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उपभोक्ता कानून के तहत न्याय व्यवस्था

उपभोक्ता कानून के तहत न्याय व्यवस्था

by सरोज त्रिपाठी
in मार्च २०१2, सामाजिक
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उपभोक्ताओं को शीघ्र और सस्ते में न्याय दिलाने के लिए उपभोक्ता संरक्षण कानून 1986 के तहत तीन स्तर पर न्यायिक मशीनरी यानी उपभोक्ता अदालतें स्थापित की गई हैं। राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग यानी राष्ट्रीय आयोग, राज्य स्तर पर राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग यानी राज्य आयोग तथा जिला स्तर पर जिला विवाद निवारण फोरम यानी जिला फोरम हैं।

प्रत्येक जिले में संबंधित राज्य सरकार ने जिला उपभोक्ता निवारण फोरम की स्थापना की है। यदि राज्य सरकार चाहे तो एक जिले में एक से अधिक जिला फोरम स्थापित कर सकती है। प्रत्येक राज्य में राज्य सरकार ने राज्य आयोग के रूप में ज्ञात एक राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग की स्थापना की है। केंद्र सरकार ने एक राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत की स्थापना की है। प्रत्येक जिला उपभोक्ता अदालत की पीठ में एक अध्यक्ष तथा दो अन्य सदस्य होंगे। पीठ का अध्यक्ष एक ऐसा व्यक्ति होगा जो वर्तमान या पूर्व जिला न्यायाधीश हैं या उसके पास जिला न्यायाधीश होने की योग्यता है। पीठ के दो अन्य सदस्य योग्य, सत्यनिष्ठ और प्रतिष्ठित व्यक्ति होंगे। इनको अर्थशास्त्र, कानून, वाणिज्य, एकाउंटेंसी, उद्योग, लोक कार्य या प्रशासन का पर्याप्त ज्ञान और अनुभव होगा या उससे संबंधित कार्य करने की योग्यता होगी। इन दो सदस्यों में एक महिला होगी।

माल या सेवा की कीमत या मुआवजे की राशि 20 लाख रुपये तक होने पर शिकायत जिला उपभोक्ता अदालत में दायर की जा सकती है। शिकायत ऐसे उपभोक्ता अदालत में दायर की जाएगी जिसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर विरोधी पक्षकार शिकायत दायर किए जाने के समय वास्तव में स्वेच्छा से निवास करता है या कारोबार करता है या शाखा कार्यालय है या लाभ के लिए स्वयं कार्य करता है अथवा वाद हेतुक (कॉज ऑफ ऐक्शन) पूर्णत: या अंशत: पैदा होता है। जहां माल या सेवा का मूल्य और मुआवजे की राशि 20 लाख से अधिक किंतु एक करोड़ से अधिक नहीं है, शिकायत राज्य आयोग में की जा सकती है। जहां माल या सेवा का मूल्य और मुआवजे की राशि एक करोड़ से अधिक है वहां शिकायत राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत में की जा सकती है।

राज्य उपभोक्ता अदालत की पीठ में एक अध्यक्ष तथा दो अन्य सदस्य होंगे। एक ऐसा व्यक्ति जो किसी उच्च न्यायालय का न्यायाधीश है या रहा है, जिसे राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा वह राज्य उपभोक्ता अदालत का अध्यक्ष होगा। पीठ के दो अन्य सदस्य योग्यता, सत्यनिष्ठा और प्रतिष्ठा वाले व्यक्ति होंगे। इनको अर्थशास्त्र, विधि, वाणिज्य, उद्योग, लोक कार्य या प्रशासन या पर्याप्त ज्ञान या अनुभव होगा या उससे संबंधित समस्याओं के संबंध में कार्यवाही की योग्यता होगी। जिनमें से एक महिला होगी।

राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत की पीठ में एक अध्यक्ष तथा चार अन्य सदस्य होंगे। एक ऐसा व्यक्ति जे उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश है या रहा है, जिसे केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जायेगा वह राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत का अध्यक्ष होगा। चार अन्य सदस्य योग्यता, सत्यनिष्ठा और प्रतिष्ठा वाले व्यक्ति होंगे। उन्हें अर्थशास्त्र, विधि, वाणिज्य, लोक कार्य, उद्योग या प्रशासन का समुचित ज्ञान या अनुभव होगा या जिन्होंने उससे संबंधित समस्याओं के संबंध में कार्य करने की योग्यता दर्शित की होगी। इन चार सदस्यों में एक महिला सदस्य होगी।

