हिंदी की अलख जगाती महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी

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भारत गांवों का देश है। यहां के 5 लाख 50 हजार गांव ही भारत की वास्तविक पहचान हैं। इन गांवों में भारत की 60% जनता निवास करती है। गांव ही भारत की ऊर्जा और उसकी शक्ति हैं। अत: भारत की शासन-प्रशासन को सर्वस्पर्शी बनाने के लिए जब भारत के संविधान का निर्माण हुआ तो उसमें भारत के शासन को चलाने के लिए हिन्दी को राजभाषा घोषित किया गया,

श्री अथर्वशीर्ष के श्री गणेश

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गागर में सागर की उक्ति को सागर करता हुआ अथर्वशीर्ष भारतीय दार्शनिक चिंतन का अनुपम उदाहरण है। धर्म, कर्मकांड, एवं उपासना का सारमूल संक्षिप्त संस्कारण अथर्वशीर्ष योग, अध्यात्म एवं ज्ञान विज्ञान के रहस्यों से भरा है। दस श्लोकों का अथर्वशीर्ष श्री गणेश आराधना का स्तोत्र है।

खालसा प्रणेता श्री गुरु गोबिंद सिंह

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जो भगीरथ कार्य श्रीगुरुगोबिंद सिंहजी ने अपने जीवन काल में किए उसकी आवश्यकता आज भी समाज को बहुत भारी मात्रा में है। जो सामाजिक समरसता का संदेश उन्होंने दिया उस पर चल कर पूरे समाज को समरस करने का प्रयास आज भी किया जाना चाहिए। अन्याय एवं अधर्म के खिलाफ लड़ने के लिए खालसा (संत सिपाही) का सिद्धांत भी उनकी ही देने है।

राष्ट्र सेविका समिति भविष्यकालीन परिद़ृश्य

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नए पुरानों में समन्वय निर्माण करते हुए, समिति कार्य में औपचारिकता या संस्थागत या उद्योग-गत भाव निर्माण होने से बचते हुए समिति कार्य विस्तार करने का हम सब का संकल्प है- सत्य संकल्प का दाता तो भगवान है- हमारा भगवान सब कुछ भारत माता ही है- वह आशीष देगी। देती रहेगी।

राष्ट्रसेविका समिति के 80 वर्ष पूर्ण

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एक सर्वांगीण उन्नत, अजेय, सर्वश्रेष्ठ समाज और राष्ट्र हम निर्माण करना चाहते हैं। और परम वैभव की हमारी इस आकांक्षा में विश्वहित की कल्पना समाहित है। तेजस्वी राष्ट्र के निर्माण का दिव्य लक्ष्य लिए आज राष्ट्र सेविका समिति की सेविकाएं समाज के विभिन्न क्षेत्रों में कार्य कर रही हैं। यह राष्ट्रकार्य अब 80 वर्ष का हो चुका है।

यूरोप के समक्ष अधार्मिक संकट

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युद्धपीड़ित मुस्लिम शरणार्थियों को मानवीयता के आधार पर आने देने के प्रति यूरोप के देशों में सरकारों, राजनीतिक दलों एवं जनसाधारण का विरोध लगातार बढ़ रहा है। इस तरह मानवता धर्म से परे होने की अधार्मिक आपत्ति यूरोप के सामने है। इसके लिए मुस्लिम समाज स्वयं ही जिम्मेदार है। मानवता का स्वांग भरने वाले मुस्लिम समाज को, काफिरों से नफरत कर धार्मिक वर्चस्व प्रस्थापित करने के लिए किसी भी हद तक जाने की मध्ययुगीन मानसिकता जो मिली है वही उनके पतन के लिए जिम्मेदार है।

सीना तान कर जीने का संदेश…..

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मैं धरती पर विकंलाग के रूप में पैदा हुआ, परंतु मैं असमर्थ नहीं हूं। मैं आगे बढ़ सकता हूं। मुझे सहयोग चाहिए, दया की भीख नहीं। मुझे मार्गदर्शन चाहिए, अवरोध नहीं। मैं हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा दिखा सकता हूं; पर उसके लिए परिवेश चाहिए, निराशा नहीं।” किसी विकलांग के ये विश्वास से भरे बोल सत्य ही हैं। हाल ही में विकलांग लोगों के सम्बंध में ऐसी घटना घटी है जिस पर सदृढ़ लोग भी मन में गर्व अनुभव करेंगे।

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