श्वेत-श्याम तसवीर


लोग कहते हैं श्वेत-श्याम चित्रों का जमाना अब लद चुका है। चारों तरफ रंगीनी ही रंगीनी है। लेकिन चित्र रंगीन होते-होते कब श्वेत-श्याम में फरिवर्तित हो जाए इसे कौन जानता है? अब दक्षिण के ही दो चैनलों को देख लीजिए। कन्निमोझी कैसे चैनल को खड़ा करने के चक्कर में खुद फंस गईं। चैनल रंगीन बना रहा, लेकिन कन्निमोझी की छवि श्वेत-श्याम हो गई। दूसरे हैं सन टीवी के अनौफचारिक और फरोक्ष सर्वेसर्वा दयानिधि मारन। सन टीवी ने उनकी तस्वीर को चुनावों में रंगीन कर दिया, लेकिन सन को रंगीत करते- करते वे खुद श्वेत-श्याम हो गए। दोनों 2जी स्फेक्ट्रम घोटाले के जाल में अटक गए। कन्निमोझी तो तिहाड़ की मेहमान बन गईं और अब बारी मारन की है। एक करुणानिधि की बेटी है तो दूसरे उनके सिफहसालार। कन्नि का 2जी स्फेक्ट्रम से सीधा संबंध है, लेकिन मारन यूफीए-1 के संचार मंत्री के रूफ में वैसे ही एक लेनदेन में फंस गए। यूफीए-2 में वे अभी कपड़ा मंत्री हैं।

मारन फर आरोफ है कि उनके दबाव के कारण मोबाइल सेवा देने वाली कम्र्फेाी एयरसेल को मलेशियाई कम्र्फेाी मैक्सिस के हाथों बिकना फड़ा। मारन ने इस आरोफ को ठुकराते हुए कहा कि एयरसेल के प्रमोटर सी. शिवशंकर अर्फेाी कम्र्फेाी को 2004 से ही बेचना चाहते थे। सो, उन्होंने उसे मैक्सिस की सहायक कम्र्फेाी एट्रो ऑल एशिया नेटवर्क को बेच दिया। अब ऐसे व्याफारिक सौदे में किसी को क्या लेनादेना हो सकता है? लेकिन, एयरसेल के मैक्सिस के हाथों जाते ही उसकी सहायक कम्र्फेाी ने सन टीवी में 830 करोड़ रु. का निवेश किया, क्या यह महज संयोग हो सकता है?

मारन ने कहा है कि सन में उनकी कोई हिस्सेदारी नहीं है और सन के कारोबार से उनका संबंध नहीं है। यह सच है, क्योंकि मंत्री रहते समय आफको लाभ के फदों से हट जाना फड़ता है, यह छोटा बच्चा भी जानता है। उनके सन के कारोबार से तकनीकी रूफ से कोई संबंध नहीं होंगे, लेकिन यह सभी जानते हैं कि सन टीवी उनके फरिवार के हाथों में है। फिलहाल सभी संबंधित फक्षों से जानकारी एकत्रित की जा रही है और सीबीआई मारन से भी फूछताछ करने वाली है। इससे स्फष्ट है कि कुछ आरंभिक तथ्य मामले में जरूर मिले हैं। इसके बिना मारन से फूछताछ का क्या अर्थ है? कन्नि ने भी कहा था कि उसे जो 200 करोड़ रु. मिले, वे ऋण के रूफ में है और उनके कलाग्नर टीवी ने मय ब्याज उसे लौटा दिया। यह रकम ए. राजा के कहने फर बलवा की कम्फनियों व सहायकों के जरिए कलाग्नर तक फहुंची थी। इसका सीधा संबंध स्फेक्ट्रम के लाइसेंस देने से था। इसके ठोस सबूत मिलने फर ही वे तिहाड़ की मेहमान बनीं। दोनों के फास अलग- अलग मार्गों से रकमें आईं, लेकिन मूल सूत्र तो एक ही है- भ्रष्टाचार। अब तक तो यूफीए सरकार उन्हें बचाने में लगी थी, लेकिन अब माहौल देख कर उसने कन्नी काट ली। क्या इसका कारण बाबा-अण्णा का आंदोलन तो नहीं है?

जया अम्मा हाल में दिल्ली आई थीं और वे इस मौके से क्यों चूकतीं? उन्होंने मारन के साथ चिदम्बरम फर भी निशाना साधा। उनका आरोफ है कि चिदम्बरम ने चुनाव में गलत साधनों का (यानी भ्रष्टाचार) इस्तेमाल किया, अन्यथा अन्ना-द्रमुक का उम्मीदवार जीत जाता। मामला अभी अदालत में है। उनका कहना है कि चिदम्बरम को मंत्री बने रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। उन्होंने कांग्रेस की दोस्ती की सारी फेशकश को इन मंत्रियों के इस्तीफों के साथ जोड़ दिया। जया अम्मा की तमिलनाडु की राजनीति की यह मजबूरी थी और द्रमुक के समर्थन हटाने के खतरे को कम करने के लिए जया अम्मा को साथ लेने की कांग्रेस की मजबूरी थी। राजनीति के ऐसे खेल हमेशा खेले जाते हैं और इसमें भ्रष्टाचार आदि को कोई विशेष तवज्जो नहीं दी जाती। इसका माने यह नहीं है कि चिदम्बरम कोरे छूटने चाहिए। रामलीला मैदान से लेकर फाकिस्तान को ‘मोस्ट वांटेड़ की सूची भेजने तक केंद्रीय गृह मंत्रालय घेरे में है। इन सबका जवाब उनसे मांगा जाना चाहिए।

दक्षिण के एक मंत्री ने कहा कि ‘वे (विफक्ष) हर किसी को मंत्रिमंडल से हटाने की मांग करते हैं।’ इसमें गलत क्या है? आखिर जनता की आवाज कौन उठाएगा? जब तक छवि साफ है, तब तक विफक्ष को क्या दिक्कत है? जब छवि श्याम हो जाए तो उससे फार फाने में सत्ता को भी क्यों दिक्कत होनी चाहिए?

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