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भोग्य नहीं अब  योग्य हूं

भोग्य नहीं अब योग्य हूं

by हिंदी विवेक
in आर्य समाज विचार दर्शन विशेषांक २०१९, महिला, सामाजिक
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आज की नारी समय की मांग के अनुरूप बनाने का प्रयास कर रही है। नगरीय, महानगरीय, भौतिकवादी और भूमंडलीय संस्कृति में महिला सशक्तिकरण का एक प्रभावशाली दौर चल रहा है।

अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी
आंचल में है दूध और आँखों में पानी
मैथिली शरण गुप्त की इन पंक्तियों में जहां नारी के प्रति करुणा और दया का भाव निहित है वहीं उसकी लाचारगी और बेबसी भी दृष्टिगोचर होती है। विभिन्न कालखण्डों में नारी की स्थिति का अवलोकन करें तो कवि की बात सत्य भी प्रतीत होती है, क्योंकि वैदिक काल की नारियों को जहां उच्च स्थान प्राप्त था, जहां उन्होंने वेदों की अनेक ऋचाएं लिखने में अपना योगदान दिया, जहां उनके लिए ये कहा गया ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’ वहीं उत्तर वैदिक काल को देखा जाए तो निश्चय ही इस युग की नारी की स्थिति अपने सम्मानजनक पायदान से नीचे गिरी है। उत्तर वैदिक काल आते-आते शास्त्रों और ब्राह्मणवाद की नीतियों ने नारी के पैरों में बेड़ियां डाल दीं। उसकी स्वतंत्रता छीन ली गई, उससे उसके आर्थिक, धार्मिक अधिकार छीन लिए गए। तत्पश्चात मध्ययुगीन भारतीय समाज की स्थिति पर दृष्टिपात करें तो स्थिति नारकीय हो गई। यह युग अत्याचार, उत्पीड़न शोषण से परिपूर्ण रहा, स्त्री भोग-विलास की वस्तु बन कर रह गई। 18हवीं सदी के भारत का अवलोकन किया जाए तो ज्ञात होता है यह संक्रमण काल था। मुगल काल में स्त्री की जो दशा थी वह अंग्रेजी काल में भी रही। किन्तु बाद में पुनर्जागरण आंदोलन ने देश में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों और नारी को दयनीय स्थिति से उबारने का जी-तोड़ प्रयास किया।
20वीं सदी के प्रथम दशक में स्त्रियों ने यह अनुभव किया कि उनका अपना एक सामाजिक संगठन होना चाहिए, जो नारी के हित के लिए कार्य करे। इस तरह 1910 और 1920 के मध्य अनेक नारी संगठनों की स्थापना हुई। नारी को धीरे-धीरे अपने आत्मगौरव की अनुभूति होने लगी। वह घर की दहलीज पार कर शिक्षा ग्रहण करने लगी। कस्बों, नगरों, महानगरों में शिक्षा का प्रचार प्रसार हुआ। महिलाएं शिक्षित हुईं, परिवार से बाहर निकलीं, नौकरी करने लगीं। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखें तो आज नारी खोए हुए गौरव को अपने आत्मबल पर पुनः प्राप्त करने को उद्यत है। आज ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जहां नारी ने अपनी जगह न बनाई हो। 21वीं सदी की नारी इंजीनियर, डॉक्टर, एम.सी.ए, सी.एस, सी.ए और प्रबंधन की तरह-तरह की डिग्रियां ले रही हैं। अंतरराष्ट्रीय पैकेज की दौड़ में है। वह केबिनेट मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति जैसे पदों को सुशोभित कर रही हैं। इंदिरा गांधी, कल्पना चावला, प्रतिभा पाटिल, किरन बेदी, रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण जैसे अनेकानेक नाम हैं जिन्होंने अपनी कुशल कार्यक्षमता के आधार पर न केवल अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है अपितु देश को भी गौरवान्वित किया है।

हमारे लिए ये बड़े गौरव की बात है किअभी हाल ही में बी.बी.सी. ने सौ श्रेष्ठ महिलाओं की सूची जारी की जिसमें सात भारतीय महिलाओं के नाम दर्ज हैं, जिनमें आशा भोसले, टेनिस स्टार सानिया मिर्ज़ा, बेहतरीन अदाकारा कामिनी कौशल, रिंपी कुमारी, स्मृति नागपाल, मुमताज शेख, और कनिका टेकड़ीवाल सम्मिलित हैं।

आशा भोसले और कामिनी कौशल ने अपने समय की रूढ़िवादी सोच से कदम बाहर निकाला, उस समय नृत्य संगीत अभिनय में नारी की उपस्थिति को हेय दृष्टि से देखा जाता था किन्तु आज उनके उस समय के निर्णय ने उन्हें उन्नति के शिखर पर आसीन कर दिया है।

आशा जी के लगभग एक हजार से अधिक गाने हिंदी सिनेमा में शुमार हैं, वहीं कामिनी जी ने सौ से अधिक फिल्मों में काम कर सिनेमा को अलग मुकाम पर पहुंचाया है। रिंपी कुमारी राजस्थान की एक किसान हैं जो अपनी बहन के साथ खेती करती हैं, जिन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि शहरी क्षेत्र की नारियां ही नहीं अपितु ग्रामीण परिवेश की नारियां भी सक्षम हैं। वे अपने बलबूते अपनी पहचान बना सकती हैं। स्मृति नागपाल साइन लैंगवेज इंटरप्रेटर हैं और वे अपने कार्य को जज्बे के साथ कर रही हैं। सानिया मिर्ज़ा ने टेनिस खिलाड़ी के रुप में अपनी अलग पहचान बनाई है। मुमताज शेख महिलाओं के अधिकार के लिए कार्य करने वाली महिला हैं; वहीं कनिका टेकड़ीवाल ने कैंसर के आगे अपनी हार न मानते हुए अपने हौसले को बुलंद रखे।

उन्हें 22 वर्ष की अवस्था में कैंसर हुआ। वह एविएशन एरिया में अपना करियर बनाना चाहती थी और उन्होंने अपना यह सपना साकार भी किया। जेट सेट गो के नाम से उन्होंने अपनी ई- कॉमर्स कम्पनी खोली जिसका सालाना टर्नओवर आज 70 मिलियन डॉलर है।
ये वे उदाहरण हैं जो नारी सशक्तिकरण के ज्वलंत उदाहरण हैं और अन्य नारियों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।
आज की नारी ने अपने आपको समय की मांग के अनुसार ढालने का प्रयास किया है, अपने व्यक्तित्व को वैश्वीकरण की शिक्षा स्तर के अनुरूप बनाने का प्रयास कर रही है। वे पुरुषों के अत्याचारों के खिलाफ तन कर खड़ी हो रही हैं। नगरीय, महानगरीय, भौतिकवादी और भूमंडलीय संस्कृति में महिला सशक्तिकरण का एक प्रभावशाली दौर चल रहा है। पितृसत्तात्मक परिवार के ढ़ांचे को बदलने की चुनौती दी जा रही है। पुरुषवादी समाज के वर्चस्व को नकारने की आवाज बुलंद की जा रही है।

     -नीतू गोस्वामी

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