पूर्वोत्तर में मोदी हवा अब अंधड़ की भांति चल रही है। 2014 से अधिक सीटों पर भाजपा के जीतने की संभावना है। यह अभूतपूर्व बयार है।
यह साफ हो गया है कि आजादी के बाद पहली बार पूर्वोत्तर में भारतीय जनता पार्टी को अभूतपूर्व सफलता मिलेगी और वह अपने सहयोगी दलों के साथ मिल कर 25 में से ज्यादातर सीटों पर कब्जा कर लेगी। लोकसभा की असम में 15 सीटें, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय और त्रिपुरा में दो-दो सीटें, नगालैंड, मिजोरम और सिक्किम में एक-एक सीट है। भाजपा और उसके सहयोगी दलों की यह सफलता 2014 से लोकसभा चुनाव से काफी बड़ी होगी।
पूरे देश की हवा से अलग, पूर्वोत्तर में इस बार मोदी हवा ज्यादा प्रभावशाली लग रही है। उसकी एक ठोस वजह भी है। मोदी सरकार के करीब पांच साल के कार्यकाल में जितना काम हुआ है, उतना पिछले सत्तर साल में भी नहीं हुआ है। विकास योजनाओं को लाभ दूरदराज के लोगों तक पहुंचने लगा है। दूरदराज के इलाके तक बेहतर सड़क संपर्क और बिजली पहुंचने, रेल और हवाई यातायात का विस्तार हुआ है। इसीलिए सभी उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट मांग रहे हैं। चाय बागानों से लेकर पहाड़ी राज्यों तक फिर एक बार, मोदी सरकार की लहर है।
भाजपा के लिए असम बहुत ही महत्वपूर्ण है। पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद उसे चौदह में सात सीटें मिली थीं। भाजपा ने अकेले चुनाव लड़ा था। इस बार भाजपा असम गण परिषद (अगप) और बोड़ोलैंड पीपुल्स फ्रंट के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है। भाजपा ने दस, अगप ने तीन और बीपीएफ ने एक सीट पर उम्मीदवार उतारा है। इस बार भाजपा गठबंधन को कम से कम दस सीटों पर सफलता का अनुमान है। हालांकि असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल का दावा है कि भाजपा गठबंधन को कम से कम बारह सीटें मिलेंगी। असम में भाजपा की सफलता का एक मुख्य कारण सोनोवाल सरकार का बेहतर प्रशासन और महत्वपूर्ण योजनाओं को आम लोगों तक पहुंचाना भी है। हालांकि नागरिक संशोधन विधेयक की वजह से भाजपा को थोड़ी परेशानी हुई, लेकिन यह मुद्दा ज्यादा जोर नहीं पकड़ पाया। दूसरी तरफ भाजपा को हराने के लिए बदरुद्दीन अजमल के नेतृत्ववाली ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट ने सिर्फ तीन सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं और बाकी सीटें कांग्रेस के लिए छोड़ दी हैं।
इस लोकसभा चुनाव में बदरुद्दीन अजमल के समक्ष अपने गढ़ को बनाए रखने की चुनौती है। बरपेटा लोकसभा सीट भी बदरुद्दीन अजमल के नेतृत्व वाली ऑल इंडिया यूनाइटेड़ डेमोक्रेटिक फ्रंट के लिए मुश्किल है। धुबड़ी में भी उन्हें कड़ा मुकाबला करना पड़ रहा है। धुबड़ी से उनके सामने असम गण परिषद के जावेद इस्लाम और कांग्रेस के अबा तायेब बेमारी हैं। जबकि बरपेटा में एआईयूडीएफ के हफीज रफीकुल इस्लाम के सामने असम गण परिषद के कुमार दीपक दास और कांग्रेस के अब्दुल खालिक हैं। वे वर्तमान में विधायक भी हैं। धुबड़ी और बरपेटा में अल्पसंख्यक मतदाताओं की निर्णायक संख्या है। इसी वजह से पिछले लोकसभा चुनाव में एआईयूडीएफ ने कब्जा किया था। ये इलाका बदरुद्दीन अजमल का गढ़ रहा है। उनके ज्यादा विधायक इन्हीं सीटों से चुने जाते हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों पर मतदाताओं पर अजमल का असर घटा है और वे फिर से कांग्रेस की तरफ झुक रहे हैं।
