समाज की शक्ति और महत्व

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एक आदमी था,जो हमेशा अपने समाज में सक्रिय रहता था। उसको सभी जानते थे,बड़ा मान सम्मान मिलता था।अचानक किसी कारणवश वह निश्क्रिय रहने लगा,मिलना-जुलना बंद कर दिया और समाज से दूर हो गया। कुछ सप्ताह पश्चात् एक बहुत ही ठंडी रात में उस समाज के मुखिया ने उससे मिलने का…

सभ्य समाज का निर्माण ऐसे करेंगे

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जिस समाज में लोग एक दूसरे के दु:ख-दर्द में सम्मिलित रहते हैं, सुख संपत्ति को बाँटकर रखते हैं और परस्पर स्नेह, सौजन्य का परिचय देते, स्वयं कष्ट सहकर दूसरों को सुखी बनाने का प्रयत्न करते हैं, उसे "देव समाज" कहते हैं । जब जहाँ जनसमूह इस प्रकार पारस्परिक संबंध बनाए…

एकल परिवार और संस्कारों से दूर होते बच्चे

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हर कुछ दिनों बाद हिन्दु नवयुवती की खबर आती है, आत्महत्या या हत्या?? तथा ज्यादातर इसमें मुस्लिम युवक और हिन्दु लडकियों के प्रेम संबंध के मामले सामने आऐ है।मेरे ख्याल से ऐसी घटनाओं का एक महत्वपूर्ण कारण है "एकल "परिवार का चलन दूसरा माता-पिता अपने कामकाज में व्यस्तता तथा बच्चों…

हिंदू आस्था का अपमान आखिर कब तक !

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अयोध्या विवाद के समाधान के बाद अब काशी में ज्ञानवापी और मथुरा में शाही ईदगाह विवाद भी निर्णायक दौर में पहुंच रहे हैं । ज्ञातव्य है कि श्री राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ के समय से ही उत्तर प्रदेश में हिन्दू आस्था के तीन प्रमुख केन्द्रों को हिन्दुओं को सौंपे जाने…

पंचायती राज की सफलता तो हमारे व्यवहार पर निर्भर है

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24 अप्रैल को पंचायत दिवस आया गया जैसा हो गया। अगर नरेंद्र मोदी सरकार इस दिवस पर पंचायतों के लिए पुरस्कारों की घोषणा न करें तो किसी को याद भी नहीं होगा कि पंचायत दिवस कब आता है। जब पी वी नरसिंह राव सरकार ने 24 फरवरी, 1992 को संविधान…

सोने की चिड़िया

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पाट पर बैठे राधेश्यामजी यह सब सुनकर हैरान रह गए। हर्षविभोर उनकी आंखों में स्नेह एवं आनंद के आंसू छलक आए। मन थमा तो सोचने लगे-यह देश सोने की चिड़िया इसलिए नहीं था कि यहां सोने के पहाड़ थे। यह देश सोने की चिड़िया इसलिए था कि यहां स्वर्ण-संस्कार थे। इस देश का मन भटक सकता है, आत्मा नहीं।

“फूटा घड़ा” भी “अच्छे घड़े” से मूल्यवान

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जब भी कोई नकारात्मकता अनुभव होती है इस कहानी को अवश्य पढ़ लेता हूँ । यह कहानी एक फूटे हुए घड़े की है जो किसान को अपना दुःख सुना रहा है। एक समय की बात है, जब किसी गाँव में एक किसान रहता था। वह किसान प्रतिदिन प्रातःकाल उठकर दूर…

एक अध्यापक का सेवा समर्पण

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भिवंडी से 30‡40 किलोमीटर दूर है मोहंडूल नामक गांव। वहां के आदिवासी पाडा (बस्ती) से सन 2000 में मेरा सम्बंध आया। इस सम्बंध का जरिया था मेरा एक अध्यापक मित्र। उसका नाम है शरद ठाणगे। मुंबई के मालाड की एक स्कूल में शरद और मैं साथ‡साथ काम करते थे।

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