नेहरू का ‘भारत-निर्माण’ और मोदी का ‘नया भारत’ एक युगांतर मानना चाहिए। नेहरू का समाजवाद और निर्गुट आंदोलन अपनी मौत मर गए। सेक्युलरिज्म भी रूपांतरित हो रहा है। मोदी का भारत जन-सहयोग, मुक्त व्यापार और समावेशी है।
‘नए भारत’ की कहानी कहां से शुरू हो? नेहरू युग से या मोदी युग से? नेहरू युग ‘भारत निर्माण’ के सपने में खो गया था; जबकि मोदी युग ‘भारत पुनरुत्थान’ में लगा हुआ है। यह एक राजनीतिक युगांतर ही है। नेहरू के भारत निर्माण में जो खामियां रह गईं, उसकी भरपाई कर अपनी जड़ों की ओर लौटते हुए सशक्त भारत का निर्माण करना मोदी का लक्ष्य है।
1947 से लेकर 1964 तक नेहरू युग रहा। इसके पूर्व इतिहास को प्रभावित करने वाले गांधी युग या तिलक युग की चर्चा करने का यहां कोई औचित्य नहीं है। बस इतना ही कह सकते हैं कि स्वाधीनता के बाद कांग्रेस ने गांधी की ‘भारत- निर्माण’ की परिकल्पना त्याग दी। कांग्रेस नेहरू के विचारों की गुलाम बन गई। गांधी के आशीर्वाद (मोदी को ऐसा कोई संरक्षण प्राप्त नहीं है, वे अपने विचारों की प्रतिबद्धता के कारण जनमानस से उभरे हैं।) के कारण नेहरू का व्यक्तित्व इतना आसमानी बन गया था कि उसकी छाया तले न कुछ पनपता था, न पनपने दिया जाता था। इसलिए जन-संवाद, वैचारिक बहस कांग्रेस से विदा होती गई। कांग्रेस का वैचारिक विश्व नेहरू के विचारों के इर्द-गिर्द ही सीमित हो गया। विकास की गति अवरुद्ध हो गई। बाद के काल में (1991-1996 के नरसिंह राव के जमाने में आर्थिक उदारवाद) कांग्रेस ने स्वयं ही नेहरू की नीतियों से तौबा कर ली। दूसरे शब्दों में यह कह सकते हैं कि नेहरू भले 1964 में चले गए, परंतु उनकी नीतियां 1990 तक लगभग जस के तस हावी रहीं। 1997 से 2003 तक को संक्रमण काल कह सकते हैं। 2004 से 2014 तक मनमोहन सिंह का कार्यकाल जड़ता का कालखंड है। राजनीतिक दुर्घटनावश बने प्रधानमंत्री के साथ ऐसा ही होता है। 2014 के बाद का कालखंड मोदी युग कहा जा सकता है। विषयांतर का दोष सहन करते हुए भी नेहरू और मोदी के अलावा अन्य कालखंडों का जिक्र किया; ताकि पाठकों का क्रमागत परिवर्तन पर ध्यान जाएं और बीच में शून्य अंतराल न हो।
नेहरू और मोदी के सपनों के भारत में बुनियादी सैद्धांतिक और नीतिगत अंतर है। इसीलिए भारत की विकास गाथा में इन्हें दो ध्रुव मानना चाहिए। नेहरू की दृष्टि पश्चिम पर टिकी हुई थी; जबकि मोदी का दृष्टिकोण पौर्वात्य है। कुछ लोग मोदी के दृष्टिकोण को ‘इंडिक’ (indic) कहते हैं। इंडिक का अर्थ है प्राचीन भारतीय चिंतन (indology)। इसे हिंदुत्व कह सकते हैं। हिंदुत्व हमारी साझा सांस्कृतिक विरासत है, फिर हमारी पूजा-पद्धति कोई भी हो। यह एक जीवनशैली है, आचारशैली है। इसलिए हम सब हिंदुस्तानी हैं। आधुनिक नाम ही देना हो तो हम सब भारतीय हैं। भाजपा इसीकी पक्षधर है। नेहरू के ‘भारत-निर्माण’ और मोदी के ‘नए भारत’ में यही बुनियादी फर्क है।
