संसद में ‘माननीय’ कहने योग्य बचे हैं नेता?

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भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहां हर व्यक्ति अपनी पसंद से अपना प्रतिनिधि चुनता है और वह प्रतिनिधि अपने क्षेत्र की समस्या को लेकर संसद में सरकार के साथ या फिर विरोध में रहता है। संसद की कार्यप्रणाली के अनुसार सरकार और विपक्ष एक साथ आकर देश के विकास को लेकर…

फिर से हाईजैक न हो जाए आज़ादी

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पटना से लौट रहा हूँ. यूँ तो मैं हमेशा अपने छोटे चाचा (छोटका बाबूजी) से डरता और छुपता आया हूँ पर इस बार पहली बार हिम्मत करके उनके साथ बैठ कर उनसे बहुत सी बातें की। मैं संघ के कार्यक्रम में आया था यह जानकर उन्होंने कहा - हमारे घर…

भारतबोध का अभ्युदय और वामपंथ का उखड़ता कुनबा

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सूचना क्रांति ने भारत के करोड़ों नागरिकों के मन मस्तिष्क से उन जालों को हटाने का काम किया है जिसे वामपंथियों ने नकली बौद्धिक गिरोहबंदी से खड़ा कर दिया था। ध्यान से देखा जाए तो भारत अब भारतबोध के साथ जीना सीख रहा है। पश्चिमी मीडिया के लिए भारत के हिन्दू तत्व औऱ दर्शन सदैव उसी अनुपात में हिकारत भरे रहे हैं जैसे कि भारत के वाम बुद्धिजीवियों का बड़ा वर्ग प्रस्तुत करता आया हैं।

आरोप – प्रत्यारोप की राजनीति

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कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने दिल्ली दंगों को लेकर गृह मंत्री अमित शाह के काम-काज पर सवाल उठाया और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिलकर उनका इस्तीफा मांगा था।

काट और शह का खेल

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ग्ाुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी इस समय राष्ट्रीय राजनीति का केंद्र हो गए लगता है। इसमें गलत कुछ नहीं है। जिसमें राष्ट्रहित की संभावना भरसक दिखाई दे रही हो वह हमेशा चर्चा का केंद्र अवश्य बनेगा। लेकिन, यह चर्चा सकारात्मक हो, वैचारिक हो, विधायक हो तो किसी को कोई आपत्ति नहीं हो सकती।

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