प्रवासी मजदूरों पर दांव -पेंच

आंकड़े कहते हैं कि प्रत्येक दिन 2 लाख लोग अकेले उत्तर प्रदेश की ओर रुख कर रहे। इन पंक्तियों को लिखे जाने तक उप्र में 1044 ट्रेनों और हरियाणा-राजस्थान से रोज आ रहीं 400 बसों के जरिये लगभग 20 लाख मजदूर लौटे हैं। इसके अलावा अन्य साधनों से करीब 6 लाख प्रवासी मजदूर लौटे। प्रवासी मजदूरों की इतनी बड़ी संख्या को देखते हुए और अपनी उप्र की सियासत को चमकाने के लिए प्रवासी मजदूरों को बसों से घर पहुंचाने को लेकर प्रियंका गांधी वाड्रा के नेतृत्व में कांग्रेस ने योगी सरकार को फ्री बसें उपलब्ध कराने की चाल चली। जल्दबाजी में 1000 बसों की सूची में स्कूटर, थ्री व्हीलर से लेकर टेम्पो-ट्राली और एंबुलेंस तक के नंबर डाल दिए गए। पहले ही मजदूरों को लाने के लिए लगभग 27 हजार बसें लगा चुकी योगी सरकार ने भी कांग्रेस के प्रस्ताव में दिलचस्पी दिखा कर राजनीतिक दांव खेल दिया और कांग्रेस की किरकिरी करा दी क्योंकि वह अपने दावों को लेकर तैयार नहीं थी। ले-देकर यह सियासी घमासान मात्र राजनीतिक लाभ लेने या न लेने देने के हवनकुंड में स्वाहा भी हो गया और देश की अलग- अलग सड़कों, एक्सप्रेस-वे और हाइवे पर सैकड़ों-हजारों मजदूरों का पैदल या किन्हीं संसाधनों से निकलना बदस्तूर जारी रहा।

पलायन के इस दौर में रास्तों में हादसे भी होते रहे। उत्तर प्रदेश के औरैया में बिहार-झारखंड से लौट रहे मजदूरों से भरे ट्रक से एक दूसरे ट्रक की टक्कर में 25 मजदूरों की मौत हो गई। उसके पहले महाराष्ट्र के औरंगाबाद के पास ट्रेन की चपेट में आने से 16 मजदूर कटकर मारे गए थे। घर लौटने का साधन नहीं मिलने के कारण मध्यप्रदेश के रहने वाले ये लोग रेल की पटरियों के किनारे पैदल ही अपने घरों की तरफ चल पड़े थे तथा थकान के कारण रेल की पटरी पर ही सो गए थे।

इन मजदूरों को कोरोना कैरियर अर्थात् दूसरे लोगों के लिए खतरे के रूप में देखा जा रहा है। बात अपनी जगह सही भी है क्योंकि गांवों-कस्बों में दूसरे लॉकडाउन से मजदूरों के पहुंचने की रफ्तार बढ़ने के साथ ही कोरोना पीड़ितों की संख्या दोगुनी तक पहुंच गई है। राज्य सरकारें रोज एक ही बात की रट लगा रही हैं, कि उन्होंने मजदूरों की घर वापसी का इंतजाम किया है, उनके खाने-पीने की व्यवस्था की है। इन्हें कोई तकलीफ नहीं होने दी जाएगी। वहीं, पैदल ही सड़क नापते मजदूर कहते हैं कि वे भूखे हैं। उन्हें उनके घर पहुंचाने का कोई इंतजाम नहीं किया गया है। अगर सरकारें पूरी तरह से सच कह रही होतीं, तो हजारों मजदूर सड़कों पर नहीं दिखाई देते। मुसीबत में घर पहुंचने के लिए किसी को पत्नी के गहने बेचने पड़े या उधार लेना पड़ा तो कोई हताश-निराश साइकिल या पैदल ही चल पड़ा। कल तक यही मजदूर वोटर होने के नाते मां-बाप थे, अर्थव्यवस्था की रीढ़ थे।

राजस्थान की जिन बसों को लेकर कांग्रेस उप्र में सियासत चमकाने आ गई, क्या उसकी नीयत वाकई साफ थी? राजस्थान से जब यही मजदूर पैदल निकले तब तो उन्हें उप्र-बिहार या अन्य राज्यों में छोड़ने की कोई ठोस कोशिश नजर नहीं आई जबकि राजस्थान में कांग्रेस की ही सरकार है। प्रियंका और उनकी कांग्रेस प्रवासी मजदूरों के लिए इतनी ही चिंतित होती तो कोटा से राजस्थान की 70 बसों से उप्र पहुंचाए गए छात्रों के किराये का करीब 36 लाख का बिल योगी सरकार को नहीं थमाती। इन बसों की सेवा तब ली गई थी जब उप्र से भेजी गई बसें छात्रों की संख्या को देखते हुए कम पड़ गईं। महाराष्ट्र जहां से सर्वाधिक प्रवासी मजदूरों का पलायन जारी है, वहां भी कांग्रेस की भागीदारी वाली ही सरकार है। यदि इन मजदूरों पर थोड़ा सा भी ध्यान दिया गया होता तो कम से कम ऐसी भगदड़ और उनकी ऐसी दुर्गति न होती। इन प्रवासी मजदूरों की आंखों में बस एक ही सवाल था समूचे तंत्र से कि कोरोना बड़ी है या भूख?