उपभोक्ता अदालत में ग्राहक खुद या अपने प्राधिकार प्राप्त प्रतिनिधि या वकील द्वारा शिकायत दर्ज करवा सकता है। शिकायत दायर करने के लिए उपभोक्ता संरक्षण नियमावली, 1987 के नियम 9 के द्वारा निर्धारित शुल्क अदा करना होता है।

वाद हेतुक उत्पन्न होने की तारीख से दो वर्ष की अवधि के भीतर उपभोक्ता अदालत में शिकायत करनी चाहिए। यदि शिकायत दायर करने में दो साल से ज्यादा समय लगता है तो शिकायतकर्ता को उपभोक्ता अदालत को संतुष्ट करना पड़ेगा कि दो वर्ष की समयावधि के भीतर शिकायत प्रस्तुत न करने का समुचित कारण था। उपभोक्ता अदालत शिकायतकर्ता की दलील से संतुष्ट होने पर विलंब का कारण दर्ज कर इस विलंब को क्षमा कर शिकायत पर विचार कर सकती है। जिला फोरम के फैसले के खिलाफ राज्य आयोग में और राज्य आयोग के फैसले के खिलाफ राष्ट्रीय आयोग में अपील की जा सकती है। राष्ट्रीय आयोग के फैसले से असंतुष्ट व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट में दस्तक दे सकता है। अपील निर्णय के 30 दिन की अवधि के भीतर की जानी चाहिए। आयोग की संतुष्टि पर इसे अवधि को बढ़ाया जा सकता है। उपभोक्ता अदालतों को अंतरिम आदेश पारित करने का अधिकार है। यदि संबंधित पक्ष अंतरिम आदेश का पालन नहीं करता है तो उपभोक्ता अदालत उसकी संपत्ति कुर्क करने और उसे बेच देने का निर्देश दे सकती है।

जिला फोरम, राज्य आयोग तथा राष्ट्रीय आयोग द्वारा दिए गए आदेशों के विरुद्ध यदि अपील नहीं की जाती है तो इन्हें अंतिम निर्णय माना जाएगा। उनका पालन न करने की दशा में दीवानी और फौजदारी कार्यवाही के माध्यम से पालन कार्रवाई की जा सकती है। आदेेशों के तहत वसूली को बकाया भू-राजस्व की वसूली की प्रक्रिया अपना कर वसूल किया जायेगा। उपभोक्ता संरक्षण कानून सामान्य व्यक्ति को सहायता पहुंचाने के लिए बनाया गया है। इस कानून के उपबंध उपभोक्ता को एक अतिरिक्त उपचार प्रदान करते हैं। यह उपचार उपस्थित अन्य कानून में भी मिल सकता है। उदाहरण के लिए को आपरेटिव सोसायटी से संबंधित विवाद उपभोक्ता संरक्षण कानून में भी दर्ज करवाई जा सकती है। उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत शिकायत करने के कई फायदे हैं। शुरू में लगभग दो दशक तक उपभोक्ता अदालत में शिकायत करने के लिए कोई शुल्क नहीं था। अब एक मामूली शुल्क जमा कर शिकायत दर्ज करवाई जा सकती है। मुकदमे की पैरवी के लिए वकील रखना जरूरी नहीं है। शिकायतकर्ता खुद अपने मामले की पैरवी कर सकता है। शिकायत से संबंधित प्रक्रिया को तकनीकी पहलुओं से दूर रखा गया है। मामले का निपटारा सिविल अदालतों की अपेक्षा जल्दी हो जाता है। सामान की गुणवत्ता में दोष सेवा में कमी या अनुचित व्यापार व्यवहार की शिकायत उपभोक्ता अदालत में की जा सकती है। उपभोक्ता की आवश्यकता है कि वह अपने अधिकारों को समझे साथ ही साथ उसको हुई तकलीफ के लिए क्षतिपूर्ति प्राप्त कर सके जिससे कि उसका शोषण सामान और सेवा बेचने वाले न कर सकें।

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Tags: consumer lawsconsumer rightshindi vivekhindi vivek magazinejudgejudicial systemlawyersupreme court

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