महिलाएं बीमारी से कैसे बचें?

मानसिक तैयारी और शारीरिक तैयारी आपको बीमारियों के कष्ट को कम करने में बहुत मदद कर सकती है। खान – पान, नियमित व्यायाम शरीर और मन दोनों को स्वस्थ रखने का पहला हथियार है। कष्ट को टाले नहीं, डॉक्टरी सलाह समय पर अवश्य लें।

बीमारी से बचना कौन नहीं चाहता? शरीर है तो बीमारी भी है, मशीन भी बीमार हो जाती है, फिर ये तो शरीर है, हाड़ – मांस का पुतला। ईश्वर की बनाई सबसे जटिल परंतु सबसे उन्नत मशीन। इस मशीन का उपयोग करते – करते कब दुरूपयोग होने लगता है, पता ही नहीं चलता। अमूमन दोष हमारा ही होता है, पर हम दूसरों को दोष देने में माहिर हैं। कभी परिवार को, कभी परिस्थिति को, कभी वातावरण को लेकिन यदि हम चाहे तो बीमारी को बहुत हद तक टाल सकते हैं। महिलाओं को वैसे ही अति विषमताओं से गुजरना पड़ता है। इसलिए उन्हें तो और जागरूक होने की आवश्यकता है। माने या न माने, कोई श्रेय दे या न दे, पर महिला एक परिवार की धुरी होती है। उसका स्वस्थ रहना और भी आवश्यक है। आइये जानते हैं कि किन छोटे – छोटे प्रयासों से महिलाएं अपना ध्यान रख सकती हैं।

गर्भ से आरम्भ होने वाले जीवन का सफ़र शैशवकाल, जवानी, फिर विवाह, जन्मदात्री, प्रौढावस्था तक गुजरता हुआ हर पड़ाव पर पीड़ा का कारण बन सकता है। बचपन से युवावस्था में कदम रखते हुए जब मासिक धर्म शुरू होता है। तब मां के लिए चिंता की लकीरे उभर जाती हैं। यह विचार ही कि अब मेरी बेटी बच्ची नहीं रहेगी, अनंत पीड़ा की राह से गुजरना पड़ेगा, उसे परेशान करता है। उस फूल सी बेटी को समझाना, चेतन करना कि अब उसके शरीर में बदलाव आएंगे, जो उसे बड़े होने का अहसास देंगे। बदलता हुआ शरीर, वक्ष का बढ़ना, बालों का आना, कभी गुदगुदाता है तो कभी परेशान करता है। इस समय जो हार्मोन का ज्वार – भाटा शरीर में आता है, वह ढेर सारी परेशानियों का सबब बनता है। ‘मूड’ का उतार – चढ़ाव सबसे पहला और सबसे बड़ा बदलाव होता है। उसको झेलना और समझना अपने आप में एक चुनौती होती है। वक्ष में गठान का उभर आना, मासिक का नियमित नहीं होना, अनावश्यक बालों का उग आना भी कष्टप्रद होता है।

क्या इससे बचने का कोई उपाय है? नहीं, बचा तो नहीं जा सकता, पर सतर्कता कई परेशानियों से बचा सकती है।

सबसे पहले तो बिटिया को मानसिक रूप से तैयार करें। यदि मां समझाने में अक्षम हो तो विशेषज्ञ की सलाह लें। अपने शरीर में होने वाले बदलाव की मानसिक रूप से तैयारी करने पर कष्ट आधा हो जाता है। इस उम्र में वक्ष में होने वाली गठानें हानिकारक नहीं होतीं। अनावश्यक भय न पैदा करे, न उससे परेशान हो, सलाह अवश्य लें, जांच अवश्य करवा लें। ये गठानें दवाई से नहीं गलतीं इसलिए उतनी ही दवाई ले जो आवश्यक हो, शल्यक्रिया करवाना उचित समझे तभी करवाएं।

मासिक की अनियमितता मासिक शुरू होने के 6 महीने तक रहती है। सलाह ले लें, पर अनावश्यक दवाइयों का सेवन न करें। हार्मोन की दवाएं न ही ले तो बेहतर। 6 माह के बाद भी यदि मासिक नियमित न हो तो अवश्य डॉक्टरी सलाह ले लें, जांच करवा लें। इस समय मासिक को नियमित करने की अनेकानेक दवाएं उपलब्ध हैं, जो हार्मोन नहीं है, उनका सेवन शरीर को नुकसान नहीं पहुंचाएगा। लम्बी अवधि तक लेने में कोई परेशानी भी नहीं होगी। हां, यहां ये ध्यान रखना आवश्यक है कि अच्छा खान – पान, दैनिक व्यायाम सदा सहायक होता है।

इस उम्र से शुरू होने वाला स़फेद प्रदर पूरे जीवन काल में चिंता का सबब रहता है, स़फेद पानी हानिकारक नहीं है। वह स्वास्थ्य की निशानी है। हां, यदि उसमें से बदबू आ रही हो, या खुजली चल रही हो तो वह ख़राब है। ऐसे में डॉक्टर से सलाह लें। आजकल इंटीमेंट वाश बहुत प्रचलन में है। ऐसा लगता है जैसे इनके बिना हमारा जीवन ही नहीं है, जबकि यह सत्य बिलकुल नहीं है। इनके बिना भी हमारी पुरानी पीढ़ी स्वस्थ थी। इनके ज्यादा प्रयोग से ज्यादा तकलीफ है। यदि उपयोग करना ही है तो केवल सप्ताह में एक बार करे। रोजाना उपयोग करने से अच्छे बैक्टेरिया मर जाते हैं जो चौकीदार का काम करते हैं और इन्फेक्शन अंदर तक प्रवेश कर लेता है। हां, अपने अंगवस्त्र अवश्य दिन में दो बार बदलें, बेहतर होगा यदि वह सूती हो। मासिक में एक ही पैड लंबे समय तक न पहने। उनकी मियाद 6 घंटे की होती है, उसका ध्यान रखें।

20 – 40 तक के उम्र के पड़ाव में विवाह या उसके उपरांत का समय, मां बनने का होता है। प्रसव से सम्बंधित बीमारियां या कष्ट, डॉक्टरी सलाह से ही हल किए जा सकते हैं। 40 – 50 का समय फिर उथल – पुथल का समय होता है। फिर मासिक की अनियमितता, गठान का उभरना, पेट के दर्द और फिर मासिक का जाना। हार्मोन का ज्वार – भाटा फिर आता है और जीवन को फिर परेशान कर देता है।  समय – समय पर अपना चेक अप करवाती रहें। यदि आपके परिवार में कैंसर की हिस्ट्री हो तो अवश्य सतर्क रहे। अक्सर कैंसर या गठान पारिवारिक नेचर पर चलते हैं, इसलिए सतर्कता आवश्यक है। मानसिक तैयारी और शारीरिक तैयारी आपको बीमारियों के कष्ट को कम करने में बहुत मदद कर सकती है। खान – पान का अवश्य ध्यान रखें। नियमित व्यायाम शरीर और मन दोनों को स्वस्थ रखने का पहला हथियार है। कष्ट को टाले नहीं, डॉक्टरी सलाह समय पर अवश्य लें। दवाई, दुकानदार से लेने के बजाए डॉक्टर के सलाह लेकर ही लें।

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