स्वाधीनता संघर्ष ..कांग्रेस और वास्तविक इतिहास…!

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कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के इस बयान ने देश में बहस छेड़ दी है कि भारत को आजादी दिलाने में सिर्फ कांग्रेस का ही योगदान रहा। साथ में उन्होंने यह भी कह दिया कि भाजपा संघ अथवा किसी और का एक कुत्ता भी मरा हो तो उसका नाम बता दें।…

भारत के स्वाधीनता संग्राम में धौलाना के अमर बलिदान

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भारत के स्वाधीनता संग्राम में मेरठ की 10 मई, 1857 की घटना का बड़ा महत्व है। इस दिन गाय और सूअर की चर्बी लगे कारतूसों को मुंह से खोलने से मना करने वाले भारतीय सैनिकों को हथकड़ी-बेड़ियों में कसकर जेल में बंद कर दिया गया। जहां-जहां यह समाचार पहुंचा, वहां…

क्रांतिकारियों के सिरमौर वीर सावरकर

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विनायक दामोदर सावरकर का जन्म ग्राम भगूर (जिला नासिक, महाराष्ट्र) में 28 मई, 1883 को हुआ था। छात्र जीवन में इन पर लोकमान्य तिलक के समाचार पत्र ‘केसरी’ का बहुत प्रभाव पड़ा। इन्होंने भी अपने जीवन का लक्ष्य देश की स्वतन्त्रता को बना लिया। 1905 में उन्होंने विदेशी वस्तुओं के…

भारतीय क्रांति के महानायक – वीर सावरकर

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“मुझे प्रसन्नता है कि मुझे दो जन्मों के कालापानी की सजा देकर अंग्रेज़ सरकार ने हिंदुत्व के पुनर्जन्म सिद्धांत को मान लिया है’ ऐसी भावपूर्ण उद्घोषणा करने वाले, भारतीय स्वाधीनता संग्राम के महानायक विनायक दामोदर सावरकर का जन्म महाराष्ट्र के नासिक जिले के भगूर ग्राम में 28 मई 1883 को…

प्रताप सिंह बारहठ का बलिदान

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एक पुलिस अधिकारी और कुछ सिपाही उत्तर प्रदेश की बरेली जेल में हथकडि़यों और बेडि़यों से जकड़े एक तेजस्वी युवक को समझा रहे थे, ‘‘कुँअर साहब, हमने आपको बहुत समय दे दिया है। अच्छा है कि अब आप अपने क्रान्तिकारी साथियों के नाम हमें बता दें। इससे सरकार आपको न…

पेशावर कांड के नायक चन्द्रसिंह गढ़वाली

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चन्द्रसिंह का जन्म ग्राम रौणसेरा, (जिला पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड) में 25 दिसम्बर, 1891 को हुआ था। वह बचपन से ही बहुत हृष्ट-पुष्ट था। ऐसे लोगों को वहाँ ‘भड़’ कहा जाता है। 14 वर्ष की अवस्था में उनका विवाह हो गया।  उन दिनों प्रथम विश्वयुद्ध प्रारम्भ हो जाने के कारण सेना…

‘सेनापति’ गणपतराय का बलिदान

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गणपतराय पांडेय का जन्म 17 जनवरी, 1808 को ग्राम भौरो (जिला लोहरदगा, झारखंड) में एक सम्पन्न परिवार में हुआ था। इनके पिता श्री किसनराय तथा माता श्रीमती सुमित्रादेवी थीं। बचपन से ही वनों में घूमना, घुड़सवारी, आखेट आदि उनकी रुचि के विषय थे। इस कारण उनके मित्र उन्हें ‘सेनापति’ कहते…

कैसा था भगत सिंह के सपनों का भारत

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23 मार्च 1931 को भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव थापर ने देश की आजादी के लिए फांसी के फंदे को स्वीकार कर लिया था और शायद मन में सपना लिए उस पर झूल गए कि आने वाला भारत आजाद होगा और वहां सभी सुख, चैन व भाई चारे से…

आजादी के मतवाले अमर शहीद हेमू कालाणी

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अमर शहीद हेमू कालाणी में राष्ट्रवाद की भावना का संचार बचपन में ही हो गया था, इतिहास गवाह है कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में वीर सेनानियों ने, मां भारती को अंग्रेजों के शासन से मुक्ति दिलाने के उद्देश्य से,  देश के कोने कोने से भाग लिया था। इन वीर…

दिव्यांग क्रन्तिकारी चारू चन्द्र बोस

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बंगाल के क्रांतिकारियों की निगाह में अलीपुर का सरकारी वकील आशुतोष विश्वास बहुत समय से खटक रहा था। देशभक्तों को पकड़वाने, उन पर झूठे मुकदमे लादने तथा फिर उन्हें कड़ी सजा दिलवाने में वह अपनी कानूनी बुद्धि का पूरा उपयोग कर रहा था। ब्रिटिश शासन के लिए वह एक पुष्प…

लाला लाजपत राय की आजादी में भूमिका

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देश आज 28 जनवरी 2022 को लाला लाजपत राय की 157वीं जयंती मना रहा है। देश की आजादी के लिए उनका बलिदान आज भी देश के लाखों लोगों को प्रेरित करता है और उनकी प्रेरणा की वजह से ही हम आज करीब 150 साल बाद भी उन्हें याद करते हैं।…

रानी गाईदिन्ल्यू: स्वतंत्रता संग्राम में पूर्वोत्तर की प्रतिनिधि यौद्धा 

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पूर्वोत्तर के जनजातीय क्षेत्रों में एक लोकोक्ति बड़ी ही प्रचलित है -  “सोत पो, तेरह नाती ; तेहे करीबा कूँहिंयार खेती।” अर्थात स्त्री यथेष्ट संख्या में जब बच्चों को जन्म देगी तब ही समाज में खेती सफल होगी। पूर्वोत्तर के हाड़तोड़ श्रम करने वाले समाज में यह कहावत परिस्थितिवश ही जन्मी…

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