नेहरू और मोदी की भारत की संकल्पनाओं के बारे में रूपा सुब्रह्मण्य और विवेक देहेजिया नामक लेखकद्धयों ने बहुत सुंदर वर्णन किया है (Mint, 2 Aug ’18)। उन्होंने 15 अगस्त 2014 को ही- याने मोदी के पहली बार प्रधानमंत्री बनने पर ही- अपने ब्लॉग पर From Nehru’s ‘Idea of India’ to Mody’s ‘New India’ शीर्षक से एकदम सटीक विश्लेषण किया था। उनके विश्लेषण का निचोड़ यह है कि नेहरू की ‘भारत निर्माण’ संकल्पना के तीन मुख्य सैद्धांतिक आधार थे- समाजवाद (आर्थिक नीति), निर्गुटता (विदेश नीति) और सेक्युलरिज्म (सामाजिक नीति)।
इस नीति के पहले दो आधार तो मोदी के आने के पहले ही टूट चुके थे। समाजवाद को नरसिंह राव व बाद की सरकारों ने तिलांजलि दे दी, जबकि सोवियत संघ के टूटने के बाद निर्गुट आंदोलन अपनी मौत मर गया। नेहरू के तीसरे आधार- सेक्युलरिज्म को भी 2014 से नए रूप में परिभाषित किया जा रहा है। सेक्युलरिज्म का नेहरू का अर्थ मुस्लिम तुष्टीकरण अर्थात अपने ‘वोट बैंक’ को सहलाना था।
केरल में पहली बार कांग्रेस के हारने और कम्यूनिस्टों के सत्ता में आने पर नेहरू ने कहा था, “चलेगा, लेकिन दक्षिणपंथियों (अर्थात हिंदुओं) के हाथ में सत्ता नहीं जानी चाहिए।” जाहिर है कि उनके आसपास साम्यवादियों का जमावड़ा था और कांग्रेस की नीतियां भी उनसे बहुत प्रभावित थीं। (ऐसे ही साम्यवादियों की शह पर इंदिरा गांधी ने 1975 में आपातकाल लागू किया था।)
मोदी के नए भारत में नेहरू का सेक्युलरिज्म अब दम तोड़ रहा है। इसे अब पंथ-निरपेक्षता माना जा रहा है याने सरकार सभी पंथों का समान सम्मान करेगी। सेक्युलरिज्म का मतलब केवल अल्पसंख्यकों का अर्थात मुस्लिमों का तुष्टीकरण और बहुसंख्यकों की अर्थात हिंदुओं की प्रतारणा नहीं है; बल्कि यह हिंदुस्तान की बहुविध प्राचीन व अर्वाचित संस्कृति का सम्मान करना है। सभी धाराएं गंगा में आकर मिलें और पूरा देश एकत्व से जुड़े यह मोदी की सामाजिक नीति का आधार है। भेदभाव से परे और जाति-पांतिरहित हिंदुत्व उनका सपना है। राष्ट्र के प्रति दायित्व-बोध उनका लक्ष्य है। हाल में पारित तीन तलाक विधेयक मुस्लिम महिलाओं के सशक्तिकरण की ऐतिहासिक मिसाल है।
नेहरू और मोदी की आर्थिक नीतियों में जमीन-आसमान का अंतर है। नेहरू युग की समाजवाद की धुंध छंट चुकी है। मोदी युग में उद्योग से लेकर व्यापार तक, मुद्रा से लेकर बैंकिंग तक, खेती से लेकर सिंचाई तक, शिक्षा से लेकर रक्षा तक, प्रौद्योगिकी से लेकर हस्तशिल्प तक, संचार से लेकर अंतरिक्ष तक हर क्षेत्र में बहुत तेजी से बदलाव आ रहे हैं। सरकारी हस्तक्षेप कम, जनभागीदारी अधिक, पारदर्शिता महत्तम और अंत्योदय मोदी युग का मंत्र है। आर्थिक नीतियां पहली बार शहरों से लेकर ग्रामीण अंचलों तक हरेक को कहीं न कहीं स्पर्श कर रही हैं। मोदी के नए भारत की यह नींव है। एक कल्याणकारी राज्य की आधारशिला है।
