हमारे ऋषियों ने वेदों को कैसे सुरक्षित रखा ?

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जाने वेदों में रत्ती भर भी मिलावट क्यों नहीं हो सकी ? जब कोई सनातनी ये बताने की कोशिश करता हैं की हमारे ज्यादातर ग्रंथों में मिलावट की गई है तो वो वेदों पर भी ऊँगली उठाते हैं की अगर सभी में मिलावट की गई है तो वेदों में भी…

विश्व को प्रेम व भक्ति का संदेश देने वाले महान संत- गुरूनानक 

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सिख समाज के महान संत व गुरू गुरूनानक का जन्म कार्तिक शुक्ल  पूर्णिमा के दिन 1469 ई में रावी नदी के किनारे स्थित रायभुएकी तलवंडी में हुआ था जो अब ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है। अब यह स्थान पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित है। गुरु नानकदेव…

उत्तर प्रदेश की सन्त परम्परा

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उत्तर प्रदेश की सन्त परम्परा भगीरथी परम्परा है । वाल्मीकि, भारद्वाज, याज्ञवल्क्य, अत्रि, वशिष्ठ, विश्वामित्र जैसे ऋषि‡मुनियों के ज्ञान से पोषित परम्परा ने ‘भक्ति काल’ में जिस उत्कर्ष को छुआ, उसमें तत्कालीन परिस्थितियों, विषम राजनैतिक वातावरण के बीच जन-सामान्य की निराशा और

तुलसी की सामाजिक समरसता

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तुलसीदास जिस समय अपने विश्वप्रसिद्ध प्रबंध ‘रामचरित मानस’ की रचना कर रहे थे, देश में मुस्लिम शासकों का साम्राज्य स्थापित हो चुका था। मुसलमान परम्पराये, रहन-सहन और संस्कृति भारतीय हिन्दू पराम्पराओं और सनातन संस्कृति से मेल नहीं खाती थीं।

संतों के सामाजिक सरोकार

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बाबा रामदेव के अनशन से जिनके स्वार्थों फर आंच आ रही थी, ऐसे अनेक नेताओं ने यह टिपफणी की, कि बाबा यदि संत हैं, तो उन्हें अर्फेाा समय ध्यान, भजन और फूजा में लगाना चाहिए। यदि वे योग और आयुर्वेद के आचार्य हैं, तो स्वयं को योग सिखाने और लोगों के इलाज तक सीमित रखें। उन्हें सामाजिक सरोकारों से कोई मतलब नहीं है।

उत्तरी भारत की संत-परंपरा

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शरीरी तौर पर मनुष्य और सृष्टि के अन्य जीवों में भेद नहीं है। लेकिन मनुष्य की चेतना में शेष प्रति जिज्ञासा भाव उसमें गुणात्मक अंतर उत्पन्न कर उसमें पृथ्वी के अन्य जीवों की तुलना में उर्ध्व स्थान पर प्रतिष्ठित कर देता है। आदि मानव से आधुनिक मनुष्य तक की विकास यात्रा का यही निष्कर्ष है कि अन्य जीवों की भांति मनुष्य नामक प्राणी की दिनचर्या जन्म से मृत्यु के बीच केवल खाने-सोने तक सीमित नहीं रही।

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