संघ एवं मंदिरों का सेवा कार्य

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ये ऐसे लोग हैं जिन्हें मंदिरों में चढ़ावे तो दिखाई पड़ते हैं परन्तु सामाजिक और प्राकृतिक विपदाओं के समय जिस तरह से मंदिरों की ओर से आर्थिक और सामुदायिक सेवा की जाती है वह दिखाई नहीं देती। हमारे यहां मंदिरों को केवल धार्मिक स्थल के रूप में ही नहीं विकसित किया गया है बल्कि वहां नर और नारायण दोनों की सेवा की बातें की जाती हैं।

मंदिरों पर सरकारी एकाधिकार क्यों?

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आज अनेक हिन्दू संगठनों और अन्य धर्माचार्यों द्वारा सरकारी एकाधिकार से मंदिरों को मुक्त कराने का आन्दोलन आरंभ किया जा चुका है। जब हम मंदिरों के सम्पत्तियों से सम्बंधित कानून की बात करते हैं तो हमें यह पता चलता है कि यह काम जहां अंग्रेजों ने आरंभ किया था वहीं, देश के विभाजन के बाद यहां की लोकतांत्रिक सरकारों ने इस एकपक्षीय कानून को समाप्त करने की दिशा में कोई काम ही नहीं किया।

दक्षिण में उभरती भाजपा

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दक्षिण के तीन राज्यों- तमिलनाडु, केरल व पुदुचेरी  में विधान सभा चुनाव की गहमागहमी है। तमिलनाडु में भाजपा अन्नाद्रमुक के साथ चल रही है तो पुदुचेरी में उसे सफलता मिलने की उम्मीद है। केरल में पिछली बार उसने मात्र एक सीट जीती थी, लेकिन अब की बार मेट्रो मैन श्रीधरन के चुनाव मैदान में उतरने से सीटें बढ़ सकती हैं।

बेंगलुरु दंगे पीएफआई और एसडीपीआई की साजिश

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आतंकवादी छात्र संगठन सिमी पर प्रतिबंध के बाद पीएफआई का गठन किया गया। उसी की राजनीतिक शाखा है एसडीपीआई। पीएफआई वह संस्था है जो मुस्लिम संगठनों को आर्थिक मदद देती है। दिल्ली दंगों के मामले में पीएफआई द्वारा दंगाइयों को पैसा पहुंचाने के सबूत मिले हैं।

पद्मनाभस्वामी मंदिर फैसले के दूरगामी परिणाम

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केरल के श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर का स्वामित्व पूर्ववर्ती शाही परिवार को सौंपने के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के दूरगामी परिणाम होंगे। इससे विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा हिन्दू मंदिरों और उनके मठों पर नियंत्रण को जो साजिश हो रही थी, उस पर अंकुश लगेगा।

दक्षिण में जड़ें जमाने की भाजपा की कोशिश

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दक्षिणी राज्यों में कांग्रेस क्षेत्रीय दलों की पिछलग्गू बनकर अपनी दशा सुधारने की कोशिश कर रही है, वहीं भाजपा खाता खुलवा कर भविष्य की राजनीतिक रणनीति का नक्शा तैयार करने में लगी है। कर्नाटक में भाजपा हावी है ही, अन्य राज्यों में भी जड़ें जमाई जा रही हैं।

अवसरवाद में फंसा कर्नाटक

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कर्नाटक में सत्ता पाने के लिए कांग्रेस और देवेगौडा ने अवसरवाद का खेल खेला है। इसी कारण सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद भाजपा को सत्ता से हट जाना पड़ा। जिस कांग्रेस ने कभी देवेगौड़ा को धोखा दिया था, उसीके साथ मिलकर वे अब सत्ता का चस्का लेने पर उतारू है।

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