चार ‘बी’ और एक ‘सी ‘

मानव इतिहास में उथलपुथल मचाने वाली घटनाएं अकस्मात घटित होती हैं। 18हवीं एवं 20वीं सदी में ऐसी जो घटनाएं घटित हुई हैं, वे ‘बी’ से प्रारंभ होती हैं। वे इस प्रकार हैं- बोस्टन, बेस्टाइल, बर्लिन और बाबरी। बोस्टन बंदरगाह पर 17 दिसंबर 1973 को स्वतंत्रता प्रेमी युवकों ने ईस्ट इंडिया कंपनी के दो जहाजों पर लदी सारी चाय समुद्र में फेंक दी। उसे ‘बोस्टन टी पार्टी’ कहते हैं। उसका बदला लेने के लिए ब्रिटेन ने बोस्टन बंदरगाह को बंद कर दिया और वहां ब्रिटिश सैनिक भेज दिए। उन्हें रेड कोस्ट कहते थे। उनकी गोलीबारी में कुछ लोग मारे गए। मरा हुआ पहला युवक नीग्रो था। यहां से अमेरिका का स्वतंत्रता संग्राम प्रारंभ होता है। ‘बोस्टन टी पार्टी’ यह अकस्मात घटित घटना है।

फ्रांस की जनता ने 14 जुलाई 1789 को बेस्टाइल कारागार तोड़ दिया। यह कारागार जुल्मों का प्रतीक हो गया था। राजा, सामंत एवं चर्च ये तीन शक्तियां जुल्मी ताकतों का पर्याय बन गई थीं। हजारों बंदी बेस्टाइल के कारागार में थे। इनमें वास्तविक गुनाहगार कम ही थे, राजनीतिक विरोधी अधिक थे। कारागार तोड़ने वालों ने कैदियों को मुक्त कर दिया। राजा के सैनिकों की हत्या कर दी। फ्रांस की राज्यक्रांति की यह शुरुआत थी। बेस्टाइल की यह घटना भी आकस्मि थी।

नवंबर 1991 को बर्लिन की दीवार, बर्लिन के नागरिकों ने धराशायी कर दी। यह दीवार कम्युनिज्म के तत्वज्ञान एवं लोकतंत्र के मानवी अधिकारों के बीच की दीवार थी। पूर्वी जर्मनी ने इस दीवार का निर्माण किया था। वहां चौबीसों घंटे सेना के जवानों का पहरा रहता था। उसके आसपास फटकने पर भी गोली मार दी जाती थी। अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन जब जर्मनी के दौरे पर गए थे तब उन्होंने उस दीवार को दानवी विचारों की दीवार कहा था एवं कहा था कि वह गिरेगी और बाद में वह गिर गई।

दीवार गिरने के बाद तीन बातें हुईं। जर्मनी का एकीकरण हुआ और शीत युद्ध की समाप्ति हुई। वैसे ही रूस में कम्युनिज्म की समाप्ति हो गई। रूस द्वारा कब्जे में लिए गए देश स्वतंत्र हो गए। पोलैंड, हंगरी, उज़्बेकिस्तान जैसे अनेक देश स्वतंत्र हो गए। रूस का फौलादी पर्दा हवा में विलीन हो गया। बर्लिन की दीवार भी अकस्मात गिरी, उसे जनता नहीं गिराया।

 

चौथा ‘बी’ है बाबरी का। 6 दिसंबर 1992 को बाबरी गिरी। छद्म सेकुलरवाद समाप्त हो गया। मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति को करारी चोट लगी। हिंदुओं के मन से मुसलमानों का भय समाप्त हो गया। इसके बाद सही अर्थों में हिंदू हित की राजनीति का प्रारंभ हुआ। पूर्ण बहुमत से मोदी जी की जीत यह बाबरी का चमत्कार है। बाबरी के और भी कई धक्के हैं, जिनका आकलन बहुत कम लोगों ने किया है।

बाबरी गिरने से कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाली धारा 370 हटी। अब मुस्लिम आतंकवादियों को चुन-चुन कर मारा जा सकता है। आज तो यह परिस्थिति निर्माण हो गई है कि सामान्य हिंदू के मन में मुसलमानों के विषय में बहुत अविेशास निर्माण हो गया है। जो न्यायालय 70 वर्षों से राम जन्मभूमि विवाद पर फैसला नहीं दे रहे थे, उन्होंने हिंदुओं के पक्ष में निर्णय दिया। वामपंथी धीरे-धीरे नग्न किए जा रहे हैं। उनके पूरे विनाश का समय अब दूर नहीं है।