नेहरू की निर्गुट नीति भी विदेश नीति और कूटनीति के मामले में विफल रही। वे हथियारों की बजाए नैतिकता की बातें किया करते थे। उन्हें कश्मीर के मामले में पहला झटका लगा। विवाद द्विपक्षीय स्तर पर सुलझाने के बजाय उसे वे राष्ट्रसंघ में ले गए। राष्ट्रसंघ ने दोनों पक्षों को जहां थे वहीं रहने के लिए कहा। राष्ट्रसंघ प्रतिनिधि फ्रैंक ग्राहम ने मध्यस्थता की पेशकश की। इससे नेहरू बहुत आहत हुए। दूसरी शिकस्त उन्हें चीन ने दी। तिब्बत पर चीन के अधिकार को स्वीकार करने की बड़ी भूल उन्होंने की। ‘हिंदी चीनी भाई भाई’ के चीन के झांसे में आ गए और चीन ने पंचशील समझौते की परवाह किए बिना भारत पर आक्रमण कर दिया। इस तरह नेहरू युग की विदेश नीति पूरी तरह विफल हो गई। कोई आपका दोस्त नहीं रहा, सब आंखें दिखाने लगे।
इस पृष्ठभूमि में मोदी युग की विदेश नीति नेहरू युग के मुकाबले अधिक परिपक्व लगती है। शायद ही मोदी जैसा किसी देश का ऐसा प्रधानमंत्री हो जिसने विश्व के इतने देशों की इतने समय तक यात्राएं की हों। अब चीन और पाकिस्तान को भी जगह-जगह मात खानी पड़ रही है। इसमें लक्ष्यभेदी हमले से लेकर अभिनंदन की वापसी तक, डोकलाम से लेकर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय तक कई घटनाएं गिनाई जा सकती हैं जो इस आलेख का उद्देश्य नहीं है। बहरहाल, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नेहरू युग का मिमियाता भारत अब बीते जमाने की बात हो चुकी है, मोदी युग ने उसे एक परिपक्व, सशक्त भारत की छवि दी है।
जिन्हें नेहरू के भारत-निर्माण दृष्टिकोण को अधिक जानना है, वे उनके तत्कालीन भाषणों का अवलोकन कर सकते हैं। इसके लिए आदित्य एवं मृदुला मुखर्जी की पुस्तक “Selected Works of Jawaharlal Nehru- 1 April-30 June 1958, Second Series 42′ किताब उपयोगी है। यह नेहरू के 1958 के चुनिंदा भाषणों का संग्रह है। इन भाषणों में उनकी औद्योगिक नीति, शासन में पारदर्शिता, समाजवाद, साम्यवाद, विदेश नीति के आधार के रूप में निर्गुट आंदोलन, कांग्रेस की भूमिका आदि के बारे में नीतिगत जिक्र आता है।
नेहरू और मोदी युग पर एम.डी.नलपत ‘सण्डे गार्जियन’ में लिखते हैं, वैसे तो 2014 से नेहरू युग खत्म होने और मोदी युग आने की शुरुआत हो गई थी, लेकिन 2019 की जीत ने उसकी गति और तेज कर दी। आगे का यथार्थ उनके ही शब्दों में ”… the Neharuvian construct that long been lost its popular resonance, the battle cry of the opposition that their aim was to retrieve Nehruvian back into India’s dominant reality was another of their many self-goals in a country of hungry for change.”(Sunday Guardian, 14th July 2019)। अर्थ यह हुआ कि परिवर्तन की आस लगाए भारत में विपक्ष (कांग्रेस) नेहरू युग के मुर्दे उखाड़ने की हास्यास्पद कोशिश कर रहा है।
