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सभ्यता खान-पान, रहन-सहन जैसी भौतिक चीजों से सम्बंधित है वहीं संस्कृति वस्तुतः जीवन के प्रति दृष्टिकोण है। इस तरह यह धर्म के ज्यादा निकट है। जिस तरह पृथ्वी के अन्दर का तारल्य और हलचल धरती के ऊपर की वनस्पतियों में अभिव्यक्त होती है, उसी तरह मानव के भीतर के आवेग-संवेग उसके व्यवहार में छलकते हैं और यही मनोभाव संस्कृति के उपादान बनते हैं।