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देश को नई ताकत देता मिशन शक्ति

देश को नई ताकत देता मिशन शक्ति

by अभिषेक कुमार सिंह
in देश-विदेश, राजनीति, विशेष, सामाजिक
4

\आने वाले समय में जरूरी नहीं कि कोई जंग धरती पर लड़ी जाए, बल्कि उसका मैदान स्पेस (अंतरिक्ष) भी हो सकता है। इस लिहाज से भारत को अंतरिक्ष में भी सैन्य या युद्धक क्षमता से लैस होना होगा, जिसकी एक ठोस शुरुआत मिशन शक्ति से हो गई है। आने वाले वक्त में अंतरिक्ष में चुनौतियां कितनी बढ़ने वाली हैं, इसका एक उदाहरण 27 मार्च 2019 को तब मिला जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पेस में एक सैटेलाइट को मार गिराने वाले वाकये की बाकायदा घोषणा की। उन्होंने जानकारी दी कि मिशन शक्ति के एक बेहद कठिन ऑपरेशन के तहत भारत ने अंतरिक्ष में 300 किलोमीटर दूर पृथ्वी की निचली कक्षा (लो-अर्थ ऑरबिट) में एक लाइव सैटेलाइट को स्वदेशी ए-सैट मिसाइल के जरिए मार गिराया। यह उपलब्धि इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे भारत दुनिया के उन देशों (अमेरिका, रूस और चीन) के साथ खड़ा हो गया है जिनके पास पहले से यह क्षमता है। पर इससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि मिशन शक्ति से भारत ने उस अंतरिक्ष तकनीक में अपनी महारत साबित की है जिसका आने वाले वक्त में इस्तेमाल बढ़ते जाना है और जिससे जुड़ी चुनौतियां महाशक्तियों के सामने होंगी। जैसे दुश्मन देश के युद्धक (सैन्य) सैटेलाइट या जासूसी सैटेलाइट को मार गिराना या उन्हें ठप्प कर देना।

यूं अंतरिक्ष में जंग छिड़ने और शत्रु देशों से सैन्य सैटेलाइटों व हथियारों से मुकाबले का विचार नया नहीं है। दावा किया जाता है कि अमेरिका और रूस में वर्ष 1950 में ही एंटी-सैटेलाइट हथियार बनने शुरू हो गए थे। रूस ने 1960 में इस्त्रेबितेल स्पूतनिक (फाइटर सैटेलाइट) विकसित किया था, जिसे दूसरे उपग्रहों के करीब उड़ने और हथियार इस्तेमाल करके तबाह करने के लिए डिजाइन किया गया था। रूस ने आधिकारिक तौर पर तो वह कार्यक्रम बंद कर दिया था,लेकिन माना जा रहा गया कि चीन और अमेरिका चोरी-छिपे लंबे समय तक ऐसे एंटी-सैटेलाइट वेपंस (हथियार) तैयार करते रहे हैं।

इनसे उन उपग्रहों को उड़ाया जाता है, जिनके धरती पर गिरने की संभावना होती है। आगे चलकर इसके कुछ उदाहरण भी मिले। जैसे वर्ष 2008 में अमेरिका ने अंतरिक्ष से बेकाबू होकर गिर रहे अपने एक जासूसी उपग्रह को एक इंटरसेप्टर मिसाइल से मार गिराया था। कहा गया कि यह कारनामा धरती और इस पर रहे इंसानों की सुरक्षा के लिए जरूरी था। यदि ऐसा नहीं किया जाता, तो खतरा यह था कि वह उपग्रह धरती पर आ गिरता। इससे उसमें मौजूद खतरनाक किस्म का ईंधन- हाइड्राजीन इंसानों और अन्य जीवों को नुकसान पहुंचा सकता था। यह ईंधन फेफड़े, त्वचा और बालों को नुकसान पहुंचा सकता था। मानव आबादी पर उपग्रह के आ गिरने की आशंका को टालने के लिए दो उपाय थे। पहला, उसे स्पेस में ही नष्ट किया जाए और दूसरा, उसे नियंत्रित करते हुए किसी सुरक्षित जगह पर उतारा जाए। पर सुरक्षित वापसी संभव नहीं हो पाने के कारण पहले वाला विकल्प आजमाया गया।

कुछ ऐसा ही कारनामा आगे चलकर चीन ने भी किया। असल में वर्ष 2007 में चीन ने भी अपने एक पुराने निष्क्रिय हो चुके सैटेलाइट को एक मिसाइल से गिराया था। इस घटना से पूरी दुनिया में काफी विवाद पैदा हुआ था और तब से अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण इस्तेमाल को सुनिश्चित करने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय संधि पर जोर दिया जाने लगा था। लेकिन यह संधि कैसी हो इसे लेकर अंतरिक्ष और मिसाइल क्षमता वाले देशों में सहमति नहीं बन पा रही है। हालांकि उपग्रहों को अंतरिक्ष में नष्ट करने की चीन और अमेरिका की कार्रवाई पहले ही सवालों के घेरे में आ चुकी है।

