसूर नागरिकों को तालिबान के आतंकियों की हिंसा से रक्षा करना है। यह ऑपरेशन वायुसेना की भूमिका और तालिबानियों की निर्ममता पर एक साथ टिप्पणी है।

अफगानिस्तान की हलचल का भारत पर प्रभाव

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अफगानिस्तान में तालिबान का वर्चस्व स्थापित हो चुका है। राष्ट्रपति अशरफ गनी, उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह और उनके सहयोगी देश छोड़कर चले गए हैं।

नेतृत्व विहीन अफगानिस्तान

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तालिबानी की विजय की खबर आने के बाद मलाला युसुफज़ई ने ट्वीट किया, ‘अफगानिस्तान पर तालिबान का नियंत्रण होने से हम स्तब्ध हैं। मुझे स्त्रियों, अल्पसंख्यकों और मानवाधिकार-समर्थकों को लेकर चिंता है। वैश्विक, क्षेत्रीय और स्थानीय शक्तियों को चाहिए कि वे फौरन युद्धविराम कराएं, जरूरी मानवीय सहायता मुहैया कराएं और शरणार्थियों तथा नागरिकों की हिफाजत करें।’ मलाला युसुफज़ई कौन है?वही जिसे तहरीके तालिबान ने इसलिए गोली मारी थी, क्योंकि वह पढ़ना चाहती थी और लड़कियों की पढ़ाई की समर्थक थी।

सवालों से घिरा अफगानिस्तान और भारत की भूमिका

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अफगानिस्तान सरकार के पास तालिबानी लड़ाकों की तुलना में चार-पांच गुना ज्यादा सैनिक हैं और वायुसेना भी है। वह लड़ने पर उतारू हो, तो तालिबान के लिए आसान नहीं होगा। क्या देश अराजकता की ओर बढ़ रहा है? विशेषज्ञों का कहना है कि 1990 के दशक के मुकाबले आज का तालिबान कहीं ज़्यादा बंटा हुआ है। वह ज़मीनी स्तर पर कब्जे की कहानियां इसलिए फैला रहा है, ताकि दोहा-वार्ता में मोल-भाव की ताकत बढ़े। इसमें काफी बातें प्रचार का हिस्सा हैं, जिसका सूत्रधार पाकिस्तान है।

इज़राईल का ‘बेमेल-गठबंधन’ नेतन्याहू को हटाने में सफ़ल

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गठबंधन बनाने में सफलता प्राप्त करने वाले नेफ़्टाली बेनेट ने चुनाव-प्रचार के दौरान कहा था कि हम वामपंथियों, मध्यमार्गी पार्टियों और अरब पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करेंगे। अब उन्हीं दलों के साथ उन्होंने गठबंधन किया है। इसी को लेकर नेतन्याहू ने आरोप लगाया कि यह इलेक्शन फ्रॉड है।

जटिल समस्या फलस्तीन-इजराइल संघर्ष

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अमेरिका के पिछले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यरूशलम को इजराइल की राजधानी बनाने का खुला समर्थन किया था। उन्होंने यह भी कहा था कि हम अपने दूतावास को यरूशलम में स्थानांतरित करेंगे। हालांकि जो बाइडेन का वर्तमान प्रशासन उस हद तक इजराइल का समर्थक नहीं है, पर सं.रा. सुरक्षा परिषद में जरूरी हुआ, तो उसके हितों की रक्षा करेगा।

गृहयुद्ध की आग में झुलसता म्यांमार

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इन सारे सवालों से जुड़ा सवाल है कि भारत चुप क्यों है? इस समय भारत उतनी शिद्दत के साथ सैन्य शासन के विरुद्ध क्यों नहीं बोल रहा, जैसा 1988 में बोलता था? सवाल यह भी है कि उससे हमें मिला क्या? हमारे रिश्ते खराब हुए, जिनका लाभ चीन को मिला। म्यांमार में चीन की दिलचस्पी किसी से छिपी नहीं है।

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