पटना से लौट रहा हूँ. यूँ तो मैं हमेशा अपने छोटे चाचा (छोटका बाबूजी) से डरता और छुपता आया हूँ पर इस बार पहली बार हिम्मत करके उनके साथ बैठ कर उनसे बहुत सी बातें की। मैं संघ के कार्यक्रम में आया था यह जानकर उन्होंने कहा – हमारे घर में तीन बार रेवोल्यूशन हुए हैं। पहले हम किसान थे, हमें खेत खलिहान छोड़कर किसी बात से मतलब नहीं था। पहला रेवोल्यूशन तब हुआ जब आज़ादी की लड़ाई में हमारे बाबा (दादाजी) शामिल हो गए. पाँच में से चार भाई जेल चले गए। छोटे बाबा जेल तोड़कर भागने वाले आंदोलनकारियों में से एक थे। फिर वे पकड़े गए और उन्हें डंडा-बेड़ी पड़ी।
दूसरा रेवोल्यूशन तब हुआ जब बड़का बाबूजी (मेरे पिताजी) की शादी एक कम्युनिस्ट परिवार में हो गई। मेरे नानाजी कम्युनिस्ट पार्टी के बड़े नामों में एक थे। उनके प्रभाव में अगली पीढ़ी कम्युनिस्ट हो गई। खुद छोटका बाबूजी कम्युनिस्ट पार्टी के एक्टिव सदस्य रहे और एक समय पार्टी के बड़े से बड़े नेता हमारे घर पर रुकते थे। यह उनके कम्युनिज्म से मोहभंग होने तक चला। और उन्होंने मेरी ओर इशारा कर के कहा – और यह मैं तीसरा रेवोल्यूशन देख रहा हूँ जब तुम लोग संघ से जुड़ रहे हो।
उनकी दृष्टि में उद्देश्यों की दृष्टि से मेरे दादाजी के संघर्ष में, नानाजी की कम्युनिस्ट प्रतिबद्धता में और मेरे प्रयासों में कोई अंतर नहीं था। हमारे परिवार में कोई भी निजी हितों के लिए राजनीति से नहीं जुड़ा। छोटे बाबा को 1952 के पहले चुनावों में कांग्रेस के टिकट पर खड़े होने का आग्रह किया गया, तो उन्होंने हाथ जोड़ लिए। उन्होंने कहा – अपने हिस्से का काम हमने कर दिया…आगे जो आपलोग करने जा रहे हो वह हमसे नहीं होगा। उन्होंने आजादी की सच्चाई देख ली थी।
आजादी की सच्चाई देखने वाले वे अकेले नहीं थे. 1946 के लगभग मेरे गाँव में काँग्रेस का अधिवेशन हो रहा था। बेहिसाब भीड़ थी. आचार्य कृपलानी जी मंच पर थे। उन्होंने इस भीड़ को देखकर कहा – आजादी आ रही है…. पर आप लोग किसलिए आ रहे हो? आज़ादी जो आएगी…वह इस खाजा टोपी (जो बाद में गाँधी टोपी कहलाई) में अटक कर रह जायेगी। कंगना ने आजादी के बारे में जो कहा, वह आजादी की लड़ाई से जुड़ा हर धर्मनिष्ठ व्यक्ति जानता था। काँग्रेस के एक खानदान और उनके चमचों ने आजादी को हाईजैक कर लिया था। 2014 में हमें एक नई आज़ादी मिली है. बस ध्यान रखना है यह इस बार फिर से हाईजैक न हो जाये।