इस बारे में रूस और दुनिया के कई मुल्कों का मत है कि उपग्रह को अंतरिक्ष में नष्ट करना तो महज एक बहाना था,असल में तो चीन और अमेरिका स्पेस वार की अपनी ढकी-छिपी परियोजनाओं के मकसद से अपने स्पेस वेपन का परीक्षण करना चाहते हैं। इन योजनाओं के विरोध की दूसरी बड़ी वजह अंतरिक्ष में कबाड़ बढऩे से संबंधित है। खगोलविज्ञानियों का कहना है कि स्पेस में सैटेलाइटों को मार गिराने से अंतरिक्ष में वह कबाड़ और बढ़ेगा, जो पहले से ही एक गंभीर समस्या बना हुआ है। जाहिर है, ये दोनों ही मुद्दे महत्वपूर्ण हैं, पर पहला और अहम सवाल यही है कि अमेरिका, रूस या चीन की मंशा अंतरिक्ष में हथियारों का परीक्षण करने का मकसद कहीं स्पेस वार यानी अंतरिक्ष में जंग की तैयारी करना ही तो नहीं है? उपग्रह को अंतरिक्ष में ही नष्ट करने की कार्रवाई का अमेरिका ने यह कहकर पक्ष लिया था कि इसके सिवा कोई और विकल्प नहीं था। अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन के मुताबिक सैटेलाइट को नष्ट करने में इंटरसेप्टर मिसाइल के इस्तेमाल की मुख्य वजह यह थी कि सुदूर अंतरिक्ष में अन्य किसी हथियार से निशाना लगाना मुमकिन नहीं था। और इससे बड़ी बात यह थी कि अगर अमेरिकी मिसाइल निशाना चूकती, तो पूरी दुनिया अमेरिका की हंसी उड़ाती। इसी तरह जब चीन ने 2007 में अपने मौसम-उपग्रह को स्पेस में अपेक्षाकृत बहुत साधारण टेक्नोलॉजी की मदद से नष्ट किया था, तो अंतरिक्ष में जंग को भड़काने का इल्जाम उस पर भी लगा था। उस वक्त दुनिया ने चीन की कार्रवाई को अमेरिका के ग्लोबल मिसाइल डिफेंस सिस्टम के लिए एक चुनौती की तरह देखा था। फिलहाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतरिक्ष में लाइव सैटेलाइट को मार गिराने की घटना के बारे में स्पष्ट किया है कि यह परीक्षण किसी भी अंतरराष्ट्रीय संधि का उल्लंघन नहीं करता है। पर देखना होगा कि इस बारे में क्या अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया होती है और खास तौर से पड़ोसी चीन व पाकिस्तान इस पर क्या कहते हैं।

हालांकि अंतरिक्ष में किसी उपग्रह को मार गिराना ही स्पेस वॉर का अंग नहीं है। पिछले कुछ अरसे से जिस स्पेस वॉर की आशंका जताई जा रही है, उसके कुछ और तौर-तरीके भी हैं। जैसे, एक तरीका है सैटेलाइटों को हैक कर लेना। बताते हैं कि वर्ष 2007 और 2008 में सैटेलाइटों की हैकिंग के कई मामले सामने आए थे। सैटेलाइट हैकिंग हो सकती है, यह बात 2013 में साबित भी हुई, जब चीनी हैकरों ने हैकिंग से एक अमेरिकी सैटेलाइट को जाम कर दिया। 2013 में ही ईरान ने बीबीसी टीवी के सैटेलाइट को भी हैक कर ईरान के बारे में  दिखाए जा रहे कार्यक्रम को जाम कर दिया था। सैटेलाइट हैकिंग को स्पेस की जंग का जरिया बनाया जा सकता है, इसी चिंता के साथ यूरोपीय स्पेस एजेंसी क्वांटम इनक्रिप्शन तकनीक पर काम कर रही है जो सैटेलाइटों की हैकिंग को रोक सकती है। कई अंतरिक्ष विशेषज्ञ मानते हैं कि रूस, चीन और अमेरिका जैसे देश ऐसे युद्धक सैटेलाइट तैयार कर रहे हैं, जिन्हें हमलावर सैनिक की तरह स्पेस में भेजा जा सकता है और वे वहां शत्रु देशों के सैटेलाइटों को हथियारों से तबाह कर सकते हैं। दावा किया जाता है कि 1960 में रूस ने एक ऐसे ही लड़ाकू सैटेलाइट का परीक्षण किया था, जो दूसरे उपग्रह के पास जाकर खुद को विस्फोट से उड़ा लेता था। इससे दूसरा सैटेलाइट भी तबाह हो जाता है। चीन ने 2007 में और रूस ने एक बार फिर 2015 में ऐसे लड़ाकू सैटेलाइटों का परीक्षण किया था, हालांकि इन परीक्षणों के दावों को कोई भी देश स्वीकार नहीं करता है। अंतरिक्ष में लेजर और एक्स रेज (किरणें) भेजकर वहां परमाणु विस्फोट करना स्पेस वॉर का सबसे खतरनाक तरीका है। बताया जाता है कि 1970 में अमेरिका के कैलिफोर्निया में लॉरेंस लिवरमोर लैबोरेटरी ने एक ऐसी ही एक्सकैलीबर नामक परियोजना पर काम किया था। इस परियोजना का मकसद अंतरिक्ष में परमाणु विस्फोट करना था। इस तकनीक का इस्तेमाल लेजर और एक्स किरणों को एक साथ छोड़कर कई मिसाइलों को एक साथ खत्म करना और अंतरिक्ष में किसी सैटेलाइट को निशाना बनाने में हो सकता है। फिलहाल भारत ने अंतरिक्ष में अपनी जो युद्धक शक्ति प्रदर्शित की है, उसका महत्व अमेरिका-चीन आदि मुल्कों की संबंधित तैयारियों के संदर्भ में समझा जा सकता है।

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Comments 4

  1. Anonymous says:
    6 years ago

    sahi hai

    Reply
  2. sonali jadhav says:
    6 years ago

    अभिनंदन……

    Reply
  3. Anonymous says:
    6 years ago

    nice ….

    Reply
  4. Amol Pednekar says:
    6 years ago

    Congratulations……

    Reply

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