2014 से आरंभ ‘नए भारत’ का कार्य 2017 में ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन की 75वीं वर्षगांठ पर एक जनआंदोलन के रूप में परिवर्तित हो गया। ‘संकल्प से सिद्धि’ नामक यह अभियान 2017 से 2022 तक पांच वर्षों के लिए तय किया गया। इसे हम पहला पड़ाव कह सकते हैं। इस अभियान के मुख्य सूत्र हैं- स्वच्छ भारत, गरीबी-मुक्त भारत, भ्रष्टाचार-मुक्त भारत, आतंकवाद-मुक्त भारत, साम्प्रदायिकता-मुक्त भारत, जातिवाद-मुक्त भारत, सुशासन और नई तकनीकों के जरिए पूरे भारत को एकसूत्र में जोड़ना। नया भारत सशक्त, सम्पन्न, वैभवशाली, समावेशी और विश्वगुरू होगा। 2019 में दूसरी बार मोदी के सत्ता में आने पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अभिभाषण में ‘नए भारत’ की अवधारणा का जिक्र किया गया।
बहुत बार बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं, बड़े-बड़े सिद्धांत रचे जाते हैं; लेकिन मैदानी तौर पर कुछ दिखाई नहीं देता। यही प्रश्न 2017 की आईएएस की परीक्षा में पूछा गया। एक परीक्षार्थी ने लिखा, मोदी का नया भारत याने- “पुनरुत्थान भारत, डिजिटल भारत, समावेशी भारत, आविष्कारशील भारत, निवेशक-अनुकूल भारत, स्वच्छ भारत, कौशल भारत, पारदर्शी भारत, बदलता भारत, उभरता भारत, समरस भारत और संचारशील भारत।” इस परिभाषा में परीक्षार्थी रक्षा और संस्कृति के क्षेत्र जोड़ना भूल गया लगता है। उसे जोड़ दें तो सशक्त भारत और सांस्कृतिक भारत भी ‘नए भारत’ के अनिवार्य अंग होंगे।
नेहरू के साथ शायद अति आदर्शवाद का संकट था। जैसे सद्गुणों की अति नुकसानदेह होती है; वैसे ही आदर्शवाद की अति भी हानि पहुंचाती है। शायद नेहरू के साथ भी ऐसा ही हुआ। नेहरू की नीति कांग्रेस की नीति बन जाती थी। इसलिए कांग्रेस नीति निर्धारक कम और हुक्म मानने वाली अधिक बन गई। इससे व्यावहारिक धरातल पर मुश्किलें आने लगीं। कालांतर में सबकुछ अस्तव्यस्त सा दिखने लगा। कांग्रेस एकालापी बन गई।
मोदी के साथ ऐसा नहीं है। नीति-निर्धारक उनकी पार्टी- भाजपा है, उन्हें इन नीतियों पर चलना होता है। नीति-निर्धारण में सामूहिकता आ जाने से जन-सहयोग बढ़ता है और किसी नीति पर अमल करना आसान होता है। भाजपा में नेतृत्व की पहली, दूसरी, तीसरी, चौथी पंक्ति तक मौजूद है। इससे भाजपा का नेतृत्व पक्ष बहुत मजबूत है। भाजपा में एकपात्री प्रयोग संभव नहीं है।
नेहरू युग और मोदी युग के इस बुनियादी अंतर को समझ लें तो मोदी के ‘नए भारत’ को समझने में बहुत आसानी होगी।
लेखक हिंदी विवेक के पूर्व सम्पादक हैं।
Something peculiar, especially demarcating splendidly between nehru and modi,daring and innovative write up,, congratulations