इसी तथ्य को ध्यान में रख कर अजमल ने कांग्रेस के साथ गठबंधन का प्रस्ताव दिया था और कांग्रेस की तरफ से कोई प्रतिक्रिया न पाने के बाद भी उन्होंने सिर्फ उन्हीं तीन संसदीय सीटों- धुबड़ी, बरपेटा और करीमगंज से अपना उम्मीदवार उतारने की घोषणा की, जिन पर उनकी पार्टी का कब्जा था। उन्हें उम्मीद थी कि जवाब में कांग्रेस भी उनके उम्मीदवारों के खिलाफ मैदान से हट जाएगी या फिर कमजोर उम्मीदवार उतारेगी। जब भाजपा ने खुलेआम कांग्रेस और अजमल के बीच राजनीतिक गठबंधन का आरोप लगा कर असमिया मतदाताओं को एकजुट करने का अभियान चलाया तो कांग्रेस ने भाजपा के आरोपों को काटने के लिए एआईयूडीएफ के खिलाफ मजबूत उम्मीदवार उतार दिया। जबकि भाजपा गठबंधन में शामिल सभी दलों के नेता एकसाथ मिल कर चुनाव लड़ रहे हैं। इस वजह से भाजपा और उनके मित्र दलों को लाभ मिलता दिख रहा है। पहले एक दल का वोट दूसरे मित्र दल के उम्मीदवार की तरफ नहीं जाता था।
अरुणाचल प्रदेश में लोकसभा की दो सीटों के साथ साठ सदस्यीय विधान सभा के भी चुनाव हो रहा है। देश के गृह राज्यमंत्री किरन रिजिजु अरुणाचल पश्चिम से उम्मीदवार हैं। उनकी जीत तय मानी जा रही है, जबकि लग रहा है कि इस बार भाजपा अरुणाचल पूर्व की सीट भी कांग्रेस से जीत लेगी। जबकि विधान सभा की दो सीटें भाजपा निर्विरोध जीत चुकी है। वहां पर भाजपा का मुकाबला कांग्रेस और नेशनल पीपुल्स पार्टी के साथ है। वैसे एनपीपी भी नार्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक एलायंस (नेडा) का घटक दल है। जिसके नेता पीए संगमा के पुत्र और मेघालय के मुख्यमंत्री कर्नाड संगमा हैं। यदि भाजपा की कुछ सीटें कम भी हो गईं तो एनपीपी के समर्थन से भाजपा सरकार बना सकती है। मेघालय में भाजपा का एकमात्र उम्मीदवार संगमा सरकार का समर्थन कर रहा है।
मणिपुर की दो में से एक सीट- मणिपुर आउटर में भाजपा की जीत तय मानी जा रही है। जहां पर नगा और कूकी मतदाता हैं। मणिपुर इनर सीट पर भाजपा का तगड़ा मुकाबला कांग्रेस से हैं। त्रिपुरा में भाजपा की झोली में एक सीट तय है, दूसरी सीट पर भी संभावना है।
मिजोरम में इकलौती सीट पर मिजो नेशनल फ्रंट की जीत तय मानी जा रही है। एमएनएफ ने एनडीए का समर्थन किया है। वैसे भाजपा ने भी उम्मीदवार खड़ा किया है, लेकिन चकमा जनजाति के उम्मीदवार की वजह से मिजो मतदाता नाराज हैं।
नगालैंड में भाजपा का ज्यादा प्रभाव नहीं है, मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो की पार्टी एनडीपीपी का मुकाबला कांग्रेस से है। एनडीपीपी उम्मीदवार की जीत तय मानी जा रही है। रियो की पार्टी एनडीए के साथ है।
मेघालय में तुरा से एनपीपी की अगाथा संगमा का पलड़ा भारी है। इस सीट पर संगमा परिवार का कब्जा रहा है। इस बार शिलांग सीट पर कांग्रेस परेशान हैं। मेघालय डेमोक्रेटिक एलायंस का साझा उम्मीदवार ज्यादा वजनदार लग रहा है। एमडीए में सरकार में शामिल सभी क्षेत्रीय दल हैं।
सिक्किम में भी लोकसभा के साथ विधान सभा चुनाव हो रहे हैं। करीब बीस साल बाद पवन सिंह चामलिंग की नेतृत्व वाली सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट को वाइचुंग भुटिया के नेतृत्व वाली पार्टी ‘हाम्रो सिक्किम’ पार्टी (एचएसपी) चुनौती दे रही है। लेकिन इस पार्टी ने लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार खड़ा नहीं किया है। एसडीएफ उम्मीदवार के खिलाफ भाजपा और कांग्रेस ने उम्मीदवार उतारा है। लेकिन चामलिंग के एसडीएफ का पलड़ा भारी है। एसडीएफ ने पिछली बार एनडीए का समर्थन किया था। इसलिए माना जाता है यदि एसडीएफ उम्मीदवार जीतता है तो एनडीए को ही फायदा होगा।