वर्तमान में ‘बी’ नहीं पर ‘सी’ है। यह ‘सी’ कोरोना वायरस का है। वह भी अकस्मात आया है। पहले चार ‘बी’ के परिणाम भौगोलिक क्षेत्र तक सीमित थे परंतु कोरोना का परिणाम वैिेशक है। उसे देशों की सीमा में नहीं बांधा जा सकता। उसके तात्कालिक एवं दीर्घकालीन ऐसे दो परिणाम हैं।

तात्कालिक परिणाम लॉकडाउन जो हम सभी भुगत रहे हैं। इसके विषय में विस्तार से लिखने का कोई अर्थ नहीं है। हम सब उसका अनुभव कर रहे हैं। यह कोरोना वायरस तुरंत समाप्त होने वाला नहीं है। जानकारों के अनुसार पहले जैसी परिस्थिति निर्माण होने में बहुत समय लगेगा। 1 वर्ष तो निश्चित ही। कोरोना वायरस के साथ ही जीने की आदत डालनी होगी।

पहले चार ‘बी’ ने समाज व्यवस्था, राज्य व्यवस्था, धर्म व्यवस्था और अर्थव्यवस्था को जबरदस्त धक्के दिए। यह ‘सी’ भी ऐसा ही धक्का देने वाला है। इसलिए इस ‘सी’ का थोड़ा अलग विचार करना होगा। कोरोना वायरस के धक्के विेश की सारी समाज व्यवस्था, राज्य व्यवस्था और अर्थव्यवस्था को लग रहे हैं। कोई भी मानव समूह इससे अलग नहीं है। यह कोरोना चीन ने लाया है या अमेरिका ने इस पर वर्तमान में विवाद चल रहा है। हम ईेशर का अस्तित्व मानने वाले हैं इसलिए यह भगवान की करनी है ऐसा कहा जा सकता है। हम केवल भारत के संबंध में इसका विचार करें।

पूंजीवादी समाज रचना हो या समाजवादी दोनों ही व्यवस्थाओं में अपने फायदे को देखने वाला धनिक वर्ग होता है। उसे कष्ट सहन नहीं करने पड़ते हैं। वह अपने सुख के दायरे में रहता है। भारत में कोरोना वायरस धनी लोग विदेशों से लाए परंतु उसका परिणाम यहां के गरीबों को भोगना पड़ रहा है।

इन गरीबों की नौकरियां चली गईं, उनके छोटे-छोटे व्यवसाय बंद हो गए। उनके पास काम नहीं है। पेट भरने के लिए अन्न कहां से मिले, इसकी चिंता उन्हें सताने लगी है। वे अपने-अपने प्रांत लौटने लगे हैं। उनका हाल ह्रदय को दहलाने वाला है। कोरोना लाने वाला धनिक वर्ग आराम से जीवन बसर कर रहा है। भारत में श्रमजीवियों की संख्या 20-25 करोड़ से कम नहीं होगी। यह एक विस्फोटक बारूद है। उसकी ओर यदि योग्य तरीके से ध्यान नहीं दिया गया तो वे संपूर्ण समाज को हिलाने में सक्षम हैं। श्रमिक प्रधान अर्थव्यवस्था की ओर यदि देश उन्मुख नहीं हुआ तो दीर्घकाल तक ये प्रश्न, प्रश्न ही रहेंगे।

कोरोना वायरस का संकट जाति निरपेक्ष है। इसमें जाति को कहीं स्थान नहीं है। यह रोग जाति के बंधन शिथिल करता जाएगा। रोग से बचाव हेतु एक दूसरे से सामाजिक दूरी एवं जिंदा रहने के लिए एक दूसरे पर निर्भरता, ये दो बातें होती बोस्टन टी पाटी जाएंगी। ऊंच-नीच का भेद यदि माना गया तो तथाकथित उच्च वर्ण को उसके परिणाम भोगने पड़ेंगे। इसलिए जो परंपरा से उच्च हैं उन्हें कोरोना नीचे ले आएगा। मनुष्य सभी बातों में स्वावलंबी नहीं हो सकता। एक दूसरे पर अवलंबित रहकर ही उसे जीवन जीना पड़ेगा।