बस ड्रामे के बीच सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने एक ट्वीट में कहा कि ‘अव्यवस्था के इस दौर में भी बीजेपी कमज़ोर लोगों पर अत्याचार करने से नहीं चूक रही है। ग़रीबों-मज़दूरों के साथ दुर्व्यवहार कर रही है और उन्हें घर तक न पहुंचाने के लिए तरह-तरह के बहाने ढूंढ रही है। अति निंदनीय। ये भाजपाई राजनीति नहीं षड्यंत्रकारी बाज़नीति है।’ एक दिन पहले तक वे निजी स्कूलों की बसों के इस्तेमाल की बात कर रहे थे। बसपा सुप्रीमो मायावती भी भला कहां पीछे रहने वाली थीं। मायावती ने एक के बाद एक कई ट्वीट किए और लिखा, ‘पिछले कई दिनों से प्रवासी श्रमिकों को घर भेजने के नाम पर खासकर भाजपा व कांग्रेस द्वारा जिस प्रकार से घिनौनी राजनीति की जा रही है, यह अति-दुर्भाग्यपूर्ण है। कहीं ऐसा तो नहीं कि ये पार्टियां आपसी मिलीभगत से एक-दूसरे पर आरोप- प्रत्यारोप करके इनकी (मजदूरों की) त्रासदी से ध्यान हटा रही हैं?’ उन्होंने कहा कि अगर कांग्रेस श्रमिक प्रवासियों को बसों से ही उनके घर वापसी में मदद करना चाहती है (ट्रेनों से नहीं) तो फिर इनको अपनी ये सभी बसें कांग्रेस-शासित राज्यों में श्रमिकों की मदद में लगा देनी चाहिए, यह बेहतर होगा।’ मायावती ने अपने दूसरे ट्वीट में कहा, ‘यदि ऐसा नहीं है तो बसपा का कहना है कि कांग्रेस को श्रमिक प्रवासियों को बसों से ही घर भेजने में मदद करने पर अड़ने की बजाए, इनका टिकट लेकर ट्रेनों से ही इन्हें इनके घर भेजने में मदद करनी चाहिए। यह ज्यादा उचित व सही होगा।’ मायावती ने ट्वीट में लिखा, ‘इन्हीं सब बातों को खास ध्यान में रखकर ही बसपा के लोगों ने अपने सामर्थ्य के हिसाब से प्रचार व प्रसार के चक्कर में न पड़ कर, बल्कि पूरे देश में इनकी हर स्तर पर काफी मदद की है।

’कांग्रेस ने ऐसी वैिेशक महामारी में अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने का इरादा तो तभी जाहिर कर दिया था जब सोशल मीडिया पर वायरल हुई एक तस्वीर को कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने अपने ट्विटर हैंडल से शेयर करने से नहीं चूके। इस तस्वीर में लॉकडाउन के बीच एक भारतीय महिला मजदूर को अपनी पीठ पर अपने बच्चे को बांधे साइकिल से अपने गांव पहुंचने की कोशिश करते बताया गया था। सुरजेवाला ने इस तस्वीर को कैप्शन दिया, ‘न्यू इंडिया का सच!’ जबकि वायरल तस्वीर का भारत से कोई लेना-देना नहीं था। दरअसल यह तस्वीर यूरोपीयन प्रेस फोटो एजेंसी की थी, जिसे नरेंद्र श्रेष्ठ नाम के फोटोग्राफर ने 29 जून, 2012 को नेपालगंज में खींचा था।

श्रमिक ट्रेनों को चलाने पर भी कुछ राज्य राजनीति करने से बाज नहीं आए। श्रमिक स्पेशल ट्रेनों को लेकर दो विवाद हुए। पहला, मजदूरों के किराए पर कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि केंद्र सरकार मजदूरों से ट्रेन का किराया ले रही है, जो कि शर्मनाक है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कांग्रेस की सभी प्रदेश इकाइयों से कहा था कि मजदूरों के टिकट का खर्च वे उठाएं। इसके बाद स्वास्थ्य मंत्रालय के सचिव लव अग्रवाल ने बताया कि श्रमिक ट्रेनें राज्यों की मांग पर चलाई जा रही हैं और इसमें यात्रा का 85 फीसदी खर्च केंद्र सरकार उठा रही है, जबकि 15 फीसदी राज्य सरकारों को देना है। दूसरा विवाद था कि राज्य ट्रेनें चलाने की अनुमति नहीं दे रहे। सबसे पहले आरोप पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर लगा। गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि ममता ट्रेनों की मंजूरी न देकर मजदूरों के साथ अन्याय कर रही हैं। इसके बाद रेल मंत्री पीयूष गोयल ने भी ऐसे ही आरोप लगाए थे। उधर, ममता बनर्जी ने कहा था कि केंद्र सरकार मजदूरों की घर वापसी पर राजनीति कर रही है।

लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों की स्थिति पर मद्रास उच्च न्यायालय और बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने भी चिंता जताई। मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि मजदूरों के हालात देखकर कोई अपनी आंख से आंसू नहीं रोक सकता है। यह और कुछ नहीं एक मानवीय त्रासदी है। कोर्ट ने यह भी कहा कि प्रवासी मज़दूरों का ध्यान रखना स़िर्फ मूल राज्यों का ही नहीं बल्कि उन प्रदेशों का भी कर्तव्य है, जहां वे काम करते हैं।

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