दीर्घकालीन राजनीतिक परिणाम भी ऐसे ही होंगे। कोई भी राज्य व्यवस्था आदर्श एवं परिपूर्ण नहीं होती। एक ऐसा वर्ग तैयार हो जाता है जो व्यवस्था के फायदे भोगता रहता है। हमारे संसदीय लोकतंत्र में भी एक ऐसा वर्ग तैयार हो गया है। इस वर्ग में वंश परंपरा से सत्ता भोगने वाले घराने निर्माण हो गए हैं। जैसा राजनीतिक क्षेत्र में है वैसा ही न्याय के क्षेत्र में भी हैं। ये घराने एक दूसरे की सहायता कर अपने हितसंबंधों का बचाव करने का काम बखूबी करते हैं।

हितसंबंधों का बचाव करने वाली, घरानेशाही को बढ़ाने वाली राज्य व्यवस्था गरीब एवं श्रमिक वर्ग का शोषण करने वाली हो गई है। यह व्यवस्था इसी प्रकार दीर्घकाल तक नहीं चल सकती। हमारी परंपरा हिंसक क्रांति की नहीं है। परंतु हम क्रांति के दरवाजे पर खड़े हैं।

विेश का इतिहास बताता है कि जिन जिन सत्ताओं में गरीब एवं श्रमिक कुचले गए हैं वे सत्ताएं कभी टिक नहीं पाईं। फ्रांस की राज्यक्रांति ने सभी प्रस्थापित वर्ग की हत्या कर दी। रूस की राज्यक्रांति में भी यही हुआ। हमारे देश का गरीब एवं श्रमिक शोषण को सहने वाला है। उस पर धार्मिक संस्कार गहराई तक हुए हैं। उसमें सहनशक्ति बहुत अधिक है। वैसे ही परिवर्तन की उसकी शक्ति भी प्रचंड है। उसकी सेवा करना यह इस समय का कर्तव्य है। सेवा से भूख मिटती है, कष्ट कम हो जाते हैं परंतु परिवर्तन नहीं होता। परिवर्तन के लिए विचार आवश्यक है। विचारों को सही तरीके से समाज के सामने रखना होता है। विचारों की भाषा सभी को सरलता से समझ में आने वाली होनी चाहिए। हर नई परिस्थिति में नया विचार प्रस्तुत करना होता है। लंबे समय तक समय की यह मांग कोई ना कोई तो पूरा करेगा ही।

अकस्मात आए इस ‘सी’ के धार्मिक परिणाम भी ऐसे ही होंगे। भारत में मुसलमान एवं ईसाई ये दो अन्य दो मुख्य धर्म हैं। उन्हें हिंदू जीवन पद्धति में कैसे लाया जाए यह एक नाजुक प्रश्न है। जब तक वे अरबी एवं रोमन संस्कृति में रहेंगे तब तक राष्ट्रीय एकात्मता निर्माण नहीं हो सकती। उन्हें एपीजे अब्दुल कलाम या जॉर्ज फर्नांडिस बनना होगा।

कोरोना का संकट जीवन पद्धति के विषय में आत्मचिंतन करने हेतु बाध्य करने वाला है। शारीरिक स्वास्थ्य हेतु आयुर्वेद, मानसिक स्वास्थ्य एवं प्रतिकार शक्ति बढ़ाने हेतु योग मार्ग, निरोगी जीवन जीने हेतु पर्यावरणपूरक जीवन व्यवहार ये हिंदू जीवन पद्धति की संकल्पनाए हैं। कोरोना के साथ यदि जीना है इस जीवन पद्धति का स्वीकार करना होगा, यही कोरोना का संदेश है।

‘सी’ के तात्कालिक एवं दीर्घकालिक परिणामों का यह संक्षेप में लेखा-जोखा है। मानवी जीवन कभी भी यथास्थितिवादी नहीं रहा। नित्य परिवर्तन यह मानवीय जीवन की विशेषता है। यह परिवर्तन कभी स्वाभाविक रूप से तो कभी आकस्मिक होते हैं। मनुष्य एक ही स्थिति में रहे, यह शायद निर्माता को भी पसंद नहीं। हजारों वर्षों पूर्व पशु, पक्षी, कीटक की स्थिति में थे वैसे ही आज भी हैं। मनुष्य का वैसा नहीं है। भविष्य में होने वाले परिवर्तनों के लिए हमें अभी से तैयारी करनी होगी।

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